"अनमोल वचन 5" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - " खून " to " ख़ून ") |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
|- | |- | ||
|'''महापुरुषों के अनमोल वचन''' | |'''महापुरुषों के अनमोल वचन''' | ||
− | + | {{tocright}} | |
==अज्ञात== | ==अज्ञात== | ||
* आपके पास जितना समय अभी है उससे अधिक समय कभी नहीं होगा। - अज्ञात | * आपके पास जितना समय अभी है उससे अधिक समय कभी नहीं होगा। - अज्ञात | ||
पंक्ति 143: | पंक्ति 143: | ||
* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। - अज्ञात | * उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। - अज्ञात | ||
* रुकावटें वे भयावह वस्तुएं हैं जो आप उस समय देखते हैं जब आप अपने लक्ष्य से ध्यान हटा लेते हैं। - अज्ञात | * रुकावटें वे भयावह वस्तुएं हैं जो आप उस समय देखते हैं जब आप अपने लक्ष्य से ध्यान हटा लेते हैं। - अज्ञात | ||
− | + | {{top}} | |
==मुक्ता== | ==मुक्ता== | ||
* रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। - मुक्ता | * रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। - मुक्ता | ||
पंक्ति 164: | पंक्ति 164: | ||
* विज्ञान के चमत्कार हमारा जीवन सहज बनाते हैं पर प्रकृति के चमत्कार धूप, पानी और वनस्पति के बिना तो जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं। - मुक्ता | * विज्ञान के चमत्कार हमारा जीवन सहज बनाते हैं पर प्रकृति के चमत्कार धूप, पानी और वनस्पति के बिना तो जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं। - मुक्ता | ||
* बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएं पूर्ण अंधकार में हैं। - मुक्ता | * बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएं पूर्ण अंधकार में हैं। - मुक्ता | ||
− | + | {{top}} | |
==विनोबा भावे== | ==विनोबा भावे== | ||
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा | * मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा | ||
पंक्ति 185: | पंक्ति 185: | ||
* सेवा के लिये पैसे की जरूरत नहीं होती जरूरत है अपना संकुचित जीवन छोड़ने की, गरीबों से एकरूप होने की। - विनोबा भावे | * सेवा के लिये पैसे की जरूरत नहीं होती जरूरत है अपना संकुचित जीवन छोड़ने की, गरीबों से एकरूप होने की। - विनोबा भावे | ||
* जिस त्याग से अभिमान उत्पन्न होता है, वह त्याग नहीं, त्याग से शांति मिलनी चाहिए, अंतत: अभिमान का त्याग ही सच्चा त्याग है। - विनोबा भावे | * जिस त्याग से अभिमान उत्पन्न होता है, वह त्याग नहीं, त्याग से शांति मिलनी चाहिए, अंतत: अभिमान का त्याग ही सच्चा त्याग है। - विनोबा भावे | ||
− | + | {{top}} | |
==प्रेमचंद== | ==प्रेमचंद== | ||
[[Image:premchand mkv.jpg|प्रेमचंद|thumb|150px]] | [[Image:premchand mkv.jpg|प्रेमचंद|thumb|150px]] | ||
पंक्ति 216: | पंक्ति 216: | ||
* नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है। - प्रेमचंद | * नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है। - प्रेमचंद | ||
* अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं। - प्रेमचंद | * अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं। - प्रेमचंद | ||
− | + | {{top}} | |
==चाणक्य== | ==चाणक्य== | ||
* मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता। - चाणक्य | * मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता। - चाणक्य | ||
पंक्ति 228: | पंक्ति 228: | ||
* मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है। – चाणक्य | * मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है। – चाणक्य | ||
* कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है। – चाणक्य | * कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है। – चाणक्य | ||
− | * आपदर्थे धनं रक्षेद दारान रक्षेद धनैरपि! आत्मान सतत रक्षेद दारैरपि धनैरपि! (विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करें। धन से स्त्री की रक्षा करें और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें।) - चाणक्य | + | * आपदर्थे धनं रक्षेद दारान रक्षेद धनैरपि! आत्मान सतत रक्षेद दारैरपि धनैरपि! (विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करें। धन से स्त्री की रक्षा करें और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें।) -चाणक्य |
* संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति। — चाणक्य | * संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति। — चाणक्य | ||
* जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल है। बुद्धिहीन के पास बल कहां? - चाणक्य | * जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल है। बुद्धिहीन के पास बल कहां? - चाणक्य | ||
पंक्ति 238: | पंक्ति 238: | ||
* गुणों से ही मानव की पहचान होती है, ऊंचे सिंहासन पर बैठने से नहीं। महल के उच्च शिखर पर बैठने के बावजूद कौवे का गरूड़ होना असंभव है। - चाणक्य | * गुणों से ही मानव की पहचान होती है, ऊंचे सिंहासन पर बैठने से नहीं। महल के उच्च शिखर पर बैठने के बावजूद कौवे का गरूड़ होना असंभव है। - चाणक्य | ||
* जो वर्तमान में कमाया हुआ धन जोड़ता नहीं, उसे भविष्य में पछताना पड़ता है। - चाणक्य | * जो वर्तमान में कमाया हुआ धन जोड़ता नहीं, उसे भविष्य में पछताना पड़ता है। - चाणक्य | ||
− | + | {{top}} | |
==रामधारी सिंह दिनकर== | ==रामधारी सिंह दिनकर== | ||
* कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। - रामधारी सिंह दिनकर | * कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। - रामधारी सिंह दिनकर | ||
पंक्ति 252: | पंक्ति 252: | ||
* ज्ञानं भार: क्रियां बिना। आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है। — हितोपदेश | * ज्ञानं भार: क्रियां बिना। आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है। — हितोपदेश | ||
* मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य को पापरूपिणी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए। - हितोपदेश | * मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य को पापरूपिणी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए। - हितोपदेश | ||
− | + | {{top}} | |
==गौतम बुद्ध/भगवान बुद्ध/बुद्ध== | ==गौतम बुद्ध/भगवान बुद्ध/बुद्ध== | ||
* पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है। ~ गौतम बुद्ध | * पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है। ~ गौतम बुद्ध | ||
पंक्ति 296: | पंक्ति 296: | ||
* कोई शत्रु नहीं, बल्कि मनुष्य का मन ही है जो उसे पथभ्रष्ट करता है। - बुद्ध | * कोई शत्रु नहीं, बल्कि मनुष्य का मन ही है जो उसे पथभ्रष्ट करता है। - बुद्ध | ||
* घृणा, घृणा करने से कम नहीं होती, बल्कि प्रेम से घटती है, यही शाश्वत नियम है। ~ गौतम बुद्ध | * घृणा, घृणा करने से कम नहीं होती, बल्कि प्रेम से घटती है, यही शाश्वत नियम है। ~ गौतम बुद्ध | ||
− | + | {{top}} | |
==रवींद्रनाथ ठाकुर== | ==रवींद्रनाथ ठाकुर== | ||
* कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। - रवींद्रनाथ ठाकुर | * कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। - रवींद्रनाथ ठाकुर | ||
पंक्ति 310: | पंक्ति 310: | ||
* सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर | * सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर | ||
* अगर आप ग़लतियों को रोकने के लिये दरवाज़े बन्द करते हैं तो सत्य भी बाहर ही रह जाएगा। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर | * अगर आप ग़लतियों को रोकने के लिये दरवाज़े बन्द करते हैं तो सत्य भी बाहर ही रह जाएगा। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर | ||
− | |||
* चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। - रवींद्र | * चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। - रवींद्र | ||
* विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं। - रवींद्र | * विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं। - रवींद्र | ||
* जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं। - रवींद्र | * जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं। - रवींद्र | ||
− | + | {{top}} | |
==भर्तृहरि== | ==भर्तृहरि== | ||
* आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। - भर्तृहरि | * आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। - भर्तृहरि | ||
पंक्ति 325: | पंक्ति 324: | ||
* दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि | * दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि | ||
* जब तक शरीर स्वस्थ है, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई तथा बुढ़ापा नहीं आया है, तब तक समझदार को अपने हित साध लेने चाहिए। - भर्तृहरि | * जब तक शरीर स्वस्थ है, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई तथा बुढ़ापा नहीं आया है, तब तक समझदार को अपने हित साध लेने चाहिए। - भर्तृहरि | ||
− | |||
==सत्यसाई बाबा== | ==सत्यसाई बाबा== | ||
* चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। - सत्यसाई बाबा | * चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। - सत्यसाई बाबा | ||
पंक्ति 331: | पंक्ति 329: | ||
* मानव हृदय में घृणा, लोभ और द्वेष वह विषैली घास हैं जो प्रेम रूपी पौधे को नष्ट कर देती है। - सत्यसाईं बाबा | * मानव हृदय में घृणा, लोभ और द्वेष वह विषैली घास हैं जो प्रेम रूपी पौधे को नष्ट कर देती है। - सत्यसाईं बाबा | ||
* मन इच्छाओं की गठरी है, जब तक इच्छाओं को उखाड़कर नहीं फेंका जाएगा, तब तक मन को नष्ट करने की आशा व्यर्थ होगी। - श्री सत्यसाईं | * मन इच्छाओं की गठरी है, जब तक इच्छाओं को उखाड़कर नहीं फेंका जाएगा, तब तक मन को नष्ट करने की आशा व्यर्थ होगी। - श्री सत्यसाईं | ||
− | |||
==रामकृष्ण परमहंस== | ==रामकृष्ण परमहंस== | ||
* जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। - रामकृष्ण परमहंस | * जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। - रामकृष्ण परमहंस | ||
* नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। - रामकृष्ण परमहंस | * नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। - रामकृष्ण परमहंस | ||
− | + | {{top}} | |
==महात्मा गांधी== | ==महात्मा गांधी== | ||
* आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए. मानवता एक सागर की तरह है, यदि सागर की कुछ बूंदे ख़राब हैं तो पूरा सागर गंदा नहीं हो जाता है। - मोहनदास गांधी | * आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए. मानवता एक सागर की तरह है, यदि सागर की कुछ बूंदे ख़राब हैं तो पूरा सागर गंदा नहीं हो जाता है। - मोहनदास गांधी | ||
पंक्ति 347: | पंक्ति 344: | ||
* अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है, वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। - महात्मा गांधी | * अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है, वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। - महात्मा गांधी | ||
* अंधा वह नहीं जिसकी आँख फूट गई है, अंधा वह जो अपने दोष ढंकता है। - महात्मा गांधी | * अंधा वह नहीं जिसकी आँख फूट गई है, अंधा वह जो अपने दोष ढंकता है। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* जैसे छोटा-सा तिनका हवा का रुख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएँ मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। - महात्मा गांधी | * जैसे छोटा-सा तिनका हवा का रुख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएँ मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। - महात्मा गांधी | ||
* जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है, कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। - महात्मा गांधी | * जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है, कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। - महात्मा गांधी | ||
पंक्ति 355: | पंक्ति 351: | ||
* जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है, जिनमें योग्यता है उनका ध्यान उस ओर जाता ही नहीं है। - महात्मा गांधी | * जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है, जिनमें योग्यता है उनका ध्यान उस ओर जाता ही नहीं है। - महात्मा गांधी | ||
* जिसे पुस्तकें पढ़ने का शौक़ है, वह सब जगह सुखी रह सकता है। - महात्मा गांधी | * जिसे पुस्तकें पढ़ने का शौक़ है, वह सब जगह सुखी रह सकता है। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी | * मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी | ||
* महापुरुषों का सर्वश्रेष्ठ सम्मान हम उनका अनुकरण कर के ही कर सकते हैं। - महात्मा गांधी | * महापुरुषों का सर्वश्रेष्ठ सम्मान हम उनका अनुकरण कर के ही कर सकते हैं। - महात्मा गांधी | ||
पंक्ति 362: | पंक्ति 357: | ||
* मन ज्यों-ज्यों हिंसा से दूर हटता है, त्यों-त्यों दुख शांत हो जाता है। - महात्मा बुद्ध | * मन ज्यों-ज्यों हिंसा से दूर हटता है, त्यों-त्यों दुख शांत हो जाता है। - महात्मा बुद्ध | ||
* मौन सर्वोत्तम भाषण है, अगर बोलना, जरूरी हो तो भी कम से कम बोलो, एक शब्द से काम चले तो दो नहीं। - महात्मा गांधी | * मौन सर्वोत्तम भाषण है, अगर बोलना, जरूरी हो तो भी कम से कम बोलो, एक शब्द से काम चले तो दो नहीं। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* सत्याग्रह बल प्रयोग के विपरीत होता है, हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है। - महात्मा गांधी | * सत्याग्रह बल प्रयोग के विपरीत होता है, हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है। - महात्मा गांधी | ||
* सारा हिन्दुस्तान ग़ुलामी में घिरा हुआ नहीं है। जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा पाई है और जो उसके पाश में फँस गए हैं, वे ही ग़ुलामी में घिरे हुए हैं। - महात्मा गांधी | * सारा हिन्दुस्तान ग़ुलामी में घिरा हुआ नहीं है। जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा पाई है और जो उसके पाश में फँस गए हैं, वे ही ग़ुलामी में घिरे हुए हैं। - महात्मा गांधी | ||
* सुन्दर दिखने के लिये भड़कीले, कपड़े पहनने की बजाय अपने, गुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी | * सुन्दर दिखने के लिये भड़कीले, कपड़े पहनने की बजाय अपने, गुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके विचारों का समूह होता है; जो वह सोचता है, वैसा वह बन जाता है। - महात्मा गांधी | * किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके विचारों का समूह होता है; जो वह सोचता है, वैसा वह बन जाता है। - महात्मा गांधी | ||
* क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है। – महात्मा गांधी | * क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है। – महात्मा गांधी | ||
* काहिली और मन की पवित्रता, एक साथ नहीं रह सकतीं। - महात्मा गांधी | * काहिली और मन की पवित्रता, एक साथ नहीं रह सकतीं। - महात्मा गांधी | ||
* कर्म को सचेत होकर और सोच समझकर विवेक द्वारा करना चाहिए अन्यथा हानि होती है। - महात्मा गांधी | * कर्म को सचेत होकर और सोच समझकर विवेक द्वारा करना चाहिए अन्यथा हानि होती है। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* वही राष्ट्र सच्चा लोकतंत्रात्मक है जो अपने कार्यों को बिना हस्तक्षेप के सुचारु और सक्रिय रूप से चलाता है। - महात्मा गांधी | * वही राष्ट्र सच्चा लोकतंत्रात्मक है जो अपने कार्यों को बिना हस्तक्षेप के सुचारु और सक्रिय रूप से चलाता है। - महात्मा गांधी | ||
* व्यक्ति अपने विचारों का ही परिणाम है - जैसा वह सोचता है, वैसा वह बनता है। - गांधी | * व्यक्ति अपने विचारों का ही परिणाम है - जैसा वह सोचता है, वैसा वह बनता है। - गांधी | ||
* विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते हैं, जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता हो। - महात्मा गांधी | * विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते हैं, जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता हो। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* हमें वह परिवर्तन खुद बनना चाहिये जिसे हम संसार मे देखना चाहते हैं। — महात्मा गाँधी | * हमें वह परिवर्तन खुद बनना चाहिये जिसे हम संसार मे देखना चाहते हैं। — महात्मा गाँधी | ||
* हंसी मन की गांठे बड़ी आसानी से खोल देती है मेरे मन की भी और तुम्हारे मन की भी। - महात्मा गांधी | * हंसी मन की गांठे बड़ी आसानी से खोल देती है मेरे मन की भी और तुम्हारे मन की भी। - महात्मा गांधी | ||
* हृदय की सच्ची प्रार्थना से ही हमें सच्चे कर्तव्य का पता चलता है, आखिर में तो कर्तव्य करना ही प्रार्थना बन जाता है। - महात्मा गांधी | * हृदय की सच्ची प्रार्थना से ही हमें सच्चे कर्तव्य का पता चलता है, आखिर में तो कर्तव्य करना ही प्रार्थना बन जाता है। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है। — महात्मा गाँधी | * गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है। — महात्मा गाँधी | ||
* गाली सह लेने के असली मायने हैं गाली देने वाले के वश मे न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना. यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। - महात्मा गांधी | * गाली सह लेने के असली मायने हैं गाली देने वाले के वश मे न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना. यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। - महात्मा गांधी | ||
* ग्राहक हमारे लिए एक विशिष्ट अतिथि है। वह हम पर निर्भर नहीं है। हम ग्राहक पर निर्भर हैं. वह हमारे कार्य में व्यवधान नहीं है - बल्कि वह इसका उद्देश्य है। हम ग्राहक की सेवा कर कोई उपकार नहीं कर रहे। वह सेवा का मौक़ा देकर हम पर उपकार कर रहा है। - महात्मा गांधी | * ग्राहक हमारे लिए एक विशिष्ट अतिथि है। वह हम पर निर्भर नहीं है। हम ग्राहक पर निर्भर हैं. वह हमारे कार्य में व्यवधान नहीं है - बल्कि वह इसका उद्देश्य है। हम ग्राहक की सेवा कर कोई उपकार नहीं कर रहे। वह सेवा का मौक़ा देकर हम पर उपकार कर रहा है। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* पाप से नफरत करो, पापी से प्यार। - महात्मा गान्धी (1869-1948) | * पाप से नफरत करो, पापी से प्यार। - महात्मा गान्धी (1869-1948) | ||
* प्रेम करने वाला व्यक्ति कभी भी उद्दंड, अत्याचारी और स्वार्थी नहीं होता। - महात्मा गांधी | * प्रेम करने वाला व्यक्ति कभी भी उद्दंड, अत्याचारी और स्वार्थी नहीं होता। - महात्मा गांधी | ||
* पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती, बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी | * पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती, बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी | ||
* पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी | * पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* शरीर-बल से प्राप्त सत्ता मानव देह की, तरह क्षणभंगुर रहेगी, जबकि आत्मबल से प्राप्त सत्ता अजर-अमर। - महात्मा गांधी | * शरीर-बल से प्राप्त सत्ता मानव देह की, तरह क्षणभंगुर रहेगी, जबकि आत्मबल से प्राप्त सत्ता अजर-अमर। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए। - महात्मा गांधी | * चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी | * दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* इच्छा से दुख आता है, इच्छा से भय, आता है, जो इच्छाओं से मुक्त है वह न दुख जानता है न भय। - महात्मा गांधी | * इच्छा से दुख आता है, इच्छा से भय, आता है, जो इच्छाओं से मुक्त है वह न दुख जानता है न भय। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* ठोकर लगती है और दर्द होता है तभी मनुष्य सीख पाता है। – महात्मा गांधी | * ठोकर लगती है और दर्द होता है तभी मनुष्य सीख पाता है। – महात्मा गांधी | ||
− | |||
* भूल करने में पाप तो है ही, परन्तु उसे छिपाने में उससे भी बड़ा पाप है। - महात्मा गांधी | * भूल करने में पाप तो है ही, परन्तु उसे छिपाने में उससे भी बड़ा पाप है। - महात्मा गांधी | ||
− | |||
* नम्रता का ढोंग नहीं चलता, न सादगी का। - महात्मा गांधी | * नम्रता का ढोंग नहीं चलता, न सादगी का। - महात्मा गांधी | ||
− | + | {{top}} | |
==स्वामी विवेकानंद== | ==स्वामी विवेकानंद== | ||
* सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। - स्वामी विवेकानंद | * सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। - स्वामी विवेकानंद | ||
पंक्ति 436: | पंक्ति 418: | ||
* हर अच्छे, श्रेष्ठ और महान कार्य में तीन चरण होते हैं, प्रथम उसका उपहास उड़ाया जाता है, दूसरा चरण उसे समाप्त या नष्ट करने की हद तक विरोध किया जाता है और तीसरा चरण है स्वीकृति और मान्यता, जो इन तीनों चरणों में बिना विचलित हुये अडिग रहता है वह श्रेष्ठ बन जाता है और उसका कार्य सर्व स्वीकृत होकर अनुकरणीय बन जाता है। – स्वामी विवेकानन्द | * हर अच्छे, श्रेष्ठ और महान कार्य में तीन चरण होते हैं, प्रथम उसका उपहास उड़ाया जाता है, दूसरा चरण उसे समाप्त या नष्ट करने की हद तक विरोध किया जाता है और तीसरा चरण है स्वीकृति और मान्यता, जो इन तीनों चरणों में बिना विचलित हुये अडिग रहता है वह श्रेष्ठ बन जाता है और उसका कार्य सर्व स्वीकृत होकर अनुकरणीय बन जाता है। – स्वामी विवेकानन्द | ||
* जागें, उठें और न रुकें जब तक लक्ष्य तक न पहुंच जाएं। - स्वामी विवेकानंद | * जागें, उठें और न रुकें जब तक लक्ष्य तक न पहुंच जाएं। - स्वामी विवेकानंद | ||
− | + | {{top}} | |
==सुभाष चंद्र बोस== | ==सुभाष चंद्र बोस== | ||
* जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डाँवाँडोल स्थिति में रहना। - सुभाष चंद्र बोस | * जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डाँवाँडोल स्थिति में रहना। - सुभाष चंद्र बोस | ||
पंक्ति 442: | पंक्ति 424: | ||
* तुम मुझे ख़ून दो, मै तुन्हे आज़ादी दूँगा। - नेता जी सुभाषचंद्र बोस | * तुम मुझे ख़ून दो, मै तुन्हे आज़ादी दूँगा। - नेता जी सुभाषचंद्र बोस | ||
* जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है वह व्यक्ति कर्म और चिंतन द्वारा कभी महान नहीं बन सकता। - सुभाष चन्द्र बोस | * जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है वह व्यक्ति कर्म और चिंतन द्वारा कभी महान नहीं बन सकता। - सुभाष चन्द्र बोस | ||
− | |||
==जयशंकर प्रसाद== | ==जयशंकर प्रसाद== | ||
[[Image:jaishankar_prasad_mkv.jpg|जयशंकर प्रसाद|thumb|150px]] | [[Image:jaishankar_prasad_mkv.jpg|जयशंकर प्रसाद|thumb|150px]] | ||
पंक्ति 453: | पंक्ति 434: | ||
* दरिद्रता सब पापों की जननी है, तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है। - जयशंकर प्रसाद | * दरिद्रता सब पापों की जननी है, तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है। - जयशंकर प्रसाद | ||
* मनुष्यता का एक पक्ष वह भी है, जहां वर्ण, धर्म और देश को भूलकर मनुष्य, मनुष्य के लिए प्यार करता हैं। - जयशंकर प्रसाद | * मनुष्यता का एक पक्ष वह भी है, जहां वर्ण, धर्म और देश को भूलकर मनुष्य, मनुष्य के लिए प्यार करता हैं। - जयशंकर प्रसाद | ||
− | + | {{top}} | |
==कहावत== | ==कहावत== | ||
* अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। - कहावत | * अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। - कहावत | ||
पंक्ति 467: | पंक्ति 448: | ||
* क्रोध की अति तो कटार से भी विनाशकारी है। ~ भारत की कहावत | * क्रोध की अति तो कटार से भी विनाशकारी है। ~ भारत की कहावत | ||
* उच्च खेती, मध्यम व्यापार और नीच नौकरी। ~ भारत की कहावत | * उच्च खेती, मध्यम व्यापार और नीच नौकरी। ~ भारत की कहावत | ||
− | + | {{top}} | |
==वेदव्यास== | ==वेदव्यास== | ||
* जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष प्राप्त नहीं होते। - वेदव्यास | * जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष प्राप्त नहीं होते। - वेदव्यास | ||
पंक्ति 481: | पंक्ति 462: | ||
* जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो, मै इसी को सत्य कहता हूँ। — वेदव्यास | * जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो, मै इसी को सत्य कहता हूँ। — वेदव्यास | ||
* क्षमा असमर्थ मानवी का लक्षण और असमर्थों का आभूषण है। - वेदव्यास | * क्षमा असमर्थ मानवी का लक्षण और असमर्थों का आभूषण है। - वेदव्यास | ||
− | + | {{top}} | |
==सुदर्शन== | ==सुदर्शन== | ||
* मुहब्बत त्याग की माँ है। वह जहाँ जाती है अपने बेटे को साथ ले जाती है। - सुदर्शन | * मुहब्बत त्याग की माँ है। वह जहाँ जाती है अपने बेटे को साथ ले जाती है। - सुदर्शन | ||
पंक्ति 491: | पंक्ति 472: | ||
* कीर्ति का नशा शराब के नशे से भी तेज़ है। शराब छोड़ना आसान है, कीर्ति छोड़ना आसान नहीं। - सुदर्शन | * कीर्ति का नशा शराब के नशे से भी तेज़ है। शराब छोड़ना आसान है, कीर्ति छोड़ना आसान नहीं। - सुदर्शन | ||
* करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। - सुदर्शन | * करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। - सुदर्शन | ||
− | + | {{top}} | |
==कालिदास== | ==कालिदास== | ||
* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। - कालिदास | * पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। - कालिदास | ||
पंक्ति 503: | पंक्ति 484: | ||
* दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। - कालिदास | * दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। - कालिदास | ||
* अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा एक दिन उसे डुबा दे्गा। - कालिदास | * अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा एक दिन उसे डुबा दे्गा। - कालिदास | ||
− | + | {{top}} | |
==गोस्वामी तुलसीदास== | ==गोस्वामी तुलसीदास== | ||
* फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। - तुलसीदास | * फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। - तुलसीदास | ||
पंक्ति 513: | पंक्ति 494: | ||
* वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी, छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास | * वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी, छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास | ||
* अवसर आने पर मनुष्य यदि कौड़ी (दाम) देने में चूक जाये जो तो फिर लाख रुपया देने से क्या होता है ? द्वितीया के चंद्रमा को न देखा जाए फिर पक्ष भर चंद्रमा उदय रहे, उससे क्या होगा? - तुलसीदास | * अवसर आने पर मनुष्य यदि कौड़ी (दाम) देने में चूक जाये जो तो फिर लाख रुपया देने से क्या होता है ? द्वितीया के चंद्रमा को न देखा जाए फिर पक्ष भर चंद्रमा उदय रहे, उससे क्या होगा? - तुलसीदास | ||
− | |||
==रहीम== | ==रहीम== | ||
* उत्तम पुरुषों की संपत्ति का मुख्य प्रयोजन यही है कि औरों की विपत्ति का नाश हो। - रहीम | * उत्तम पुरुषों की संपत्ति का मुख्य प्रयोजन यही है कि औरों की विपत्ति का नाश हो। - रहीम | ||
* थोड़े दिन रहने वाली विपत्ति अच्छी है क्यों कि उसी से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। - रहीम | * थोड़े दिन रहने वाली विपत्ति अच्छी है क्यों कि उसी से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। - रहीम | ||
− | |||
==कबीर== | ==कबीर== | ||
* साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। - कबीर | * साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। - कबीर | ||
पंक्ति 529: | पंक्ति 508: | ||
* खेत और बीज उत्तम हो तो भी, किसानों के बोने में मुट्ठी के अंतर से बीज कहीं ज्यादा कहीं कम पड़ते हैं, इसी प्रकार शिष्य उत्तम होने पर भी गुरुओं की भिन्न-भिन्न शैली होने पर भी शिष्यों को कम ज्ञान हुआ तो इसमें शिष्यों का क्या दोष। - संत कबीर | * खेत और बीज उत्तम हो तो भी, किसानों के बोने में मुट्ठी के अंतर से बीज कहीं ज्यादा कहीं कम पड़ते हैं, इसी प्रकार शिष्य उत्तम होने पर भी गुरुओं की भिन्न-भिन्न शैली होने पर भी शिष्यों को कम ज्ञान हुआ तो इसमें शिष्यों का क्या दोष। - संत कबीर | ||
* जब आपका जन्म हुआ तो आप रोए और जग हंसा था. अपने जीवन को इस प्रकार से जीएं कि जब आप की मृत्यु हो तो दुनिया रोए और आप हंसें। - कबीर | * जब आपका जन्म हुआ तो आप रोए और जग हंसा था. अपने जीवन को इस प्रकार से जीएं कि जब आप की मृत्यु हो तो दुनिया रोए और आप हंसें। - कबीर | ||
− | + | {{top}} | |
==पं. रामप्रताप त्रिपाठी== | ==पं. रामप्रताप त्रिपाठी== | ||
* आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी | * आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी | ||
* जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी | * जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी | ||
* मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी | * मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी | ||
− | |||
==कौटिल्य== | ==कौटिल्य== | ||
* ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। - कौटिल्य | * ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। - कौटिल्य | ||
* सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं। - कौटिल्य अर्थशास्त्र | * सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं। - कौटिल्य अर्थशास्त्र | ||
− | |||
==संत तिरुवल्लुवर== | ==संत तिरुवल्लुवर== | ||
* नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिरुवल्लुवर | * नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिरुवल्लुवर | ||
पंक्ति 547: | पंक्ति 524: | ||
* आलस्य में दरिद्रता बसती है, लेकिन जो, व्यक्ति आलस्य नहीं करते उनकी मेहनत में लक्ष्मी का निवास होता है। - तिरूवल्लुर | * आलस्य में दरिद्रता बसती है, लेकिन जो, व्यक्ति आलस्य नहीं करते उनकी मेहनत में लक्ष्मी का निवास होता है। - तिरूवल्लुर | ||
* बड़प्पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। - तिरूवल्लुवर | * बड़प्पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। - तिरूवल्लुवर | ||
− | + | {{top}} | |
==माघ== | ==माघ== | ||
* मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और समुद्र के समान गंभीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है। - माघ | * मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और समुद्र के समान गंभीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है। - माघ | ||
* कुशल पुरुष की वाणी प्रतिकूल बोलनेवाले प्रबुद्ध वक्ताओं को मूक बना देती है और पक्ष में बोलने वाले मंदमति को निपुण। - माघ | * कुशल पुरुष की वाणी प्रतिकूल बोलनेवाले प्रबुद्ध वक्ताओं को मूक बना देती है और पक्ष में बोलने वाले मंदमति को निपुण। - माघ | ||
* जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता। - माघ्र | * जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता। - माघ्र | ||
− | |||
==आचार्य श्रीराम शर्मा== | ==आचार्य श्रीराम शर्मा== | ||
[[Image:shriram sharma.jpg|आचार्य श्रीराम शर्मा|thumb|150px]] | [[Image:shriram sharma.jpg|आचार्य श्रीराम शर्मा|thumb|150px]] | ||
पंक्ति 579: | पंक्ति 555: | ||
* जब तक व्यक्ति असत्य को ही सत्य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है। - पं. श्रीराम शर्मा | * जब तक व्यक्ति असत्य को ही सत्य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है। - पं. श्रीराम शर्मा | ||
* अवसर तो सभी को जिन्दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ ही कर पाते हैं। - श्रीराम शर्मा | * अवसर तो सभी को जिन्दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ ही कर पाते हैं। - श्रीराम शर्मा | ||
− | + | {{top}} | |
==आचार्य रामचंद्र शुक्ल== | ==आचार्य रामचंद्र शुक्ल== | ||
* बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। ~ आचार्य रामचंद्र शुक्ल | * बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। ~ आचार्य रामचंद्र शुक्ल | ||
* चितवन से जो रुखाई प्रकट की जाती है, वह भी क्रोध से भरे हुए कटु वचनों से कम नहीं होती। ~ आचार्य रामचंद्र शुक्ल | * चितवन से जो रुखाई प्रकट की जाती है, वह भी क्रोध से भरे हुए कटु वचनों से कम नहीं होती। ~ आचार्य रामचंद्र शुक्ल | ||
* दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। ~ आचार्य रामचंद्र शुक्ल | * दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। ~ आचार्य रामचंद्र शुक्ल | ||
− | |||
==डॉ. रामकुमार वर्मा== | ==डॉ. रामकुमार वर्मा== | ||
* दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा | * दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा | ||
* सौंदर्य और विलास के आवरण में महत्त्वाकांक्षा उसी प्रकार पोषित होती है जैसे म्यान में तलवार। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा | * सौंदर्य और विलास के आवरण में महत्त्वाकांक्षा उसी प्रकार पोषित होती है जैसे म्यान में तलवार। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा | ||
* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा | * कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा | ||
− | + | {{top}} | |
==भगवान महावीर== | ==भगवान महावीर== | ||
* जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गई विद्या फलदायी नहीं होती। - भगवान महावीर | * जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गई विद्या फलदायी नहीं होती। - भगवान महावीर | ||
पंक्ति 597: | पंक्ति 572: | ||
* वह पुरूष धन्य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्यलक्ष्मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती है। - भगवान महावीर | * वह पुरूष धन्य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्यलक्ष्मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती है। - भगवान महावीर | ||
* दूसरों को दण्ड देना सहज है, किन्तु उन्हें क्षमा करना और उनकी भूल सुधारना अत्यधिक कठिन कार्य है। – भगवान महावीर स्वामी | * दूसरों को दण्ड देना सहज है, किन्तु उन्हें क्षमा करना और उनकी भूल सुधारना अत्यधिक कठिन कार्य है। – भगवान महावीर स्वामी | ||
− | |||
==लोकमान्य तिलक== | ==लोकमान्य तिलक== | ||
* कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। - लोकमान्य तिलक | * कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। - लोकमान्य तिलक | ||
पंक्ति 613: | पंक्ति 587: | ||
* जीवन ताश के खेल के समान है, आप को जो पत्ते मिलते हैं वह नियति है, आप कैसे खेलते हैं वह आपकी स्वेच्छा है। - पं. जवाहर लाल नेहरू | * जीवन ताश के खेल के समान है, आप को जो पत्ते मिलते हैं वह नियति है, आप कैसे खेलते हैं वह आपकी स्वेच्छा है। - पं. जवाहर लाल नेहरू | ||
* स्वयं कर्म, जब तक मुझे यह भरोसा होता है कि यह सही कर्म है, मुझे संतुष्टि देता है। - जवाहर लाल नेहरु | * स्वयं कर्म, जब तक मुझे यह भरोसा होता है कि यह सही कर्म है, मुझे संतुष्टि देता है। - जवाहर लाल नेहरु | ||
− | |||
==हरिऔध== | ==हरिऔध== | ||
* प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध | * प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध | ||
* जहाँ चक्रवर्ती सम्राट की तलवार कुंठित हो जाती है, वहाँ महापुरुष का एक मधुर वचन ही काम कर देता है। - हरिऔध | * जहाँ चक्रवर्ती सम्राट की तलवार कुंठित हो जाती है, वहाँ महापुरुष का एक मधुर वचन ही काम कर देता है। - हरिऔध | ||
* अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। - हरिऔध | * अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। - हरिऔध | ||
− | |||
==मधूलिका गुप्ता== | ==मधूलिका गुप्ता== | ||
* ऐ अमलतास किसी को भी पता न चला तेरे क़द का अंदाज जो आसमान था पर सिर झुका के रहता था, तेज़ धूप में भी मुसकुरा के रहता था। ~ मधूलिका गुप्ता | * ऐ अमलतास किसी को भी पता न चला तेरे क़द का अंदाज जो आसमान था पर सिर झुका के रहता था, तेज़ धूप में भी मुसकुरा के रहता था। ~ मधूलिका गुप्ता | ||
पंक्ति 624: | पंक्ति 596: | ||
* समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है, लेकिन अच्छी छत नहीं। ~ मधूलिका गुप्ता | * समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है, लेकिन अच्छी छत नहीं। ~ मधूलिका गुप्ता | ||
* अपने दोस्त के लिए जान दे देना इतना मुश्किल नहीं है जितना मुश्किल ऐसे दोस्त को ढूँढ़ना जिस पर जान दी जा सके। ~ मधूलिका गुप्ता | * अपने दोस्त के लिए जान दे देना इतना मुश्किल नहीं है जितना मुश्किल ऐसे दोस्त को ढूँढ़ना जिस पर जान दी जा सके। ~ मधूलिका गुप्ता | ||
− | + | {{top}} | |
==वाल्मीकि== | ==वाल्मीकि== | ||
* पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं। - वाल्मीकि | * पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं। - वाल्मीकि | ||
पंक्ति 649: | पंक्ति 621: | ||
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद | * अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद | ||
* यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें तो आप खुद सच्चे बनें और अन्य लोगों से भी सच्चा व्यवहार करें। - महर्षि अरविन्द | * यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें तो आप खुद सच्चे बनें और अन्य लोगों से भी सच्चा व्यवहार करें। - महर्षि अरविन्द | ||
− | + | {{top}} | |
==सरदार पटेल== | ==सरदार पटेल== | ||
* सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक ज़ुल्मों के ख़िलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध। - सरदार पटेल | * सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक ज़ुल्मों के ख़िलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध। - सरदार पटेल | ||
पंक्ति 656: | पंक्ति 628: | ||
* यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - सरदार पटेल | * यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - सरदार पटेल | ||
* शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम, दे सकता है। - सरदार पटेल | * शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम, दे सकता है। - सरदार पटेल | ||
− | |||
==डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन== | ==डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन== | ||
* मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना चमत्कार है। - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | * मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना चमत्कार है। - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | ||
पंक्ति 663: | पंक्ति 634: | ||
* सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो? - डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | * सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो? - डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | ||
* धर्म, व्यक्ति एवं समाज, दोनों के लिये आवश्यक है। — डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | * धर्म, व्यक्ति एवं समाज, दोनों के लिये आवश्यक है। — डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | ||
− | |||
==मदनमोहन मालवीय== | ==मदनमोहन मालवीय== | ||
* अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।" - मदनमोहन मालवीय | * अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।" - मदनमोहन मालवीय | ||
* रामायण समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है। - मदनमोहन मालवीय | * रामायण समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है। - मदनमोहन मालवीय | ||
− | + | {{top}} | |
==पंचतंत्र== | ==पंचतंत्र== | ||
* कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य को दास नहीं बनाता, केवल धन का लालच ही मनुष्य को दास बनाता है। - पंचतंत्र | * कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य को दास नहीं बनाता, केवल धन का लालच ही मनुष्य को दास बनाता है। - पंचतंत्र | ||
पंक्ति 676: | पंक्ति 646: | ||
* जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है। (बुद्धिः यस्य बलं तस्य) — पंचतंत्र | * जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है। (बुद्धिः यस्य बलं तस्य) — पंचतंत्र | ||
* मौनं सर्वार्थसाधनम्। — पंचतन्त्र (मौन सारे काम बना देता है) | * मौनं सर्वार्थसाधनम्। — पंचतन्त्र (मौन सारे काम बना देता है) | ||
− | |||
==ऋग्वेद== | ==ऋग्वेद== | ||
* मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें। - ऋग्वेद | * मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें। - ऋग्वेद | ||
पंक्ति 682: | पंक्ति 651: | ||
* मानव जिस लक्ष्य में मन लगा देता है, उसे वह श्रम से हासिल कर सकता है। - ऋग्वेद | * मानव जिस लक्ष्य में मन लगा देता है, उसे वह श्रम से हासिल कर सकता है। - ऋग्वेद | ||
* हमारे भीतर कंजूसी न हो। - ऋग्वेद | * हमारे भीतर कंजूसी न हो। - ऋग्वेद | ||
− | + | {{top}} | |
==अमिताभ बच्चन== | ==अमिताभ बच्चन== | ||
* दूसरों की ग़लतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि खुद इतनी ग़लतियाँ कर सकें। - अमिताभ बच्चन | * दूसरों की ग़लतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि खुद इतनी ग़लतियाँ कर सकें। - अमिताभ बच्चन | ||
* अगर भगवान से माँग रहे हो तो हल्का बोझ मत माँगो, मज़बूत कंधे माँगो। - अमिताभ बच्चन | * अगर भगवान से माँग रहे हो तो हल्का बोझ मत माँगो, मज़बूत कंधे माँगो। - अमिताभ बच्चन | ||
− | |||
==विदुर== | ==विदुर== | ||
* धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। ~ विदुर | * धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। ~ विदुर | ||
* कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है। ~ विदुर | * कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है। ~ विदुर | ||
− | |||
==शरतचंद्र== | ==शरतचंद्र== | ||
* ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। - शरतचंद्र | * ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। - शरतचंद्र | ||
* संसार में ऐसे अपराध कम ही हैं जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें। - शरतचंद्र | * संसार में ऐसे अपराध कम ही हैं जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें। - शरतचंद्र | ||
− | |||
==अथर्ववेद== | ==अथर्ववेद== | ||
* जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है। ~ अथर्ववेद | * जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है। ~ अथर्ववेद | ||
* पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। ~ अथर्ववेद | * पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। ~ अथर्ववेद | ||
* जो स्वयं संयमित व नियंत्रित है उसे, व्यर्थ में और अधिक नियंत्रित नहीं करना चाहिये, जो अभी अनियंत्रित है, उसी को नियंत्रित किया जाना चाहिए। ~ अथर्ववेद | * जो स्वयं संयमित व नियंत्रित है उसे, व्यर्थ में और अधिक नियंत्रित नहीं करना चाहिये, जो अभी अनियंत्रित है, उसी को नियंत्रित किया जाना चाहिए। ~ अथर्ववेद | ||
− | + | {{top}} | |
==रामनरेश त्रिपाठी== | ==रामनरेश त्रिपाठी== | ||
* शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार अपकीर्ति का कारण बनता है और पुरुषार्थ यश का। ~ रामनरेश त्रिपाठी | * शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार अपकीर्ति का कारण बनता है और पुरुषार्थ यश का। ~ रामनरेश त्रिपाठी | ||
* यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है। जो केवल बाहरी सौंदर्य को देखता है वह कवि है, पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का वर्णन करता है वह महाकवि है। ~ रामनरेश त्रिपाठी | * यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है। जो केवल बाहरी सौंदर्य को देखता है वह कवि है, पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का वर्णन करता है वह महाकवि है। ~ रामनरेश त्रिपाठी | ||
− | |||
==अमृतलाल नागर== | ==अमृतलाल नागर== | ||
* श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ हैं कि जो एक बार घोल कर पी लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता है। ~ अमृतलाल नागर | * श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ हैं कि जो एक बार घोल कर पी लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता है। ~ अमृतलाल नागर | ||
* जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं। ~ अमृतलाल नागर | * जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं। ~ अमृतलाल नागर | ||
− | |||
==कमलापति त्रिपाठी== | ==कमलापति त्रिपाठी== | ||
* साध्य कितने भी पवित्र क्यों न हों, साधन की पवित्रता के बिना उनकी उपलब्धि संभव नहीं। - कमलापति त्रिपाठी | * साध्य कितने भी पवित्र क्यों न हों, साधन की पवित्रता के बिना उनकी उपलब्धि संभव नहीं। - कमलापति त्रिपाठी | ||
* अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है। - कमलापति त्रिपाठी | * अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है। - कमलापति त्रिपाठी | ||
− | |||
==डॉ. मनोज चतुर्वेदी== | ==डॉ. मनोज चतुर्वेदी== | ||
* मित्र के मिलने पर पूर्ण सम्मान सहित आदर करो, मित्र के पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद अवश्य करो। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी | * मित्र के मिलने पर पूर्ण सम्मान सहित आदर करो, मित्र के पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद अवश्य करो। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी | ||
* डूबते को बचाना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी | * डूबते को बचाना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी | ||
− | |||
==हरिशंकर परसाई== | ==हरिशंकर परसाई== | ||
* वसंत अपने आप नहीं आता, उसे लाना पड़ता है। सहज आने वाला तो पतझड़ होता है, वसंत नहीं। ~ हरिशंकर परसाई | * वसंत अपने आप नहीं आता, उसे लाना पड़ता है। सहज आने वाला तो पतझड़ होता है, वसंत नहीं। ~ हरिशंकर परसाई | ||
* मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। ~ हरिशंकर परसाई | * मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। ~ हरिशंकर परसाई | ||
− | + | {{top}} | |
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
==गुरु नानक== | ==गुरु नानक== | ||
* दूब की तरह छोटे बनकर रहो। जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है। - गुरु नानक | * दूब की तरह छोटे बनकर रहो। जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है। - गुरु नानक | ||
* कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। - गुरु नानक | * कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। - गुरु नानक | ||
* शब्द धरती, शब्द आकाश, शब्द शब्द भया परगास! सगली शब्द के पाछे, नानक शब्द घटे घाट आछे!! - गुरु नानक | * शब्द धरती, शब्द आकाश, शब्द शब्द भया परगास! सगली शब्द के पाछे, नानक शब्द घटे घाट आछे!! - गुरु नानक | ||
− | |||
==विष्णु प्रभाकर== | ==विष्णु प्रभाकर== | ||
* ददीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य दीपक का नहीं उसकी लौ का होता है जिसे कोई अँधेरा नहीं बुझा सकता। - विष्णु प्रभाकर | * ददीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य दीपक का नहीं उसकी लौ का होता है जिसे कोई अँधेरा नहीं बुझा सकता। - विष्णु प्रभाकर | ||
* दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य उसका नहीं होता, मूल्य होता है उसकी लौ का जिसे कोई अँधेरा, अँधेरे के तरकश का कोई तीर ऐसा नहीं जो बुझा सके। - विष्णु प्रभाकर | * दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य उसका नहीं होता, मूल्य होता है उसकी लौ का जिसे कोई अँधेरा, अँधेरे के तरकश का कोई तीर ऐसा नहीं जो बुझा सके। - विष्णु प्रभाकर | ||
− | |||
==संतोष गोयल== | ==संतोष गोयल== | ||
* हर चीज़ की कीमत व्यक्ति की जेब और ज़रूरत के अनुसार होती है और शायद उसी के अनुसार वह अच्छी या बुरी होती है। - संतोष गोयल | * हर चीज़ की कीमत व्यक्ति की जेब और ज़रूरत के अनुसार होती है और शायद उसी के अनुसार वह अच्छी या बुरी होती है। - संतोष गोयल | ||
* अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीक़े से इस्तेमाल कितने कर पाते हैं? - संतोष गोयल | * अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीक़े से इस्तेमाल कितने कर पाते हैं? - संतोष गोयल | ||
− | + | {{top}} | |
==स्वामी रामदेव== | ==स्वामी रामदेव== | ||
* बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी ग़लत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है। - स्वामी रामदेव | * बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी ग़लत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है। - स्वामी रामदेव | ||
* स्वदेशी उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, ज्ञान, तकनीक, खानपान, भाषा, वेशभूषा एवं स्वाभिमान के बिना विश्व का कोई भी देश महान नहीं बन सकता। - स्वामी रामदेव | * स्वदेशी उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, ज्ञान, तकनीक, खानपान, भाषा, वेशभूषा एवं स्वाभिमान के बिना विश्व का कोई भी देश महान नहीं बन सकता। - स्वामी रामदेव | ||
* भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी ज़िम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। - स्वामी रामदेव | * भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी ज़िम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। - स्वामी रामदेव | ||
− | |||
==स्वामी शिवानंद== | ==स्वामी शिवानंद== | ||
* मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है, शुद्ध बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से महान है, आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी नहीं है। - स्वामी शिवानंद | * मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है, शुद्ध बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से महान है, आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी नहीं है। - स्वामी शिवानंद | ||
पंक्ति 756: | पंक्ति 709: | ||
* तुम स्वतंत्र होना चाहते तो हो पर स्वतंत्रता देना नहीं चाहते! - रश्मि प्रभा | * तुम स्वतंत्र होना चाहते तो हो पर स्वतंत्रता देना नहीं चाहते! - रश्मि प्रभा | ||
* कोई तुम्हारे काँधे पर हाथ रखता है तो तुम्हारा हौसला बढ़ता है पर जब किसी का हाथ काँधे पर नहीं होता तुम अपनी शक्ति खुद बन जाते हो और वही शक्ति ईश्वर है! - रश्मि प्रभा | * कोई तुम्हारे काँधे पर हाथ रखता है तो तुम्हारा हौसला बढ़ता है पर जब किसी का हाथ काँधे पर नहीं होता तुम अपनी शक्ति खुद बन जाते हो और वही शक्ति ईश्वर है! - रश्मि प्रभा | ||
− | + | {{top}} | |
==डॉ. शंकर दयाल शर्मा== | ==डॉ. शंकर दयाल शर्मा== | ||
* सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। - डॉ. शंकरदयाल शर्मा | * सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। - डॉ. शंकरदयाल शर्मा | ||
* धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। - डॉ. शंकर दयाल शर्मा | * धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। - डॉ. शंकर दयाल शर्मा | ||
− | + | {{top}} | |
==महाभारत== | ==महाभारत== | ||
* धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। - महाभारत | * धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। - महाभारत | ||
पंक्ति 767: | पंक्ति 720: | ||
* जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। - महाभारत | * जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। - महाभारत | ||
* लक्ष्मी शुभ कार्य से उत्पन्न होती है, चतुरता से बढ़ती है, अत्यन्त निपुणता से, जड़े जमाती है और संयम से स्थिर रहती है। - महाभारत | * लक्ष्मी शुभ कार्य से उत्पन्न होती है, चतुरता से बढ़ती है, अत्यन्त निपुणता से, जड़े जमाती है और संयम से स्थिर रहती है। - महाभारत | ||
− | |||
==गीता== | ==गीता== | ||
* फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। - गीता | * फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। - गीता | ||
पंक्ति 774: | पंक्ति 726: | ||
* हम अपने कार्यों के परिणाम का निर्णय करने वाले कौन हैं? यह तो भगवान का कार्यक्षेत्र है। हम तो एकमात्र कर्म करने के लिए उत्तरदायी हैं। - गीता | * हम अपने कार्यों के परिणाम का निर्णय करने वाले कौन हैं? यह तो भगवान का कार्यक्षेत्र है। हम तो एकमात्र कर्म करने के लिए उत्तरदायी हैं। - गीता | ||
* हम प्रयास के लिए उत्तरदायी हैं, न कि परिणाम के लिए। - गीता | * हम प्रयास के लिए उत्तरदायी हैं, न कि परिणाम के लिए। - गीता | ||
− | + | {{top}} | |
==स्वामी रामतीर्थ== | ==स्वामी रामतीर्थ== | ||
* जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें ग़ुलाम बनाती हैं। - स्वामी रामतीर्थ | * जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें ग़ुलाम बनाती हैं। - स्वामी रामतीर्थ | ||
पंक्ति 788: | पंक्ति 740: | ||
* व्यक्ति को हानि, पीड़ा और चिंताएं, उसकी किसी आंतरिक दुर्बलता के कारण होती है, उस दुर्बलता को दूर करके कामयाबी मिल सकती है। - स्वामी रामतीर्थ | * व्यक्ति को हानि, पीड़ा और चिंताएं, उसकी किसी आंतरिक दुर्बलता के कारण होती है, उस दुर्बलता को दूर करके कामयाबी मिल सकती है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
* दुनियावी चीजों में सुख की तलाश, फिजूल होती है। आनन्द का ख़ज़ाना, तो कहीं हमारे भीतर ही है। - स्वामी रामतीर्थ | * दुनियावी चीजों में सुख की तलाश, फिजूल होती है। आनन्द का ख़ज़ाना, तो कहीं हमारे भीतर ही है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
− | + | {{top}} | |
==इंदिरा गांधी== | ==इंदिरा गांधी== | ||
* जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। - इंदिरा गांधी | * जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। - इंदिरा गांधी | ||
पंक्ति 797: | पंक्ति 749: | ||
* एक राष्ट्र की शक्ति उसकी आत्मनिर्भरता में है, दूसरों से उधार लेकर पर काम चलाने में नहीं। - इंदिरा गांधी | * एक राष्ट्र की शक्ति उसकी आत्मनिर्भरता में है, दूसरों से उधार लेकर पर काम चलाने में नहीं। - इंदिरा गांधी | ||
* लोग अपने कर्तव्य भूल जाते हैं लेकिन अपने अधिकार उन्हें याद रहते हैं। - इंदिरा गांधी | * लोग अपने कर्तव्य भूल जाते हैं लेकिन अपने अधिकार उन्हें याद रहते हैं। - इंदिरा गांधी | ||
− | |||
==मैथिलीशरण गुप्त== | ==मैथिलीशरण गुप्त== | ||
* अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है। — मैथिलीशरण गुप्त | * अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है। — मैथिलीशरण गुप्त | ||
* नर हो न निराश करो मन को। कुछ काम करो, कुछ काम करो। जग में रहकर कुछ नाम करो॥ — मैथिलीशरण गुप्त | * नर हो न निराश करो मन को। कुछ काम करो, कुछ काम करो। जग में रहकर कुछ नाम करो॥ — मैथिलीशरण गुप्त | ||
− | |||
==आचार्य रजनीश== | ==आचार्य रजनीश== | ||
* जब तुम नहीं होगे, तब तुम पहली बार होगे। - आचार्य रजनीश | * जब तुम नहीं होगे, तब तुम पहली बार होगे। - आचार्य रजनीश | ||
पंक्ति 810: | पंक्ति 760: | ||
* मेरी सारी शिक्षा दो शब्दो की है प्रेम और ध्यान। - आचार्य रजनीश | * मेरी सारी शिक्षा दो शब्दो की है प्रेम और ध्यान। - आचार्य रजनीश | ||
* धर्म जीवन को परमात्मा में जीने की विधि है, संसार में ऐसे जिया जा सकता है जैसे, कमल सरोवर के कीचड़ में जीते हैं। - आचार्य रजनीश | * धर्म जीवन को परमात्मा में जीने की विधि है, संसार में ऐसे जिया जा सकता है जैसे, कमल सरोवर के कीचड़ में जीते हैं। - आचार्य रजनीश | ||
− | |||
==स्वामी सुदर्शनाचार्य जी== | ==स्वामी सुदर्शनाचार्य जी== | ||
* मानवता के दिशा में उठाया गया प्रत्येक क़दम आपकी स्वयं की चिंताओं को कम करने में मील का पत्थर साबित होगा। - स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी | * मानवता के दिशा में उठाया गया प्रत्येक क़दम आपकी स्वयं की चिंताओं को कम करने में मील का पत्थर साबित होगा। - स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी | ||
* आप मृत्यु के उपरांत अपने साथ अपने अच्छे-बुरे कर्मों की पूंजी साथ ले जाएंगे, इसके अलावा आप कुछ साथ नहीं ले जा सकते, याद रखें 'कुछ नहीं'। - स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी | * आप मृत्यु के उपरांत अपने साथ अपने अच्छे-बुरे कर्मों की पूंजी साथ ले जाएंगे, इसके अलावा आप कुछ साथ नहीं ले जा सकते, याद रखें 'कुछ नहीं'। - स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी | ||
* जिसे इंसान से प्रेम है और इंसानियत की समझ है, उसे अपने आप में ही संतुष्टि मिल जाती है। - स्वामी सुदर्शनाचार्य जी | * जिसे इंसान से प्रेम है और इंसानियत की समझ है, उसे अपने आप में ही संतुष्टि मिल जाती है। - स्वामी सुदर्शनाचार्य जी | ||
− | + | {{top}} | |
==हंसराज सुज्ञ== | ==हंसराज सुज्ञ== | ||
* अच्छे विचार और अच्छी सोच से आचरण भी अच्छा बनता है। - हंसराज सुज्ञ | * अच्छे विचार और अच्छी सोच से आचरण भी अच्छा बनता है। - हंसराज सुज्ञ | ||
पंक्ति 843: | पंक्ति 792: | ||
* अर्जित की गई सफलता से बँध कर न रहें, चार क़दम आगे बढ़कर दूसरों के लिये अपने पैरों के निशान छोड़ जाइये। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी | * अर्जित की गई सफलता से बँध कर न रहें, चार क़दम आगे बढ़कर दूसरों के लिये अपने पैरों के निशान छोड़ जाइये। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी | ||
* उत्साह जीवन में सबसे बड़ी शक्ति हैं। अगर आपके पास यह हैं तो जीत आपकी हैं। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी | * उत्साह जीवन में सबसे बड़ी शक्ति हैं। अगर आपके पास यह हैं तो जीत आपकी हैं। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी | ||
− | + | {{top}} | |
==अन्य== | ==अन्य== | ||
* तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। ~ [[गुरु गोविंद सिंह]] | * तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। ~ [[गुरु गोविंद सिंह]] | ||
− | |||
* निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल॥ ~ [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] | * निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल॥ ~ [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] | ||
− | |||
* सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। ~ [[अनंत गोपाल शेवड़े]] | * सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। ~ [[अनंत गोपाल शेवड़े]] | ||
− | |||
* हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और यदि मुझसे भारत के लिए एक मात्र भाषा का नाम लेने को कहा जाए तो वह निश्चित रूप से हिंदी ही है। ~ [[कामराज]] | * हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और यदि मुझसे भारत के लिए एक मात्र भाषा का नाम लेने को कहा जाए तो वह निश्चित रूप से हिंदी ही है। ~ [[कामराज]] | ||
− | |||
* दुःख का कारण हमारी चित्तवृत्तिओं का प्रभाव ही है। ~ [[कृष्ण|भगवान श्री कृष्ण]] | * दुःख का कारण हमारी चित्तवृत्तिओं का प्रभाव ही है। ~ [[कृष्ण|भगवान श्री कृष्ण]] | ||
* कुलीन और ख़ानदानी मनुष्यों का प्रथम लक्षण है कि नुकसान होते दिखने पर और हर समय तथा संकट के वक्त भी उनकी कथनी व करनी एक रहती है, तथा सत्य को स्वयं के और अपने राज्य को नष्ट होने या हानि होने पर भी नहीं छोड़ते, दूसरा लक्षण है कि वे शरणागत शत्रु को भी आश्रय देकर भयमुक्त करते है, तीसरा लक्षण है कि उनके भीतर भय कभी भूल कर भी प्रवेश नहीं कर सकता। ~ भगवान श्री कृष्ण | * कुलीन और ख़ानदानी मनुष्यों का प्रथम लक्षण है कि नुकसान होते दिखने पर और हर समय तथा संकट के वक्त भी उनकी कथनी व करनी एक रहती है, तथा सत्य को स्वयं के और अपने राज्य को नष्ट होने या हानि होने पर भी नहीं छोड़ते, दूसरा लक्षण है कि वे शरणागत शत्रु को भी आश्रय देकर भयमुक्त करते है, तीसरा लक्षण है कि उनके भीतर भय कभी भूल कर भी प्रवेश नहीं कर सकता। ~ भगवान श्री कृष्ण | ||
* हर समय मुस्कराते रहना, चित्त शान्त रहना, उद्विग्नता और भटकाव का न होना, स्पष्ट विचार, स्पष्ट धारणा और स्पष्ट निर्णय, धीर पुरूषों और योगीयों के लक्षण है। ~ भगवान श्री कृष्ण | * हर समय मुस्कराते रहना, चित्त शान्त रहना, उद्विग्नता और भटकाव का न होना, स्पष्ट विचार, स्पष्ट धारणा और स्पष्ट निर्णय, धीर पुरूषों और योगीयों के लक्षण है। ~ भगवान श्री कृष्ण | ||
− | |||
* सपने पूरे होंगे लेकिन आप सपने देखना शुरू तो करें। ~ अब्दुल कलाम | * सपने पूरे होंगे लेकिन आप सपने देखना शुरू तो करें। ~ अब्दुल कलाम | ||
* सपना वह नहीं होता जो आप नींद में देखते हैं, यह तो कुछ ऐसी चीज़ है जो आपको सोने नहीं देती है। ~ अब्दुल कलाम | * सपना वह नहीं होता जो आप नींद में देखते हैं, यह तो कुछ ऐसी चीज़ है जो आपको सोने नहीं देती है। ~ अब्दुल कलाम | ||
− | |||
* किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। ~ द्रोणाचार्य | * किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। ~ द्रोणाचार्य | ||
− | |||
* यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। ~ वल्लभभाई पटेल | * यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। ~ वल्लभभाई पटेल | ||
− | |||
* मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है, वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा। ~ पुरुषोत्तमदास टंडन | * मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है, वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा। ~ पुरुषोत्तमदास टंडन | ||
− | |||
* खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले। खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है? ~ अकबर इलाहाबादी | * खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले। खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है? ~ अकबर इलाहाबादी | ||
− | |||
* खुदी को कर बुलन्द इतना, के हर तकदीर से पेहले खुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है। ~ इक्बाल | * खुदी को कर बुलन्द इतना, के हर तकदीर से पेहले खुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है। ~ इक्बाल | ||
− | |||
* प्रकृति का तमाशा भी ख़ूब है। सृजन में समय लगता है जबकि विनाश कुछ ही पलों में हो जाता है। ~ ज़क़िया ज़ुबैरी | * प्रकृति का तमाशा भी ख़ूब है। सृजन में समय लगता है जबकि विनाश कुछ ही पलों में हो जाता है। ~ ज़क़िया ज़ुबैरी | ||
− | |||
* ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है, एकाग्रता। शिक्षा का सार है, मन को एकाग्र करना, तथ्यों का संग्रह करना नहीं। ~ श्री माँ | * ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है, एकाग्रता। शिक्षा का सार है, मन को एकाग्र करना, तथ्यों का संग्रह करना नहीं। ~ श्री माँ | ||
− | |||
* कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्त्वपूर्ण हैं। ~ साई बाबा | * कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्त्वपूर्ण हैं। ~ साई बाबा | ||
− | |||
* छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो। ~ रघुवंश महाकाव्यम् | * छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो। ~ रघुवंश महाकाव्यम् | ||
− | |||
* अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। ~ ऐतरेय ब्राह्मण - ३३।३ | * अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। ~ ऐतरेय ब्राह्मण - ३३।३ | ||
− | |||
* जिस प्रकार राख से सना हाथ जैसे-जैसे दर्पण पर घिसा जाता है, वैसे-वैसे उसके प्रतिबिंब को साफ़ करता है, उसी प्रकार दुष्ट जैसे-जैसे सज्जन का अनादर करता है, वैसे-वैसे वह उसकी कांति को बढ़ाता है। ~ वासवदत्ता | * जिस प्रकार राख से सना हाथ जैसे-जैसे दर्पण पर घिसा जाता है, वैसे-वैसे उसके प्रतिबिंब को साफ़ करता है, उसी प्रकार दुष्ट जैसे-जैसे सज्जन का अनादर करता है, वैसे-वैसे वह उसकी कांति को बढ़ाता है। ~ वासवदत्ता | ||
* गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है। ~ वासवदत्ता | * गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है। ~ वासवदत्ता | ||
− | |||
* उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी। ~ खुशवन्त सिंह | * उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी। ~ खुशवन्त सिंह | ||
− | |||
* जब तुम दु:खों का सामना करने से डर जाते हो और रोने लगते हो, तो मुसीबतों का ढेर लग जाता है। लेकिन जब तुम मुस्कराने लगते हो, तो मुसीबतें सिकुड़ जाती हैं। ~ सुधांशु महाराज | * जब तुम दु:खों का सामना करने से डर जाते हो और रोने लगते हो, तो मुसीबतों का ढेर लग जाता है। लेकिन जब तुम मुस्कराने लगते हो, तो मुसीबतें सिकुड़ जाती हैं। ~ सुधांशु महाराज | ||
− | |||
* नेकी कर और दरिया में डाल। ~ किस्सा हातिमताई | * नेकी कर और दरिया में डाल। ~ किस्सा हातिमताई | ||
− | |||
* जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है। ~ उत्तररामचरित | * जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है। ~ उत्तररामचरित | ||
− | |||
* संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। ~ काका कालेलकर | * संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। ~ काका कालेलकर | ||
− | |||
* कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। ~ मृच्छकटिक | * कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। ~ मृच्छकटिक | ||
− | |||
* बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। ~ विष्णु शर्मा | * बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। ~ विष्णु शर्मा | ||
* जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वहीं इस संसार में वास्तव में जीता है। ~ विष्णु शर्मा | * जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वहीं इस संसार में वास्तव में जीता है। ~ विष्णु शर्मा | ||
− | |||
* जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। ~ भावना कुँअर | * जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। ~ भावना कुँअर | ||
− | |||
* प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। ~ वृंद | * प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। ~ वृंद | ||
− | |||
* निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है। ~ रश्मिमाला | * निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है। ~ रश्मिमाला | ||
− | |||
* कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ~ हरिवंश राय बच्चन | * कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ~ हरिवंश राय बच्चन | ||
− | |||
* मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास है। ~ भगवतीचरण वर्मा | * मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास है। ~ भगवतीचरण वर्मा | ||
* मृत्यु और विनाश बिना बुलाए ही आया करते हैं क्योंकि ये हमारे मित्रों के रूप में नहीं शत्रुओं के रूप में आते हैं। ~ भगवतीचरण वर्मा | * मृत्यु और विनाश बिना बुलाए ही आया करते हैं क्योंकि ये हमारे मित्रों के रूप में नहीं शत्रुओं के रूप में आते हैं। ~ भगवतीचरण वर्मा | ||
− | |||
* सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है। ~ पं. मोतीलाल नेहरू | * सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है। ~ पं. मोतीलाल नेहरू | ||
− | |||
* जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। ~ डॉ. विक्रम साराभाई | * जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। ~ डॉ. विक्रम साराभाई | ||
− | |||
* जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। ~ डॉ. रघुवंश | * जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। ~ डॉ. रघुवंश | ||
− | |||
* काम से ज़्यादा काम के पीछे निहित भावना का महत्व होता है। ~ डॉ. राजेंद्र प्रसाद | * काम से ज़्यादा काम के पीछे निहित भावना का महत्व होता है। ~ डॉ. राजेंद्र प्रसाद | ||
− | |||
* उजाला एक विश्वास है जो अँधेरे के किसी भी रूप के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाने को तत्पर रहता है। ये हममें साहस और निडरता भरता है। ~ डॉ. प्रेम जनमेजय | * उजाला एक विश्वास है जो अँधेरे के किसी भी रूप के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाने को तत्पर रहता है। ये हममें साहस और निडरता भरता है। ~ डॉ. प्रेम जनमेजय | ||
− | |||
* अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। ~ डॉ. तपेश चतुर्वेदी | * अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। ~ डॉ. तपेश चतुर्वेदी | ||
− | |||
* देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। - बलभद्र प्रसाद गुप्त 'रसिक' | * देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। - बलभद्र प्रसाद गुप्त 'रसिक' | ||
− | |||
* असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। ~ हरिभाऊ उपाध्याय | * असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। ~ हरिभाऊ उपाध्याय | ||
* आनन्द उछलता - कूदता जाता है; शान्ति मुस्कुराती हुई चलती है। ~ हरिभाऊ उपाध्याय | * आनन्द उछलता - कूदता जाता है; शान्ति मुस्कुराती हुई चलती है। ~ हरिभाऊ उपाध्याय | ||
− | |||
* जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है। ~ मोरारजी देसाई | * जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है। ~ मोरारजी देसाई | ||
− | |||
* जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता। ~ स्वामी भजनानंद | * जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता। ~ स्वामी भजनानंद | ||
− | |||
* सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। ~ सम्राट अशोक | * सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। ~ सम्राट अशोक | ||
− | |||
* जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। ~ दीनानाथ दिनेश | * जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। ~ दीनानाथ दिनेश | ||
− | |||
* प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है। ~ राजगोपालाचारी | * प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है। ~ राजगोपालाचारी | ||
− | |||
* अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। ~ कमलेश्वर | * अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। ~ कमलेश्वर | ||
− | |||
* त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। ~ बस्र्आ | * त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। ~ बस्र्आ | ||
− | |||
* 'शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं। ~ ब्रह्मवैवर्त पुराण | * 'शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं। ~ ब्रह्मवैवर्त पुराण | ||
− | |||
* चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और चंदन शीतल माने गए हैं, पर इनमें से कुछ भी इतना शीतल नहीं जितना मनुष्य का तृष्णा रहित चित्त। ~ वशिष्ठ | * चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और चंदन शीतल माने गए हैं, पर इनमें से कुछ भी इतना शीतल नहीं जितना मनुष्य का तृष्णा रहित चित्त। ~ वशिष्ठ | ||
− | |||
* इस जन्म में परिश्रम से की गई कमाई का फल मिलता है और उस कमाई से दिए गए दान का फल अगले जन्म में मिलता है। ~ गुरुवाणी | * इस जन्म में परिश्रम से की गई कमाई का फल मिलता है और उस कमाई से दिए गए दान का फल अगले जन्म में मिलता है। ~ गुरुवाणी | ||
− | |||
* ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते। ~ नवाजो | * ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते। ~ नवाजो | ||
− | |||
* आहार, स्वप्न (नींद) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ हैं। ~ महर्षि चरक | * आहार, स्वप्न (नींद) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ हैं। ~ महर्षि चरक | ||
− | |||
* संवेदनशीलता न्याय की पहली अनिवार्यता है। ~ कुमार आशीष | * संवेदनशीलता न्याय की पहली अनिवार्यता है। ~ कुमार आशीष | ||
− | |||
* देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से बरबाद नहीं होता बल्कि शरीफ़ लोगों की कायरता और निकम्मेपन से होता है। ~ शिव खेड़ा | * देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से बरबाद नहीं होता बल्कि शरीफ़ लोगों की कायरता और निकम्मेपन से होता है। ~ शिव खेड़ा | ||
− | |||
* बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। ~ अष्टावक्र | * बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। ~ अष्टावक्र | ||
− | + | {{top}} | |
* बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है। ~ शिल्पायन | * बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है। ~ शिल्पायन | ||
− | |||
* राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है। ~ सुब्रह्मण्यम भारती | * राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है। ~ सुब्रह्मण्यम भारती | ||
− | |||
* बिखरना विनाश का पथ है तो सिमटना निर्माण का। ~ कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर | * बिखरना विनाश का पथ है तो सिमटना निर्माण का। ~ कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर | ||
− | |||
* हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे? ~ शास्त्री फ़िलिप | * हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे? ~ शास्त्री फ़िलिप | ||
− | |||
* यदि तुम्हें अपने चुने हुए रास्ते पर विश्वास है, यदि इस पर चलने का साहस है, यदि इसकी कठिनाइयों को जीत लेने की शक्ति है, तो रास्ता तुम्हारा अनुगमन करता है। ~ धीरूभाई अंबानी | * यदि तुम्हें अपने चुने हुए रास्ते पर विश्वास है, यदि इस पर चलने का साहस है, यदि इसकी कठिनाइयों को जीत लेने की शक्ति है, तो रास्ता तुम्हारा अनुगमन करता है। ~ धीरूभाई अंबानी | ||
* बड़ी बातें सोचो, तेज सोचो, दूसरो से पहले सोचो। विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं हैं। ~ धीरू भाई अम्बानी | * बड़ी बातें सोचो, तेज सोचो, दूसरो से पहले सोचो। विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं हैं। ~ धीरू भाई अम्बानी | ||
− | |||
* एक पल का उन्माद जीवन की क्षणिक चमक का नहीं, अंधकार का पोषक है, जिसका कोई आदि नहीं, कोई अंत नहीं। ~ रांगेय राघव | * एक पल का उन्माद जीवन की क्षणिक चमक का नहीं, अंधकार का पोषक है, जिसका कोई आदि नहीं, कोई अंत नहीं। ~ रांगेय राघव | ||
− | |||
* जीवन दूध के समुद्र की तरह है, आप इसे जितना मथेंगे आपको इससे उतना ही मक्खन मिलेगा। ~ घनश्यामदास बिड़ला | * जीवन दूध के समुद्र की तरह है, आप इसे जितना मथेंगे आपको इससे उतना ही मक्खन मिलेगा। ~ घनश्यामदास बिड़ला | ||
− | |||
* वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। ~ सामवेद | * वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। ~ सामवेद | ||
− | |||
* अंधेरे को कोसने से बेहतर है कि एक दीया जलाया जाए। ~ उपनिषद | * अंधेरे को कोसने से बेहतर है कि एक दीया जलाया जाए। ~ उपनिषद | ||
− | |||
* आंतरिक सौंदर्य का आह्वान करना कठिन काम है। सौंदर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द होते हैं न आवाज़। ~ राजश्री | * आंतरिक सौंदर्य का आह्वान करना कठिन काम है। सौंदर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द होते हैं न आवाज़। ~ राजश्री | ||
− | |||
* हँसी छूत की बीमारी है, आपको हँसी आई नहीं कि दूसरे को ज़बरदस्ती अपने दाँत निकालने पड़ेंगे। ~ प्रेमलता दीप | * हँसी छूत की बीमारी है, आपको हँसी आई नहीं कि दूसरे को ज़बरदस्ती अपने दाँत निकालने पड़ेंगे। ~ प्रेमलता दीप | ||
− | |||
* जो बिना ठोकर खाए मंज़िल तक पहुँच जाते हैं, उनके हाथ अनुभव से ख़ाली रह जाते हैं। ~ शिवकुमार मिश्र 'रज्जन' | * जो बिना ठोकर खाए मंज़िल तक पहुँच जाते हैं, उनके हाथ अनुभव से ख़ाली रह जाते हैं। ~ शिवकुमार मिश्र 'रज्जन' | ||
− | |||
* कर्मों का फल अवश्य मिलता है, पर हमारी इच्छानुसार नहीं, कार्य के प्रति हमारी आस्था एवं दृष्टि के अनुसार। ~ किशोर काबरा | * कर्मों का फल अवश्य मिलता है, पर हमारी इच्छानुसार नहीं, कार्य के प्रति हमारी आस्था एवं दृष्टि के अनुसार। ~ किशोर काबरा | ||
− | |||
* श्रेष्ठ वही है जिसके हृदय में दया व धर्म बसते हैं, जो अमृतवाणी बोलते हैं और जिनके नेत्र विनय से झुके होते हैं। ~ संत मलूकदास | * श्रेष्ठ वही है जिसके हृदय में दया व धर्म बसते हैं, जो अमृतवाणी बोलते हैं और जिनके नेत्र विनय से झुके होते हैं। ~ संत मलूकदास | ||
− | |||
* जैसे दीपक का प्रकाश घने अंधकार के बाद दिखाई देता है उसी प्रकार सुख का अनुभव भी दुःख के बाद ही होता है। ~ शूद्रक | * जैसे दीपक का प्रकाश घने अंधकार के बाद दिखाई देता है उसी प्रकार सुख का अनुभव भी दुःख के बाद ही होता है। ~ शूद्रक | ||
− | |||
* शाला में नया छात्र कुछ लेकर नहीं आता और पुराना कुछ लेकर नहीं जाता फिर भी वहाँ ज्ञान का विकास होता है। ~ राजेन्द्र अवस्थी | * शाला में नया छात्र कुछ लेकर नहीं आता और पुराना कुछ लेकर नहीं जाता फिर भी वहाँ ज्ञान का विकास होता है। ~ राजेन्द्र अवस्थी | ||
* अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है। वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। ~ राजेंद्र अवस्थी | * अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है। वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। ~ राजेंद्र अवस्थी | ||
− | |||
* बूढा होना कोई आसान काम नहीं। इसे बड़ी मेहनत से सीखना पड़ता है। ~ निर्मल वर्मा | * बूढा होना कोई आसान काम नहीं। इसे बड़ी मेहनत से सीखना पड़ता है। ~ निर्मल वर्मा | ||
− | |||
* आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। ~ पंडित रामप्रताप त्रिपाठी | * आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। ~ पंडित रामप्रताप त्रिपाठी | ||
− | |||
* कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। ~ पंडितराज जगन्नाथ | * कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। ~ पंडितराज जगन्नाथ | ||
− | |||
* अविश्वास आदमी की प्रवृत्ति को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही बनाता है। ~ धर्मवीर भारती | * अविश्वास आदमी की प्रवृत्ति को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही बनाता है। ~ धर्मवीर भारती | ||
− | |||
* मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो। मैं तुम्हें अनुपम बातें बता सकूँगा। ~ अमीर ख़ुसरो | * मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो। मैं तुम्हें अनुपम बातें बता सकूँगा। ~ अमीर ख़ुसरो | ||
− | |||
* विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखनेवाला कोई भी देश शुद्ध या दीर्घकालीन अनुसंधान की उपेक्षा नहीं कर सकता। ~ होमी भाभा | * विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखनेवाला कोई भी देश शुद्ध या दीर्घकालीन अनुसंधान की उपेक्षा नहीं कर सकता। ~ होमी भाभा | ||
− | |||
* कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कार, एक सोच, एक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है। ~ भरत प्रसाद | * कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कार, एक सोच, एक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है। ~ भरत प्रसाद | ||
− | |||
* कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन वहीं से शुरू होता है।' ~ संजीव | * कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन वहीं से शुरू होता है।' ~ संजीव | ||
− | |||
* हम अमन चाहते हैं जुल्म के ख़िलाफ़, फैसला ग़र जंग से होगा, तो जंग ही सही। ~ राम प्रसाद बिस्मिल | * हम अमन चाहते हैं जुल्म के ख़िलाफ़, फैसला ग़र जंग से होगा, तो जंग ही सही। ~ राम प्रसाद बिस्मिल | ||
− | |||
* सपने हमेशा सच नहीं होते पर ज़िंदगी तो उम्मीद पर टिकी होती हैं। ~ रविकिरण शास्त्री | * सपने हमेशा सच नहीं होते पर ज़िंदगी तो उम्मीद पर टिकी होती हैं। ~ रविकिरण शास्त्री | ||
− | |||
* विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धि' में और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभाव' में होती है। ~ आदित्य चौधरी | * विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धि' में और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभाव' में होती है। ~ आदित्य चौधरी | ||
− | |||
* भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है? ~ गाथासप्तशती | * भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है? ~ गाथासप्तशती | ||
− | |||
* दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो आतशी शीशा खुद ब खुद मिल जाता हैं, जो अवसरों को खोज निकालता हैं। ~ शिव खेड़ा | * दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो आतशी शीशा खुद ब खुद मिल जाता हैं, जो अवसरों को खोज निकालता हैं। ~ शिव खेड़ा | ||
− | |||
* सफलता के लिए किसी सफाई की जरूरत नहीं होती और असफलता की कोई सफाई नहीं होती। ~ प्रमोद बत्रा | * सफलता के लिए किसी सफाई की जरूरत नहीं होती और असफलता की कोई सफाई नहीं होती। ~ प्रमोद बत्रा | ||
− | |||
* अपनी सफलता के इन्जिनियर आप खुद है। अगर हम अपनी आत्मा की ईंट और जीवन का सीमेंट उस जगह लगायें जहाँ चाहते हैं तो सफलता की मज़बूत इमारत खड़ी कर सकते हैं अपनी सीमा ऊँचे स्तर पर बनाओ, बड़ा सोचने का साहस करो। ~ नैना लाल किदवई | * अपनी सफलता के इन्जिनियर आप खुद है। अगर हम अपनी आत्मा की ईंट और जीवन का सीमेंट उस जगह लगायें जहाँ चाहते हैं तो सफलता की मज़बूत इमारत खड़ी कर सकते हैं अपनी सीमा ऊँचे स्तर पर बनाओ, बड़ा सोचने का साहस करो। ~ नैना लाल किदवई | ||
− | |||
* जहाँ अकारण अत्यन्त सत्कार हो, वहाँ परिणाम में दुख की आशंका करनी चाहिये। ~ कुमार सम्भव | * जहाँ अकारण अत्यन्त सत्कार हो, वहाँ परिणाम में दुख की आशंका करनी चाहिये। ~ कुमार सम्भव | ||
− | |||
* किताबों में वजन होता है! ये यूँ ही किसी के जीवन की दशा और दिशा नहीं बदल देतीं। ~ इला प्रसाद | * किताबों में वजन होता है! ये यूँ ही किसी के जीवन की दशा और दिशा नहीं बदल देतीं। ~ इला प्रसाद | ||
− | |||
* मानव जीवन धूल की तरह है, रो-धोकर हम इसे कीचड़ बना देते हैं। ~ बकुल वैद्य | * मानव जीवन धूल की तरह है, रो-धोकर हम इसे कीचड़ बना देते हैं। ~ बकुल वैद्य | ||
− | |||
* अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है। ~ चंद्रशेखर वेंकट रमण | * अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है। ~ चंद्रशेखर वेंकट रमण | ||
− | |||
* जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर नहीं ठहरता है, उसी प्रकार मुक्त आत्मा के कर्म उससे नहीं चिपकते हैं। ~ छांदोग्य उपनिषद | * जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर नहीं ठहरता है, उसी प्रकार मुक्त आत्मा के कर्म उससे नहीं चिपकते हैं। ~ छांदोग्य उपनिषद | ||
− | |||
* ख्याति नदी की भाँति अपने उद्गम स्थल पर क्षीण ही रहती है किंदु दूर जाकर विस्तृत हो जाती है। ~ भवभूति | * ख्याति नदी की भाँति अपने उद्गम स्थल पर क्षीण ही रहती है किंदु दूर जाकर विस्तृत हो जाती है। ~ भवभूति | ||
− | |||
* बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है। ~ शंकराचार्य | * बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है। ~ शंकराचार्य | ||
− | |||
* बच्चों को पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। ~ स्वामी रामसुखदास | * बच्चों को पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। ~ स्वामी रामसुखदास | ||
− | |||
* समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। ~ (न्यायमूर्ति) कृष्णस्वामी अय्यर | * समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। ~ (न्यायमूर्ति) कृष्णस्वामी अय्यर | ||
− | |||
* ईमानदार के लिए किसी छद्म वेश-भूषा या साज-शृंगार की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए सादगी ही प्रर्याप्त है। ~ औटवे | * ईमानदार के लिए किसी छद्म वेश-भूषा या साज-शृंगार की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए सादगी ही प्रर्याप्त है। ~ औटवे | ||
− | |||
* जन्म-मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के लिये पा लेती है। ~ हिन्दू धर्मग्रन्थ | * जन्म-मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के लिये पा लेती है। ~ हिन्दू धर्मग्रन्थ | ||
− | |||
* कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है। ~ वीर सावरकर | * कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है। ~ वीर सावरकर | ||
− | |||
* उत्तरदायित्व में महान बल होता है, जहाँ कहीं उत्तरदायित्व होता है, वहीं विकास होता है। ~ दामोदर सातवलेकर | * उत्तरदायित्व में महान बल होता है, जहाँ कहीं उत्तरदायित्व होता है, वहीं विकास होता है। ~ दामोदर सातवलेकर | ||
− | |||
* जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। ~ सत्यार्थप्रकाश | * जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। ~ सत्यार्थप्रकाश | ||
− | |||
* जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। ~ नारदभक्ति | * जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। ~ नारदभक्ति | ||
− | |||
* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही समय आने पर महान फल देता है। ~ कथा सरित्सागर | * सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही समय आने पर महान फल देता है। ~ कथा सरित्सागर | ||
− | |||
* लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। ~ जयप्रकाश नारायण | * लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। ~ जयप्रकाश नारायण | ||
− | |||
* बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल | * बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल | ||
− | |||
* जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। ~ संपूर्णानंद | * जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। ~ संपूर्णानंद | ||
− | |||
* दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। ~ रामायण | * दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। ~ रामायण | ||
− | |||
* शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति। ~ स्वामी ज्ञानानंद | * शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति। ~ स्वामी ज्ञानानंद | ||
− | |||
* त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। ~ बरुआ | * त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। ~ बरुआ | ||
− | |||
* अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। ~ महादेवी वर्मा | * अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। ~ महादेवी वर्मा | ||
− | |||
* ताकतवर होने के लिए अपनी शक्ति में भरोसा रखना जरूरी है, वैसे व्यक्तियों से अधिक कमज़ोर कोई नहीं होता जिन्हें अपने सामर्थ्य पर भरोसा नहीं। ~ स्वामी दयानंद सरस्वती | * ताकतवर होने के लिए अपनी शक्ति में भरोसा रखना जरूरी है, वैसे व्यक्तियों से अधिक कमज़ोर कोई नहीं होता जिन्हें अपने सामर्थ्य पर भरोसा नहीं। ~ स्वामी दयानंद सरस्वती | ||
− | * | + | * मनुष्य का सच्चा जीवन साथी विद्या ही है, जिसके कारण वह विद्वान कहलाता है। ~ स्वामी दयानन्द |
− | |||
* प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है, भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी | * प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है, भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी | ||
− | |||
* अधिक धन सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष | * अधिक धन सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष | ||
− | |||
* भलाई से बढ़कर जीवन और, बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। ~ आदिभट्ल नारायण दासु | * भलाई से बढ़कर जीवन और, बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। ~ आदिभट्ल नारायण दासु | ||
− | |||
* कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन यह, एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले से ही सावधानी बरतनी चाहिए। ~ लोकोक्ति | * कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन यह, एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले से ही सावधानी बरतनी चाहिए। ~ लोकोक्ति | ||
− | |||
* जिस प्रकार काठ अपने ही भीतर से प्रकट हुई अग्नि से भस्म होकर खत्म हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य अपने ही भीतर रहने वाली तृष्णा से नष्ट हो जाता है। ~ बाणभट्ट | * जिस प्रकार काठ अपने ही भीतर से प्रकट हुई अग्नि से भस्म होकर खत्म हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य अपने ही भीतर रहने वाली तृष्णा से नष्ट हो जाता है। ~ बाणभट्ट | ||
− | |||
* जिन्दगी हमारे साथ खेल खेलती है, जो इसे खेल नहीं मानते, वे ही एक दूसरे की शिकायत व आलोचना करते हैं। ~ जैनेंद्र कुमार | * जिन्दगी हमारे साथ खेल खेलती है, जो इसे खेल नहीं मानते, वे ही एक दूसरे की शिकायत व आलोचना करते हैं। ~ जैनेंद्र कुमार | ||
− | |||
* संसार में सब से दयनीय कौन है? धनवान होकर भी जो कंजूस है। ~ विद्यापति | * संसार में सब से दयनीय कौन है? धनवान होकर भी जो कंजूस है। ~ विद्यापति | ||
− | |||
* मूर्खों से बहस करके कोई भी व्यक्ति, बु्द्धिमान नहीं कहला सकता, मूर्ख पर विजय पाने का एकमात्र उपाय यही है कि उसकी ओर ध्यान नहीं दिया जाए। ~ संत ज्ञानेश्वर | * मूर्खों से बहस करके कोई भी व्यक्ति, बु्द्धिमान नहीं कहला सकता, मूर्ख पर विजय पाने का एकमात्र उपाय यही है कि उसकी ओर ध्यान नहीं दिया जाए। ~ संत ज्ञानेश्वर | ||
− | |||
* प्रयत्न देवता की तरह है जबकि भाग्य दैत्य की भांति, ऐसे में प्रयत्न देवता की उपासना करना ही श्रेष्ठ काम है। ~ समर्थ गुरु रामदास | * प्रयत्न देवता की तरह है जबकि भाग्य दैत्य की भांति, ऐसे में प्रयत्न देवता की उपासना करना ही श्रेष्ठ काम है। ~ समर्थ गुरु रामदास | ||
* चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। ~ समर्थ रामदास | * चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। ~ समर्थ रामदास | ||
− | |||
* सत्ता की महत्ता तो मोहक भी बहुत होती है, एक बार हांथ में आने पर और कंटीली होने पर भी छोड़ी नहीं जाती। ~ वृंदावनलाल वर्मा | * सत्ता की महत्ता तो मोहक भी बहुत होती है, एक बार हांथ में आने पर और कंटीली होने पर भी छोड़ी नहीं जाती। ~ वृंदावनलाल वर्मा | ||
− | |||
* परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट जनित करूणा से ओत-प्रोत होता है। ~ संत तुकाराम | * परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट जनित करूणा से ओत-प्रोत होता है। ~ संत तुकाराम | ||
− | |||
* चतुराई और चालबाजी दो चीजें हैं, एक में ईश्वर की प्रेरणा होती है और दूसरा हमारी फितरत से पैदा होता है। ~ सुमन सिन्हा | * चतुराई और चालबाजी दो चीजें हैं, एक में ईश्वर की प्रेरणा होती है और दूसरा हमारी फितरत से पैदा होता है। ~ सुमन सिन्हा | ||
− | |||
* जो शिक्षा मनुष्य को संकीर्ण और स्वार्थी बना देती है, उसका मूल्य किसी युग में चाहे जो रहा हो, अब नहीं है। ~ शरतचन्द्र चट्टोपाघ्याय | * जो शिक्षा मनुष्य को संकीर्ण और स्वार्थी बना देती है, उसका मूल्य किसी युग में चाहे जो रहा हो, अब नहीं है। ~ शरतचन्द्र चट्टोपाघ्याय | ||
− | |||
* अपनी पीड़ा तो पशु-पक्षी भी महसूस करते हैं, मनुष्य वह है जो दूसरों की वेदना को अनुभव करे। ~ रसनिधि | * अपनी पीड़ा तो पशु-पक्षी भी महसूस करते हैं, मनुष्य वह है जो दूसरों की वेदना को अनुभव करे। ~ रसनिधि | ||
− | |||
* अपना चरित्र उज्जवल होने पर भी सज्जन, अपना दोष ही सामने रखते हैं, अग्नि का तेज उज्जवल होने पर भी वह पहले धुंआ ही प्रकट करता है। ~ कर्णपूर | * अपना चरित्र उज्जवल होने पर भी सज्जन, अपना दोष ही सामने रखते हैं, अग्नि का तेज उज्जवल होने पर भी वह पहले धुंआ ही प्रकट करता है। ~ कर्णपूर | ||
− | |||
* जो व्यक्ति इंसान की बनाई मूर्ति की पूजा करता है, लेकिन भगवान की बनाई मूर्ति (इंसान) से नफरत करता है, वह भगवान को कभी प्रिय नहीं हो सकता। ~ स्वामी ज्योतिनंद | * जो व्यक्ति इंसान की बनाई मूर्ति की पूजा करता है, लेकिन भगवान की बनाई मूर्ति (इंसान) से नफरत करता है, वह भगवान को कभी प्रिय नहीं हो सकता। ~ स्वामी ज्योतिनंद | ||
− | |||
* कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्त्वपूर्ण हैं। ~ साई बाबा | * कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्त्वपूर्ण हैं। ~ साई बाबा | ||
− | |||
* जीवन की भाग-दौड़ तथा उथल-पुथल में अंदर से शांत बने रहें। ~ दीपक चोपड़ा | * जीवन की भाग-दौड़ तथा उथल-पुथल में अंदर से शांत बने रहें। ~ दीपक चोपड़ा | ||
− | |||
* जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है, वह शक्तिमान होकर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। ~ रामप्रताप | * जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है, वह शक्तिमान होकर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। ~ रामप्रताप | ||
− | |||
* ब्राहमण होकर विद्वान और साधनारत भी है लेकिन दुष्टमार्ग और दुष्प्रवृत्तियों में लीन हो गया है उसे ब्रहमराक्षस कहते हैं उस पर नियंत्रण दुष्कर किन्तु अनिवार्य होता है। ~ तंत्र महौदधि | * ब्राहमण होकर विद्वान और साधनारत भी है लेकिन दुष्टमार्ग और दुष्प्रवृत्तियों में लीन हो गया है उसे ब्रहमराक्षस कहते हैं उस पर नियंत्रण दुष्कर किन्तु अनिवार्य होता है। ~ तंत्र महौदधि | ||
− | |||
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। ~ महोपनिषद | * जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। ~ महोपनिषद | ||
− | |||
* जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति | * जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति | ||
* अपि यत्सुकरं कर्म तदप्येकेन दुष्करम। (आसानी से होने वाला कार्य भी एक व्यक्ति से होना मुश्किल।) ~ मनुस्मृति | * अपि यत्सुकरं कर्म तदप्येकेन दुष्करम। (आसानी से होने वाला कार्य भी एक व्यक्ति से होना मुश्किल।) ~ मनुस्मृति | ||
− | |||
* विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। ~ हर्ष मोहन | * विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। ~ हर्ष मोहन | ||
− | |||
* कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं। ~ श्री हर्ष | * कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं। ~ श्री हर्ष | ||
− | |||
* ईशावास्यमिदं सर्व यत्किज्च जगत्यां जगत - भगवन इस जग के कण कण में विद्यमान है! ~ संतवाणी | * ईशावास्यमिदं सर्व यत्किज्च जगत्यां जगत - भगवन इस जग के कण कण में विद्यमान है! ~ संतवाणी | ||
− | |||
|} | |} | ||
</div> | </div> |
14:36, 22 सितम्बर 2014 का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
---|
|
|
|
|
|