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'''पृथ्वीनाथ मन्दिर''' गोंडा, [[उत्तर प्रदेश]] के खरगपुर क्षेत्र में स्थित है। यह मन्दिर ज़िला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर जनपद के एक छोटे-से कस्बे खरगपुर बाज़ार के पश्चिम में है। यह मन्दिर वास्तुकला का सर्वोत्तम नमूना है। पृथ्वीनाथ मन्दिर में स्थापित 'शिवलाट' विश्व की सबसे ऊँची शिवलाट बताई जाती है, जिसे [[द्वापर युग]] में [[पांडव|पांडवों]] के [[अज्ञातवास]] के दौरान [[भीम]] ने स्थापित किया था। पृथ्वीनाथ मन्दिर के दर्शन पाकर सभी [[भक्त]] आत्मिक शांति को पाते हैं। मन्दिर के [[शिवलिंग]] के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट, कलेश दूर हो जाते हैं। भक्तों का अटूट विश्वास इस स्थान की महत्ता को दर्शाता है।  
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'''पृथ्वीनाथ मन्दिर''' गोंडा, [[उत्तर प्रदेश]] के खरगुपुर क्षेत्र में स्थित है। यह मन्दिर ज़िला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर जनपद के एक छोटे-से कस्बे खरगुपुर बाज़ार के पश्चिम में है। यह मन्दिर वास्तुकला का सर्वोत्तम नमूना है। पृथ्वीनाथ मन्दिर में स्थापित 'शिवलाट' विश्व की सबसे ऊँची शिवलाट बताई जाती है, जिसे [[द्वापर युग]] में [[पांडव|पांडवों]] के [[अज्ञातवास]] के दौरान [[भीम]] ने स्थापित किया था। पृथ्वीनाथ मन्दिर के दर्शन पाकर सभी [[भक्त]] आत्मिक शांति को पाते हैं। मन्दिर के [[शिवलिंग]] के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट, कलेश दूर हो जाते हैं। भक्तों का अटूट विश्वास इस स्थान की महत्ता को दर्शाता है।  
 
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==पौराणिक कथा==
 
ज़िला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जनपद के छोटे-से कस्बे खरगुपुर बाजार के पश्चिम में ऐतिहासिक व आस्था का केन्द्र पृथ्वीनाथ मन्दिर स्थित है। भगवान [[शिव]] के इस मन्दिर का अपना ही [[इतिहास]] है। कहा जाता है कि इसकी एक कथा [[महाभारत]] के [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] में मिलती है। इस कथा के अनुसार [[कौरव|कौरवों]] और [[पांडव|पांडवों]] के बीच हुए जुएँ मे हारने के बाद [[युधिष्ठिर]] अपने भाईयों और [[द्रौपदी]] के साथ वनवास को चले गये। इसमें एक शर्त कौरवों की ओर से पांडवो के समक्ष रखी गयी थी। जिसमें पांडवों को एक [[वर्ष]] [[अज्ञातवास]] में व्यतीत करना था। इस एक वर्ष के मध्य पहचान लिये जाने उन्हें पुन: चौदह वर्षों का वनवास बिताना पड़ता। इसी अज्ञातवास को बिताने के लिये पांडव छिपते-छिपते [[कौशल]] राज्य के वन क्षेत्र पंचारण्य में आ पहुँचे। यहाँ पर पांडवों ने अपने अज्ञातवास में रहने की योजना बनायी तथा पाँचों पांडवों ने भगवान शिव की [[पूजा]]-अर्चना करने के लिये अलग-अलग स्थानों पर [[शिवलिंग]] स्थापित किये। कहा जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने 'लोमनाथ' (झारखण्डी), 'पंचरत्रनाथ' (पचरन); [[भीम]] ने 'महादेव' (पृथ्वीनाथ) तथा [[नकुल]]-[[सहदेव]] ने आज जहाँ इतरती गाँव है, वहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। इसके बाद पांडव [[नेपाल]] के [[विराट नगर]] चले गये, जिसका उल्लेख [[महाभारत]] मे मिलता है। इस स्थान के लिये महाभारत में अचिरावती नदी का उल्लेख मिलता है। विज्ञानियों के अनुसार अचिरावती का अपभ्रंश होते-होते 'रावती' हुआ, फिर बाद के समय में यह नाम 'राप्ती' हो गया। [[राप्ती नदी]] पृथ्वीनाथ मन्दिर के निकट ही है। यहाँ से कौशल राज्य की राजधानी भी अत्याधिक निकट है। इसी से यह प्रमाणित होता है कि पांडवों ने यहाँ पर अज्ञातवास किया था।<ref>{{cite web |url=http://www.nnilive.com/2010-10-12-09-48-30/40-2010-10-12-10-16-38/8303-2012-03-20-13-45-36.html|title=ऐतिहासिक धरोहर संजोए है, गोंडा का यह प्राचीनतम मन्दिर|accessmonthday=09 अगस्त|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
ज़िला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जनपद के छोटे-से कस्बे खरगुपुर बाजार के पश्चिम में ऐतिहासिक व आस्था का केन्द्र पृथ्वीनाथ मन्दिर स्थित है। भगवान [[शिव]] के इस मन्दिर का अपना ही [[इतिहास]] है। कहा जाता है कि इसकी एक कथा [[महाभारत]] के [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] में मिलती है। इस कथा के अनुसार [[कौरव|कौरवों]] और [[पांडव|पांडवों]] के बीच हुए जुएँ मे हारने के बाद [[युधिष्ठिर]] अपने भाईयों और [[द्रौपदी]] के साथ वनवास को चले गये। इसमें एक शर्त कौरवों की ओर से पांडवो के समक्ष रखी गयी थी। जिसमें पांडवों को एक [[वर्ष]] [[अज्ञातवास]] में व्यतीत करना था। इस एक वर्ष के मध्य पहचान लिये जाने उन्हें पुन: चौदह वर्षों का वनवास बिताना पड़ता। इसी अज्ञातवास को बिताने के लिये पांडव छिपते-छिपते [[कौशल]] राज्य के वन क्षेत्र पंचारण्य में आ पहुँचे। यहाँ पर पांडवों ने अपने अज्ञातवास में रहने की योजना बनायी तथा पाँचों पांडवों ने भगवान शिव की [[पूजा]]-अर्चना करने के लिये अलग-अलग स्थानों पर [[शिवलिंग]] स्थापित किये। कहा जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने 'लोमनाथ' (झारखण्डी), 'पंचरत्रनाथ' (पचरन); [[भीम]] ने 'महादेव' (पृथ्वीनाथ) तथा [[नकुल]]-[[सहदेव]] ने आज जहाँ इतरती गाँव है, वहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। इसके बाद पांडव [[नेपाल]] के [[विराट नगर]] चले गये, जिसका उल्लेख [[महाभारत]] मे मिलता है। इस स्थान के लिये महाभारत में अचिरावती नदी का उल्लेख मिलता है। विज्ञानियों के अनुसार अचिरावती का अपभ्रंश होते-होते 'रावती' हुआ, फिर बाद के समय में यह नाम 'राप्ती' हो गया। [[राप्ती नदी]] पृथ्वीनाथ मन्दिर के निकट ही है। यहाँ से कौशल राज्य की राजधानी भी अत्याधिक निकट है। इसी से यह प्रमाणित होता है कि पांडवों ने यहाँ पर अज्ञातवास किया था।<ref>{{cite web |url=http://www.nnilive.com/2010-10-12-09-48-30/40-2010-10-12-10-16-38/8303-2012-03-20-13-45-36.html|title=ऐतिहासिक धरोहर संजोए है, गोंडा का यह प्राचीनतम मन्दिर|accessmonthday=09 अगस्त|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
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====अन्य कथा====
समय बीतता रहा यह शिवलिंग मिट्टी मे दबा रहा जो धीरे-धीरे एक उंचे मिट्टी के टीले मे तब्दील हो गया ऐसा कहा जाता है कि यहॉ पृथ्वी नाथ सिंह अपने शासन काल में यहां पर खुदाई करायी। खुदाई मे यह शिवलिंग मिला। उन्होंने इस स्थान पर एक मन्दिर का निर्माण कराया। उन्ही के नाम पर इस मन्दिर को पृथ्वी नाथ मन्दिर कहा जाता है।  
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एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडवों को [[अज्ञातवास]] दिया गया तो वह यहाँ पर आए। इस दौरान [[भीम]] ने यहाँ पर [[शिवलिंग]] की स्थापना की। परंतु कालांतर में यह शिवलिंग जमीन में धसने लगा और धीरे-धीरे पूरा का पूरा शिवलिंग धरती में समा गया। कहा जाता है की एक बार खरगुपुर के राजा गुमान सिंह की अनुमति को पाकर गाँव के निवासी, जिसका नाम पृथ्वीनाथ सिंह बताया जाता है, उसने अपना घर बनाने के लिए निर्माण कर्य शुरू करवाया, परंतु जमीन की खुदाई के दौरान यहाँ से [[रक्त]] का फौव्वारा बहने लगा। इस दृश्य को देखकर सभी लोग सहम गए तथा पृथ्वीनाथ सिंह ने घर का निर्माण कार्य रोक दिया, परंतु उसी रात में पृथ्वीनाथ सिंह को एक सपना आया। सपने के द्वारा उसे इस बात का पता चला कि भूमि के नीचे एक सात खण्डों का शिवलिंग दबा हुआ है। पृथ्वीनाथ सिंह को शिवलिंग निकाल कर उसकी स्थापना का आदेश प्राप्त होता है। प्रात:काल उठ कर वह इस बात को राजा के समक्ष रखता है, जिस पर राजा उस स्थान पर एक खण्ड तक शिवलिंग खोदने का निर्देश देता है। वहाँ से शिवलिंग प्राप्त होता है। इस शिवलिंग की स्थापना की जाती है। राजा पूर्ण विधि विधान से शिवलिंग को मन्दिर में स्थापित करवा एता है। पृथ्वीनाथ के नाम पर ही इस मन्दिर का नाम 'पृथ्वीनाथ शिव मन्दिर' पड़ गया।<ref>{{cite web |url=https://sites.google.com/site/pandavbuiltreligeousplace/prthvinath-mandir|title=पृथ्वीनाथ मन्दिर|accessmonthday=09 अगस्त|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी }}</ref>
 
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==आस्था का केन्द्र==
बतात चले आकार मे यह शिवलिंग काफी विशाल है। इस शिवलिंग का निर्माण स्फटिक पथ्तर से हुआ है। इस मन्दिर की प्रसिद्धि देश ही नही अपितु विदेश में भी है। विदेशी पर्यटकों का आवागमन यहां होता है लेकिन खरगपुर कस्बे की उपेक्षा के चलते यह मन्दिर विश्व पर्यटकों से दूर हो गया है। क्षेत्रीय लोगो ने इसे बेहद ही संजो कर रखा है। पर्यटक स्थलों के विकास के लिये लाखों रूपए व्यय भी किए जा रहे हैं। वहीं इस दौ़र मे खरगुपुर बेहद पिछ़ गया है। पृथ्वीनाथ मन्दिर पर्यटन मानचित्र से धूमिल होता चला जा रहा है।
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प्रत्येक कजली तीज, [[शिवरात्रि]] व [[दशहरा]] को यहाँ मेला लगता है। यही नहीं, हर तीसरे [[वर्ष]] पड़ने वाले '[[मल मास]]' में एक माह का मेला भी आयोजित किया जाता है। [[श्रावण माह]] में प्रत्येक [[शुक्रवार]] व [[सोमवार]] को श्रद्धालुओं की भीड़ मन्दिर पर उमड़ पड़ती है। शिवलाट का जलाभिषेक कर परिक्रमा करने के लिए गोंडा ज़िले के अतिरिक्त दूसरे ज़िलों व प्रांतों से भी लोग आकर मनौतियाँ मानते हैं। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र होने के साथ पृथ्वीनाथ मन्दिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। प्राचीन काल में निर्मित यह मन्दिर इतनी ऊँचाई पर स्थित है कि चाहे जितनी भी [[वर्षा]] हुई हो, लेकिन आज तक मन्दिर के द्वार तक पानी नहीं पहुँचा है। मन्दिर में शिवलाट के अलावा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी शिल्पकला का श्रेष्ठ उदाहरण हैं। इन्हें देखकर ऐसे लगता है कि जैसे वे सजीव हैं और कुछ कहना चाह रही हैं। सामान्य दिनों में मन्दिर के कपाट चार बजे सुबह खुल जाते हैं, लेकिन मेला वाले समय में रात बारह बजे से ही [[पूजा]]-अर्चना शुरू हो जाती है।<ref>{{cite web |url=http://www.jagran.com/uttar-pradesh/gonda-10603072.html|title=वास्तुकला का सर्वोत्तम नमूना है पृथ्वीनाथ मन्दिर|accessmonthday=09 अगस्त|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
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==उपेक्षा==
विश्व के मानचित्र पर पर्यटन में अपनी जगह बना चुका गोंडा के खरगुपुर क्षेत्र में स्थित पृथ्वी नाथ मन्दिर उपेक्षाओ का दंश झेल रहा है। इसका एक बहुत बड़ा कारण है खरगपुर कस्बे का उपेक्षित होना। ऐतिहासिक धरोहर को संजोये इस मन्दिर का अपना ही विशेष महत्व है। इस इलाके की उपेक्षा के चलते देश, विदेश से पर्यटकों के आने की संख्या मे प्रतिदिन कमी होती चली जा रही है।
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आकार में यह शिवलिंग काफ़ी विशाल है। इस शिवलिंग का निर्माण स्फटिक पत्थर से हुआ है। पृथ्वीनाथ मन्दिर की प्रसिद्धि [[भारत]] में ही नहीं, अपितु विदेश में भी है। विदेशी पर्यटकों का आवागमन यहाँ लगा रहता है, लेकिन खरगुपुर कस्बे की उपेक्षा के चलते यह मन्दिर विश्व पर्यटकों से दूर हो गया है। क्षेत्रीय लोगों ने इसे बेहद ही संजोकर रखा है। पर्यटक स्थलों के विकास के लिये लाखों [[रुपया]] व्यय भी किया जा रहा है। वहीं इस दौ़र में खरगुपुर बेहद पिछड़ गया है। पृथ्वीनाथ मन्दिर पर्यटन मानचित्र से धूमिल होता चला जा रहा है। विश्व मानचित्र पर पर्यटन में अपनी ख़ास जगह बना चुके गोंडा का पृथ्वीनाथ मन्दिर उपेक्षाओ का दंश झेल रहा है। इसका एक बहुत बड़ा कारण है- कस्बे का उपेक्षित होना। ऐतिहासिक धरोहर को संजोये इस मन्दिर का अपना ही विशेष महत्व है। इस इलाके की उपेक्षा के चलते देश, विदेश से पर्यटकों के आने की संख्या में प्रतिदिन कमी रही है।
  
 
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12:48, 9 अगस्त 2013 का अवतरण

पृथ्वीनाथ मन्दिर गोंडा, उत्तर प्रदेश के खरगुपुर क्षेत्र में स्थित है। यह मन्दिर ज़िला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर जनपद के एक छोटे-से कस्बे खरगुपुर बाज़ार के पश्चिम में है। यह मन्दिर वास्तुकला का सर्वोत्तम नमूना है। पृथ्वीनाथ मन्दिर में स्थापित 'शिवलाट' विश्व की सबसे ऊँची शिवलाट बताई जाती है, जिसे द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भीम ने स्थापित किया था। पृथ्वीनाथ मन्दिर के दर्शन पाकर सभी भक्त आत्मिक शांति को पाते हैं। मन्दिर के शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट, कलेश दूर हो जाते हैं। भक्तों का अटूट विश्वास इस स्थान की महत्ता को दर्शाता है।

पौराणिक कथा

ज़िला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जनपद के छोटे-से कस्बे खरगुपुर बाजार के पश्चिम में ऐतिहासिक व आस्था का केन्द्र पृथ्वीनाथ मन्दिर स्थित है। भगवान शिव के इस मन्दिर का अपना ही इतिहास है। कहा जाता है कि इसकी एक कथा महाभारत के वनपर्व में मिलती है। इस कथा के अनुसार कौरवों और पांडवों के बीच हुए जुएँ मे हारने के बाद युधिष्ठिर अपने भाईयों और द्रौपदी के साथ वनवास को चले गये। इसमें एक शर्त कौरवों की ओर से पांडवो के समक्ष रखी गयी थी। जिसमें पांडवों को एक वर्ष अज्ञातवास में व्यतीत करना था। इस एक वर्ष के मध्य पहचान लिये जाने उन्हें पुन: चौदह वर्षों का वनवास बिताना पड़ता। इसी अज्ञातवास को बिताने के लिये पांडव छिपते-छिपते कौशल राज्य के वन क्षेत्र पंचारण्य में आ पहुँचे। यहाँ पर पांडवों ने अपने अज्ञातवास में रहने की योजना बनायी तथा पाँचों पांडवों ने भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिये अलग-अलग स्थानों पर शिवलिंग स्थापित किये। कहा जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने 'लोमनाथ' (झारखण्डी), 'पंचरत्रनाथ' (पचरन); भीम ने 'महादेव' (पृथ्वीनाथ) तथा नकुल-सहदेव ने आज जहाँ इतरती गाँव है, वहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। इसके बाद पांडव नेपाल के विराट नगर चले गये, जिसका उल्लेख महाभारत मे मिलता है। इस स्थान के लिये महाभारत में अचिरावती नदी का उल्लेख मिलता है। विज्ञानियों के अनुसार अचिरावती का अपभ्रंश होते-होते 'रावती' हुआ, फिर बाद के समय में यह नाम 'राप्ती' हो गया। राप्ती नदी पृथ्वीनाथ मन्दिर के निकट ही है। यहाँ से कौशल राज्य की राजधानी भी अत्याधिक निकट है। इसी से यह प्रमाणित होता है कि पांडवों ने यहाँ पर अज्ञातवास किया था।[1]

अन्य कथा

एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडवों को अज्ञातवास दिया गया तो वह यहाँ पर आए। इस दौरान भीम ने यहाँ पर शिवलिंग की स्थापना की। परंतु कालांतर में यह शिवलिंग जमीन में धसने लगा और धीरे-धीरे पूरा का पूरा शिवलिंग धरती में समा गया। कहा जाता है की एक बार खरगुपुर के राजा गुमान सिंह की अनुमति को पाकर गाँव के निवासी, जिसका नाम पृथ्वीनाथ सिंह बताया जाता है, उसने अपना घर बनाने के लिए निर्माण कर्य शुरू करवाया, परंतु जमीन की खुदाई के दौरान यहाँ से रक्त का फौव्वारा बहने लगा। इस दृश्य को देखकर सभी लोग सहम गए तथा पृथ्वीनाथ सिंह ने घर का निर्माण कार्य रोक दिया, परंतु उसी रात में पृथ्वीनाथ सिंह को एक सपना आया। सपने के द्वारा उसे इस बात का पता चला कि भूमि के नीचे एक सात खण्डों का शिवलिंग दबा हुआ है। पृथ्वीनाथ सिंह को शिवलिंग निकाल कर उसकी स्थापना का आदेश प्राप्त होता है। प्रात:काल उठ कर वह इस बात को राजा के समक्ष रखता है, जिस पर राजा उस स्थान पर एक खण्ड तक शिवलिंग खोदने का निर्देश देता है। वहाँ से शिवलिंग प्राप्त होता है। इस शिवलिंग की स्थापना की जाती है। राजा पूर्ण विधि विधान से शिवलिंग को मन्दिर में स्थापित करवा एता है। पृथ्वीनाथ के नाम पर ही इस मन्दिर का नाम 'पृथ्वीनाथ शिव मन्दिर' पड़ गया।[2]

आस्था का केन्द्र

प्रत्येक कजली तीज, शिवरात्रिदशहरा को यहाँ मेला लगता है। यही नहीं, हर तीसरे वर्ष पड़ने वाले 'मल मास' में एक माह का मेला भी आयोजित किया जाता है। श्रावण माह में प्रत्येक शुक्रवारसोमवार को श्रद्धालुओं की भीड़ मन्दिर पर उमड़ पड़ती है। शिवलाट का जलाभिषेक कर परिक्रमा करने के लिए गोंडा ज़िले के अतिरिक्त दूसरे ज़िलों व प्रांतों से भी लोग आकर मनौतियाँ मानते हैं। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र होने के साथ पृथ्वीनाथ मन्दिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। प्राचीन काल में निर्मित यह मन्दिर इतनी ऊँचाई पर स्थित है कि चाहे जितनी भी वर्षा हुई हो, लेकिन आज तक मन्दिर के द्वार तक पानी नहीं पहुँचा है। मन्दिर में शिवलाट के अलावा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी शिल्पकला का श्रेष्ठ उदाहरण हैं। इन्हें देखकर ऐसे लगता है कि जैसे वे सजीव हैं और कुछ कहना चाह रही हैं। सामान्य दिनों में मन्दिर के कपाट चार बजे सुबह खुल जाते हैं, लेकिन मेला वाले समय में रात बारह बजे से ही पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है।[3]

उपेक्षा

आकार में यह शिवलिंग काफ़ी विशाल है। इस शिवलिंग का निर्माण स्फटिक पत्थर से हुआ है। पृथ्वीनाथ मन्दिर की प्रसिद्धि भारत में ही नहीं, अपितु विदेश में भी है। विदेशी पर्यटकों का आवागमन यहाँ लगा रहता है, लेकिन खरगुपुर कस्बे की उपेक्षा के चलते यह मन्दिर विश्व पर्यटकों से दूर हो गया है। क्षेत्रीय लोगों ने इसे बेहद ही संजोकर रखा है। पर्यटक स्थलों के विकास के लिये लाखों रुपया व्यय भी किया जा रहा है। वहीं इस दौ़र में खरगुपुर बेहद पिछड़ गया है। पृथ्वीनाथ मन्दिर पर्यटन मानचित्र से धूमिल होता चला जा रहा है। विश्व मानचित्र पर पर्यटन में अपनी ख़ास जगह बना चुके गोंडा का पृथ्वीनाथ मन्दिर उपेक्षाओ का दंश झेल रहा है। इसका एक बहुत बड़ा कारण है- कस्बे का उपेक्षित होना। ऐतिहासिक धरोहर को संजोये इस मन्दिर का अपना ही विशेष महत्व है। इस इलाके की उपेक्षा के चलते देश, विदेश से पर्यटकों के आने की संख्या में प्रतिदिन कमी आ रही है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक धरोहर संजोए है, गोंडा का यह प्राचीनतम मन्दिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 अगस्त, 2013।
  2. पृथ्वीनाथ मन्दिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 अगस्त, 2013।
  3. वास्तुकला का सर्वोत्तम नमूना है पृथ्वीनाथ मन्दिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 अगस्त, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख