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'''मुंडेश्वरी मंदिर''' [[बिहार]] के सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर बिहार के कैमूर ज़िले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह प्राचीन मंदिर पुरातात्विक धरोहर ही नहीं, अपितु तीर्थाटन व पर्यटन का जीवंत केन्‍द्र भी है। इसे कब और किसने बनाया, यह दावे के साथ कहना कठिन है, लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह [[भारत]] के सर्वाधिक प्राचीन व सुंदर मंदिरों में एक है। भारत के 'पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग' द्वारा संरक्षित मुंडेश्वरी मंदिर के पुरुत्थान के लिए योजनायें बनाई जा रही है और इसके साथ ही इसे यूनेस्को की लिस्ट में भी शामिल करवाने के प्रयास जारी हैं।
'''मुंडेश्वरी मंदिर''' [[बिहार]] के सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर बिहार के कैमूर ज़िले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह प्राचीन मंदिर पुरातात्विक धरोहर ही नहीं, अपितु तीर्थाटन व पर्यटन का जीवंत केन्‍द्र भी है। इसे कब और किसने बनाया, यह दावे के साथ कहना कठिन है, लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह [[भारत]] के सर्वाधिक प्राचीन व सुंदर मंदिरों में एक है। भारत के 'पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग' द्वारा संरक्षित मुंडेश्वरी मंदिर के पुरुत्थान के लिए योजनायें बनाई जा रही है और इसके साथ ही इसे यूनेस्को की लिस्ट में भी शामिल करवाने के प्रयास जारी हैं।
==प्राचीनता==
==प्राचीनता==
मुंडेश्वरी मंदिर की प्राचीनता का महत्व इस दृष्टि से और भी अधिक है कि यहाँ पर [[पूजा]] की परंपरा 1900 सालों से अविच्छिन्न चली आ रही है और आज भी यह मंदिर पूरी तरह जीवंत है। बड़ी संख्या में भक्तों का यहाँ आना-जाना लगा रहता है। यह मंदिर [[भारत]] का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है।
मुंडेश्वरी मंदिर की प्राचीनता का महत्व इस दृष्टि से और भी अधिक है कि यहाँ पर [[पूजा]] की परंपरा 1900 सालों से अविच्छिन्न चली आ रही है और आज भी यह मंदिर पूरी तरह जीवंत है। बड़ी संख्या में भक्तों का यहाँ आना-जाना लगा रहता है। यह मंदिर [[भारत]] का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। मंदिर परिसर में विद्यमान [[शिलालेख|शिलालेखों]] से इसकी ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है। 1838 से [[1904]] ई. के बीच कई ब्रिटिश विद्वान व पर्यटक यहाँ आए थे। प्रसिद्ध इतिहासकार फ्राँसिस बुकनन भी यहाँ आ चुके हैं। मंदिर का एक शिलालेख [[कोलकाता]] के भारतीय संग्रहालय में है। पुरातत्वविदों के अनुसार यह शिलालेख 349 ई. से 636 ई. के बीच का है। इस मंदिर का उल्लेख [[कनिंघम]] ने भी अपनी पुस्तक में किया है। उसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि कैमूर में मुंडेश्वरी पहाड़ी है, जहाँ मंदिर ध्वस्त रूप में विद्यमान है। इस मंदिर का पता तब चला, जब कुछ गडरिये पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा। उस समय इसकी इतनी ख्याति नहीं थी, जितनी अब है। प्रारम्भ में पहाड़ी के नीचे निवास करने वाले लोग ही इस मंदिर में दीया जलाते और [[पूजा]]-अर्चना करते थे।
==निर्माण काल==
इस मंदिर की नक्काशी व मूर्तियाँ उत्तर गुप्तकालीन समय की हैं। शिलालेख के अनुसार यह मंदिर महाराजा उदय सेन के शासन काल में निर्मित हुआ था। जानकार लोग बताते हैं कि शिलालेख में उदय सेन का जिक्र है, जो शक संवत 30 में [[कुषाण]] शासकों के अधीन [[क्षत्रप]] रहा होगा। उनके अनुसार ईसाई कैलेंडर से मिलान करने पर यह अवधि 108 ईस्‍वी सन् होती है।<ref>{{cite web |url=http://khetibaari.blogspot.in/2009/03/blog-post.html|title=भारत का प्राचीनतम मुंडेश्वरी मंदिर|accessmonthday=25 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> मंदिर का निर्माण काल 635-636 ई. बताया जाता है। पंचमुखी [[शिवलिंग]] इस मंदिर में स्थापित है, जो अत्यंत दुर्लभ है। [[दुर्गा]] का वैष्णवी रूप ही माँ मुंडेश्वरी के रूप में यहाँ प्रतिस्थापित है। मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा है, क्योंकि इनका वाहन महिष है। मुंडेश्वरी मंदिर अष्टकोणीय है। मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है। मंदिर में शारदीय और [[चैत्र मास|चैत्र माह]] के [[नवरात्र]] के अवसर पर श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। [[वर्ष]] में दो बार [[माघ मास|माघ]] और चैत्र में यहाँ [[यज्ञ]] होता है।<ref>{{cite web |url=http://teerth.onetourist.in/2012/09/mundeshwaridevi.html|title=माँ मुंडेश्वरी देवी|accessmonthday=25 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==बलि की सात्विक परम्परा==
मुंडेश्वरी मंदिर की सबसे बड़ी और विलक्षण विशेषता यह है कि यहाँ पशु बलि की सात्विक परंपरा है। यहाँ बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता। कहते हैं कि चंड-मुंड के नाश के लिए जब देवी उद्यत हुई थीं, तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने उसका वध किया था। अतएव यह मुंडेश्वरी माता के नाम से स्थानीय लोगों में जानी जाती हैं। एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि यहाँ भक्तों की कामनाओं के पूरा होने के बाद बकरे की सात्विक बलि चढ़ाई जाती है, लेकिन माता [[रक्त]] की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था पनपती है। जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तो पुजारी 'अक्षत' ([[चावल]] के दाने) को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं। बकरा उसी क्षण अचेत, मृतप्राय सा हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तो बकरा उठ खड़ा होता है। बलि की यह क्रिया माता के प्रति आस्था को बढ़ाती है।
==रोचक तथ्य==
==रोचक तथ्य==
#यहाँ भगवान [[शिव]] का एक चतुर्मुखी [[शिवलिंग]] है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका [[रंग]] सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है।
#यहाँ भगवान [[शिव]] का एक पंचमुखी [[शिवलिंग]] है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका [[रंग]] सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है।
#माँ मुंडेश्वरी के इस मंदिर में बकरे की बलि नहीं दी जाती, बल्कि बकरे को देवी के सामने लाया जाता है और उस पर [[पुरोहित]] मन्त्र वाले [[चावल]] छिडकता है, जिससे वह बेहोश हो जाता है और फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है।
#माँ मुंडेश्वरी के इस मंदिर में बकरे की बलि नहीं दी जाती, बल्कि बकरे को देवी के सामने लाया जाता है और उस पर [[पुरोहित]] मन्त्र वाले [[चावल]] छिडकता है, जिससे वह बेहोश हो जाता है और फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है।
#वर्षों बाद मुंडेश्वरी मंदिर में 'तांडुलम भोग' अर्थात 'चावल का भोग' और वितरण की परंपरा पुन: की गई है। ऐसा माना जाता है कि 108 ईस्वी में यहाँ यह परंपरा जारी थी।
#वर्षों बाद मुंडेश्वरी मंदिर में 'तांडुलम भोग' अर्थात 'चावल का भोग' और वितरण की परंपरा पुन: की गई है। ऐसा माना जाता है कि 108 ईस्वी में यहाँ यह परंपरा जारी थी।
#मंदिर का अष्टाकार गर्भगृह इसके निर्माण से अब तक कायम है।
#मंदिर का अष्टाकार गर्भगृह इसके निर्माण से अब तक कायम है।
#जानकार यह मानते हैं कि [[उत्तर प्रदेश]] के [[कुशीनगर]] और [[नेपाल]] के [[कपिलवस्तु]] का मार्ग मुंडेश्वरी मंदिर से जुड़ा हुआ था।
#जानकार यह मानते हैं कि [[उत्तर प्रदेश]] के [[कुशीनगर]] और [[नेपाल]] के [[कपिलवस्तु]] का मार्ग मुंडेश्वरी मंदिर से जुड़ा हुआ था।
#'माता वैष्णो देवी' की तर्ज पर इस मंदिर का विकास किये जाने की योजनायें बिहार राज्य सरकार ने बनाई हैं।
#'[[वैष्णो देवी|माता वैष्णो देवी]]' की तर्ज पर इस मंदिर का विकास किये जाने की योजनायें बिहार राज्य सरकार ने बनाई हैं।
#मुंडेश्वरी मंदिर का संरक्षक एक [[मुस्लिम]] परिवार है।
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11:11, 25 मई 2013 का अवतरण

मुंडेश्वरी मंदिर बिहार के सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर बिहार के कैमूर ज़िले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह प्राचीन मंदिर पुरातात्विक धरोहर ही नहीं, अपितु तीर्थाटन व पर्यटन का जीवंत केन्‍द्र भी है। इसे कब और किसने बनाया, यह दावे के साथ कहना कठिन है, लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह भारत के सर्वाधिक प्राचीन व सुंदर मंदिरों में एक है। भारत के 'पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग' द्वारा संरक्षित मुंडेश्वरी मंदिर के पुरुत्थान के लिए योजनायें बनाई जा रही है और इसके साथ ही इसे यूनेस्को की लिस्ट में भी शामिल करवाने के प्रयास जारी हैं।

प्राचीनता

मुंडेश्वरी मंदिर की प्राचीनता का महत्व इस दृष्टि से और भी अधिक है कि यहाँ पर पूजा की परंपरा 1900 सालों से अविच्छिन्न चली आ रही है और आज भी यह मंदिर पूरी तरह जीवंत है। बड़ी संख्या में भक्तों का यहाँ आना-जाना लगा रहता है। यह मंदिर भारत का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। मंदिर परिसर में विद्यमान शिलालेखों से इसकी ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है। 1838 से 1904 ई. के बीच कई ब्रिटिश विद्वान व पर्यटक यहाँ आए थे। प्रसिद्ध इतिहासकार फ्राँसिस बुकनन भी यहाँ आ चुके हैं। मंदिर का एक शिलालेख कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में है। पुरातत्वविदों के अनुसार यह शिलालेख 349 ई. से 636 ई. के बीच का है। इस मंदिर का उल्लेख कनिंघम ने भी अपनी पुस्तक में किया है। उसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि कैमूर में मुंडेश्वरी पहाड़ी है, जहाँ मंदिर ध्वस्त रूप में विद्यमान है। इस मंदिर का पता तब चला, जब कुछ गडरिये पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा। उस समय इसकी इतनी ख्याति नहीं थी, जितनी अब है। प्रारम्भ में पहाड़ी के नीचे निवास करने वाले लोग ही इस मंदिर में दीया जलाते और पूजा-अर्चना करते थे।

निर्माण काल

इस मंदिर की नक्काशी व मूर्तियाँ उत्तर गुप्तकालीन समय की हैं। शिलालेख के अनुसार यह मंदिर महाराजा उदय सेन के शासन काल में निर्मित हुआ था। जानकार लोग बताते हैं कि शिलालेख में उदय सेन का जिक्र है, जो शक संवत 30 में कुषाण शासकों के अधीन क्षत्रप रहा होगा। उनके अनुसार ईसाई कैलेंडर से मिलान करने पर यह अवधि 108 ईस्‍वी सन् होती है।[1] मंदिर का निर्माण काल 635-636 ई. बताया जाता है। पंचमुखी शिवलिंग इस मंदिर में स्थापित है, जो अत्यंत दुर्लभ है। दुर्गा का वैष्णवी रूप ही माँ मुंडेश्वरी के रूप में यहाँ प्रतिस्थापित है। मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा है, क्योंकि इनका वाहन महिष है। मुंडेश्वरी मंदिर अष्टकोणीय है। मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है। मंदिर में शारदीय और चैत्र माह के नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। वर्ष में दो बार माघ और चैत्र में यहाँ यज्ञ होता है।[2]

बलि की सात्विक परम्परा

मुंडेश्वरी मंदिर की सबसे बड़ी और विलक्षण विशेषता यह है कि यहाँ पशु बलि की सात्विक परंपरा है। यहाँ बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता। कहते हैं कि चंड-मुंड के नाश के लिए जब देवी उद्यत हुई थीं, तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने उसका वध किया था। अतएव यह मुंडेश्वरी माता के नाम से स्थानीय लोगों में जानी जाती हैं। एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि यहाँ भक्तों की कामनाओं के पूरा होने के बाद बकरे की सात्विक बलि चढ़ाई जाती है, लेकिन माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था पनपती है। जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तो पुजारी 'अक्षत' (चावल के दाने) को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं। बकरा उसी क्षण अचेत, मृतप्राय सा हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तो बकरा उठ खड़ा होता है। बलि की यह क्रिया माता के प्रति आस्था को बढ़ाती है।

रोचक तथ्य

  1. यहाँ भगवान शिव का एक पंचमुखी शिवलिंग है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है।
  2. माँ मुंडेश्वरी के इस मंदिर में बकरे की बलि नहीं दी जाती, बल्कि बकरे को देवी के सामने लाया जाता है और उस पर पुरोहित मन्त्र वाले चावल छिडकता है, जिससे वह बेहोश हो जाता है और फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है।
  3. वर्षों बाद मुंडेश्वरी मंदिर में 'तांडुलम भोग' अर्थात 'चावल का भोग' और वितरण की परंपरा पुन: की गई है। ऐसा माना जाता है कि 108 ईस्वी में यहाँ यह परंपरा जारी थी।
  4. मंदिर का अष्टाकार गर्भगृह इसके निर्माण से अब तक कायम है।
  5. जानकार यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश के कुशीनगर और नेपाल के कपिलवस्तु का मार्ग मुंडेश्वरी मंदिर से जुड़ा हुआ था।
  6. 'माता वैष्णो देवी' की तर्ज पर इस मंदिर का विकास किये जाने की योजनायें बिहार राज्य सरकार ने बनाई हैं।
  7. मुंडेश्वरी मंदिर का संरक्षक एक मुस्लिम परिवार है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत का प्राचीनतम मुंडेश्वरी मंदिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 मई, 2013।
  2. माँ मुंडेश्वरी देवी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 मई, 2013।
  3. मुंडेश्वरी मंदिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 मई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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