"गीता 17:27": अवतरणों में अंतर
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तथा यज्ञ, तप और दान में जो स्थिति है, वह भी 'सत्' इस प्रकार कही जाती है और उस परमात्मा के लिये किया हुआ कर्म निश्चयपूर्वक सत्- ऐसे कहा जाता है ।।27। | तथा [[यज्ञ]], तप और दान में जो स्थिति है, वह भी 'सत्' इस प्रकार कही जाती है और उस परमात्मा के लिये किया हुआ कर्म निश्चयपूर्वक सत्- ऐसे कहा जाता है ।।27। | ||
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13:24, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-27 / Gita Chapter-17 Verse-27
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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