"वंशकाव्य-परम्परा और रघुवंश" के अवतरणों में अंतर
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*भोज ने तो इसके आधार पर 'वंशकाव्य' नामक काव्य कोटि का निर्धारण भी किया तथा इस काव्य विधा के रघुवंश के अतिरिक्त अश्मक वंश, [[यदु वंश]], दिलीप वंश - ये उदाहरण दिये हैं।<ref>श्रृंगारप्रकाश, भाग-2 पृ.470</ref> आगे चलकर ऐतिहासिक महाकाव्यों की धारा में भी इस प्रकार के अनेक वंश काव्य लिखे गये। | *भोज ने तो इसके आधार पर 'वंशकाव्य' नामक काव्य कोटि का निर्धारण भी किया तथा इस काव्य विधा के रघुवंश के अतिरिक्त अश्मक वंश, [[यदु वंश]], दिलीप वंश - ये उदाहरण दिये हैं।<ref>श्रृंगारप्रकाश, भाग-2 पृ.470</ref> आगे चलकर ऐतिहासिक महाकाव्यों की धारा में भी इस प्रकार के अनेक वंश काव्य लिखे गये। | ||
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11:55, 25 जून 2013 का अवतरण
वंशकाव्य-परम्परा और रघुवंश
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लेखक | कालिदास |
मूल शीर्षक | 'रघुवंश महाकाव्य' |
देश | भारत |
विषय | रघुकुल का इतिहास |
प्रकार | महाकाव्य |
विशेष | इस महाकाव्य में 'उन्नीस सर्ग' हैं, जिनमें रघुकुल के इतिहास का वर्णन किया गया है। |
- रघुवंश की रचना के द्वारा एक नायक के स्थान पर पूरे वंश को विषय बनाने वाले महाकाव्यों की परम्परा प्रवर्तित हुई।
- भोज ने तो इसके आधार पर 'वंशकाव्य' नामक काव्य कोटि का निर्धारण भी किया तथा इस काव्य विधा के रघुवंश के अतिरिक्त अश्मक वंश, यदु वंश, दिलीप वंश - ये उदाहरण दिये हैं।[1] आगे चलकर ऐतिहासिक महाकाव्यों की धारा में भी इस प्रकार के अनेक वंश काव्य लिखे गये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रृंगारप्रकाश, भाग-2 पृ.470
बाहरी कड़ियाँ
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