"गीता 2:71": अवतरणों में अंतर

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जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममतारहित, अहंकार रहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वही शान्ति को प्राप्त होता है अर्थात् वह शान्ति को प्राप्त है ।।71।।  


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09:05, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-2 श्लोक-71 / Gita Chapter-2 Verse-71

प्रसंग-


इस प्रकार अर्जुन[1] के चारों प्रश्नों का उत्तर देने के अनन्तर अब स्थितप्रज्ञ पुरुष महत्त्व बतलाते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं-


विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह ।
निर्ममो निरहंकार स शान्तिमधिगच्छति ।।71।।




जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममतारहित, अहंकार रहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वही शान्ति को प्राप्त होता है अर्थात् वह शान्ति को प्राप्त है ।।71।।


He who has given up all desires, and moves free from attachment, agoism and thirst for enjoyment attains peace.(71)


य: = जो ; पुमान् = पुरुष ; सर्वान् = संपूर्ण ; कामान् = कामनाओंको ; विहाय = त्यागकर ; निर्मम: = ममतारहित (और) ; निरहंकार: = अहंकाररहित ; नि:स्पृह: = स्पृहारहित हुआ ; चरति = बर्तता है ; स: = वह ; शान्तिम् = शान्तिको ; अधिगच्छति = प्राप्त होता है



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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