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'''श्रीरंगपट्टनम''' दक्षिण–मध्य [[कर्नाटक]] (भूतपूर्व [[मैसूर]]) राज्य, दक्षिण [[भारत]] में स्थित है। इसे पहले 'सेंरिगपटम' भी कहा जाता था। श्रीरंगपट्टनम मैसूर से 9 मील दूर [[कावेरी नदी]] के टापू पर स्थित है। पौराणिक किंवदन्ती है कि पूर्व काल में इस स्थान पर [[गौतम ऋषि]] का आश्रम था। मैसूर में स्थित 12वीं सदी में श्रीरंगपट्टनम एक मन्दिर था, जो भगवान श्रीरंग ([[विष्णु]]) का मन्दिर है। इसी मन्दिर के नाम पर इसका नाम 'श्रीरंगपट्टनम' रखा गया है।
 
'''श्रीरंगपट्टनम''' दक्षिण–मध्य [[कर्नाटक]] (भूतपूर्व [[मैसूर]]) राज्य, दक्षिण [[भारत]] में स्थित है। इसे पहले 'सेंरिगपटम' भी कहा जाता था। श्रीरंगपट्टनम मैसूर से 9 मील दूर [[कावेरी नदी]] के टापू पर स्थित है। पौराणिक किंवदन्ती है कि पूर्व काल में इस स्थान पर [[गौतम ऋषि]] का आश्रम था। मैसूर में स्थित 12वीं सदी में श्रीरंगपट्टनम एक मन्दिर था, जो भगवान श्रीरंग ([[विष्णु]]) का मन्दिर है। इसी मन्दिर के नाम पर इसका नाम 'श्रीरंगपट्टनम' रखा गया है।
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
 
श्रीरंगपट्टनम नगर 15वीं शताब्दी में क़िलाबन्द हुआ और मैसूर के राजा (1610 ई.) तथा सुल्तान (1761 ई.) की राजधानी बना। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने जब इस क़िले की सफल घेराबन्दी की, उस समय [[हैदर अली]] और उनके पुत्र [[टीपू सुल्तान]] का यहाँ पर शासन था। इस घेराबन्दी का अन्त अंग्रेज़ों के साथ एक संधि (1792 ई.) के रूप में हुआ। [[मैसूर युद्ध चतुर्थ|चौथे मैसूर युद्ध]] (1799 ई.) में [[टीपू सुल्तान]] की हत्या कर दी गई और क़िला एक बार फिर से अंग्रेज़ों के हाथ में आ गया। इस आधुनिक नगर में 17वीं शताब्दी के [[हिन्दू]] स्मारक के साथ-साथ टीपू सुल्तान द्वारा बनवाई गई विशाल मस्जिद को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। टीपू सुल्तान का सुपरिष्कृत ग्रीष्मकालीन महल दरिया दौलत (1781 ई.) गंजम की पूर्वी उपनगरीय क्षेत्र में स्थित है। इस महल की दीवारों पर जुलूस और युद्ध के दृश्य चित्रित हैं। पास के लाल बाग़ के मक़बरे में दो सुल्तानों को दफ़नाया गया है। जांघिल, सफ़ेद बिज्जा (व्हाइट इबिस) वाक् बगुला और गाय बगुला (कैटल एग्रेट) के निवास वाले रंगनथिट्टू पक्षी अभयारण्य के आसपास अनेक टापू हैं, जो इसी का हिस्सा हैं।
 
श्रीरंगपट्टनम नगर 15वीं शताब्दी में क़िलाबन्द हुआ और मैसूर के राजा (1610 ई.) तथा सुल्तान (1761 ई.) की राजधानी बना। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने जब इस क़िले की सफल घेराबन्दी की, उस समय [[हैदर अली]] और उनके पुत्र [[टीपू सुल्तान]] का यहाँ पर शासन था। इस घेराबन्दी का अन्त अंग्रेज़ों के साथ एक संधि (1792 ई.) के रूप में हुआ। [[मैसूर युद्ध चतुर्थ|चौथे मैसूर युद्ध]] (1799 ई.) में [[टीपू सुल्तान]] की हत्या कर दी गई और क़िला एक बार फिर से अंग्रेज़ों के हाथ में आ गया। इस आधुनिक नगर में 17वीं शताब्दी के [[हिन्दू]] स्मारक के साथ-साथ टीपू सुल्तान द्वारा बनवाई गई विशाल मस्जिद को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। टीपू सुल्तान का सुपरिष्कृत ग्रीष्मकालीन महल दरिया दौलत (1781 ई.) गंजम की पूर्वी उपनगरीय क्षेत्र में स्थित है। इस महल की दीवारों पर जुलूस और युद्ध के दृश्य चित्रित हैं। पास के लाल बाग़ के मक़बरे में दो सुल्तानों को दफ़नाया गया है। जांघिल, सफ़ेद बिज्जा (व्हाइट इबिस) वाक् बगुला और गाय बगुला (कैटल एग्रेट) के निवास वाले रंगनथिट्टू पक्षी अभयारण्य के आसपास अनेक टापू हैं, जो इसी का हिस्सा हैं।
 
==पर्यटन स्थल==
 
==पर्यटन स्थल==
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[[चित्र:The-Mausoleum-Of-Tipu-Sulthan.jpg|thumb|250px|टीपू सुल्तान का मक़बरा]]
 
श्रीरंगपट्टनम की भूमि पर प्रत्येक स्थान पर आज भी भयानक तथा निर्णायक युद्ध के चिह्न दिखाई पड़ते हैं। अंग्रेज़ों की सेना के निवास स्थान की टूटी हुई दीवारें, सैनिक चिकित्सालय के खण्डहर, भूमिगत तहख़ाने तथा अंग्रेज़ कैदियों का आवास-ये सब पुरानी कहानियों की स्मृति को नवीन बना देते हैं। टीपू की बनवाई हुई ज़ामा-मस्ज़दि यहाँ के विशाल भवनों में से एक है। दुर्ग के बाहर काष्ठनिर्मित 'दरिया दौलत' नामक भवन टीपू ने 1784 ई. में बनवाया था। [[कावेरी नदी|कावेरी]] के रमणीक तट पर एक सुन्दर उद्यान के बीच में यह ग्रीष्म-प्रासाद स्थित है। इसकी दीवारें, स्तम्भ, महराब और छतें अनेक प्रकार की नक़्क़ाशी से अलंकृत हैं। बीच-बीच में सोने का सुन्दर काम भी दिखाई देता है। जिससे इसकी शोभा और भी दुगुनी हो जाती है। बहिर्भित्तियों पर युद्धस्थली के दृश्य तथा युद्ध यात्राओं के मनोरंजग चित्र भी अंकित हैं। द्वीप के पूर्वी किनारे पर [[टीपू सुल्तान]] का मक़बरा अथवा गुम्बज आज भी स्थित है। यह भी एक सुन्दर उद्यान के भीतर बना हुआ है। इसे टीपू ने अपनी माता तथा पिता [[हैदर अली]] के लिए बनवाया था, किन्तु अंग्रेज़ों ने टीपू की क़ब्र भी इसी में बनवा दी।
 
श्रीरंगपट्टनम की भूमि पर प्रत्येक स्थान पर आज भी भयानक तथा निर्णायक युद्ध के चिह्न दिखाई पड़ते हैं। अंग्रेज़ों की सेना के निवास स्थान की टूटी हुई दीवारें, सैनिक चिकित्सालय के खण्डहर, भूमिगत तहख़ाने तथा अंग्रेज़ कैदियों का आवास-ये सब पुरानी कहानियों की स्मृति को नवीन बना देते हैं। टीपू की बनवाई हुई ज़ामा-मस्ज़दि यहाँ के विशाल भवनों में से एक है। दुर्ग के बाहर काष्ठनिर्मित 'दरिया दौलत' नामक भवन टीपू ने 1784 ई. में बनवाया था। [[कावेरी नदी|कावेरी]] के रमणीक तट पर एक सुन्दर उद्यान के बीच में यह ग्रीष्म-प्रासाद स्थित है। इसकी दीवारें, स्तम्भ, महराब और छतें अनेक प्रकार की नक़्क़ाशी से अलंकृत हैं। बीच-बीच में सोने का सुन्दर काम भी दिखाई देता है। जिससे इसकी शोभा और भी दुगुनी हो जाती है। बहिर्भित्तियों पर युद्धस्थली के दृश्य तथा युद्ध यात्राओं के मनोरंजग चित्र भी अंकित हैं। द्वीप के पूर्वी किनारे पर [[टीपू सुल्तान]] का मक़बरा अथवा गुम्बज आज भी स्थित है। यह भी एक सुन्दर उद्यान के भीतर बना हुआ है। इसे टीपू ने अपनी माता तथा पिता [[हैदर अली]] के लिए बनवाया था, किन्तु अंग्रेज़ों ने टीपू की क़ब्र भी इसी में बनवा दी।
 
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चित्र:Jumma-Masjid-Srirangapatna.jpg|जुम्मा मस्जिद, श्रीरंगपट्टनम
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चित्र:Ranganathittu-Bird-Sanctuary.jpg|रंगनथिट्टू पक्षी अभयारण्य, श्रीरंगपट्टनम
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चित्र:Triveni-Sangam-Srirangapatna.jpg|त्रिवेनी संगम, श्रीरंगपट्टनम
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चित्र:Jamma-Masjid-Srirangapatnam.jpg|जामा मस्जिद, श्रीरंगपट्टनम
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चित्र:Gumbaz-Srirangapatnam.jpg|[[गुम्बज, श्रीरंगपट्टनम]]
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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08:30, 6 जून 2022 के समय का अवतरण

दरिया दौलत, श्रीरंगपट्टनम

श्रीरंगपट्टनम दक्षिण–मध्य कर्नाटक (भूतपूर्व मैसूर) राज्य, दक्षिण भारत में स्थित है। इसे पहले 'सेंरिगपटम' भी कहा जाता था। श्रीरंगपट्टनम मैसूर से 9 मील दूर कावेरी नदी के टापू पर स्थित है। पौराणिक किंवदन्ती है कि पूर्व काल में इस स्थान पर गौतम ऋषि का आश्रम था। मैसूर में स्थित 12वीं सदी में श्रीरंगपट्टनम एक मन्दिर था, जो भगवान श्रीरंग (विष्णु) का मन्दिर है। इसी मन्दिर के नाम पर इसका नाम 'श्रीरंगपट्टनम' रखा गया है।

इतिहास

श्रीरंगपट्टनम नगर 15वीं शताब्दी में क़िलाबन्द हुआ और मैसूर के राजा (1610 ई.) तथा सुल्तान (1761 ई.) की राजधानी बना। अंग्रेज़ों ने जब इस क़िले की सफल घेराबन्दी की, उस समय हैदर अली और उनके पुत्र टीपू सुल्तान का यहाँ पर शासन था। इस घेराबन्दी का अन्त अंग्रेज़ों के साथ एक संधि (1792 ई.) के रूप में हुआ। चौथे मैसूर युद्ध (1799 ई.) में टीपू सुल्तान की हत्या कर दी गई और क़िला एक बार फिर से अंग्रेज़ों के हाथ में आ गया। इस आधुनिक नगर में 17वीं शताब्दी के हिन्दू स्मारक के साथ-साथ टीपू सुल्तान द्वारा बनवाई गई विशाल मस्जिद को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। टीपू सुल्तान का सुपरिष्कृत ग्रीष्मकालीन महल दरिया दौलत (1781 ई.) गंजम की पूर्वी उपनगरीय क्षेत्र में स्थित है। इस महल की दीवारों पर जुलूस और युद्ध के दृश्य चित्रित हैं। पास के लाल बाग़ के मक़बरे में दो सुल्तानों को दफ़नाया गया है। जांघिल, सफ़ेद बिज्जा (व्हाइट इबिस) वाक् बगुला और गाय बगुला (कैटल एग्रेट) के निवास वाले रंगनथिट्टू पक्षी अभयारण्य के आसपास अनेक टापू हैं, जो इसी का हिस्सा हैं।

पर्यटन स्थल

टीपू सुल्तान का मक़बरा

श्रीरंगपट्टनम की भूमि पर प्रत्येक स्थान पर आज भी भयानक तथा निर्णायक युद्ध के चिह्न दिखाई पड़ते हैं। अंग्रेज़ों की सेना के निवास स्थान की टूटी हुई दीवारें, सैनिक चिकित्सालय के खण्डहर, भूमिगत तहख़ाने तथा अंग्रेज़ कैदियों का आवास-ये सब पुरानी कहानियों की स्मृति को नवीन बना देते हैं। टीपू की बनवाई हुई ज़ामा-मस्ज़दि यहाँ के विशाल भवनों में से एक है। दुर्ग के बाहर काष्ठनिर्मित 'दरिया दौलत' नामक भवन टीपू ने 1784 ई. में बनवाया था। कावेरी के रमणीक तट पर एक सुन्दर उद्यान के बीच में यह ग्रीष्म-प्रासाद स्थित है। इसकी दीवारें, स्तम्भ, महराब और छतें अनेक प्रकार की नक़्क़ाशी से अलंकृत हैं। बीच-बीच में सोने का सुन्दर काम भी दिखाई देता है। जिससे इसकी शोभा और भी दुगुनी हो जाती है। बहिर्भित्तियों पर युद्धस्थली के दृश्य तथा युद्ध यात्राओं के मनोरंजग चित्र भी अंकित हैं। द्वीप के पूर्वी किनारे पर टीपू सुल्तान का मक़बरा अथवा गुम्बज आज भी स्थित है। यह भी एक सुन्दर उद्यान के भीतर बना हुआ है। इसे टीपू ने अपनी माता तथा पिता हैदर अली के लिए बनवाया था, किन्तु अंग्रेज़ों ने टीपू की क़ब्र भी इसी में बनवा दी।

जनसंख्या

2001 की जनगणना के अनुसार श्रीरंगपट्टनम नगर की जनसंख्या 23,448 है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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