महाभारत युद्ध नौवाँ दिन

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नौवें दिन के युद्ध में भीष्म के बाणों से अर्जुन घायल हो गए। भीष्म की भीषण बाण वर्षा से श्रीकृष्ण के अंग भी जर्जर हो जाते हैं।

  • इस दिन श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े। वे श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाते हैं कि वे युद्ध में अस्त्र-शस्त्र नहीं उठायेंगे।
  • संध्या हो जाने पर युद्ध समाप्ति की घोषण होती है। रात्रि के समय युधिष्ठिर कृष्ण से मंत्रणा करते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं- "क्यों न हम भीष्म से ही उन पर विजय प्राप्त करने का उपाय पूछें।"
  • श्रीकृष्ण और पांडव भीष्म के पास पहुँचे। भीष्म ने कहा कि- "जब तक मैं जीवित हूँ, तब तक कौरव पक्ष अजेय है।" बाद में वे अपनी मृत्यु का रहस्य पांडवों को बता देते हैं।
  • पितामह भीष्म ने पांडवों को बताया कि- "द्रुपद का बेटा शिखंडी पूर्वजन्म का स्त्री है। मेरे वध के लिए उसने शिव की तपस्या की थी। द्रुपद के घर वह कन्या के रूप में पैदा हुआ, लेकिन एक दानव के वर से फिर पुरुष बन गया। यदि उसे सामने करके अर्जुन मुझ पर तीर बरसाएगा, तो मैं अस्त्र नहीं चलाऊँगा।"[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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