निरंजनी अखाड़ा, शैव
निरंजनी अखाड़ा (अंग्रेज़ी: Niranjani Akhara) शैव सम्प्रदाय के सात अखाड़ों में से एक है। यह भारत के सबसे बड़े और प्रमुख अखाड़ों में है। जूना अखाड़े के बाद इसे सबसे ताकतवर माना जाता है। देश के 13 प्रमुख अखाड़ों में से यह एक है। इसका एक परिचय ये भी है कि इसमें सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधू हैं, जिसमें डॉक्टर, प्रोफेसर और प्रोफेशनल शामिल हैं। निरंजनी अखाड़े की हमेशा एक अलग छवि रही है।
इतिहास
निरंजनी अखाड़ा की स्थापना सन 904 में विक्रम संवत 960 कार्तिक कृष्ण पक्ष दिन सोमवार को गुजरात की मांडवी नाम की जगह पर हुई थी। महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़ा की नींव रखी। अखाड़ा का मुख्यालय तीर्थराज प्रयाग में है। उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर व उदयपुर में अखाड़े के आश्रम हैं।
पढ़े-लिखे साधु-संतों का अखाड़ा
एक रिपोर्ट के अनुसार शैव परंपरा के निरंजनी अखाड़े के करीब 70 फीसदी साधु-संतों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है। इनमें से कुछ डॉक्टर, कुछ वकील, प्रोफेसर, संस्कृत के विद्वान और आचार्य शामिल हैं।
महामंडलेश्वर
अखाड़े का महामंडलेश्वर बनने के लिए कोई निश्चित शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं होती है। इन अखाड़ों में महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति में वैराग्य और संन्यास का होना सबसे जरूरी माना जाता है। महामंडलेश्वर का घर-परिवार और पारिवारिक संबंध नहीं होने चाहिए। हालांकि इसके लिए आयु का कोई बंधन नहीं है लेकिन यह जरूरी होता है कि जिस व्यक्ति को यह पद मिले, उसे संस्कृत, वेद-पुराणों का ज्ञान हो और वह कथा-प्रवचन दे सकता हो। कोई व्यक्ति या तो बचपन में अथवा जीवन के चौथे चरण यानी वानप्रस्थाश्रम में महामंडलेश्वर बन सकता है लेकिन इसके लिए अखाड़ों में परीक्षा ली जाती है।
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