"हर्षचरित": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "उच्छवास" to "उच्छ्वास") |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
*सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में [[संस्कृत]] गद्य साहित्य के विद्धान सम्राट [[हर्षवर्धन|हर्ष]] के राजकवि [[बाणभट्ट]] द्वारा रचित इस ग्रंथ से हर्ष के जीवन एवं हर्ष के समय में [[भारत]] के इतिहास पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है। | *सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में [[संस्कृत]] गद्य साहित्य के विद्धान सम्राट [[हर्षवर्धन|हर्ष]] के राजकवि [[बाणभट्ट]] द्वारा रचित इस ग्रंथ से हर्ष के जीवन एवं हर्ष के समय में [[भारत]] के इतिहास पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है। | ||
*'हर्षचरित' [[बाणभट्ट]] का ऐतिहासिक महाकाव्य है। बाण ने इसे आख्यायिका कहा है।<ref>'करोम्याख्यायिम्भोधौ जिह्वाप्लवनचापलम्''</ref> | *'हर्षचरित' [[बाणभट्ट]] का ऐतिहासिक महाकाव्य है। बाण ने इसे आख्यायिका कहा है।<ref>'करोम्याख्यायिम्भोधौ जिह्वाप्लवनचापलम्''</ref> | ||
*आठ | *आठ उच्छ्वासों में विभक्त इस आख्यायिका में बाणभट्ट ने स्थाण्वीश्वर के महाराज [[हर्षवर्धन]] के जीवन-चरित का वर्णन किया है। | ||
*आरंभिक तीन | *आरंभिक तीन उच्छ्वासों में बाण ने अपने वंश तथा अपने जीवनवृत्त सविस्तार वर्णित किया है। | ||
*हर्षचरित की वास्तविक कथा चतुर्थ | *हर्षचरित की वास्तविक कथा चतुर्थ उच्छ्वास से आरम्भ होती है। | ||
*इसमें हर्षवर्धन के वंश प्रवर्तक पुष्पभूति से लेकर सम्राट हर्षवर्धन के ऊर्जस्व चरित्र का उदात्त वर्णन किया गया है। | *इसमें हर्षवर्धन के वंश प्रवर्तक पुष्पभूति से लेकर सम्राट हर्षवर्धन के ऊर्जस्व चरित्र का उदात्त वर्णन किया गया है। | ||
*'हर्षचरित' में ऐतिहासिक विषय पर गद्यकाव्य लिखने का प्रथम प्रयास है। | *'हर्षचरित' में ऐतिहासिक विषय पर गद्यकाव्य लिखने का प्रथम प्रयास है। |
07:49, 7 नवम्बर 2017 का अवतरण

- सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में संस्कृत गद्य साहित्य के विद्धान सम्राट हर्ष के राजकवि बाणभट्ट द्वारा रचित इस ग्रंथ से हर्ष के जीवन एवं हर्ष के समय में भारत के इतिहास पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है।
- 'हर्षचरित' बाणभट्ट का ऐतिहासिक महाकाव्य है। बाण ने इसे आख्यायिका कहा है।[1]
- आठ उच्छ्वासों में विभक्त इस आख्यायिका में बाणभट्ट ने स्थाण्वीश्वर के महाराज हर्षवर्धन के जीवन-चरित का वर्णन किया है।
- आरंभिक तीन उच्छ्वासों में बाण ने अपने वंश तथा अपने जीवनवृत्त सविस्तार वर्णित किया है।
- हर्षचरित की वास्तविक कथा चतुर्थ उच्छ्वास से आरम्भ होती है।
- इसमें हर्षवर्धन के वंश प्रवर्तक पुष्पभूति से लेकर सम्राट हर्षवर्धन के ऊर्जस्व चरित्र का उदात्त वर्णन किया गया है।
- 'हर्षचरित' में ऐतिहासिक विषय पर गद्यकाव्य लिखने का प्रथम प्रयास है।
- इस ऐतिहासिक काव्य की भाषा पूर्णत: कवित्वमय है।
- 'हर्षचरित' शुष्क घटना प्रधान इतिहास नहीं, प्रत्युत विशुद्ध काव्यशैली में उपन्यस्त वर्णनप्रधान काव्य है।
- बाण ने ओज गुण और अलंकारों का सन्निवेश कर एक प्रौढ़ गद्यकाव्य का स्वरूप प्रदान किया है।
- इसमें वीररस ही प्रधान है। करुणरस का भी यथास्थान सन्निवेश किया गया है।
- 'हर्षचरित' तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों, सांस्कृतिक परिवेशों और धार्मिक मान्यताओं पर प्रकाश डालता है।
- अत: ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह महनीय ग्रन्थरत्न काव्य सौन्दर्य, अद्भुत वर्णन चातुर्य के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध कृति है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 'करोम्याख्यायिम्भोधौ जिह्वाप्लवनचापलम्