गीता 14:5

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गीता अध्याय-14 श्लोक-5 / Gita Chapter-14 Verse-5

प्रसंग-


भगवान् अब पाँचवें से आठवें श्लोक तक पहले उन तीनों गुणों की प्रकृति से उत्पत्ति और उनके विभिन्न नाम बताकर फिर उनके स्वरूप और उनके द्वारा जीवात्मा के बन्धन प्रकार का क्रमश: पृथक्-पृथक् वर्णन करते हैं-


सत्त्वं रजस्तम इति गुणा: प्रकृतिसंभवा: ।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ।।5।।



हे अर्जुन[1] ! सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण- ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं ।।5।।

Sattva, Rajas and Tamas- these three qualities born of nature tie down the imperishable soul to the body, Arjuna. (5)


महाबाहो = हे अर्जुन ; सत्त्वम् = सत्त्वगुण ; रज: = रजोगुण (और) ; तम: = तमोगुण ; इति = ऐसे (यह) ; प्रकृतिसंभवा: = प्रकृति से उत्पन्न हुए ; गुणा: = तीनों गुण ; अव्ययम् = (इस) अविनाशी ; देहिनम् = जीवात्मा को ; देहे = शरीर में ; निबन्धन्ति = बांधते हैं



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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