वाल्मीकि के अनमोल वचन

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वाल्मीकि के अनमोल वचन
  • शूरवीर व्यक्ति जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं करते।
  • उत्साह, सामर्थ्य और मन से हिम्मत न हारना, ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गए हैं।
  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है।
  • जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन?
  • जो व्यक्ति अपना पक्ष छोड़कर दूसरे पक्ष से मिल जाता है, वह अपने पक्ष के नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्ष द्वारा नष्ट कर दिया जाता है।
  • जैसे दृष्टि सदा ही शरीर के हित मे लगी रहती है, उसी प्रकार राजा राष्ट्र को सत्य और धर्म मे लगाने वाला होता है।
  • लोग झूठ बोलने वाले मनुष्य से उसी प्रकार डरते हैं जैसे सांप से। संसार मे सत्य सबसे महान् धर्म है। वही सबका मूल है।
  • हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं।
  • सेवा के लिए अर्पण किया गया बल हमेशा टिकेगा, वह अमर होगा।
  • धर्म से अर्थ उत्पन्नहोता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत का सार है।
  • राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा वैसा ही आचरण करने लगती है।
  • अच्छे स्वभाव वाले मित्र अपने घर के सोने चांदी अथवा उत्तम आभूषणो को अपने अच्छे मित्रो से अलग नहीं समझते।
  • जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल-प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न खाने पर खिन्न होता है।
  • शूर जनों को अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना सहन नहीं होता। वे वाणी के द्वारा प्रदर्शन न करके दुष्कर कर्म ही करते हैं।
  • सत्य ही सबका मूल है। सत्य से बढ़कर अन्य कोई परम पद नहीं है।

इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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