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*कांगड़ा चित्रकला शैली में प्राकृतिक, विशेषकर पर्वतीय दृश्यों का भी चित्रण किया गया है।  
 
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चित्र:Kangra-Painting.jpg|[[राम]], [[लक्ष्मण]] तथा [[सीता]]
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चित्र:Kangra-Painting-1.jpg|कांगड़ा चित्रकला
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चित्र:Kangra-Painting-2.jpg|महाराजा संसार चंद्र लोगों से मिलते हुए
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चित्र:Kangra-Painting-4.jpg|कांगड़ा चित्रकला
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चित्र:Kangra-Painting-5.jpg|[[समुद्र मंथन]] का दृश्य
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चित्र:Kangra-Painting-6.jpg|सखी द्वारा [[राधा]] से गर्व त्याग का आग्रह
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चित्र:Kangra-Painting-7.jpg|[[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[शिव]]
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चित्र:Kangra-Painting-8.jpg|राशि चक्र के संकेत से घिरे सूर्य
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चित्र:Kangra-Painting-9.jpg|कांगड़ा चित्रकला
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कांगड़ा चित्रकला

कांगड़ा चित्रकला पहाड़ी चित्रकला का एक भाग है।

  • भारतीय चित्रकला के इतिहास के मध्ययुग में विकसित पहाड़ी शैली के अंतर्गत कांगड़ा शैली का विशेष स्थान है।
  • कांगड़ा चित्रकला का विकास कचोट राजवंश के राजा संसार चन्द्र के कार्यकाल में हुआ।
  • कांगड़ा चित्रकला शैली दर्शनीय तथा रोमाण्टिक है।
  • कांगड़ा चित्रकला में पौराणिक कथाओं और रीतिकालीन नायक- नायिकाओं के चित्रों की प्रधानता है तथा गौण रूप में व्यक्ति चित्रों को भी स्थान दिया गया है।
  • कांगड़ा शैली में सर्वाधिक प्रभावशाली आकृतियाँ स्त्रियों की हैं जिसमें चित्रकारों ने भारतीय परम्परा के अनुसार नारी के आदर्श रूप को ही ग्रहण किया है।
  • कांगड़ा शैली के स्त्री चित्रों में सत्कुल को अभिव्यक्त करने वाले वस्त्र, चाँद सी गोल मुखाकृति, बड़ी- बड़ी भावप्रवण आँखे, भरे हुए वक्ष, लयमान उंगलियाँ, मुख में छिपा हुआ रहस्यमय भाव सर्वत्र दृष्टिगोचर होते हैं।
  • यह नितांत निजी शैली है जिसकी विशेषता नारी- सौन्दर्य के प्रति अत्यधिक झुकाव है।
  • कांगड़ा चित्रकला शैली में प्राकृतिक, विशेषकर पर्वतीय दृश्यों का भी चित्रण किया गया है।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख