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| | <quiz display=simple> |
| | {[[अशोक]] के जो [[अशोक के शिलालेख|शिलालेख]] संगम राज्य के बारे में बताते हैं, वह कौन-से हैं?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-16,प्रश्न-53 |
| | |type="()"} |
| | -पहला और 10वाँ शिलालेख |
| | -पहला और 11वाँ शिलालेख |
| | +दूसरा एवं 13वाँ शिलालेख |
| | -दूसरा एवं 14वाँ शिलालेख |
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| ====कमला नेहरू की बीमारी और निधन====
| | {[[मौर्य काल]] में प्रचलित शब्द 'विष्टि' का क्या अर्थ था?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-80 |
| [[चित्र:Indira-Gandhi-Museum.jpg|thumb|250px|इंदिरा गाँधी संग्रहालय <br /> Indira Gandhi Museum]] | | |type="()"} |
| दरसल कुछ समय बाद ही इलाहाबाद में इंदिरा की माता कमला नेहरू का स्वास्थ्य काफ़ी ख़राब हो गया। वह बीमारी में अपनी पुत्री को याद करती थीं। पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि बीमार माता को उसकी पुत्री की शिक्षा के कारण ज़्यादा समय तक दूर रखा जाए। उधर अंग्रेज़ों को भी कमला नेहरू के अस्वस्थ होने की जानकारी थी। अंग्रेज़ चाहते थे कि यदि ऐसे समय में पंडित नेहरू को जेल भेजने का भय दिखाया जाए तो वह आज़ाद रहकर पत्नी का इलाज कराने के लिए उनकी हर शर्त मानने को मजबूर हो जाएंगे। इस प्रकार वे पंडित नेहरू का मनोबल तोड़ने का प्रयास कर रहे थे। पंडित नेहरू जब अंग्रेज़ों की शर्तों के अनुसार चलने को तैयार न हुए तो उन्हें गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। जब पंडित नेहरू ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगौर के नाम शांति निकेतन में तार भेजा गुरुदेव ने वह तार इंदिरा को दिया जिसमें लिखा था। इंदिरा की माता काफ़ी अस्वस्थ हैं और मैं जेल में हूँ। इस कारण इंदिरा को माता की देखरेख के लिए अविलंब इलाहाबाद भेज दिया जाए। माता की अस्वस्थता का समाचार मिलने के बाद इंदिरा ने गुरुदेव से जाने की इच्छा प्रकट की।
| | -वैवाहिक अनुष्ठान |
| =====जर्मनी में इलाज===== | | +बेगारी |
| इलाहाबाद पहुँचने पर इंदिरा ने अपनी माता की रुग्ण स्थिति देखी जो काफ़ी चिंतनीय थी। भारत में उस समय यक्ष्मा का माक़ूल इलाज नहीं था। उनका स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ता जा रहा था। यह 1935 का समय था। तब डॉक्टर मदन अटल के साथ इंदिरा जी अपनी माता को चिकित्सा हेतु [[जर्मनी]] के लिए प्रस्थान कर गईं। पंडित नेहरू उस समय जेल में थे। चार माह बाद जब पंडित नेहरू जेल से रिहा हुए तो वह भी जर्मनी पहुँच गए। जर्मनी में कुछ समय तक कमला नेहरू का स्वास्थ्य ठीक रहा लेकिन यक्ष्मा ने फिर ज़ोर पकड़ लिया। इस समय तक विश्व में कहीं भी यक्ष्मा का इलाज नहीं था। हां, यह अवश्य था कि पहाड़ी स्थानों पर बने सेनिटोरियम में रखकर मरीज़ों की ज़िंदगी को कुछ समय के लिए बढ़ा दिया जाता था। लेकिन यह कमला नेहरू के रोग की प्रारंभिक स्थिति नहीं थी। यक्ष्मा अपनी प्रचंड स्थिति में पहुँच चुका था लेकिन पिता- पुत्री ने हार नहीं मानी।
| | -प्रांत |
| | -ज़िला |
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| पंडित नेहरू और इंदिरा कमलाजी को स्विट्जरलैंड ले गए। वहाँ उन्हें लगा कि कमला जी के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। लेकिन जिस प्रकार बुझने वाले दीपक की लौ में अंतिम समय प्रकाश तीव्र हो जाता है, उसी प्रकार स्वास्थ्य सुधार का यह संकेत भी भ्रमपूर्ण था। राजरोग को अपनी बलि लेनी थी और फ़रवरी 1936 में कमला नेहरू का निधन हो गया। '''19 वर्षीया पुत्री इंदिरा के लिए यह भारी शोक के क्षण थे।''' माता की जुदाई का आघात सहन कर पाना इतना आसान नहीं था। उन पर माता की रुग्ण समय की स्मृतियाँ हावी थीं। पंडित नेहरू को भय था कि माता के निधन का दुख और एकांत में माता की यादों की पीड़ा कहीं इंदिरा को अवसाद का शिकार न बना दे। इंदिरा में अवसाद के आरंभिक लक्षण नज़र भी आने लगे थे। तब पंडित नेहरू ने यूरोप के कुछ दर्शनीय स्थलों पर अपनी पुत्री इंदिरा के साथ कुछ समय गुजारा ताकि बदले हुए परिवेश में वह अतीत की यादों से मुक्त रह सके। इसका माक़ूल असर भी हुआ। इंदिरा ने विधि के कर विधान को समझते हुए हालात से समझौता कर लिया।
| | {किस वंश के शासकों ने [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] एवं [[बौद्ध]] [[भिक्कु|भिक्षुओं]] को करमुक्त भूमि या [[गाँव]] (भूमि अनुदान) देने की प्रथा आरंम्भ की? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-17 |
| | |type="()"} |
| | +[[सातवाहन वंश|सातवाहन]] |
| | -[[मौर्य वंश|मौर्य]] |
| | -[[गुप्त राजवंश|गुप्त]] |
| | -[[चोल राजवंश|चोल]] |
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| | {'तमिल काव्य का ओडिसी' किसे कहा जाता है?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-20 |
| | |type="()"} |
| | -तोल्लप्पियम |
| | -कुरल |
| | -शिलप्पदिकारम |
| | +मणिमेकलई |
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| | {[[अशोक के अभिलेख|अशोक का अभिलेख]] भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर भी पाया गया है। निम्नलिखित में किस देश में यह पाया गया है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-70 |
| | |type="()"} |
| | +[[अफ़ग़ानिस्तान]] |
| | -[[चीन]] |
| | -[[बर्मा]] |
| | -[[नेपाल]] |
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| ==देश का विभाजन==
| | {सुरदर्शन झील, जिसका निर्माण [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के [[सौराष्ट्र|सौराष्ट्र प्रांत]] के गवर्नर पुष्यगुप्त ने करवाया था, तथा जिसकी मरम्मत पहली बार [[शक]] शासक [[रुद्रदामन]] ने करवाई थी, की दूसरी बार मरम्मत किसने करवाई?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-24,प्रश्न-80 |
| उस समय देश विभाजन के किनारे पर था। [[मुहम्मद अली जिन्ना|जिन्ना]] के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग की थी और अंग्रेज़ भी जिन्ना की माँग को स्पष्ट हवा दे रहे थे लेकिन गाँधीजी विभाजन के पक्ष में नहीं थे। लॉर्ड माउंटबेटन कूटनीति का खेल खेलने में लगे हुए थे। वह एक ओर महात्मा गाँधी को आश्वस्त कर रहे थे कि देश का विभाजन नहीं होगा तो दूसरी ओर पंडित नेहरू से कह रहे थे कि दो राष्ट्रों के विभाजन के फॉर्मूले पर ही आज़ादी प्रदान की जाएगी। '''पंडित नेहरू स्थिति की गंभीरता को समझ रहे थे जबकि महात्मा गाँधी इस भ्रम में थे कि अंग्रेज़ वायसराय विभाजन नहीं चाहता है।''' जिन्ना की अनुचित माँग के कारण हिन्दू और मुसलमानों में वैमनस्य पसर गया था। महत्त्वाकांक्षी जिन्ना पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत लालायित थे। महात्मा गाँधी ने जिन्ना को संपूर्ण और अखंड भारत का प्रधानमंत्री बनाने का आश्वासन दिया। लेकिन जिन्ना यह जानते थे कि पंडित नेहरू के कारण यह संभव नहीं है। हिन्दू किसी भी मुस्लिम को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। '''ऐसे में देश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलसने लगा था।''' महात्मा गाँधी किसी तरह दंगों की आग शांत करना चाहते थे। दिल्ली में भी कई स्थानों पर इंसानियत शर्मसार हो रही थी। तब महात्मा गाँधी ने इंदिरा जी को यह मुहिम सौंपी कि वह दंगाग्रस्त क्षेत्रों में जाकर लोगों को समझाएँ और अमन लौटाने में मदद करें।
| | |type="()"} |
| ====दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा==== | | -[[समुद्रगुप्त]] |
| इंदिरा गाँधी ने फिर महात्मा गाँधी के आदेश को शिरोधार्य किया और दंगाग्रस्त क्षेत्रों में दोनों समुदायों के लोगों को समझाने का प्रयास करने लगीं। वस्तुतः यह अत्यंत जोखिम कार्य था। पंडित नेहरू की बेटी होने के कारण अतिवादी उन्हें नुक़सान पहुँचा सकते थे परंतु निर्भिक इंदिरा ने दंगों की आग शांत करने के लिए पुरज़ोर प्रयास किए। लेकिन 15 अगस्त के बाद सांप्रदायिकता अपने चरम पर पहुँच गई। दंगों में दोनों समुदायों के अनगिनत लोग मौत के घाट उतार दिए गए। [[पाकिस्तान]] से लाखों शरणार्थी दिल्ली आ गए थे। शरणार्थियों के पुनर्वास का सवाल भी उत्पन्न हो गया था। उन भूखे-प्यासे घर से भागे लोगों के लिए प्राथमिक आवश्यकताएँ भी जरूरी थीं। ऐसी स्थिति में दिल्ली के कई स्थानों पर शरणार्थी एवं दंगा पीड़ित शिविर लगाए गए थे। '''पंडित नेहरू ने 17, पार्क रोड के अपने बंगले पर भी शरणार्थी शिविर लगाए।''' शरणार्थियों के जीवन की बुनियादी सुविधाओं का ध्यान रखा जा रहा था। उस समय महात्मा गाँधी पश्चिम बंगाल के नोआख़ाली ज़िले में जहाँ मुस्लिमों की कई बस्तियों को जला दिया गया था। पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में हज़ारों हिन्दुओं की लाशें भी आ रही थीं। इस कारण हिन्दू आक्रोशित होकर मुसलमानों पर हमला कर रहे थे।
| | +[[स्कंदगुप्त]] |
| ====घर में शरणार्थी शिविर====
| | -[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] |
| पंडित जवाहरलाल नेहरू के बंगले में जो शरणार्थी शिविर लगाए गए थे, उनकी देखरेख इंदिरा गाँधी ही कर रही थीं। सभी कमरे ख़ाली करके शरणार्थियों को उनमें ठहरा दिया गया था और प्रांगण आदि में भी तम्बू इत्यादि लगा दिए थे ताकि अधिकाधिक शरणार्थियों को वहाँ रखा जा सके। यहाँ की सभी व्यवस्था इंदिरा गाँधी द्वारा देखी जा रही थी। अंतरिम सरकार के गठन के साथ पंडित नेहरू [[कार्यवाहक प्रधानमंत्री]] बना दिए थे। [[26 जनवरी]], [[1950]] को भारत का संविधान भी लागू हो गया। भारत एक गणतांत्रिक देश बना और प्रधानमंत्री नेहरू की सक्रियता काफ़ी अधिक बढ़ गई। इस समय नेहरूजी का निवास त्रिमूर्ति भवन ही था। समय-समय पर विभिन्न देशों के आगंतुक त्रिमूर्ति भवन में ही नेहरूजी के पास आते थे। उनके स्वागत के सभी इंतज़ाम इंदिरा गाँधी द्वारा किए जाते थे। साथ ही साथ उम्रदराज़़ हो रहे पिता की आवश्यकताओं को भी इंदिरा देखती थीं।
| | -[[चन्द्रगुप्त प्रथम]] |
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| | {[[दिल्ली]] के प्रथम सुल्तान कौन थे, जिन्होंने [[दक्षिण भारत|दक्षिणी भारत]] को पराजित करने का प्रयास किया?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-20) |
| | |type="()"} |
| | -[[क़ुतुबुद्दीन ऐबक]] |
| | -नासिरुद्दीन खुसरो शाह |
| | +[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] |
| | -जलालुद्दीन फ़िरोज़ |
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| | {निम्नलिखित में से किसने [[ढोल]] की तेज़ आवाज़ के साथ एक महिला का अपने पति की चिता के साथ स्वत: को जला देने के दृश्यों का भयानक चित्रण किया है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-32 |
| | |type="()"} |
| | +[[इब्नबतूता]] |
| | -[[जियाउद्दीन बरनी]] |
| | -[[बदायूंनी]] |
| | -[[अमीर ख़ुसरो]] |
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| ====पंडित नेहरू की मृत्यु====
| | {[[लोदी वंश]] का संस्थापक कौन था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-48 |
| {{मुख्य|जवाहरलाल नेहरू}} | | |type="()"} |
| पंडित जवाहरलाल नेहरू (14 नवम्बर, 1889 - 27 मई, 1964) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री (1947-1964) थे। 27 मई 1964 को जब पंडित नेहरू की मृत्यु हुई तब पहले की भाँति कांग्रेस पार्टी पर उनकी पकड़ मज़बूत नहीं रह गई थी। पार्टी में उनकी साख भी कमज़ोर हुई थी। [[चीन]] युद्ध में भारत की पराजय के कारण पंडित नेहरू की लोकप्रियता कम हुई थी और लकवे के कारण भी उन्हें शारीरिक रूप से अक्षम मान लिया गया था। लेकिन देशहित में किए गए उनके अभूतपूर्व कार्यों की आभा ने पंडित नेहरू को प्रधानमंत्री बनाए रखा। जिस प्रकार कृष्ण मेनन को चीन से पराजय के बाद रक्षा मंत्री के पद से हटने के लिए विवश किया गया था, वैसा ही पंडित नेहरू के साथ भी किया जा सकता था। लेकिन यह पंडित नेहरू का आभामंडल था कि पार्टी ने उस पर निष्ठा भाव बनाए रखा। परंतु पार्टी पर उनकी पकड़ पहले जैसी मज़बूत नहीं रह गई थी। इंदिरा गाँधी ने भी इस परिवर्तन को लक्ष्य कर लिया था। पंडित नेहरू के बाद लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बनाए गए। उन्होंने कांग्रेस संगठन में इंदिरा जी के साथ मिलकर कार्य किया था। शास्त्रीजी ने उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सौंपा। अपने इस नए दायित्व का निर्वहन भी इंदिराजी ने कुशलता के साथ किया। यह ज़माना आकाशवाणी का था और दूरदर्शन उस समय भारत में नहीं आया था। इंदिरा गाँधी ने आकाशवाणी के कार्यक्रमों में फेरबदल करते हुए उसे मनोरंजन बनाया तथा उसमें गुणात्मक अभिवृद्धि की। 1965 में जब भारत- पाकिस्तान युद्ध हुआ तो आकाशवाणी का नेटवर्क इतना मुखर था कि समस्त भारत उसकी आवाज़ के कारण एकजुट हो गया। इस युद्ध के दौरान आकाशवाणी का ऐसा उपयोग हुआ कि लोग राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत हो उठे। भारत की जनता ने यह प्रदर्शित किया कि संकट के समय वे सब एकजुट हैं और राष्ट्र के लिए तन-मन धन अर्पण करने को तैयार हैं। राष्ट्रभक्ति का ऐसा जज़्बा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी देखने को नहीं प्राप्त हुआ था। इंदिरा गाँधी ने युद्ध के समय सीमाओं पर जवानों के बीच रहते हुए उनके मनोबल को भी ऊंचा उठाया जबकि इसमें उनकी ज़िंदगी को भारी ख़तरा था। कश्मीर के युद्धग्रस्त क्षेत्रों में जाकर जिस प्रकार उन्होंने भारतीय सैंनिकों का मनोबल ऊंचा किया, उससे यह ज़ाहिर हो गया कि उनमें नेतृत्व के वही गुण हैं जो पंडित नेहरू में थे।
| | -[[इब्राहिम लोदी]] |
| | -[[सिकंदर लोदी]] |
| | +[[बहलोल लोदी]] |
| | -इनमें से कोई नहीं |
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| | {निम्न में से कौन 'गुलरुखी' के उपनाम से [[कविता|कविताएँ]] लिखा करता था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-59 |
| | |type="()"} |
| | -[[इब्नबतूता]] |
| | -[[जियाउद्दीन बरनी]] |
| | +[[सिकंदर लोदी]] |
| | -[[फ़रिश्ता]] |
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| ==कांग्रेस का विभाजन==
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| [[चित्र:Indira-Gandhi-Museum-Delhi.jpg|thumb|250px|इंदिरा गाँधी संग्रहालय, [[दिल्ली]]<br />Indira Gandhi Museum, Delhi]]
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| इंदिरा गाँधी पुन: प्रधानमंत्री बन गई लेकिन सिंडीकेट का पराभव लंबे समय तक नहीं चला। कामराज और एस. के. पाटिल उप चुनावों के माध्यम से विजयी होकर सांसद बन गए। उन्होंने मोरारजी देसाई को अपने साथ मिलाकर सिंडीकेट को पुन: मज़बूत बना लिया। ऐसे में सिंडीकेट ने दावा किया कि कांग्रेस का प्रधानमंत्री पार्टी से ऊपर नहीं है और पार्टी की नीतियों के अनुसार ही प्रधानमंत्री को शासन करने का अधिकार होता है।
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| 1967 के अंत में कामराज का अध्यक्षीय कार्यकाल समाप्त होना था। इंदिरा गाँधी को यह उम्मीद बंधी कि पार्टी का नया अध्यक्ष पद निजलिंगप्पा के सुपुर्द हो गया। सिंडीकेट ने तय कर लिया कि इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री पद से हटाकर सिंडीकेट के किसी वफ़ादार व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त किया जाए। [[मोरारजी देसाई]] ने प्रधानमंत्री बनने के लिए अपनी रज़ामंदी भी दे दी। इंदिरा गाँधी भी ख़तरे को भांप चुकी थी। लेकिन उपयुक्त अवसर का इंतज़ार करने लगीं। वह स्वयं पहला वार नहीं करना चाहती थीं। उन्हें यह अवसर मई 1967 में तब प्राप्त हुआ जब [[ज़ाकिर हुसैन|डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन]] की राष्ट्रपति पद पर कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो गई। नए राष्ट्रपति के चुनाव ने यह भूमिका बनाई कि इंदिरा गाँधी आर-पार की लड़ाई लड़ सकें। तब सिंडीकेट ने नए [[राष्ट्रपति]] के रूप में [[नीलम संजीव रेड्डी]] का नाम प्रस्तावित किया। फिर कांग्रेस की ओर से उनका नामांकन भी कर दिया गया।
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| ====सुधारवादी आर्थिक कार्यक्रम====
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| सिंडीकेट चाहती थी कि रेड्डी के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए विवश कर दिया जाए। इंदिरा गाँधी को सिंडीकेट की इस चाल का पूर्वानुमान था। '''उन्होंने तत्कालीन उपराष्ट्रपति [[वी.वी. गिरि]] को राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में खड़ा कर दिया। इससे जनता के मध्य उनकी छवि खंडित हुई कि वह पार्टी के विरुद्ध जा रही हैं। लेकिन इंदिरा गाँधी को यह पता था कि उन्हें आगे क्या करना है। लिहाज़ा उन्होंने मोरारजी देसाई से वित्त मंत्रालय वापस ले लिया।''' अब इंदिरा गाँधी ने [[वित्त मंत्रालय]] अपने पास रखते हुए कई आर्थिक कार्यक्रम चलाए। '''उन्होंने देश के महत्त्वपूर्ण 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया ताकि वे सरकार की आर्थिक नीति के अनुसार आचरण कर सकें।'''
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| <blockquote>इंदिरा गाँधी ने दूसरा क़दम यह उठाया कि भूतपूर्व राजा-महाराजाओं को जो बड़ी राशि [[प्रीविपर्स]] के रूप में मिलती आ रही थी, उसकी समाप्ति की घोषणा कर दी। इन बड़े दो क़दमों के कारण जनता के मध्य इंदिरा गाँधी की एक सुधारवादी प्रधानमंत्री की छवि क़ायम हुई और उनकी लोकप्रियता का ग्राफ़ एकदम ही उछल गया। ग़रीब, दलित, मध्यम वर्ग और बुद्धिजीवी वर्ग सभी ने इंदिरा गाँधी के सुधारवादी क़दमों की जमकर प्रशंसा की। इधर सिंडीकेट ने इंदिरा गाँधी पर ज़ोर डाला कि वह नीलम संजीव रेड्डी के राष्ट्रपति चुनाव हेतु '[[व्हिप]]' जारी करें। लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया और अंतरात्मा की आवाज़ पर योग्य उम्मीदवार को वोट देने की अपील की। इंदिरा गाँधी ने अपनी सुदृढ़ छवि बनाकर वी.वी गिरि के लिए मार्ग साफ़ कर दिया। वी. वी. गिरि राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए और सिंडीकेट को पुन: मुहँ की खानी पड़ी।</blockquote>
| | {निम्नलिखित में से किस राज्यादेश में [[अशोक]] के व्यक्तिगत नाम (अशोक) का उल्लेख मिलता है?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-16,प्रश्न-55 |
| | |type="()"} |
| | -[[कालसी]] |
| | -[[रुम्मिनदेई]] |
| | -विशिष्ट [[कलिंग|कलिंग राज्यादेश]] |
| | +[[मास्की]] |
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| [[12 नवंबर]], 1967 को इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए पार्टी से निष्कासित कर दिया। इस प्रकार वे उन्हें प्रधानमंत्री पद से अपदस्थ करना चाहते थे। जो व्यक्ति पार्टी की सदस्यता से निष्कासित हो चुका हो, वह उस पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री कैसे रह सकता था? इसके जवाब में इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस पार्टी को विभाजित कर दिया। उन्होंने अपनी कांग्रेस को कांग्रेस-आर (रिक्विसिशनिस्ट) करार दिया जबकि सिंडीकेट की कांग्रेस को कांग्रेस-ओ (आर्गेनाइजेशन) नाम प्राप्त हो गया।{{दाँयाबक्सा|पाठ=आज तक भारत के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं। उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं। लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि एक प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गाँधी ने विभिन्न चुनौतियों का मुक़ाबला करने में सफलता प्राप्त की। युद्ध हो, विपक्ष की नीतियाँ हों, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की कोई समस्या हो- इंदिरा गाँधी ने स्वयं को सफल साबित किया।|विचारक=}} | | {निम्नलिखित में से [[मौर्यकालीन कला|मौर्य कला]] का सबसे अच्छा नमूना कौन है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-82 |
| | |type="()"} |
| | +स्तम्भ |
| | -[[स्तूप]] |
| | -गुफ़ा निर्माण |
| | -[[चैत्यगृह|चैत्य]] |
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| इंदिरा गाँधी की पार्टी में सिंडीकेट की पार्टी से ज़्यादा सदस्य संख्या थी। इस कारण वह प्रधानमंत्री, साथ ही अपनी पार्टी की अध्यक्ष भी बनी रहीं। लेकिन इंदिरा गाँधी अब सिंडीकेट से पूरी तरह मुक्त हो जाना चाहती थीं। इसके लिए यह आवश्यक था कि वह पुन: जनादेश लें और नई पार्टी अध्यक्ष के रूप में चुनाव सभा में जाएँ। मध्यावधि चुनाव की घोषणा करने से पूर्व इंदिरा गाँधी ने कुछ ऐसे कार्यों को संपादित किया जिससे चुनावों के दौरान उन्हें लाभ मिल सके। उन्होंने मध्यावधि चुनाव की घोषणा से पूर्व निम्नवत क़दम उठाए।
| | {भारतीय रंगमंच में यवनिका (पर्दा) का शुभारंभ किसने किया? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-18 |
| *बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कार्य पूर्ण किया गया। संसद में बहुमत था और राष्ट्रपति वी.वी. गिरि ने अध्यादेश को स्वीकृत कर लिया। इसके पूर्व न्यायालय ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण को अवैध ठहराया था। बैकों के राष्ट्रीयकरण के बाद भारत सरकार की राष्ट्रीय आर्थिक नीति के अंतर्गत सामाजिक सरोकार के कार्य होने लगे। मध्यम वर्ग तथा अल्प मध्यम वर्ग के लोगों को रोज़गारपरक ऋण मिलने का मार्ग साफ़ हो गया।
| | |type="()"} |
| *भूमि हदबंदी योजना को पूरी शक्ति के साथ लागू किया गया। इससे ग़रीब किसानों को अच्छा लाभ मिला।
| | -[[शक|शकों]] ने |
| *अगस्त 1970 में राजा-महाराजाओं को दिया जाने वाला प्रीविपर्स समाप्त कर दिया गया। इस प्रकार करोड़ों रुपयों की बचत संभव हुई और यह धन देश के सर्वहारा वर्ग के काम आया। इंदिरा गाँधी के इस क़दम का ग़रीबों और शोषित वर्ग के लोगों ने काफ़ी समर्थन किया।
| | -[[पार्थिया|पार्थियनों]] ने |
| *चौथी पंचवर्षीय योजना को लागू किया गया ताकि पंडित नेहरू ने राष्ट्र के विकास का जो माध्यम तैयार किया था, उसे क्रियांवित किया जा सके। चौथी पंचवर्षीय योजना बजट दुगना कर दिया गया।
| | +[[यूनानी|यूनानियों]] ने |
| | -[[कुषाण|कुषाणों]] ने |
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| इस प्रकार इंदिरा गाँधी ने लोक कल्याणकारी कार्यों के माध्यम से जनता के मध्य अपनी एक नई पहचान क़ायम की। लेकिन उनके विश्वस्त सांसदों की स्थिति पर्याप्त नहीं थी। वह चाहती थीं कि नए विधेयकों के लिए उन्हें दूसरी पार्टियों का मुँह न ताकना पड़े। इस प्रकार चुनाव से पूर्व इंदिरा गाँधी ने अपना आभामंडल तैयार किया और [[27 दिसंबर]], 1970 को लोकसभा भंग करके मध्यावधि चुनाव का मार्ग प्रशस्त कर दिया। एक वर्ष पूर्व लोकसभा भंग करने का उनका निर्णय साहसिक था।
| | {किस स्थान से [[अशोक]] के स्तंभ के लिए पत्थर लिया जाता था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-71 |
| | |type="()"} |
| | +[[चुनार]] |
| | -[[कौशाम्बी]] |
| | -[[इलाहाबाद]] |
| | -[[राजगृह]] |
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| ==मध्यावधि चुनाव==
| | {पुहर/कावेरीपट्टनम की स्थापना किसने की थी? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-21 |
| '''इंदिरा गाँधी मध्यावधि चुनाव भी करवा सकती हैं, विपक्ष को इसका अंदेशा नहीं था। लोकसभा भंग होने की घोषणा ने उन्हें भौचक्का कर दिया।''' उन्होंने न तो कोई तैयारी की थी और न ही कोई व्यूह रचना करने में सफल हुए थे। उनके पास पर्याप्त समय भी नहीं था जबकि जनता के पास जाने के लिए समुचित कार्य योजना की आवश्यकता थी। ऐसी स्थिति में विपक्ष इस कसौटी पर खरा नहीं उतर सका और संगठनवादी कांग्रेस के पास भी कोई मुद्दा नहीं था। इस कारण विपक्ष ने जहाँ 'कांग्रेस हटाओ' का नारा दिया, वहीं संगठन कांग्रेस ने इंदिरा हटाओं को ही अपनी चुनावी मुहिम का मुख्य मुद्दा बना लिया लेकिन जनता ठोस कार्यों की कार्य योजना चाहती थी। '''इंदिरा गाँधी ने 'ग़रीबी हटाओं' के नारे के साथ समाजवादी सिद्धांतों के अनुरुप चुनावी घोषणा पत्र तैयार कराया 'ग़रीबी हटाओ' का नारा लोकप्रिय साबित हुआ।''' उनके पूर्ववर्ती लोकहित कार्यों की पृष्ठभूमि ने भी चमत्कारी भूमिका निभाई। इंदिरा गाँधी के पक्ष में चुनावी माहौल बनने लगा और इंदिरा गाँधी को बहुतमत प्राप्त हो गया। उन्हें 518 में से 352 सीटों की प्राप्ति हुई।
| | |type="()"} |
| | +[[करिकाल]] |
| | -[[शेनगुट्टुवन]] |
| | -[[उदियनजेरल]] |
| | -इनमें से कोई नहीं |
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| चुनाव में विजय हासिल करने के लिए कांग्रेस (ओ), जनसंघ एवं स्वतंत्र पार्टी ने एक गठबंधन बनाया जिसका नाम 'ग्रैंड अलायंस' रखा गया था। ग्रैंड अलायंस को भारी क्षति हुई और जनता ने उन्हें नकार दिया। जनता ने सबको दर-किनार करके इंदिरा गाँधी को बहुमत प्रदान किया। केंद्र में इंदिरा गाँधी की स्थिति बेहद मज़बूत हो गई थी। अब वह स्वतंत्र फैसले करने में स्वतंत्र थीं। भारत का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बढ़ा। दुनिया भर के अन्य राष्ट्र भारत की ओर उत्सुक दृष्टि से देख रहे थे। क्योंकि राजनीतिक स्थिरता प्राप्त करने के बाद उन्हें उम्मीद थी कि भारत विकास पथ पर बढ़ते हुए आर्थिक स्वावलंबन भी प्राप्त कर लेगा।
| | {निम्न में से कौन-सा सुमेलित नहीं है?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-24,प्रश्न-82 |
| | |type="()"} |
| | -महासंधिविग्रहिक - युद्ध व शांति का मंत्री |
| | -महादंडनायक - सेना का सर्वोच्चम अधिकारी |
| | -विनयस्थिति स्थापक - धार्मिक मामलों का प्रमुख अधिकारी |
| | +महाश्वपति - गज सेना का अध्यक्ष |
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| ==पाकिस्तान युद्ध==
| | {[[भारत]] पर प्रथम [[तुर्क]] आक्रमण करने वाला कौन था?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-22 |
| पाकिस्तान बनने के साथ ही वहाँ अप्रत्यक्ष रूप से एक बँटवारा हो गया था- पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान ने भाषा की श्रेष्ठता के आधार पर पूर्वी पाकिस्तान के साथ सौतेला व्यवहार करना आरंभ कर दिया। '''बंगला भाषी पाकिस्तानियों का शोषण होने लगा और उन्हें पाकिस्तान में दोयम दर्जे का नागरिक माना जाने लगा।''' पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों में श्रेष्ठता का दंभ था। इस कारण पाकिस्तान बनने के बाद जो विकास कार्य हुआ, वह पश्चिमी पाकिस्तान में ही हुआ। ऐसे में बंगला भाषी पाकिस्तानियों की आर्थिक स्थिति में भी निरंतर गिरावट रही। इस सौतेलेपन के विरुद्ध पूर्वी पाकिस्तान ने आवाज़ बुलंद की इसका परिणाम यह हुआ कि उनकी आवाज़ को कुचलने के लिए कई बार सैनिक कार्रवाई भी की गई। अततः शेख़ मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में समस्त पूर्वी पाकिस्तान सौतेलेपन और शोषण के विरुद्ध एकजुट हो गया। '''पाकिस्तान के सैन्य शासक यहिया ख़ान ने पूर्वी पाकिस्तान में सेना भेज दी। इन सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान में अमानवीयता की हदें पार करते हुए नृशंसता का जो नंगा नृत्य किया, उससे इंसानियत शर्मसार हो गई।'''
| | |type="()"} |
| [[चित्र:Indira-Gandhi-2.jpg|thumb|250px|left|इंदिरा गाँधी स्टाम्प]] | | +[[महमूद ग़ज़नवी]] |
| इन सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान की बहू-बेटियों के साथ सामूहिक रूप से बलात्कार किए। लोगों का क़त्ले-आम करते हुए दुध-मुँहे बच्चों को भी संगीनों पर उछाला गया। पूर्वी पाकिस्तान के भयभीत लोग भारत के सीमावर्ती प्रांतों में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए। [[1971]] के नवंबर माह तक पूर्वी पाकिस्तान के एक करोड़ शरणार्थी भारत में प्रविष्ट हो चुके थे। इन शरणार्थियों की उदर पूर्ति करना तब भारत के लिए एक समस्या बन गई थी। ऐसी स्थिति में भारत ने पाकिस्तान के बर्बर रुख़ के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवता के हित में आवाज़ बुलंद की। इसे पाकिस्तान ने अपने देश का आंतरिक मामला बताते हुए पूर्वी पाकिस्तान में घिनौनी सैनिक कार्रवाई जारी रखी। छह माह तक वहाँ दमन चक्र चला।
| | -[[मुहम्मद ग़ोरी]] |
| | -[[चंगेज़ ख़ाँ]] |
| | -[[तैमूर लंग]] |
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| इसके पश्चात पाकिस्तान ने [[3 दिसंबर]], 1971 को भारत के वायु सेना ठिकानों पर हमला करते हुए उसे युद्ध का न्योता दे दिया। पश्चिमी भारत के सैनिक अड्डों पर किया गया हमला पाकिस्तान की ऐतिहासिक पराजय का कारण बना। इंदिरा जी ने चतुरतापूर्वक तीनों सेनाध्यक्षों के साथ मिलकर यह योजना बनाई कि उन्हें दो तरफ से आक्रमण करना है। एक आक्रमण पश्चिमी पाकिस्तान पर होगा और दूसरा आक्रमण तब किया जाएगा जब पूर्वी पाकिस्तान की मुक्तिवाहिनी सेनाओं को भी साथ मिला लिया जाएगा। [[जनरल जे.एस.अरोड़ा]] के नेतृत्व में भारतीय थल सेना मुक्तिवाहिनी की मदद के लिए मात्र ग्यारह दिनों में ढाका तक पहुँच गई। पाकिस्तान की छावनी को चारों ओर से घेर लिया गया। तब पाकिस्तान को लगा कि उसका मित्र अमेरिका उसकी मदद करेगा। उसने अमेरिका से मदद की गुहार लगाई। अमेरिका ने दादागिरी दिखाते हुए अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना कर दिया। तब इंदिरा गाँधी ने फ़ील्ड मार्शल [[जनरल मॉनेक शॉ]] से परामर्श करके भारतीय सेना को अपना काम शीघ्रता से निपटाने का आदेश दिया।
| | {[[भारत]] में मुस्लिम राज का संस्थापक किसे माना जाता है?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-33 |
| | |type="()"} |
| | +[[मुहम्मद ग़ोरी]] |
| | -[[इल्तुतमिश]] |
| | -[[अकबर]] |
| | -[[बाबर]] |
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| 13 दिसंबर को भारत की सेनाओं ने ढाका को सभी दिशाओं से घेर लिया। '''16 दिसंबर को जनरल नियाजी ने 93 हज़ार पाक सैनिकों के साथ हथियार डाल दिए।''' उन्हें बंदी बनाकर भारत ले आया गया। शीघ्र ही पूर्वी पाकिस्तान के रूप में [[बांग्लादेश]] का जन्म हुआ और पाकिस्तान पराजित होने के साथ ही साथ दो भागों में विभाजित भी हो गया। भारत ने बांग्लादेश को अपनी ओर से सर्वप्रथम मान्यता भी प्रदान कर दी। भारत ने युद्ध विराम घोषित कर दिया क्योंकि उसका उद्देश्य पूर्ण हो चुका था। इसके बाद कई अन्य राष्ट्रों ने भी बांग्लादेश को एक नए राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।
| | {[[भारतीय इतिहास]] में बाज़ार नियमों/मूल्य नियंत्रण पद्धति की शुरुआत किसने की थी? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-49 |
| | |type="()"} |
| | -[[शेरशाह सूरी]] |
| | -[[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] |
| | -[[फ़िरोज़ शाह तुग़लक़]] |
| | +[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] |
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| पाकिस्तान के पास सेना नहीं बची थी, इसलिए युद्ध विराम स्वीकार करना उसकी अनिवार्य मजबूरी थी। अमेरिका और पाकिस्तान के अन्य मित्र सेना रहित देश की क्या सहायता कर सकते थे। दक्षिण एशिया में भारत एक महाशक्ति के रूप में अवतरित हो चुका था। भारत पर किसी अन्य देश द्वारा हमला किए जाने की स्थिति में [[सोवियत संघ]] ने गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी जारी कर दी। ऐसे में अमेरिका भी चुप्पी लगाकर बैठ गया। भारत ने पाकिस्तान की सैकड़ों वर्ग मील भूमि पर अपना कब्ज़ा कर लिया था और उसके लगभग एक लाख सैनिक बंदी बना लिए थे।
| | {निम्न में से कौन-सा कथन [[रज़िया सुल्तान]] के संबंध में असत्य है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-60 |
| | |type="()"} |
| | -[[इल्तुतमिश]] ने वंशानुगत राजतंत्र स्थापित करने की कोशिश की और पुत्रों की अयोग्यता के कारण रज़िया को उत्तराधिकारी मनोनीत किया। |
| | -1236 ई. में जनता के सक्रिय सहयोग से [[रज़िया सुल्तान]] [[दिल्ली]] की सुल्तान बनी। |
| | -उसने हब्शी सरदार मलिक याकूत को नायब मम्लकित के पद पर नियुक्त किया। |
| | +[[रज़िया सुल्तान|रज़िया]] ने सर्वप्रथम तुर्क सामंत वर्ग की शक्ति को सुदृढ़ता प्रदान करने की कोशिश की और गैर-तुर्की शासक वर्ग को शक्तिहीन बना दिया। |
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| युद्ध में शर्मनाक हार झेलने के बाद यहिया ख़ान के स्थान पर ज़ुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बनाए गए। उन्होंने भारत के समक्ष शांति वार्ता का प्रस्ताव रखा जिसे इंदिरा गाँधी ने स्वीकार कर लिया। [[शिमला]] में हुई वार्ता के दौरान निम्नलिखित मुद्दों पर [[शिमला समझौता]] हुआ।
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| #भारत द्वारा पाकिस्तान के बंदी बनाए गए सैनिकों को रिहा कर दिया जाएगा और पाकिस्तान की भूमि भी लौटा दी जाएगी।
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| #[[कश्मीर]] के जिन महत्त्वपूर्ण सामरिक स्थानों को भारत ने हासिल किया है, वहाँ भारत का आधिपत्य बना रहेगा।
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| #यदि भविष्य में कोई विवाद पैदा होता है तो किसी भी अन्य देश की मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं होगी तथा विवाद को शिमला समझौते की शर्त के अनुसार ही हल किया जाएगा।
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| ==चहुँमुखी विकास==
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| पाकिस्तान से युद्ध के बाद इंदिरा गाँधी ने अपना सारा ध्यान देश के विकास की ओर केंद्रित कर दिया। संसद में उन्हें बहुमत प्राप्त था और निर्णय लेने में स्वतंत्रता थी। उन्होंने ऐसे उद्योगों को रेखांकित किया जिनका कुशल उपयोग नहीं हो रहा था। उनमें से एक बीमा उद्योग था और दूसरा कोयला उद्योग। बीमा कंपनियाँ भारी मुनाफा अर्जित कर रही थीं। लेकिन उनकी पूँजी से देश का विकास नहीं हो रहा था। वह पूँजी निजी हाथों में जा रही थी। बीमा कंपनियों के नियमों में पारदर्शिता का अभाव होने के कारण जनता को वैसे लाभ नहीं प्राप्त हो रहे थे, जैसे होने चाहिए थे। '''लिहाज़ा [[अगस्त]], [[1972]] में बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।''' इसी प्रकार कोयला उद्योग में भी श्रमिकों का शोषण किया जा रहा था। उस समय कोयला एक परंपरागत ऊर्जा का स्रोत था और उसकी बर्बादी की जा रही थी। कोयला खानों की खुदाई वैज्ञानिकतापूर्ण नहीं थी। इस कारण खान दुर्घटनाओं में सैकड़ों श्रमिक एक साथ काल-कवलित हो जाते थे। कोयला उद्योग एक माफिया गिरोह के हाथों में संचालित होता नज़र आ रहा था। सरकार को रेल एवं उद्योगों के लिए कोयला आपूर्ति हेतु इन पर आश्रित होना पड़ता था। अतः इंदिरा गाँधी ने '''कोयला उद्योग का भी जनवरी 1972 में राष्ट्रीयकरण कर दिया।''' उनके इन दोनों कार्यों को अपार जनसमर्थन प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त इंदिरा गाँधी ने निम्नवत समाजोपयोगी क़दम उठाए जिनकी उम्मीद लोक कल्याणकारी सरकार से की जा रही थी।
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| #हदबंदी क़ानून को पूरी तरह लागू किया गया। अतिरिक्त भूमि को लघु कृषकों एवं भूमिहीनों के मध्य वितरित किया गया।
| | {निम्नलिखित वक्तव्यों में से कौन-सा एक [[अशोक]] के प्रस्तर स्तम्भों के बारे में असत्य है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-16,प्रश्न-56 |
| #केंद्र की अनुशंसा पर राज्य सरकारों ने भी विधेयक पारित करके इन क़ानूनों को राज्य में लागू करने का कार्य किया।
| | |type="()"} |
| #आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न प्रदान करने की योजना का शुभारंभ किया गया।
| | -इन पर बढ़िया पॉलिश है |
| #ग्रामीण बैंकों की स्थापना अनिवार्य की गई और उन्हें यह निर्देश दिया गया कि किसानों एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना करने वाले लोगों को सस्ती ब्याज दर पर पूँजी उपलब्ध करवाएँ।
| | -ये अखंड हैं |
| #ज्वॉइट स्टॉक कंपनियों द्वारा जो राजनीतिक चंदा प्रदान किया जाता था, उस पर रोक लगा दी गई ताकि धन का नाजायज़ उपयोग रोका जा सके।
| | -स्तम्भों का शैफ्ट शुण्डाकार है |
| #परमाणु बम बनाने की क्षमता हासिल करने के लिए [[राजस्थान]] के पोकरण में परमाणु विस्फोट किया गया।
| | +ये स्थापत्य संरचना के भाग हैं |
| #इंदिरा गाँधी ने यह प्रस्ताव पारित करवाया कि संसद में पारित हुए विधेयकों को निरस्त करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय को नहीं होगा।
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| ==आपातकाल के पूर्व की स्थितियाँ==
| | {"भारतीय लिखने की कला नहीं जानते।" यह किसकी उक्ति है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-72 |
| इंदिरा गाँधी कल्याणकारी नीतियों के कारण निम्न वर्ग को फ़ायदा हो रहा था लेकिन पूँजीपतियों को सरकारी नीतियों से घोर निराशा हो रही थी। इसी प्रकार जिन राजे-रजवाड़ों के विरुद्ध कार्रवाई की गई थी, वे भी वर्ग सरकार की नीतियों का समर्थक नहीं रहा क्योंकि कीमतों में काफ़ी वृद्धि हो रही थी और लोग बढ़ती महँगाई के कारण जीवन स्तर बनाए रखने में सफल नहीं हो पा रहे थे। देश ने युद्ध का आर्थिक बोझ भी झेला था। एक करोड़ बांग्लादेश शरणार्थियों को शरण देने के कारण संकट तब बढ़ गया जब दो वर्षों से वर्षा नहीं हुई। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पेट्रोलियम के मूल्य में निरंतर वृद्धि होने से भी भारत में महँगाई बढ़ रही थी और देश का विदेशी मुद्रा भंडार पेट्रोलियम आयात करने के कारण तेजी से घटता जा रहा था। '''आर्थिक मंदी से उद्योग धंधे भी चौपट हो रहे थे।''' ऐसी स्थिति में बेरोज़गारी काफ़ी बढ़ चुकी थी और सरकारी कर्मचारी महँगाई से त्रस्त होने के कारण वेतन में वृद्धि की माँग कर रहे थे। सरकारी कर्मियों के रूप में सबसे बड़ी हड़ताल रेल कर्मचारियों की थी। इनका आंदोलन 22 दिनों तक चला। इस कारण जहाँ यात्रियों को भारी परेशानी हुई, वहीं माल का परिवहन भी बाधित हुआ।
| | |type="()"} |
| | -[[कौटिल्य]] |
| | -[[प्लिनी]] |
| | -[[प्लूटार्क]] |
| | +[[मेगस्थनीज़]] |
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| रेल का चक्का रुकने से देश की प्रगति का चक्र भी थम गया था। रेल कर्मचारियों को चेतावनी दी गई लेकिन हड़ताल जारी रही। ऐसे में सरकार ने हड़ताल को गैरक़ानूनी क़रार देते हुए कठोर और दमनात्मक कार्रवाई की। हज़ारों कर्मचारियों के आवास ख़ाली करवाए गए और उन्हें नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि कर्मचारी एवं श्रमिक वर्ग इंदिरा गाँधी से नाराज़ हो गया। समस्तीपुर की एक सभा में बम विस्फोट हुआ और ललित नारायण मिश्र की बम धमाके में मृत्यु हो गई। इधर सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप भी लगने लगे। सरकार के ख़िलाफ़ देश भर में आंदोलन किए जा रहें थे। उधर इंदिरा गाँधी अपने छोटे पुत्र संजय गाँधी को राजनीति में ले आई थीं। युवा संजय गाँधी ने असंवैधानिक ढंग से सरकार चलाने का कार्य आरंभ कर दिया। '''संजय गाँधी के प्रति इंदिरा गाँधी की वैसी ही निष्ठा थी जैसी [[धृतराष्ट्र]] की [[दुर्योधन]] के प्रति थी।''' पुत्र मोह के कारण इंदिरा गाँधी ने संजय को 50,000 मारुति कार निर्माण का लाइसेंस भी प्रदान कर दिया। ऐसी स्थिति में विपक्षी दलों को सुनहरा अवसर मिल गया। उन्होंने भी आंदोलनकारियों की पीठ थपथपाना आरंभ कर दिया।
| | {कहाँ से प्राप्त [[अभिलेख|अभिलेखों]] से [[मौर्य काल]] में [[अकाल]], सूखा जैसे देवीय प्रकोप के समय राज्य द्वारा राहत कार्य किये जाने का विवरण मिलता है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-83 |
| | |type="()"} |
| | +[[महास्थान]] ([[बांग्लादेश]]), सोहगौरा ([[उत्तर प्रदेश]]) |
| | -सोहगौरा, [[मस्की]] |
| | -महास्थान, [[कालसी]] |
| | -भाबरु, [[सारनाथ]] |
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| ====गुजरात आंदोलन==== | | {भारतीयों का महान [[रेशम मार्ग]] (Silk route) किसने आरंभ कराया? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-19 |
| सर्वप्रथम विरोधी राजनीति और असंतोष से उत्पन्न हिंसक आंदोलन का सूत्रपात [[गुजरात]] से हुआ जो बेहद शांतिप्रिय राज्य माना जाता था। यहाँ छात्रों ने हिंसक आंदोलन किए और विपक्ष ने भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1974 में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई। आगजनी और लूट की घटानाओं को सरेआम अंजाम दिया जा रहा था। कभी-कभी पुलिस को विवशता में लाठी चार्ज भी करना पड़ रहा था। आंदोलनकारियों ने गुजरात विधानसभा को ज़बरन त्यागपत्र देने के लिए विवश कर दिया। गुजरात के हालात बद से बदतर हो रहे थे। ऐसी स्थिति में मोरारजी देसाई ने आमरण अनशत आरंभ कर दिया। इंदिरा गाँधी ने राज्य सरकार को बर्खास्त करके वहाँ राष्ट्रपति शासन लगा दिया। [[जून]], 1976 में चुनाव करवाए जाने की घोषणा भी कर दी गई। इस प्रकार आंदोलनों के कारण गुजरात में निर्वाचित सरकार को भंग करना पड़ा। '''इससे दूसरे राज्यों तक भी ग़लत संदेश गया''' और इसकी प्रतिक्रिया [[बिहार]] में हुई।{{दाँयाबक्सा|पाठ=प्रत्येक इंसान अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व लेकर पैदा होता है। लेकिन वह अपने उन कार्यों से जाना जाता है जिनसे उसके गुण-अवगुण प्रदर्शित होते हैं। यदि इंदिरा गाँधी के कर्तृत्व की समीक्षा की जाए तो यह कहना उचित होगा कि ऐसी शख़्सियतें शताब्दियों में ही पैदा होती हैं। जिन्होंने इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल को देखा है, वे लोग यह मानते हैं कि इंदिरा गाँधी में अपार साहस, निर्णय शाक्ति और धैर्य था। वह भी अपने पिता पंडित नेहरू की भांति स्वप्नद्रष्टा और महत्त्वाकांक्षी थीं।|विचारक=}}
| | |type="()"} |
| | +[[कनिष्क]] |
| | -[[अशोक]] |
| | -[[हर्षवर्धन|हर्ष]] |
| | -[[फ़ाह्यान]] |
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| ====बिहार आंदोलन====
| | {किसके संबंध में यह कहावत है- "जितनी ज़मीन में एक [[हाथी]] लेट सकता है, उतनी ज़मीन सात आदमियों का पेट भर सकती है?"(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-24 |
| बिहार में भी आंदोलन का सूत्रपात छात्र आंदोलन के रूप में हुआ। [[मार्च]], 1974 में छात्रों ने बिहार विधानसभा का घेराव किया। छात्र आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस ने लाठी तथा गोली का भी बेझिझक प्रयोग किया। इस आंदोलन में विपक्षी दलों ने छात्रों का साथ देना शुरू कर दिया। '''ऐसी स्थिति में हिंसक आंदोलन आरंभ हो गए तथा एक सप्ताह में ही दो दर्जन से अधिक लोग अपनी ज़िंदगी से हाथ धो बैठे।''' [[जयप्रकाश नारायण]] जो राजनीति से सन्न्यास ले चुके थे, वह सक्रिय हो गए और उन्होंने आंदोलन की कमान संभाल ली। '''जिस प्रकार अंग्रेज़ों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन चलाया गया था, उसी तर्ज पर जयप्रकाश नारायण ने लोगों को उकसाया कि राज्य की व्यवस्था चौपट कर दी।''' लेकिन इंदिरा जी ने गुजरात वाली ग़लती को बिहार में नहीं दोहराया।
| | |type="()"} |
| | +[[कावेरी नदी]] का [[डेल्टा]] |
| | -[[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्रा]] के तटवर्ती क्षेत्र |
| | -रायचूर दोआब |
| | -इनमें से कोई नहीं |
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| ====निर्वाचन पर मुक़दमा==== | | {निम्न में से कौन-सा सही सुमेलित नहीं है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-24,प्रश्न-84 |
| इंदिरा गाँधी पर [[इलाहाबाद उच्च न्यायालय]] में एक मुक़दमा चल रहा था जो चुनाव में ग़लत साधन अपनाकर विजय हासिल करने से संबंधित था। [[12 जून]], [[1975]] को राजनारायण द्वारा दायर किए गए मुक़दमे का फैसला "इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री सिंह ने सुनाया। उसके अनुसार इंदिरा गाँधी का न केवल चुनाव रद्द किया गया बल्कि उन्हें छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया।" उन पर आरोप था कि उन्होंने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया था और [[चुनाव आयोग|निर्वाचन आयोग]] द्वारा निर्धारित राशि से अधिक राशि का व्यय चुनाव प्रचार में किया था। इस फैसले के विरुद्ध उन्हें अपील करने का समय दिया गया था। ऐसे में इंदिरा गाँधी ने फैसले के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और वहाँ सुनवाई के लिए 14 जुलाई का दिन मुकर्रर कर दिया गया।
| | |type="()"} |
| | +प्रयाग प्रशस्ति - रविकीर्ति |
| | -[[किरातार्जुनीयम्]] - [[भारवि]] |
| | -दशकुमार - दंडिन |
| | -[[मृच्छकटिकम्]] - [[शूद्रक]] |
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| जे.पी. और विरोधी दल एकजुट होकर इंदिरा गाँधी से नैतिकता की दुराई देकर इस्तीफ़ा देने की माँग करने लगे। इस बीच [[24 जून]], [[1975]] को मामले की संवैधानिक व्यवस्था करते हुर अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति ने कहा कि सुनवाई होने तक इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री पद पर रह सकती हैं और संसद में बोल भी सकती हैं परंतु उन्हें मतदान का कोई अधिकार नहीं होगा। लेकिन विपक्ष यह मुद्दा हाथ से नहीं जाने देना चाहता था। उन्हें [[14 जुलाई]] तक का भी इंतज़ार गवारा नहीं था जब सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई होनी थी। जयप्रकाश नारायण की नेहरू परिवार से दुश्मनी के सुषुप्त प्रेत जाग गए। उन्होंने आंदोलन को पूरे देश में फैला दिया। इंदिरा गाँधी के विरुद्ध प्रचार किया जाने लगा। हज़ार बार कहा गया झूठ भी सच जैसा लगने लगता है। जनता ने भी घृणित प्रचार पर विश्वास करना आरंभ कर दिया। एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ इतने लोग ग़लत नहीं हो सकते- जनता इस मनोविज्ञान का शिकार होकर यह भूल गई कि जो मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, उसके लिए हाय तौबा मचाने की क्या ज़रूरत।
| | {निम्नलिखित में से कौन अपने को 'बुतशिकन (भूर्तिभंजक) कहता था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-23 |
| | |type="()"} |
| | +[[महमूद ग़ज़नवी]] |
| | -[[मुहम्मद ग़ोरी]] |
| | -[[क़ुतुबुद्दीन ऐबक]] |
| | -इनमें से कोई नहीं |
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| ==आपातकाल==
| | {किसने 'इक्तादारी प्रथा' चलाई थी? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-34 |
| [[15 जून]], [[1975]] को जे.पी. और समर्थिक विपक्ष ने आंदोलन को उग्र रूप दे दिया। साथ ही यह तय किया गया कि पूरे देश में [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] चलाया जाए और प्रधानमंत्री आवास को भी घेर लिया जाए। आवास में मौजूद लोगों को नज़रबंद करके किसी को भी अंदर प्रविष्ट न होने दिया जाए।
| | |type="()"} |
| इन्हीं परिस्थितियों के कारण प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने [[25 जून]], 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति [[फ़ख़रुद्दीन अली अहमद]] से आपातकाल लागू करने की हस्ताक्षरित स्वीकृति प्राप्त कर ली। '''इस प्रकार [[26 जून]], 1975 की प्रातः देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई।''' आपातकाल लागू होने के बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य सैकड़ों छोटे-बड़े नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। ऐसा माना जाता है कि आपातकाल के दौरान एक लाख व्यक्तियों को देश की विभिन्न जेलों में बंद किया गया था। इनमें मात्र राजनीतिक व्यक्ति ही नहीं, आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी थे जो ऐसे आंदोलनों के समय लूटपाट करते हैं। साथ ही भ्रष्ट कालाबाज़ारियों और हिस्ट्रीशीटर अपराधियों को बंद कर दिया गया।
| | -[[फ़िरोज़ शाह तुग़लक़]] |
| | -[[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] |
| | +[[इल्तुतमिश]] |
| | -[[ग़यासुद्दीन बलबन]] |
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| इंदिरा गाँधी का यह उद्देश्य था कि आपातकाल से अपनी कुर्सी बचाने के साथ-साथ ढुलमुल प्रशासन को चाक-चौबंद किया जाए। ऐसे में कई सरकारी कर्मचारियों को निलंबित भी किया गया। इमर्जेंसी के दौरान सरकारी मशीनरी में सुधार हुआ। '''कर्मचारी समय पर आने-जाने लगे और रिश्वतखोरी की घटनाएँ काफ़ी कम हो गईं, ट्रेनें भी समय से चलने लगी थीं, लेकिन देश में आपातकाल का आतंक व्याप्त था।''' आपातकाल में इंदिरा गाँधी के छोटे पुत्र संजय गाँधी का व्यवहार भी काफ़ी अमर्यादित रहा। राष्ट्रहित के लिए देश की आबादी नियंत्रित करने हेतु नसबंदी किए जाने की भी योजना थी लेकिन उसका काफ़ी दुरुपयोग किया गया। जिन युवकों की शादी भी नहीं हुई थी, उनकी भी नसबंदी कर दी गई। इसी प्रकार राज्य स्तर पर '''राजनीतिज्ञों ने आपातकाल के नाम पर व्यक्तिगत शत्रुता निकालते हुए विरोधियों को सींखचों के पीछे डाल दिया।''' बड़े अधिकारियों द्वारा जनता को नाजायज़ रूप से परेशान भी किया गया।
| | {राज्य संबंधों में उलेमा के दखल का विरोध किस सुल्तान ने किया था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-50 |
| | |type="()"} |
| | -[[बलबन]] |
| | +[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] |
| | -[[फ़िरोज़ शाह तुग़लक़]] |
| | -इनमें से कोई नहीं |
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| आपातकाल में सबसे '''ज़्यादा अखरने वाली बात थी- लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सेंसरशिप लगाकर कमज़ोर कर देना।''' अखबार, रेडियो और टी.वी. पर सेंसर लगा दिया गया। सरकार के विरुद्ध कुछ भी प्रकाशित नहीं किया जा सकता था। मौलिक अधिकार लगभग समाप्त हो गए थे। अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक लगाना एक बड़ी ग़लती थी। क्योंकि यदि प्रतिबंध नहीं होता तो जनता के सामने यह सत्य प्रकट होता कि आपातकाल लगाए जाने के पीछे कारण क्या थे। जनता की प्रतिक्रिया भी इंदिरा गाँधी तक नहीं पहुँच रही थी। इस काल के दौरान ऐसी घटनाएँ भी घटीं जो बहुत शर्मनाक थीं। इंदिरा गाँधी तक जो खबरें आ रही थीं, उनसे उन्हें यह लगा कि जनता आपातकाल की उपलब्धियों से खुश है। चाटुकारों ने उन्हें सूचित किया कि वह जनता में लोकप्रिय हैं और यदि चुनाव कराए जाएँ तो उन्हें विजयश्री अवश्य प्राप्त होगी। तब इंदिरा जी ने [[18 जनवरी]], [[1977]] में लोकसभा के चुनाव कराए जाएंगे। इसके साथ ही राजनीतिक क़ैदियों की रिहाई हो गई। मीडिया की स्वतंत्रता बहाल हो गई। राजनीतिक सभाओं और चुनाव प्रचार की आज़ादी दे दी गई।
| | {[[मुहम्मद ग़ोरी]] के आक्रमणों का निम्न में से कौन-सा परिणाम नहीं हुआ? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-63 |
| | |type="()"} |
| | +[[पंजाब]] से लेकर [[बंगाल]] तक फिर से [[उत्तरी भारत]] एक केन्द्रीय सत्ता के अधीन हो गया। |
| | -भूराजस्व से प्राप्त आर्थिक साधन अब प्रत्यक्ष रूप से शासक के हाथों में केन्द्रित हो गया। |
| | -[[उत्तर भारत|उत्तरी भारत]] में एक नगरीय क्रांति का सूत्रपात हुआ। |
| | -इनमें से कोई नहीं। |
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| लेकिन इंदिरा गाँधी ने स्थिति का सही मूल्याकंन नहीं किया था। जिन नेताओं को आपातकाल के दौरान बंदी बनाया गया था, उन्होंने रिहा होने के बाद जेल में भुगती ज्यादतियों और अत्याचारों का विवरण जनता को दिया। '''जनता ने भी आपातकाल की पीड़ा झेली थी। उधर विपक्ष अधिक सशक्त होकर सामने आ गया।''' जनसंघ, कांग्रेस-ओ, समाजवादी पार्टी और लोकदल ने मिलकर एक नई पार्टी का गठन किया जिसका नाम 'जनता पार्टी' रखा गया। इस पार्टी को अकाली दल, डी.एम.के. तथा साम्यवादी पार्टी (एम) का भी सहयोग प्राप्त हो गया। इंदिरा जी के सहयोगी जगजीवन राम विरोधियों से जा मिले। इनका दलित और हरिजन वर्ग पर काफ़ी प्रभाव था। दरअसल जगजीवन राम ने उस समय अति महत्त्वाकांक्षा दिखाई थी जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गाँधी के विरुद्ध फैसला दिया था। जगजीवन राम ने जब स्वयं को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया था तब इंदिरा गाँधी ने उन्हें नज़रबंद करवा दिया था। इस कारण जगजीवन राम भी जानते थे कि कांग्रेस में अब उनका कोई भविष्य नहीं रह गया है। नंदिनी सत्पथी और हेमवती नंदन बहुगुणा भी इंदिरा गाँधी का साथ छोड़ गए। 16 मार्च 1977 को लोकसभा के चुनाव संपन्न हुए।
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| ==जनता पार्टी की सत्ता==
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| देश की जनता ने आपातकाल की ज्यादतियों के विरोध में इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ मतदान किया। जनता को भी यह उम्मीद थी कि परिवर्तन से सुधार अवश्य आएगा। उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी। लेकिन भारतीय जनता ने उस समय यह आकलन नहीं किया था कि जनता पार्टी में जिन दलों के लोग हैं, वे भिन्न नीतियों और विचारों से पोषित रहे हैं। इस कारण सैद्धांतिक रूप से उनमें मतभेद हैं।
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| ;पार्टी सत्ता से बाहर
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| चुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गाँधी ने हवा का रुख़ पहचान लिया था। वह समझ गई थीं कि इस बार के चुनाव में उन्हें निश्चित रूप से हार का सामना करना होगा। उत्तरी भारत का दौरे करते हुए उन्होंने देख लिया था कि उनकी सभाओं में भीड़ काफ़ी कम है और लोगों में कोई उत्साह नहीं है। चुनाव परिणाम आए। इन परिणामों ने सभी लोगों को आश्चर्य में डाल दिया। उनकी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को 542 में से 330 सीटें प्राप्त हुईं। इंदिरा गाँधी की पार्टी मात्र 154 स्थानों पर ही विजय प्राप्त कर सकी।
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| ;निराशाजनक प्रदर्शन
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| इंदिरा गाँधी ऐसी प्रधानमंत्री रहीं जो अपनी सीट तक नहीं बचा पाईं। इनके पुत्र संजय गाँधी को भी हार का सामना करना पड़ा। उत्तरी भारत में इंदिरा कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक था। सात राज्यों की 234 सीटों में से इंदिरा कांग्रेस को मात्र 2 सीटें ही प्राप्त हो सकीं। दक्षिण भारत की स्थिति इंदिरा गाँधी के अनुकूल थी। यहां आपातकाल में ज्यादतियाँ भी नहीं हुई थीं। दक्षिण भारत के राज्यों को आपातकाल के दौरान लागू हुए बीस सूत्रीय कार्यक्रमों से काफ़ी लाभ भी हुआ था। 1971 के चुनाव की तुलना में इस बार वहाँ 22 सीटें अधिक मिलीं और आंकड़ा 70 से बढ़कर 92 हो गया।
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| जनता पार्टी में जश्न का माहौल था और इस बात को लेकर चिंतन हो रहा था कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा। उस समय प्रधानमंत्री पद के तीन प्रबल दावेदार सामने आए थे- चौधरी चरण सिंह, मोरारजी देसाई और जगजीवन राम। प्रधानमंत्री पद को लेकर तीनों दृढ़ संकल्प थे। यहाँ जयप्रकाश नारायण का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा जो जीवन के श्रेष्ठतम काल से गुज़र रहे थे। उनका आभमंडल जनता पार्टी के लिए चमत्कारी था। वह 'किंग मेकर' की स्थिति प्राप्त कर चुके थे। यह स्थिति कभी महात्मा गाँधी को प्राप्त हुई थी। '''जयप्रकाश नारायण की सहमति से 23 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बनाए गए। इस समय मोरारजी देसाई की उम्र 81 वर्ष हो चुकी थी।'''
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| ==सत्ता में वापसी==
| | {[[अशोक]] ने अपने राज्याभिषेक के चौथे वर्ष में 'निग्रोथ' के प्रभाव से प्रभावित होकर किससे [[बौद्ध धर्म]] की दीक्षा ली? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-16,प्रश्न-60 |
| [[चित्र:Articles-Of-Indira-Gandhi.jpg|thumb|250px|इंदिरा गाँधी की हत्या के समय की साड़ी, चप्पलें और बैग]] | | |type="()"} |
| इंदिरा गाँधी सत्ता से बाहर हो चुकी थीं और जनता पार्टी सत्ता में थी। [[चौधरी चरण सिंह]] तथा राजनारायण चाहते थे कि इंदिरा गाँधी को जेल भेज दिया जाए लेकिन मोरारजी देसाई पुराने कांग्रेसी थे और एक ज़माने में पंडित नेहरू के सहयोगी भी थे। मोरारजी देसाई राजनीतिक द्वेष को व्यक्तिगत द्वेष में परिवर्तित नहीं करना चाहते थे। ऐसी स्थिति में राजनारायण ज़रूरत से ज़्यादा तिलमिला रहे थे। लेकिन मोरारजी देसाई की सलाह से आगे जाकर कुछ भी करना उन्हें असंभव नज़र आ रहा था। कांग्रेस को एक अन्य विभाजन की त्रासदी भी भोगनी पड़ी। ब्रह्मानंद रेड्डी और वाई.वी. चौहान ने अपने खेमे के साथ इंदिरा गाँधी से किनारा कर लिया। उन्हें लगा कि इंदिरा गाँधी का करिश्मा समाप्त हो चुका है। कांग्रेस पार्टी में उनका कोई विशिष्ट स्थान नहीं रह गया है। 1978 के आरम्भ में श्रीमती गाँधी के समर्थक कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए और कांग्रेस-आई या काँग्रेस-इं (इं से इंदिरा) पार्टी की स्थापना की।
| | -[[नागार्जुन]] |
| | -निग्रोथ |
| | +[[उपगुप्त]] |
| | -इनमें से से कोई नहीं |
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| इंदिरा गाँधी पर जनता पार्टी के शासनकाल में अनेक आरोप लगाए गए और कई कमीशन जाँच के लिए नियुक्त किए गए। इनमें 'शाह कमीशन' सबसे उल्लेखनीय माना जाता है। आपातकाल में तथाकथित आपराधिक कार्यों के लिए उन पर देश की कई अदालतों में मुक़दमे क़ायम किए गए। सरकारी भ्रष्टाचार के आरोप में श्रीमती गाँधी कुछ समय तक जेल में रहीं। <ref>अक्टूबर 1977 और दिसम्बर 1978</ref> इन झटकों के बावज़ूद नवम्बर 1978 में वह नई संसदीय सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं और उनकी कांग्रेस-इं पार्टी धीरे-धीरे फिर से मज़बूत होने लगी। सत्तारूढ़ जनता पार्टी में अंतर्कलह के कारण अगस्त 1979 में सरकार गिर गई। जब जनवरी [[1980]] में [[लोकसभा]] <ref>संसद का निचला सदन</ref> के लिए चुनाव हुए तो श्रीमती गाँधी और उनकी पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में लौट आई। इंदिरा और उनके पुत्र के ख़िलाफ़ चल रहे सभी क़ानूनी मुक़दमे वापस ले लिए गए। भारत में एक नारी के साथ जो व्यवहार हो रहा था, वह भारतीय परंपरा के अनुकूल नहीं था। इस कारण लोगों को इंदिरा गाँधी के साथ सहानुभूति हो रही थी। उधर जनता पार्टी से जनता का भी मोहभंग होने लगा था। जनता पार्टी सरकार प्रत्येक मोर्चे पर विफल साबित हो रही थी। देश को विकास के नाम पर जनता पार्टी के आंतरिक झगड़ों का उपहार प्राप्त हो रहा था।
| | {किस [[मौर्य वंश|मौर्य]] सम्राट ने एक विदेशी राजा (सीरिया के एण्टियोकस प्रथम) से अंजीर, शराब और दार्शनिक को [[भारत]] भेजने का आग्रह किया था?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-73 |
| ====कांग्रेस पार्टी की सरकार====
| | |type="()"} |
| अभी तीन वर्ष भी पूर्ण नहीं हुए थे कि जनता पार्टी में दरारें पड़ गईं और देश को मध्यावधि चुनाव का भार झेलना पड़ा। इंदिरा गाँधी ने देश में घूम-घूमकर चुनाव प्रचार के दौरान आपातकाल के लिए शर्मिंदगी का इजहार किया और काम करने वाली सुदृढ़ सरकार का नारा दिया। लोगों को यह नारा काफ़ी पसंद आया और चुनाव के बाद नतीजों ने यह प्रमाणित भी कर दिया। इंदिरा कांग्रेस को 592 में से 353 सीटें प्राप्त हुईं और स्पष्ट बहुमत के कारण केंद्र में इनकी सरकार बनी। इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बन गईं। इस प्रकार 34 महीनों के बाद वह सत्ता पर दोबारा क़ाबिज हुईं। जनता पार्टी ने 1977 में सत्ता में आने के बाद कई राज्यों की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उस समय उसने यह तर्क दिया कि जनता का रुझान जनता पार्टी के साथ है, अतः नए चुनाव होने चाहिए। इंदिरा गाँधी ने सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी द्वारा आरंभ की गई परिपाटी पर चलकर उन प्रदेशों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया जहाँ जनता पार्टी तथा विपक्ष का शासन था। बाद में हुए इन राज्यों के चुनावों में कांग्रेस ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। 22 राज्यों में से 15 राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन गई। यह चुनाव जून 1980 में संपन्न हुए थे।
| | -[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] |
| ====संजय गाँधी की मृत्यु ====
| | +[[बिन्दुसार]] |
| [[23 जून]], 1980 को प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के छोटे पुत्र संजय गाँधी की वायुयान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। संजय की मृत्यु ने इंदिरा गाँधी को तोड़कर रख दिया। इस हादसे से वह स्वयं को संभाल नहीं पा रही थीं। तब [[राजीव गाँधी]] ने पायलेट की नौकरी छोड़कर संजय गाँधी की कमी पूरी करने का प्रयास किया। लेकिन राजीव गाँधी ने यह फैसला ह्रदय से नहीं किया था। इसका कारण यह था कि उन्हें राजनीति के दांवपेच नहीं आते थे। जब इंदिरा गाँधी की दोबारा वापसी हुई तब देश में अस्थिरता का माहौल उत्पन्न होने लगा। [[कश्मीर]], [[असम]] और [[पंजाब]] आतंकवाद की आग में झुलस रहे थे। दक्षिण भारत में भी सांप्रदायिक दंगों का माहौल पैदा होने लगा था। दक्षिण भारत जो कांग्रेस का गढ़ बन चुका था, [[1983]] में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को [[आंध्र प्रदेश]] और [[कर्नाटक]] में हार का सामना करना पड़ा। वहाँ क्षेत्रीय स्तर की पार्टियाँ सत्ता पर क़ाबिज हो गईं। | | -[[अशोक]] |
| ====ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार====
| | -[[कुणाल]] |
| {{main|ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार}}
| |
| पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सिर उठाने लगीं और उन ताकतों को [[पाकिस्तान]] से हवा मिल रही थी। '''पंजाब में भिंडरावाले का उदय इंदिरा गाँधी की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के कारण हुआ था।''' अकालियों के विरुद्ध भिंडरावाले को स्वयं इंदिरा गाँधी ने ही खड़ा किया था। लेकिन भिंडरावाले की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं देश को तोड़ने की हद तक बढ़ गई थीं। जो भी लोग पंजाब में अलगाववादियों का विरोध करते थे, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता था। भिंडरावाले को ऐसा लग रहा था कि अपने नेतृत्व में पंजाब का अलग अस्तित्व बना लेगा। यह काम वह हथियारों के बल पर कर सकता है। यह इंदिरा गाँधी की ग़लती थी कि 1981 से लेकर 1984 तक उन्होंने पंजाब समस्या के समाधान के लिए कोई युक्तियुक्त कार्रवाई नहीं की। इस संबंध में कुछ राजनीतिज्ञों का कहना है कि इंदिरा गाँधी शक्ति के बल पर समस्या का समाधान नहीं करना चाहती थीं।वह पंजाब के अलगाववादियों को वार्ता के माध्यम से समझाना चाहती थीं।
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| ==मृत्यु==
| | {[[अशोक]] ने [[श्रीलंका]] में [[बौद्ध धर्म]] के प्रसार हेतु किसे भेजा था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-84 |
| [[स्वर्ण मन्दिर]] पर हमले के प्रतिकार में पाँच महीने के बाद ही [[31 अक्टूबर]] [[1984]] को श्रीमती गाँधी के आवास पर तैनात उनके दो सिक्ख अंगरक्षकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। | | |type="()"} |
| | -[[महेंद्र (अशोक का पुत्र)|महेंद्र]] |
| | -[[संघमित्रा]] |
| | +उपरोक्त दोनों |
| | -इनमें से कोई नहीं |
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| ==उपसंहार==
| | {निम्नलिखित में से किसने बड़े पैमाने पर स्वर्ण मुद्राएँ ([[सोना|सोने]] की मुहर) चलाई थीं? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-20 |
| [[भारत]] के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत भूमि को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विभिन्न चुनौतियों का मुक़ाबला करने में सफलता प्राप्त की। युद्ध हो, विपक्ष की ग़लतियाँ हों, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की कोई समस्या हो- इंदिरा गाँधी ने अक्सर स्वयं को सफल साबित किया। इंदिरा गाँधी, नेहरू के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर क़ायम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नज़दीकी सम्बन्ध क़ायम किए और पाकिस्तान-भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं। '''जिन्होंने इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल को देखा है, वे लोग यह मानते हैं कि इंदिरा गाँधी में अपार साहस, निर्णय शक्ति और धैर्य था।''' | | |type="()"} |
| | -ग्रीक वासियों ने |
| | -[[मौर्य वंश|मौर्यों]] ने |
| | +[[कुषाण वंश|कुषाण]] शासकों ने |
| | -[[शुंग वंश|शुंगों]] ने |
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| ==उपलब्धियाँ== | | {[[प्लिनी]] के ग्रंथ एवं 'अज्ञातनामा' लेखक के ग्रंथ पेरिप्लस के अनुसार [[मोती]] के सीप [[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्य देश]] के किस क्षेत्र से निकलते थे? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-25 |
| *बैंकों का राष्ट्रीयकरण
| | |type="()"} |
| *बाँग्ला देश को स्वतंत्र कराना
| | -[[मदुरई]] |
| *निर्धन लोगों के उत्थान के लिए आयोजित 20 सूत्रीय कार्यक्रम
| | -कपाटपुरम |
| *गुट निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षा
| | +कोल्चै |
| *प्रीवीपर्स समाप्ति
| | -इनमें से कोई नहीं |
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| {{शासन क्रम |शीर्षक=[[भारत के प्रधानमंत्री]] |पूर्वाधिकारी=[[लाल बहादुर शास्त्री]] |उत्तराधिकारी=[[मोरारजी देसाई]]}} | | {निम्नलिखित में से कौन-सा सही सुमेलित नहीं है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-24,प्रश्न-85 |
| | |type="()"} |
| | -[[वाग्भट]] - [[अष्टांगहृदयम्]] |
| | -कामंदक - नीति सार |
| | -[[विशाखदत्त]] - [[मुद्राराक्षस]] |
| | +[[भर्तृहरि]] - [[मेघदूतम्]] |
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| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}} | | {[[महमूद ग़ज़नवी]] ने कौन-सी उपाधि धारण की थी? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-24 |
| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | | |type="()"} |
| <references/>
| | -'यामिन-उद्-दौला' (साम्राज्य का दाहिना हाथ) |
| ==बाहरी कड़ियाँ== | | -'अमीन-उल-मिल्लत' (मुस्लिमों का संरक्षक) |
| *[http://purvanchalnews.com/index.php?option=com_content&view=article&id=47:2010-01-01-11-56-48&catid=1:2010-01-02-10-56-47&Itemid=78 इंदिरा गाँधी के दो चेहरे]
| | +उपरोक्त दोनों |
| ==संबंधित लेख== | | -इनमें से कोई नहीं |
| {{भारत रत्न}}{{भारत के प्रधानमंत्री}}{{स्वतन्त्रता सेनानी}}{{नेहरू परिवार}} | | |
| {{भारत के प्रधानमंत्री2}} | | {13वीं सदी में सेना का सर्वोच्च अधिकारी कौन होता था?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-36 |
| [[Category:भारत_रत्न_सम्मान]] | | |type="()"} |
| [[Category:स्वतन्त्रता_सेनानी]] | | -मालिक |
| [[Category:भारत_के_प्रधानमंत्री]] | | +ख़ान |
| [[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]] | | -सरखेल |
| [[Category:जीवनी साहित्य]] | | -सिपहसालार |
| [[Category:राजनेता]] | | |
| [[Category:राजनीति_कोश]] | | {[[अलबेरूनी]] द्वारा रचित पुस्तक '[[किताब-उल-हिन्द]]' या 'तारीख़-उल-हिन्द' में किन विषयों की समीक्षा की गयी है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-51 |
| [[Category:नेहरू परिवार]] | | |type="()"} |
| [[Category:लोकसभा सांसद]] | | -भारतीय गणित |
| [[Category:भारत के वित्त मंत्री]] | | -[[भारतीय इतिहास]], [[भूगोल]] |
| [[Category:भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस अध्यक्ष]] | | -[[खगोल विज्ञान]], [[दर्शन]] |
| [[Category:इन्दिरा गाँधी]] | | +इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {निम्नलिखित में से किसे कुछ विचारकों ने 'प्रच्छन्न बौद्ध' की संज्ञा दी है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-51,प्रश्न-33 |
| | |type="()"} |
| | -[[रामानुजाचार्य]] |
| | +[[शंकराचार्य]] |
| | -[[कुमारिल भट्ट]] |
| | -[[चैतन्य महाप्रभु|चैतन्य]] |
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| | {किसने [[पाटलिपुत्र]] को 'पोलिब्रोथा' कहा? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-16,प्रश्न-61 |
| | |type="()"} |
| | +[[मेगस्थनीज़]] |
| | -स्ट्रैबो |
| | -[[प्लूटार्क]] |
| | -एरियन |
| | |
| | {[[अशोक]] द्वारा [[कलिंग]] पर चढ़ाई की जानकारी के लिए कौन सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-74 |
| | |type="()"} |
| | -[[महावंश]] |
| | -[[दिव्यावदान]] |
| | +13वाँ वृहत शिलालेख |
| | -7वाँ स्तम्भ अभिलेख |
| | |
| | {[[शक संवत]] का प्रारंभ किस सम्राट के शासन काल में 78 ई. में हुआ? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-22 |
| | |type="()"} |
| | -[[अशोक]] |
| | +[[कनिष्क]] |
| | -[[हर्षवर्धन|हर्ष]] |
| | -[[समुद्रगुप्त]] |
| | |
| | {[[गाय]] या वस्तुओं के लिए लड़ते-लड़ते मरने वाले वीरों के सम्मान में खड़े किये जाने वाले वीर-प्रस्तर को कहा जाता था- (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-26 |
| | |type="()"} |
| | +वीरकल/नाडुकुल |
| | -को |
| | -उल्गू |
| | -कडमई |
| | |
| | {[[मिहिरकुल]] का संबंध किससे था?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-25,प्रश्न-87 |
| | |type="()"} |
| | -[[गुप्त राजवंश|गुप्त]] |
| | +[[हूण]] |
| | -[[कुषाण वंश|कुषाण]] |
| | -[[मौखरि वंश|मौखरि]] |
| | |
| | {[[अशोक]] के [[मानसेहरा]] ([[पाकिस्तान]]) एवं [[शहबाजगढ़ी]] (पाकिस्तान) से प्राप्त वृहत शिलालेखों में किस [[भाषा]] का प्रयोग किया गया है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-85 |
| | |type="()"} |
| | +[[खरोष्ठी]] |
| | -[[संस्कृत]] |
| | -[[तमिल]] |
| | -यूनानी |
| | |
| | {[[हिन्दूशाही वंश|हिन्दूसाही राज्य]] की राजधानी थी- (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-26 |
| | |type="()"} |
| | +उदभाण्डपुर/ओहिन्द/वैहिन्द |
| | -[[कालिंजर]] |
| | -[[अजमेर]] |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {[[भारत]] में [[ग़ुलाम वंश]] का संस्थापक कौन था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-37 |
| | |type="()"} |
| | +[[क़ुतुबुद्दीन ऐबक]] |
| | -[[इल्तुतमिश]] |
| | -[[कैकुबाद]] |
| | -[[आरामशाह]] |
| | |
| | {[[अलबेरूनी]] का पूरा नाम क्या था?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-52 |
| | |type="()"} |
| | +अबू रैहान मुहम्मद |
| | -अबू अब्दुल्ला |
| | -अली गुरशास्प |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {[[रामानुजाचार्य]] को किस कट्टर [[शैव सम्प्रदाय|शैव]] मतावलम्बी [[चोल राजवंश|चोल]] शासक की धमकी के कारण [[त्रिचनापल्ली]] छोड़कर [[मैसूर]] जाना पड़ा? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-51,प्रश्न-34 |
| | |type="()"} |
| | -[[राजराज प्रथम]] |
| | -[[राजेन्द्र प्रथम]] |
| | +[[कुलोत्तुंग प्रथम]] |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | |
| | |
| | |
| | {किस श्रीलंकाई शासक ने आपने आपको [[मौर्य वंश|मौर्य]] सम्राट [[अशोक]] के आदर्शों के अनुरूप ढालने की कोशिश की? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-16,प्रश्न-64 |
| | |type="()"} |
| | -महाबलि |
| | -वीरसिंघे |
| | +[[तिस्स]] |
| | -राणासिंघे |
| | |
| | {[[बिन्दुसार]] की मृत्यु के समय [[अशोक]] एक प्रांत का गवर्नर था। वह प्रांत कौन-सा था?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-75 |
| | |type="()"} |
| | +[[उज्जैन]] |
| | -[[तक्षशिला]] |
| | -सुवर्णगिरि |
| | -[[तोसली]] |
| | |
| | {[[तक्षशिला]] के प्रसिद्ध स्थल होने का कारण क्या था?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-11 |
| | |type="()"} |
| | -प्राचीन वैदिक कला |
| | -[[मौर्यकालीन कला]] |
| | +[[गांधार मूर्तिकला शैली|गांधार कला]] |
| | -[[गुप्तकालीन कला और स्थापत्य|गुप्त कला]] |
| | |
| | {कपाटपुरम या अलवै में संपन्न द्वितीय संगम का एकमात्र शेष [[ग्रंथ]] कौन-सा है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-15 |
| | |type="()"} |
| | +तोल्लकाप्पियम् |
| | -इतुतगोई |
| | -पतुपाड्ड |
| | -पदिनेकिल्कणक्कू |
| | |
| | {प्राचीनतम तमिल [[देवता]] [[मुरुगन]] किस वैदिक देवता के सदृश्य हैं? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-27 |
| | |type="()"} |
| | -[[ब्रह्मा]] |
| | -[[विष्णु]] |
| | -[[महेश]] |
| | +[[कार्तिकेय|स्कंद (कार्तिकेय)]] |
| | |
| | {[[कन्नौज]] को सर्वप्रथम महत्ता प्रदान करने वाले कौन थे?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-25,प्रश्न-88 |
| | |type="()"} |
| | -[[मौर्य वंश|मौर्य]] |
| | -[[गुप्त राजवंश|गुप्त]] |
| | +[[मौखरि वंश|मौखरि]] |
| | -[[कुषाण वंश|कुषाण]] |
| | |
| | {[[महमूद ग़ज़नवी]] का [[भारत]] में अंतिम आक्रमण किसके विरुद्ध हुआ? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-27 |
| | |type="()"} |
| | -[[तोमर]] |
| | -[[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहार]] |
| | -[[सोलंकी वंश|सोलंकी]] |
| | +[[जाट]] |
| | |
| | {"वह रोमन सम्राट अगस्टस की भाँति सावधान था कि वह दूसरों की तरह शक्तिशाली न लगे और वह दूसरों के स्तर से अधिक न लगे।" यह संदर्भ किसका है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-41 |
| | |type="()"} |
| | -[[बाबर]] |
| | -[[इब्राहिम लोदी]] |
| | +[[बहलोल लोदी]] |
| | -[[जलालुद्दीन ख़िलजी]] |
| | |
| | {[[अलबेरूनी]] के अनुसार 'अंत्यज' (चतु:वर्ग के नीचे का वर्ग) में शामिल थे- (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-53 |
| | |type="()"} |
| | -धोबी, मोची, जादूगर, डालिया व ढाल बनाने वाले |
| | -नाविक, मछुआ, व्याध, जुलाहा |
| | +उपरोक्त दोनों |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {[[रामानुजाचार्य]] को [[होयसल वंश]] के [[जैन धर्म|जैन]] धर्मावलम्बी शासक विट्टिग को [[वैष्णव]] धर्मावलम्बी बनाने में सफलता मिली। विट्टिग ने अपना नाम बदलकर क्या रखा?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-51,प्रश्न-35 |
| | |type="()"} |
| | +[[विष्णुवर्धन]] |
| | -[[विष्णुस्वामी]] |
| | -रामास्वामी |
| | -विट्ठलस्वामी |
| | |
| | |
| | |
| | |
| | |
| | {किस [[जैन]] [[ग्रंथ]] में [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के [[जैन धर्म]] अपनाने का उल्लेख मिलता है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-16,प्रश्न-65 |
| | |type="()"} |
| | -पूर्व |
| | +परिशिष्टपर्वन् |
| | -अंग |
| | -उपांग |
| | |
| | {किस [[शिलालेख]] में [[अशोक]] ने घोषणा की है कि "सभी मनुष्य मेरे बच्चे हैं"? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-76 |
| | |type="()"} |
| | +प्रथम पृथक शिलालेख |
| | -द्वितीय पृथक शिलालेख |
| | -5वाँ वृहत शिलालेख |
| | -13वाँ स्तम्भ शिलालेख |
| | |
| | {किस [[संग्रहालय]] में [[कुषाण काल|कुषाणकालीन]] मूर्तियों का संग्रह अधिक मात्रा में है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-13 |
| | |type="()"} |
| | +[[मथुरा संग्रहालय]] |
| | -मुंबई संग्रहालय |
| | -मद्रास संग्रहालय |
| | -[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|दिल्ली संग्रहालय]] |
| | |
| | {संगम निम्न में से किससे संबंधित है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-16 |
| | |type="()"} |
| | -व्यापारियों से |
| | -कलाकारों से |
| | +विद्वानों से |
| | -प्रशासकों से |
| | |
| | {कार्बन डेटिंग निम्न की आयु निर्धारण हेतु प्रयुक्त होती है- (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-28 |
| | |type="()"} |
| | +जीवाश्म |
| | -पौधे |
| | -चट्टानें |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {वह [[गुप्त राजवंश|गुप्त]] राजा कौन था, जिसने '[[विक्रमादित्य]]' की पदवी ग्रहण की थी?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-25,प्रश्न-89 |
| | |type="()"} |
| | -[[स्कंदगुप्त]] |
| | -[[समुद्रगुप्त]] |
| | +[[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य|चन्द्रगुप्त]] |
| | -[[कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य|कुमारगुप्त]] |
| | |
| | {[[हिन्दूशाही वंश]] के किस शासक ने [[तुर्क|तुर्कों]] से बार-बार पराजित होने के कारण ग्लानिवश आत्मदाह कर दिया?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-28 |
| | |type="()"} |
| | +[[जयपाल]] |
| | -[[आनन्दपाल]] |
| | -[[त्रिलोचनपाल (ओहिन्द का राजा)|त्रिलोचनपाल]] |
| | -[[भीमपाल]] |
| | |
| | {निम्नलिखित में से कौन-सा शासक 'दास' ([[ग़ुलाम वंश|ग़ुलाम राजवंश]]) से संबंधित था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-44 |
| | |type="()"} |
| | +[[इल्तुतमिश]] |
| | -[[हुमायूं]] |
| | -[[अकबर]] |
| | -[[शाहजहाँ]] |
| | |
| | {'''11वीं सदी के भारत का दर्पण''' किसे कहा जाता है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-54 |
| | |type="()"} |
| | +[[किताब-उल-हिन्द]] |
| | -रेहला |
| | -तारीख-ए-यामिनी |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {किसने [[भक्ति]] के क्षेत्र में [[शूद्र|शूद्रों]] को भगवत दर्शन व [[मोक्ष]] का अधिकार देकर उन्हें [[इस्लाम धर्म]] स्वीकार करने से रोका?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-51,प्रश्न-36 |
| | |type="()"} |
| | +[[रामानुजाचार्य]] |
| | -[[वल्लभाचार्य]] |
| | -[[चैतन्य महाप्रभु]] |
| | -[[मध्वाचार्य]] |
| | |
| | |
| | |
| | {किस [[महीना|महीने]] से [[मौर्य|मौर्यों]] का राजकोषीय [[वर्ष]] आरंभ होता था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-16,प्रश्न-66 |
| | |type="()"} |
| | -[[फाल्गुन]] ([[मार्च]]) |
| | +[[आषाढ़]] ([[जुलाई]]) |
| | -[[ज्येष्ठ]] ([[जून]]) |
| | -[[पौष]]-[[माघ]] ([[जनवरी]]-[[फ़रवरी]]) |
| | |
| | {कौन-सी घोषणा युद्ध और हिंसा के प्रति [[अशोक]] के आंतरिक दु:ख को स्पष्ट करती है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-77 |
| | |type="()"} |
| | -[[अशोक के शिलालेख- गिरनार|गिरनार शिलालेख]] |
| | -[[अशोक के शिलालेख- मानसेहरा|मानसेहरा शिलालेख]] |
| | -[[अशोक के शिलालेख- शाहबाजगढ़ी|शाहबाजगढ़ी शिलालेख]] |
| | +[[कलिंग]] का पृथक शिलालेख |
| | |
| | {निम्नलिखित में किसने [[सोना|सोने]] के सर्वाधिक शुद्ध सिक्के जारी किए? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-14 |
| | |type="()"} |
| | +[[कुषाण]] |
| | -इण्डो-बैक्ट्रियन |
| | -[[शक]] |
| | -[[गुप्त राजवंश|गुप्त]] |
| | |
| | {स्ट्रैबो के अनुसार [[संगम युग]] के किस वंश के शासक ने रोमन सम्राट आगस्टस के दरबार में 20 ई. पू. के लगभग अपना एक दूत भेजा? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-17 |
| | |type="()"} |
| | +[[पांड्य राजवंश|पांड्य]] नरेश |
| | -[[चोल]] नरेश |
| | -[[चेर वंश|चेर]] नरेश |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {किस [[गुप्त राजवंश|गुप्त]] शासक ने दक्षिणापथ में स्थित 12 राज्यों पर 'धर्मविजय' की?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-24,प्रश्न-76 |
| | |type="()"} |
| | -[[चन्द्रगुप्त प्रथम]] |
| | +[[समुद्रगुप्त]] |
| | -[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] |
| | -[[स्कंदगुप्त]] |
| | |
| | {सन 1329 और 1330 के बीच किसने [[ताँबा|ताँबे]] के सिक्के के रूप में प्रमाणस्वरूप सांकेतिक मुद्रा (Tooken Currency) प्रचलित की? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-15 |
| | |type="()"} |
| | -[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] |
| | -[[ग़यासुद्दीन ख़िलजी]] |
| | +[[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] |
| | -[[फ़िरोज़ शाह तुग़लक़]] |
| | |
| | {[[महमूद ग़ज़नवी]] किस वंश का था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-29 |
| | |type="()"} |
| | +यामिनी |
| | -[[ग़ुलाम वंश|ग़ुलाम]] |
| | -[[ख़िलजी वंश|ख़िलजी]] |
| | -[[तुग़लक़ वंश|तुग़लक़]] |
| | |
| | {[[दक्षिण अफ़्रीका|दक्षिण अफ़्रीकी]] यात्री [[इब्नबतूता]] किसके शासन काल में [[भारत]] आया था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-45 |
| | |type="()"} |
| | -[[हुमायूं]] |
| | -[[अकबर]] |
| | +[[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] |
| | -[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] |
| | |
| | {'वैहिन्द का युद्ध' (1008-09) निम्नलिखित में से किनके बीच लड़ा गया था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-55 |
| | |type="()"} |
| | +[[महमूद ग़ज़नवी]] और [[आनन्दपाल]] |
| | -महमूद ग़ज़नवी और [[जयपाल]] |
| | -[[मुहम्मद ग़ोरी]] और [[पृथ्वीराज चौहान]] |
| | -मुहम्मद ग़ोरी और [[जयचंद]] |
| | |
| | {[[दक्षिण भारत]] का वह संत कौन था, जिसने अपना अधिकांश जीवन [[उत्तर भारत]] में [[वृन्दावन]] में बिताया? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-51,प्रश्न-37 |
| | |type="()"} |
| | -[[रामानुजाचार्य]] |
| | +[[निम्बार्काचार्य|निम्बार्क आचार्य]] |
| | -[[मध्वाचार्य]] |
| | -[[विष्णुस्वामी]] |
| | |
| | |
| | |
| | {[[अशोक]] के बारे में जानने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है- (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-68 |
| | |type="()"} |
| | -आहत मुद्रा |
| | +[[शिलालेख]] |
| | -यूनानी लेख |
| | -[[बौद्ध साहित्य]] |
| | |
| | {[[महमूद ग़ज़नवी]] ने [[भारत]] पर कितनी बार आक्रमण किया? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-46 |
| | |type="()"} |
| | -12 बार |
| | -15 बार |
| | +17 बार |
| | -18 बार |
| | |
| | {[[सातवाहन वंश|सातवाहनों]] के समय में मुद्रा सर्वाधिक किस [[धातु]] से बनाई जाती थी? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-15 |
| | |type="()"} |
| | +[[सीसा]] |
| | -[[ताँबा]] |
| | -[[स्वर्ण]] |
| | -[[पीतल]] |
| | |
| | {[[तिरुवल्लुवर]] की रचना 'कुरल' या 'मुप्पाल' को कहा जाता है- (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-18 |
| | |type="()"} |
| | +[[तमिल नाडु|तमिल भूमि]] का बाइबिल |
| | -तमिल भूमि का महान व्याकरण ग्रंथ |
| | -तमिल भूमि का महान नाट्य ग्रंथ |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {'''सर्वराजोच्छेता''' (सभी राजाओं को उखाड़ फेंकने वाला) की उपाधि किसने धारण की थी? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-24,प्रश्न-77 |
| | |type="()"} |
| | -[[चन्द्रगुप्त प्रथम]] |
| | -[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] |
| | +[[समुद्रगुप्त]] |
| | -[[स्कंदगुप्त]] |
| | |
| | {किस [[शिलालेख]] में [[अशोक]] की यह घोषणा अंकित है कि- "किसी भी समय, चाहे मैं खाता रहूँ या रानी के साथ विश्राम करता रहूँ या मैं अपने अंत:शाला में रहूँ, मैं जहाँ भी रहूँ, मेरे महामात्य मुझे सार्वजनिक कार्य के लिए संपर्क कर सकते हैं?" (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-78 |
| | |type="()"} |
| | -दूसरा शिलालेख |
| | -चौथा शिलालेख |
| | -पाँचवाँ शिलालेख |
| | +छठा शिलालेख |
| | |
| | {[[लोदी वंश]] का अंतिम शासक कौन था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-17 |
| | |type="()"} |
| | -[[बहलोल लोदी]] |
| | +[[इब्राहिम लोदी]] |
| | -दौलत ख़ाँ लोदी |
| | -[[सिकंदर लोदी]] |
| | |
| | {[[महमूद ग़ज़नवी]] के साथ [[भारत]] आने वाले [[इतिहासकार|इतिहासकारों]] में कौन शामिल नहीं था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-30 |
| | |type="()"} |
| | +'[[शाहनामा]]' का लेखक [[फ़िरदौसी]] |
| | -'[[किताब-उल-हिन्द]]' का लेखक [[अलबेरूनी]] |
| | -'तारीख़-ए-यामिनी' का लेखक उत्बी |
| | -'तारीख़-ए-सुबुक्तगीन' का लेखक वैहाकी |
| | |
| | {'अलाई दरवाज़ा' निम्न में से किसका मुख्य द्वार है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-66 |
| | |type="()"} |
| | -जमातखाना मस्जिद |
| | -सीरी |
| | +[[क़ुतुब मीनार]] |
| | -इनमें से से कोई नहीं |
| | |
| | {[[महाराष्ट्र]] में 'विठोबा' या 'विट्ठल' ([[विष्णु]] का एक नाम) आंदोलन का केन्द्र था- (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-51,प्रश्न-38 |
| | |type="()"} |
| | +[[पण्ढरपुर]] |
| | -[[पैठण|पैठन]] |
| | -[[कार्ले चैत्यगृह|कार्ले]] |
| | -[[एलिफेंटा की गुफ़ाएँ|एलिफेंटा]] |
| | |
| | |
| | |
| | {[[अशोक]] के [[काल]] में कौन-सी [[लिपि]] [[दक्षिण भारत]] में प्रवर्तित हुई थी? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-69 |
| | |type="()"} |
| | +[[ब्राह्मी]] |
| | -[[आरमाईक भाषा|अरमाईक]] |
| | -[[खरोष्ठी]] |
| | -यूनानी |
| | |
| | {निम्नलिखित में कौन अवरोही क्रम में ज़िला स्तर के अधिकारियों का नाम बताता है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-17,प्रश्न-79 |
| | |type="()"} |
| | +[[प्रादेशिक]], राजुक, युक्तक |
| | -राजुक, युक्तक, प्रादेशिक |
| | -प्रादेशिक, युक्तक, राजुक |
| | -युक्तक, प्रादेशिक, राजुक |
| | |
| | {निम्नलिखित में से [[कनिष्क]] के समकालीन कौन थे? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-18,प्रश्न-16 |
| | |type="()"} |
| | -[[कंबन]], [[बाणभट्ट]], [[अश्वघोष]] |
| | +[[नागार्जुन]], [[अश्वघोष]], [[वसुमित्र]] |
| | -[[अश्वघोष]], [[कालिदास]], [[बाणभट्ट]] |
| | -[[कालिदास]], [[कंबन]], [[वसुमित्र]] |
| | |
| | {"तमिल काव्य का इलियड" किसे कहा जाता है?(लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-21,प्रश्न-19 |
| | |type="()"} |
| | -तोल्लकप्पियम |
| | -कुरल |
| | +शिलप्पदिकारम |
| | -मणिमेकलई |
| | |
| | {किसने अंतिम [[शक साम्राज्य|शक]] शासक रुद्रसिंह तृतीय को पराजित कर और उसकी हत्या कर शकों का अंतिम रूप से उन्मूलन किया? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-24,प्रश्न-78 |
| | |type="()"} |
| | -[[चन्द्रगुप्त प्रथम]] |
| | +[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] |
| | -[[समुद्रगुप्त]] |
| | -[[स्कंदगुप्त]] |
| | |
| | {'इनाम' भूमि किसे दिया जाता था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-18 |
| | |type="()"} |
| | +विद्वान और धार्मिक व्यक्ति |
| | -[[मनसबदार]] |
| | -पैतृक राजस्व संग्राहक |
| | -[[कुलीन]] |
| | |
| | {[[महमूद ग़ज़नवी]] के आक्रमण के परिणामस्वरूप कौन-सा शहर [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] संस्कृति का केन्द्र बन गया? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-38,प्रश्न-31 |
| | |type="()"} |
| | +[[लाहौर]] |
| | -[[दिल्ली]] |
| | -[[दौलताबाद]] |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {किसने अपने आप को 'खलीफ़ा' घोषित किया था? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-47 |
| | |type="()"} |
| | -[[शेरशाह सूरी]] |
| | +[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] |
| | -[[महमूद ग़ज़नवी]] |
| | -[[शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी]] |
| | |
| | {[[अलाउद्दीन ख़िलजी|सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी]] के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-39,प्रश्न-57 |
| | |type="()"} |
| | -[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने अनाज के दाम नियत किए। |
| | -अलाउद्दीन ख़िलजी पहला सुल्तान था, जिसने सैनिकों को नकद वेतन दिया। |
| | -अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल में किसानों द्वारा दिये गये भू-राजस्व का अंश फ़सल के आधे तक बढ़ा दिया गया था। |
| | +उपरोक्त सभी |
| | |
| | {किसने [[श्रीमद्भागवदगीता|भगवद्गीता]] पर 'भावार्थ दीपिका' नाम से एक वृहत [[टीका]] [[मराठी भाषा|मराठी]] में लिखी, जिसे सामान्यत: '[[ज्ञानेश्वरी]]' के नाम से जाना जाता है? (लुसेंत सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-51,प्रश्न-39 |
| | |type="()"} |
| | +[[संत ज्ञानेश्वर|ज्ञानदेव]] |
| | -[[नामदेव]] |
| | -[[एकनाथ]] |
| | -[[तुकाराम]] |
| | </quiz> |
| | |} |
| | |} |
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