"कण्वाश्रम" के अवतरणों में अंतर

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'''कण्वाश्रम''' [[उत्तराखण्ड]] स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। [[गढ़वाल|गढ़वाल जनपद]] में कोटद्वार से 14 कि.मी. की दूरी पर [[शिवालिक पर्वत श्रेणी]] के पाद प्रदेश में [[हेमकूट]] और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्तिथ 'कण्वाश्रम' ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। माना जाता है कि यही [[कण्व|कण्व ऋषि]] का आश्रम था।
कण्वाश्रम [[महाभारत]] के अनुसार धर्मारण्य ([[गुजरात]]) में स्थित था।  
 
  
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दूसरी ओर कण्वाश्रम को [[रूहेलखंड]] का वह भाग माना जाता है, जहाँ आजकल बिजनौर की बस्ती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=556, परिशिष्ट 'क'|url=}}</ref>
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==पौराणिक उल्लेख==
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कोटद्वार भाबर क्षेत्र की प्रमुख एतिहासिक धरोहरों में 'कण्वाश्रम' सर्वप्रमुख है, जिसका [[पुराण|पुराणों]] में विस्तृत उल्लेख मिलता है। हज़ारों वर्ष पूर्व पौराणिक युग में जिस [[मालिनी नदी]] का उल्लेख मिलता है, वह आज भी उसी नाम से पुकारी जाती है तथा भाबर के बहुत बड़े क्षेत्र को सिंचित कर रही है। कण्वाश्रम शिवालिक की तलहटी में मालिनी के दोनों तटों पर स्थित छोटे-छोटे आश्रमों का प्रख्यात विद्यापीठ था। यहां मात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा थी। इसमें वे शिक्षार्थी प्रविष्ट हो सकते थे, जो सामान्य विद्यापीठ का पाठ्यक्रम पूर्ण कर और अधिक अध्ययन करना चाहते थे। कण्वाश्रम चारों [[वेद|वेदों]], [[व्याकरण]], [[छन्द]], [[निरुक्तम|निरुक्त]], ज्योतिष, [[आयुर्वेद]], शिक्षा तथा कर्मकाण्ड इन छ: वेदांगों के अध्ययन-अध्यापन का प्रबन्ध था। आश्रमवर्ती योगी एकान्त स्थानों में कुटी बनाकर या गुफ़ाओं के अन्दर रहते थे।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.uttarakhandtemples.in/temples/Kotdwar/karnwashrama-kotdwara|title= कण्वाश्रम, कोटद्वार|accessmonthday= 24 जनवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= उत्तराखण्ड के मंदिर|language= हिन्दी}}</ref>
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*'[[अभिज्ञान शाकुन्तलम]]' में कण्वाश्रम का परिचय इस प्रकार है-
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<blockquote>"एस कण्व खलु कुलाधिपति आश्रम"</blockquote>
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*प्राचीन काल से ही मानसखंड तथा केदारखंड की यात्राएं श्रद्धालुओं द्वारा पैदल संपन्न की जाती थीं। [[हरिद्वार]], [[गंगाद्वार]] से कण्वाश्रम, महावगढ़, ब्यासघाट, [[देवप्रयाग]] होते हुए [[चार धाम यात्रा|चारधाम यात्रा]] अनेक कष्ट सहकर पूर्ण की जाती थी। '[[स्कन्द पुराण]]' केदारखंड के 57वें अध्याय में इस पुण्य क्षेत्र का उल्लेख निम्न प्रकार से किया गया है<ref>{{cite web |url= http://www.merapahadforum.com/religious-places-of-uttarakhand/devbhumi-uttarakhand/15/?wap2|title= कण्वाश्रम, कोटद्वार, उत्तराखण्ड|accessmonthday= 24 जनवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= merapahadforum.com|language= हिंदी}}</ref>-
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<blockquote><poem>कण्वाश्रम समारम्य याव नंदा गिरी भवेत।
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यावत क्षेत्रम परम पुण्य  मुक्ति प्रदायक॥</poem></blockquote>
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'कण्वाश्रम' [[कण्व ऋषि]] का वही आश्रम है, जहाँ [[हस्तिनापुर]] के [[दुष्यन्त|राजा दुष्यन्त]] तथा [[शकुन्तला]] के प्रणय के पश्चात् [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] का जन्म हुआ था, कालान्तर में इसी गढ़वाली खस नारी शकुन्तला पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम '[[भारत]]' पड़ा। शकुन्तला [[विश्वामित्र|ऋषि विश्वामित्र]] व [[मेनका|अप्सरा मेनका]] की पुत्री थी।
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==प्राचीनता==
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इस क्षेत्र की प्राचीनता के संबन्ध में अन्य पौराणिक प्रसंगों का भी उल्लेख है। [[पाण्डव|पाण्डवों]] के पूर्वज शकुन्तला और भरत तत्कालीन [[कुलिंद|कुलिन्द जनपद]] के निवासी थे। यहाँ के कुलिन्दराज राजा सुबाहु से पाण्डवों की विशेष मैत्री थी। कण्वाश्रम के कुछ ऊपर 'कांण्डई' नामक एक [[ग्राम]] के पास आज भी एक प्राचीन गुफ़ा विद्यमान है, जिसमें 30-40 व्यक्ति एक साथ निवास कर सकते हैं। ईड़ा ग्राम के पास शून्य शिखर पर आज भी सन्न्यासियों का आश्रम है। चौकीघाट से कुछ दूरी पर 'किमसेरा' (कण्वसेरा) की चोटी पर भग्नावशेष किसी आश्रम या गढ़ का संकेत देते हैं।<ref name="aa"/>
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==मेला आयोजन==
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हर [[वर्ष]] '[[बसंत पंचमी]]' के अवसर पर कण्वाश्रम में तीन दिन तक मेला चलता है। [[कालिदास|महाकवि कालिदास]] द्वारा रचित '[[अभिज्ञान शाकुन्तलम]]' में कण्वाश्रम का जिस तरह से जिक्र मिलता है, वे स्थल आज भी वैसे ही देखे जा सकते हैं।
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सन [[1955]] में [[उत्तर प्रदेश]] के तत्कालीन [[मुख्यमंत्री]] सम्पूर्नान्द के प्रयासों से कण्वाश्रम का जीर्णोद्धार किया गया था। वर्तमान में 'गढ़वाल मंडल विकास निगम', 'कण्वाश्रम विकास समिति' तथा शासकीय प्रयासों से इस स्थल की उचित देख-रेख होती है। भरत स्मारक के साथ-साथ यहाँ पुरातात्विक महत्त्व की अनेक मूर्तियाँ सुरक्षित हैं।
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==कैसे पहुँचें==
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कण्वाश्रम, [[उत्तराखण्ड]] के कोटद्वार से 14 कि.मी. की दूरी पर स्थित है तथा बस, टैक्सी तथा अन्य स्थानीय यातायात की सुविधायें यहाँ उपलब्ध हैं। यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन कोटद्वार 14 कि.मी. दूर है तथा निकटतम हवाई अड्डा भी कोटद्वार में ही है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 129| विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{गुजरात के ऐतिहासिक स्थान}}
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07:24, 24 मई 2018 के समय का अवतरण

कण्वाश्रम उत्तराखण्ड स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। गढ़वाल जनपद में कोटद्वार से 14 कि.मी. की दूरी पर शिवालिक पर्वत श्रेणी के पाद प्रदेश में हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्तिथ 'कण्वाश्रम' ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। माना जाता है कि यही कण्व ऋषि का आश्रम था।

दूसरी ओर कण्वाश्रम को रूहेलखंड का वह भाग माना जाता है, जहाँ आजकल बिजनौर की बस्ती है।[1]

पौराणिक उल्लेख

कोटद्वार भाबर क्षेत्र की प्रमुख एतिहासिक धरोहरों में 'कण्वाश्रम' सर्वप्रमुख है, जिसका पुराणों में विस्तृत उल्लेख मिलता है। हज़ारों वर्ष पूर्व पौराणिक युग में जिस मालिनी नदी का उल्लेख मिलता है, वह आज भी उसी नाम से पुकारी जाती है तथा भाबर के बहुत बड़े क्षेत्र को सिंचित कर रही है। कण्वाश्रम शिवालिक की तलहटी में मालिनी के दोनों तटों पर स्थित छोटे-छोटे आश्रमों का प्रख्यात विद्यापीठ था। यहां मात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा थी। इसमें वे शिक्षार्थी प्रविष्ट हो सकते थे, जो सामान्य विद्यापीठ का पाठ्यक्रम पूर्ण कर और अधिक अध्ययन करना चाहते थे। कण्वाश्रम चारों वेदों, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष, आयुर्वेद, शिक्षा तथा कर्मकाण्ड इन छ: वेदांगों के अध्ययन-अध्यापन का प्रबन्ध था। आश्रमवर्ती योगी एकान्त स्थानों में कुटी बनाकर या गुफ़ाओं के अन्दर रहते थे।[2]

"एस कण्व खलु कुलाधिपति आश्रम"

  • प्राचीन काल से ही मानसखंड तथा केदारखंड की यात्राएं श्रद्धालुओं द्वारा पैदल संपन्न की जाती थीं। हरिद्वार, गंगाद्वार से कण्वाश्रम, महावगढ़, ब्यासघाट, देवप्रयाग होते हुए चारधाम यात्रा अनेक कष्ट सहकर पूर्ण की जाती थी। 'स्कन्द पुराण' केदारखंड के 57वें अध्याय में इस पुण्य क्षेत्र का उल्लेख निम्न प्रकार से किया गया है[3]-

कण्वाश्रम समारम्य याव नंदा गिरी भवेत।
यावत क्षेत्रम परम पुण्य मुक्ति प्रदायक॥

कण्व ऋषि से सम्बन्ध

'कण्वाश्रम' कण्व ऋषि का वही आश्रम है, जहाँ हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय के पश्चात् भरत का जन्म हुआ था, कालान्तर में इसी गढ़वाली खस नारी शकुन्तला पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम 'भारत' पड़ा। शकुन्तला ऋषि विश्वामित्रअप्सरा मेनका की पुत्री थी।

प्राचीनता

इस क्षेत्र की प्राचीनता के संबन्ध में अन्य पौराणिक प्रसंगों का भी उल्लेख है। पाण्डवों के पूर्वज शकुन्तला और भरत तत्कालीन कुलिन्द जनपद के निवासी थे। यहाँ के कुलिन्दराज राजा सुबाहु से पाण्डवों की विशेष मैत्री थी। कण्वाश्रम के कुछ ऊपर 'कांण्डई' नामक एक ग्राम के पास आज भी एक प्राचीन गुफ़ा विद्यमान है, जिसमें 30-40 व्यक्ति एक साथ निवास कर सकते हैं। ईड़ा ग्राम के पास शून्य शिखर पर आज भी सन्न्यासियों का आश्रम है। चौकीघाट से कुछ दूरी पर 'किमसेरा' (कण्वसेरा) की चोटी पर भग्नावशेष किसी आश्रम या गढ़ का संकेत देते हैं।[2]

मेला आयोजन

हर वर्ष 'बसंत पंचमी' के अवसर पर कण्वाश्रम में तीन दिन तक मेला चलता है। महाकवि कालिदास द्वारा रचित 'अभिज्ञान शाकुन्तलम' में कण्वाश्रम का जिस तरह से जिक्र मिलता है, वे स्थल आज भी वैसे ही देखे जा सकते हैं।

जीर्णोद्धार

सन 1955 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सम्पूर्नान्द के प्रयासों से कण्वाश्रम का जीर्णोद्धार किया गया था। वर्तमान में 'गढ़वाल मंडल विकास निगम', 'कण्वाश्रम विकास समिति' तथा शासकीय प्रयासों से इस स्थल की उचित देख-रेख होती है। भरत स्मारक के साथ-साथ यहाँ पुरातात्विक महत्त्व की अनेक मूर्तियाँ सुरक्षित हैं।

कैसे पहुँचें

कण्वाश्रम, उत्तराखण्ड के कोटद्वार से 14 कि.मी. की दूरी पर स्थित है तथा बस, टैक्सी तथा अन्य स्थानीय यातायात की सुविधायें यहाँ उपलब्ध हैं। यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन कोटद्वार 14 कि.मी. दूर है तथा निकटतम हवाई अड्डा भी कोटद्वार में ही है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 129| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 556, परिशिष्ट 'क' |
  2. 2.0 2.1 कण्वाश्रम, कोटद्वार (हिन्दी) उत्तराखण्ड के मंदिर। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।
  3. कण्वाश्रम, कोटद्वार, उत्तराखण्ड (हिंदी) merapahadforum.com। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।

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