"प्रयोग:माधवी 2": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
|अन्य नाम=
|अन्य नाम=
|जन्म=[[19 अक्टूबर]], [[1887]]
|जन्म=[[19 अक्टूबर]], [[1887]]
|जन्म भूमि=ढेंनकनाल रियासत ब्रिटिश भारत
|जन्म भूमि=धेनकनाल रियासत ब्रिटिश भारत
|मृत्यु=[[18 सितंबर]], [[1957]]
|मृत्यु=[[18 सितंबर]], [[1957]]
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु स्थान=
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
|अद्यतन=04:31, [[18 दिसम्बर]]-[[2016]] (IST)
|अद्यतन=04:31, [[18 दिसम्बर]]-[[2016]] (IST)
}}
}}
'''सारंगधर दास''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sarangadhar Das'',  जन्म- [[19 अक्टूबर]], [[1887]],  ढेंनकनाल रियासत ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[18 सितंबर]], [[1957]]) एक स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्होंने चीनी [[उड़ीसा]] में उद्योग स्थापित किया था। सारंगधर दास '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' में गिरफ्तार हुए थे और [[1946]] तक जेल में बंद रहे। सारंगधर दास [[उड़ीसा]] असेम्बली के सदस्य चुने गए थे। [[1948]] में वे [[समाजवादी पार्टी]] में सम्मिलित हो गए और [[लोकसभा]] के सदस्य रहे थे।। उन्होंने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=916|url=}}</ref>
'''सारंगधर दास''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sarangadhar Das'',  जन्म- [[19 अक्टूबर]], [[1887]],  धेनकनाल रियासत ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[18 सितंबर]], [[1957]]) एक स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्होंने उड़ीसा में उद्योग स्थापित किया था। सारंगधर दास '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' में गिरफ्तार हुए थे और [[1946]] तक जेल में बंद रहे। सारंगधर दास [[उड़ीसा]] असेम्बली के सदस्य चुने गए थे। [[1948]] में वे [[समाजवादी पार्टी]] में सम्मिलित हो गए और [[लोकसभा]] के सदस्य रहे थे। उन्होंने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=916|url=}}</ref>
==जन्म एवं शिक्षा==
==जन्म एवं शिक्षा==
सारंगधर दास का उड़ीसा की देशी रियासत धेनकनाल में 19 अक्टूबर, 1887 को जन्म हुआ था। इनका जीवन शिक्षा, उद्योग और राजनीति तीनों क्षेत्रों में बड़ा संघर्ष पूर्ण था। [[कटक]] से बी.ए. पास करन के के बाद आगे के अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति लेकर सारंगधर दास [[जापान]] गए। वे वर्ष भर टोकियो के टेकनिकल इंस्टीट्यूट में रह कर [[अमरीका]] पहुँचे और कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी से रसायन और [[कृषि]] में उच्च डिग्री प्राप्त की। कुछ वर्षों तक [[अमेरिका]] और बर्मा की चीनी मिलों में काम करने के बाद सारंगधर दास [[भारत]] वापस आ गए।
सारंगधर दास का उड़ीसा की देशी रियासत धेनकनाल में 19 अक्टूबर, 1887 को जन्म हुआ था। इनका जीवन शिक्षा, उद्योग और राजनीति तीनों क्षेत्रों में बड़ा संघर्ष पूर्ण था। [[कटक]] से बी.ए. पास करन के के बाद आगे के अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति लेकर सारंगधर दास [[जापान]] गए। वे वर्ष भर टोकियो के टेकनिकल इंस्टीट्यूट में रह कर [[अमरीका]] पहुँचे और कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी से रसायन और [[कृषि]] में उच्च डिग्री प्राप्त की। कुछ वर्षों तक [[अमेरिका]] और बर्मा की चीनी मिलों में काम करने के बाद सारंगधर दास [[भारत]] वापस आ गए।
पंक्ति 38: पंक्ति 38:
भारत आकर सारंगधर दास ने अपने गाँव हरिकृष्णपुर के निकट एक चीनी मिल की स्थापना की थी। उस आदिवासी क्षेत्र की उन्नति के लिए यह वरदान सिद्ध हुई। इससे [[आदिवासी|आदिवासियों]] की आर्थिक हालत सुधरी और उसके बीच सारंगधर दास का प्रभाव भी बढ़ा था। उनके बढ़ते प्रभाव से रियासत धेनकलाल का शासक संकित हो उठा था।
भारत आकर सारंगधर दास ने अपने गाँव हरिकृष्णपुर के निकट एक चीनी मिल की स्थापना की थी। उस आदिवासी क्षेत्र की उन्नति के लिए यह वरदान सिद्ध हुई। इससे [[आदिवासी|आदिवासियों]] की आर्थिक हालत सुधरी और उसके बीच सारंगधर दास का प्रभाव भी बढ़ा था। उनके बढ़ते प्रभाव से रियासत धेनकलाल का शासक संकित हो उठा था।
==ब्रिटिश अत्याचारों के खिलाफ आवाज==
==ब्रिटिश अत्याचारों के खिलाफ आवाज==
[[1928]] में जब सारंगधर दास इलाज के लिए [[कोलकाता]] गए थे, रियासत के शासक ने झूठे अभियोग लगाकर उनकी चीनी मिल के [[गन्ना|गन्ने]] के खेतों को जब्त करके नीलाम करा दिया। लौटने पर इस अन्याय की शिकायत जन उन्होंने रियासत के ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट और [[बिहार]]-[[उड़ीसा]] के गवर्नर से की तो वहाँ भी कोई सुनबाई नहीं हुई थी। इस पर सारंगधर दास ने जनता को संगठित करके रियासत के अत्याचारों का सामना करने का निश्चय किया। उन्होंने 'उड़ीसा राज्य में प्रजामंडक' बनाया जिस का पहला सम्मेलन [[1931]] ई. में पट्टाभि सीतारामय्या की अध्यक्षता में हुआ। इसके बाद प्रांत की अन्य रियासतों पर भी इसका प्रभाव पड़ा और लोग  अपने अधिकारों के लिए संगठित होने लगे। कई जगह खुला संघर्ष हुआ और लोगों को पुलिस की गोलियाँ झेलनी पड़ीं। इस प्रकार सारंगधर दास जिन्होंने उड़ीसा में उद्योग स्थापित करने का काम आरंभ किया था, विदेशी सरकार और उसके समर्थक देशी रजवाड़ों के विरुद्ध [[स्वतंत्रता संग्राम]] में सम्मिलित हो गए। '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' में वे गिरफ्तार हुए और [[1946]] तक जेल में बंद रहे। जेल से छूटने पर उड़ीसा असेम्बली के सदस्य चुने गए। [[1948]] में वे [[समाजवादी पार्टी]] में सम्मिलित हो गए और [[लोकसभा]] के लिए चुन कर वहाँ अपने पार्टी के नेता रहे थे। सारंगधर दास ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की थी।  
[[1928]] में जब सारंगधर दास इलाज के लिए [[कलकत्ता]] गए थे, रियासत के शासक ने झूठे अभियोग लगाकर उनकी चीनी मिल के [[गन्ना|गन्ने]] के खेतों को जब्त कर के नीलाम करा दिया। लौटने पर इस अन्याय की शिकायत जब उन्होंने रियासत के ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट और [[बिहार]]-[[उड़ीसा]] के गवर्नर से की तो वहाँ भी कोई सुनबाई नहीं हुई थी। इस पर सारंगधर दास ने जनता को संगठित करके रियासत के अत्याचारों का सामना करने का निश्चय किया। उन्होंने 'उड़ीसा राज्य में प्रजामंडक' बनाया जिस का पहला सम्मेलन [[1931]] ई. में पट्टाभि सीतारामय्या की अध्यक्षता में हुआ था। इसके बाद प्रांत की अन्य रियासतों पर भी इसका प्रभाव पड़ा और लोग  अपने अधिकारों के लिए संगठित होने लगे। कई जगह खुला संघर्ष हुआ और लोगों को पुलिस की गोलियाँ झेलनी पड़ीं। इस प्रकार सारंगधर दास जिन्होंने उड़ीसा में उद्योग स्थापित करने का काम आरंभ किया था, विदेशी सरकार और उसके समर्थक देशी रजवाड़ों के विरुद्ध [[स्वतंत्रता संग्राम]] में सम्मिलित हो गए। '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' में वे गिरफ्तार हुए और [[1946]] तक जेल में बंद रहे थे। जेल से छूटने पर उड़ीसा असेम्बली के सदस्य चुने गए। [[1948]] में वे [[समाजवादी पार्टी]] में सम्मिलित हो गए और [[लोकसभा]] के लिए चुन कर वहाँ अपने पार्टी के नेता रहे। सारंगधर दास ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की थी।  
==निधन==
==निधन==
18 सितंबर, 1957 को सारंगधर दास का देहांत हो गया।
18 सितंबर, 1957 को सारंगधर दास का देहांत हो गया।

10:48, 27 दिसम्बर 2016 का अवतरण

माधवी 2
पूरा नाम सारंगधर दास
जन्म 19 अक्टूबर, 1887
जन्म भूमि धेनकनाल रियासत ब्रिटिश भारत
मृत्यु 18 सितंबर, 1957
स्मारक बी.ए.
नागरिकता भारतीय
धर्म हिन्दू
आंदोलन भारत छोड़ों आंदोलन
शिक्षा बी.ए.
अन्य जानकारी 1948 में वे समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हो गए और लोकसभा के लिए चुन कर वहाँ अपने पार्टी के नेता रहे थे।
अद्यतन‎ 04:31, 18 दिसम्बर-2016 (IST)

सारंगधर दास (अंग्रेज़ी: Sarangadhar Das, जन्म- 19 अक्टूबर, 1887, धेनकनाल रियासत ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 18 सितंबर, 1957) एक स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्होंने उड़ीसा में उद्योग स्थापित किया था। सारंगधर दास 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में गिरफ्तार हुए थे और 1946 तक जेल में बंद रहे। सारंगधर दास उड़ीसा असेम्बली के सदस्य चुने गए थे। 1948 में वे समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हो गए और लोकसभा के सदस्य रहे थे। उन्होंने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की।[1]

जन्म एवं शिक्षा

सारंगधर दास का उड़ीसा की देशी रियासत धेनकनाल में 19 अक्टूबर, 1887 को जन्म हुआ था। इनका जीवन शिक्षा, उद्योग और राजनीति तीनों क्षेत्रों में बड़ा संघर्ष पूर्ण था। कटक से बी.ए. पास करन के के बाद आगे के अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति लेकर सारंगधर दास जापान गए। वे वर्ष भर टोकियो के टेकनिकल इंस्टीट्यूट में रह कर अमरीका पहुँचे और कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी से रसायन और कृषि में उच्च डिग्री प्राप्त की। कुछ वर्षों तक अमेरिका और बर्मा की चीनी मिलों में काम करने के बाद सारंगधर दास भारत वापस आ गए।

चीनी मिल की स्थापना

भारत आकर सारंगधर दास ने अपने गाँव हरिकृष्णपुर के निकट एक चीनी मिल की स्थापना की थी। उस आदिवासी क्षेत्र की उन्नति के लिए यह वरदान सिद्ध हुई। इससे आदिवासियों की आर्थिक हालत सुधरी और उसके बीच सारंगधर दास का प्रभाव भी बढ़ा था। उनके बढ़ते प्रभाव से रियासत धेनकलाल का शासक संकित हो उठा था।

ब्रिटिश अत्याचारों के खिलाफ आवाज

1928 में जब सारंगधर दास इलाज के लिए कलकत्ता गए थे, रियासत के शासक ने झूठे अभियोग लगाकर उनकी चीनी मिल के गन्ने के खेतों को जब्त कर के नीलाम करा दिया। लौटने पर इस अन्याय की शिकायत जब उन्होंने रियासत के ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट और बिहार-उड़ीसा के गवर्नर से की तो वहाँ भी कोई सुनबाई नहीं हुई थी। इस पर सारंगधर दास ने जनता को संगठित करके रियासत के अत्याचारों का सामना करने का निश्चय किया। उन्होंने 'उड़ीसा राज्य में प्रजामंडक' बनाया जिस का पहला सम्मेलन 1931 ई. में पट्टाभि सीतारामय्या की अध्यक्षता में हुआ था। इसके बाद प्रांत की अन्य रियासतों पर भी इसका प्रभाव पड़ा और लोग अपने अधिकारों के लिए संगठित होने लगे। कई जगह खुला संघर्ष हुआ और लोगों को पुलिस की गोलियाँ झेलनी पड़ीं। इस प्रकार सारंगधर दास जिन्होंने उड़ीसा में उद्योग स्थापित करने का काम आरंभ किया था, विदेशी सरकार और उसके समर्थक देशी रजवाड़ों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हो गए। 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में वे गिरफ्तार हुए और 1946 तक जेल में बंद रहे थे। जेल से छूटने पर उड़ीसा असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1948 में वे समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हो गए और लोकसभा के लिए चुन कर वहाँ अपने पार्टी के नेता रहे। सारंगधर दास ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की थी।

निधन

18 सितंबर, 1957 को सारंगधर दास का देहांत हो गया।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 916 |

संबंधित लेख



माधवी 2
पूरा नाम संत सिंगा जी
जन्म 1519
जन्म भूमि खजूरी गाँव
मृत्यु जीवित समाधि
मृत्यु स्थान नर्मदा नदी
संतान पुत्र- 4
कर्म भूमि मालवा
मुख्य रचनाएँ पदों की संख्या 800
विषय भक्ति
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 16वीं या 17वीं शताब्दी के काल का माना जाता है। कहा जाता है की सिंगा जी एक कवि व करामाती संत थे।
अद्यतन‎ 04:41, 23 दिसम्बर-2016 (IST)
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

संत सिंगा जी (अंग्रेज़ी: Sant Singa, जन्म- 1519 , खजूरी गाँव) भारत में मध्य प्रदेश के नीमार के एक मशहूर संत थे। उन्हें पशु रक्षक देव के रूप में पूजा जाता है। इन्होंने कुछ वर्ष डाक-वाहक की नौकरी भी की थी। सिंगा जी ने जीवित समाधि लेकर अपने प्राण त्याग दिए थे।[1]

जन्म एवं परिचय

मालवा के प्रसिद्ध संत सिंगा जी का जन्म 1519 ई. में पिपलिया नामक कस्बे के निकट खजूरी गाँव में एक ग्वाला परिवार में हुआ था। इनके जन्मस्थान (खजूरी ग्राम) का नामकरण उन्ही के नाम पर किया गया है। सिंगा जी मध्य प्रदेश में खांडवा से 28 मील उत्तर पूर्व मे हरसूद तहसील का एक छोटा गाँव है। हरसूद का निर्माण हर्षवर्धन द्वारा किया गया था। इसी गाँव मे सिंगा जी एक सामान्य गोपाल या अहीर परिवार में जन्मे थे। वे बचपन से ही एकांत स्वभाव के थे। जब वन में जानवरों को चराने जाते तो वहाँ प्रकृति के बीच रमे रहते थे। सिंगा जी का विवाह हुआ, चार पुत्र भी पैदा हुए, परंतु उनका मन घर-गृहस्थी में नहीं लगता था।

नौकरी

16वीं शताब्दी में सिंगा जी की प्रतिभा से प्रेरित होकर गाँव के जमींदार ने उन्हें अपना सरदार नियुक्त कर दिया था। सिंगा जी ने बारह साल जमींदार की सेवा की तथा अपनी आध्यात्मिक करामाती शक्तियों से जमींदार के लिए कई लड़ाइयों में विजय भी प्राप्त की। सिंगा जी के पिता ने एक राजा के यहाँ उन्हें एक रुपया प्रतिमास वेतन पर डाक-वाहक की नौकरी दिला दी।

गृहस्थ जीवन का त्याग

इस बीच सिंगा जी के साथ एक घटना घटी। सिंगा जी घोड़े पर बैठकर डाक ले जा रहे थे। तभी उनके कानों में किसी महात्मा के द्वारा गाए जा रहे ये शब्द पड़े-समुझि लेवो रे भाई, अंत न होय कोई आपणा।' सिंगा जी पर इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई। वे भजन गा रहे महात्मा मन रंगगीर के पास गए और उनसे अपना शिष्य बना लेने का अनुरोध किया। महात्मा ने कहा- तुम गृहस्थ हो, अपने धर्म का पालन करो। साधना-मार्ग बहुत कठिन है। फिर भी तुम इसे अपनाना ही चाहते हो तो पहले माया-मोह का त्याग करो। सिंगा जी ने नौकरी छोड़ने का निश्चय किया, वेतन बढ़ाने का राजा का प्रलोभन भी उन्हें न रोक सका। अंत में सिंगा जी ने सन 1558 ई. में हुरु से दीक्षा ले ली।

संत जीवन

संत सिंगा जी को 16वीं या 17वीं शताब्दी के काल का माना जाता है। कहा जाता है की सिंगा जी एक कवि व करामाती संत थे। वे साक्षर नहीं थे। परंतु भक्ति के आवेश में जो पद बना कर गाते थे, उन्हें उनके अनुयायियों ने लिपिबद्ध कर लिया। ऐसे पदों की संख्या 800 बताई जाती है। उन्होंने समाज के दलित और उपेक्षित वर्ग को ऊपर उठाने के लिए बहुत काम किया। माखनलाल चतुर्वेदी ने उन्हें नर्मदा की तरह अमर प्राणवर्धक और युग की सीमा-रेखा बनाने वाला संत कहा। उसे क्षेत्र की जन जातियाँ आज भी अपना आराध्य मानती हैं और उनके समाधि-स्थल पर प्रतिवर्ष बड़ा मेला लगता है।

निधन

मान्यता है कि गुरु मुख से क्रोध में निकली बात को मानकर सिंगा जी ने दीक्षा लेने के एक वर्ष के भीतर ही जीवित समाधि लेकर अपने प्राण दे दिए थे।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 918 |

संबंधित लेख



माधवी 2
सी. विजयराघवा चारियर
सी. विजयराघवा चारियर
जन्म 1852
जन्म भूमि सेलम ज़िला, तमिलनाडु
मृत्यु 1943
कर्म भूमि भारत
विशेष योगदान 1885 से 1901 तक वे कहाँ लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य रहे थे।
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख लोकमान्य तिलक, गांधी जी
अन्य जानकारी नागपुर में हुए 1920 काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन का अध्यक्ष रहे थे।
अद्यतन‎ 04:51, 24 दिसम्बर-2016 (IST)

सी. विजयराघवा चारियर (अंग्रेज़ी: C. Vijay Raghava Chariyer, जन्म- 1852 , सेलम ज़िला, तमिलनाडु; मृत्यु- 1943) प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता थे। 1885 से 1901 तक वे कहाँ लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य रहे थे। विजयराघवा चारियर नागपुर में हुए 1920 काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन का अध्यक्ष रहे थे। इस अधिवेशन में गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव पर विचार हुआ था। लेकिन उनके विरोध के बाद भी काँग्रेस ने असहयोग का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया था।[1]

जन्म एवं परिचय

सी. विजयराघवा चारियर का जन्म 1852 ई. में सेलम (तमिलनाडु) में हुआ था। सार्वजनिक कार्यों के प्रति आरंभ से ही उनकी रुचि थी। देश पर अंग्रेजों का शासन विजयराघवा चारियर को अखरता था। 1885 में कांग्रेस की स्थापना के लिए मुंबई में जो पहले अधिवेशन हुआ उस में विजयराघवा चारियर ने भी भाग लिया। तब से अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण समय उन्होंने इस संस्था के माध्यम से देश की सेवा में ही लगाया था।

लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य

काँग्रेस की स्थापना के बाद जब उसका संविधान बनाने की आवश्यकता पड़ी तो उनकी अध्यक्षता में तीन सदस्यों की समिति ने इसका निर्माण किया। मद्रास के सार्वजनिक जीवन में भी सी. विजयराघवा चारियर का महत्त्वपूर्ण स्थान था। 1885 से 1901 तक वे कहाँ लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य रहे थे। काँग्रेस के 1907 के सूरत अधिवेशन में जब 'नरम' और 'गरम' दलों में मतभेद उत्पन्न हुआ तो विजयराघवा चारियर की सहानुभूति 'गरम' दल वालों के साथ थी। जब काँग्रेस के संविधान में संशोधन करके लोकमान्य तिलक आदि का काँग्रेस में प्रवेश रोक दिया गया तो वे भी काँग्रेस से अलग हो गए थे। लेकिन 1916 की लखनऊ काँग्रेस में तिलक के साथ वे पुन: काँग्रेस में आ गए।

काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष

नागपुर में हुए 1920 काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष विजयराघवा चारियर को चुने गये थे। उस समय राज गोपालाचारी, मोतीलाल नेहरू और एम.ए. अंसारी जैसे लोग काँग्रेस के महामंत्री थे। इस अधिवेशन में गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव पर विचार हुआ था। सी. विजयराघवा चारियर असहयोग के पक्ष में नहीं थे। लेकिन उनके विरोध के बाद भी काँग्रेस ने असहयोग का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस विचार-भेद के कारण वे 35 वर्ष के बाद काँग्रेस से अलग हो गए। फिर उनका झुकाव हिंदू महा सभा की ओर हुआ। उसके एक अधिवेशन का उन्होंने सभापतित्व भी किया।

निधन

1943 ई. में सी. विजयराघवा चारियर का निधन हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 922 |

संबंधित लेख


माधवी 2
पूरा नाम सुधाताई जोशी
जन्म 14 जनवरी, 1918
जन्म भूमि गोवा
पति/पत्नी महादेव शास्त्री जोशी
नागरिकता भारतीय
धर्म हिन्दू
आंदोलन सत्याग्रह आंदोलन
जेल यात्रा 2 वर्ष
विशेष योगदान स्वतंत्रता संग्राम
अन्य जानकारी पुर्तगाली सरकार ने सुधाताई जोशी के गोवा प्रवेश की सूचना देने वाले को भारी इनाम की घोषणा कर रखी थी।
अद्यतन‎ 04:31, 18 दिसम्बर-2016 (IST)

सुधाताई जोशी (अंग्रेज़ी: Sudhatai Joshi, जन्म- 14 जनवरी, 1918, गोवा) पुर्तगाली साम्राज्यवादियों से गोवा की मुक्ति के स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख नेता थी। ये सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेती थी। इन्होंने 2 वर्ष तक कारागार की सजा भी भोगी। सुधाताई जोशी वीरांगना के साहस की उस समय सारे देश में बड़ी प्रशंसा हुई थी।[1]

जन्म एवं परिचय

श्रीमती सुधाताई जोशी का जन्म 14 जनवरी, 1918 ई. को गोवा के प्रियोल नामक गांव में हुआ था। यद्यपि उन्हें औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी, किंतु पिता की सहायता और अपने प्रयत्न से उन्होंने पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 'संस्कृति कोश' के प्रसिद्ध संपादक महादेव शास्त्री जोशी से विवाह के बाद पूना आने पर सुधाताई जोशी के जीवन में और भी परिवर्तन आये।। महादेव शास्त्री जोशी स्वयं गोवा के मुक्ति संग्राम से जुड़े हुई थे। उन्होंने 'गोवा राष्ट्रीय काँग्रेस' द्वारा संचालित सत्याग्रह आंदोलन में सत्याग्रहियों का नेतृत्व करने का निश्चय किया। सुधाताई इस आंदोलन का महत्त्व समझती थीं। पर वे नहीं चाहती थीं कि उतने ही महत्त्व के काम 'संस्कृति कोश' का संपादन उनके पति छोड़ दें। बड़े आग्रह के बाद जब पति ने उनका परामर्श स्वीकार कर लिया।

आंदोलनों में भागिदारी

सुधाताई स्वयं 'गोवा राष्ट्रीय काँग्रेस' द्वारा संचालित सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के लिए गोवा की ओर चल पड़ीं। पुर्तगाली सरकार ने उनके गोवा प्रवेश की सूचना देने वाले के लिए भारी इनाम की घोषणा कर रखी थी। पर लोगों ने सुधाताई का स्वागत किया और उनके गुप्त रूप से गोवा में प्रवेश में सहायता पहुंचाई। 5 अप्रैल, 1955 को सुधाताई को महाप्सा नामक स्थान में एक सभा को संबोधित करनी था। पर पुलिस ने वह स्थान पहले ही घेर लिया और अपने भाषण के दो-चार शब्द पढ़ते ही सुधाताई जोशी को गिरस्तार कर लिया गया। अपने आंदोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए सुधाताई ने पुर्तगाल को स्मरण दिलाया था कि वह स्वयं 1580 से 1640 तक स्पेन का गुलाम था। पुर्तगाल सरकार ने ताई पर मुकदमा चलाया और 2 वर्ष के कारागार की सजा दे दी। बाद में सारे देश में आंदोलन होने और जेल में स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण मई, 1959 में उन्हें रिहा करना पड़ा था। इस वीरांगना के साहस की उस समय सारे देश में बड़ी प्रशंसा हुई थी।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 928 |

संबंधित लेख