"गांडीव धनुष": अवतरणों में अंतर

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*वज्र की गांठ को गांडी कहा गया है। उससे बना धनुष 'गांडीव' कहलाया। अन्य अनेक अक्षय शस्त्रों की भांति अपनी शक्ति के वर्धन के लिए दैत्यों ने इसका भी निर्माण किया था किंतु देवताओं ने उन्हें परास्त कर अक्षय शस्त्रों को प्राप्त कर लिया।  
*वज्र की गांठ को '''गांडी''' कहा गया है। उससे बना धनुष 'गांडीव' कहलाया। अन्य अनेक अक्षय शस्त्रों की भांति अपनी शक्ति के वर्धन के लिए दैत्यों ने इसका भी निर्माण किया था किंतु [[देवता|देवताओं]] ने उन्हें परास्त कर अक्षय शस्त्रों को प्राप्त कर लिया।  
*'''गांडीव''' [[महाभारत]] के प्रख्यात [[पांडव]] वीर अर्जुन का धनुष था। [[अनुश्रुति]] है कि इस धनुष का निमाण स्वयं [[ब्रह्मा]] ने किया था और एक हज़ार [[वर्ष]] तक धारण करते रहे। वह क्रमश: [[वरुण]] के पास आया। [[अग्नि]] ने उसे वरूण से माँग कर [[अर्जुन]] को प्रदान किया।
*[[अर्जुन]] को गांडीव धनुष अत्यधिक प्रिय था। उसने प्रतिज्ञा की थी कि जो व्यक्ति उसे गांडीव किसी और को देने के लिए कहेगा, उसे वह मार डालेगा। युद्ध में एक बार [[कर्ण]] ने [[युधिष्ठिर]] को परास्त कर दिया। युधिष्ठिर को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। अर्जुन को जब युधिष्ठिर नहीं दीखे तो उनको देखने के लिए वह शिविर में गया। युधिष्ठिर घायल, दुखी, क्रुद्ध हो कर्ण पर खीजे हुए थे। अत: उन्होंने अर्जुन को लानत दी कि वह अब तक भी कर्ण को नहीं मार पाया। यह भी कहा कि वह गांडीव धनुष किसी और को दे दे।  
*[[अर्जुन]] को गांडीव धनुष अत्यधिक प्रिय था। उसने प्रतिज्ञा की थी कि जो व्यक्ति उसे गांडीव किसी और को देने के लिए कहेगा, उसे वह मार डालेगा। युद्ध में एक बार [[कर्ण]] ने [[युधिष्ठिर]] को परास्त कर दिया। युधिष्ठिर को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। अर्जुन को जब युधिष्ठिर नहीं दीखे तो उनको देखने के लिए वह शिविर में गया। युधिष्ठिर घायल, दुखी, क्रुद्ध हो कर्ण पर खीजे हुए थे। अत: उन्होंने अर्जुन को लानत दी कि वह अब तक भी कर्ण को नहीं मार पाया। यह भी कहा कि वह गांडीव धनुष किसी और को दे दे।  
*प्रतिज्ञानुसार अर्जुन ने तलवार निकाल ली किंतु [[कृष्ण]] ने अर्जुन की मन:स्थिति समझाकर उसे शांत किया और कहा कि बड़े व्यक्ति का अपमान कर देना ही उसके वध के समान है अत: अर्जुन ने युधिष्ठिर को अपमानसूचक बातें कहकर उसे मृतवत मानकर अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह किया- फिर क्षमा-याचना कर बड़े भाई को प्रणाम करके वह युद्ध करने चला गया। <ref>महाभारत, खांडववन, [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योगपर्व]], अध्याय 98, श्लोक 19 से 22 तक, [[कर्ण पर्व महाभारत|कर्णपर्व]], 69-71</ref>
*प्रतिज्ञानुसार अर्जुन ने तलवार निकाल ली किंतु [[कृष्ण]] ने अर्जुन की मन:स्थिति समझाकर उसे शांत किया और कहा कि बड़े व्यक्ति का अपमान कर देना ही उसके वध के समान है अत: अर्जुन ने युधिष्ठिर को अपमानसूचक बातें कहकर उसे मृतवत मानकर अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह किया- फिर क्षमा-याचना कर बड़े भाई को प्रणाम करके वह युद्ध करने चला गया। <ref>महाभारत, खांडववन, [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योगपर्व]], अध्याय 98, श्लोक 19 से 22 तक, [[कर्ण पर्व महाभारत|कर्णपर्व]], 69-71</ref>
*कहते हैं गांडीव धनुष के सामने अन्य सभी शस्त्र बेकार थे। किंतु [[कृष्ण]] के इहलोक छोड़ने के बाद गांडीव की यह सामर्थ्य नष्ट हो गई थी, ऐसा [[विष्णु पुराण]] में उल्लेख है। अर्जुन ने अपने महाप्रस्थान से पूर्व इस धनुष को वरूण को वापस दे दिया, ऐसा भी कहा जाता है।<ref>हिन्दी विश्वकोश</ref>







05:25, 20 मार्च 2025 के समय का अवतरण

  • वज्र की गांठ को गांडी कहा गया है। उससे बना धनुष 'गांडीव' कहलाया। अन्य अनेक अक्षय शस्त्रों की भांति अपनी शक्ति के वर्धन के लिए दैत्यों ने इसका भी निर्माण किया था किंतु देवताओं ने उन्हें परास्त कर अक्षय शस्त्रों को प्राप्त कर लिया।
  • गांडीव महाभारत के प्रख्यात पांडव वीर अर्जुन का धनुष था। अनुश्रुति है कि इस धनुष का निमाण स्वयं ब्रह्मा ने किया था और एक हज़ार वर्ष तक धारण करते रहे। वह क्रमश: वरुण के पास आया। अग्नि ने उसे वरूण से माँग कर अर्जुन को प्रदान किया।
  • अर्जुन को गांडीव धनुष अत्यधिक प्रिय था। उसने प्रतिज्ञा की थी कि जो व्यक्ति उसे गांडीव किसी और को देने के लिए कहेगा, उसे वह मार डालेगा। युद्ध में एक बार कर्ण ने युधिष्ठिर को परास्त कर दिया। युधिष्ठिर को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। अर्जुन को जब युधिष्ठिर नहीं दीखे तो उनको देखने के लिए वह शिविर में गया। युधिष्ठिर घायल, दुखी, क्रुद्ध हो कर्ण पर खीजे हुए थे। अत: उन्होंने अर्जुन को लानत दी कि वह अब तक भी कर्ण को नहीं मार पाया। यह भी कहा कि वह गांडीव धनुष किसी और को दे दे।
  • प्रतिज्ञानुसार अर्जुन ने तलवार निकाल ली किंतु कृष्ण ने अर्जुन की मन:स्थिति समझाकर उसे शांत किया और कहा कि बड़े व्यक्ति का अपमान कर देना ही उसके वध के समान है अत: अर्जुन ने युधिष्ठिर को अपमानसूचक बातें कहकर उसे मृतवत मानकर अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह किया- फिर क्षमा-याचना कर बड़े भाई को प्रणाम करके वह युद्ध करने चला गया। [1]
  • कहते हैं गांडीव धनुष के सामने अन्य सभी शस्त्र बेकार थे। किंतु कृष्ण के इहलोक छोड़ने के बाद गांडीव की यह सामर्थ्य नष्ट हो गई थी, ऐसा विष्णु पुराण में उल्लेख है। अर्जुन ने अपने महाप्रस्थान से पूर्व इस धनुष को वरूण को वापस दे दिया, ऐसा भी कहा जाता है।[2]




टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, खांडववन, उद्योगपर्व, अध्याय 98, श्लोक 19 से 22 तक, कर्णपर्व, 69-71
  2. हिन्दी विश्वकोश


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