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'''अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' ''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Akhlaq Mohammed Khan Shahryar'', जन्म- [[16 जून]], [[1936]]; मृत्यु- [[13 फ़रवरी]], [[2012]]) [[उर्दू]] के मशहूर शायर थे। कुंवर अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान उर्दू शेरो-सुख़न की दुनिया में 'शहरयार' के नाम से जाने जाते हैं। उन्‍होंने फिल्‍मों के लिए भी गीत लिखे। भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई हिट फ़िल्म 'उमराव जान' की मशहूर [[ग़ज़ल]] आज भी लोगों की ज़बान पर है। अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान को [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] और [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] सहित कई अहम सम्मानों से नवाज़ा गया था। उनकी अहम किताबों में 'ख़्वाब का दर बंद है', 'शाम होने वाली है', 'मिलता रहूंगा ख़्वाब में' आदि शामिल हैं।
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}}'''अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' ''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Akhlaq Mohammed Khan 'Shahryar' '', जन्म- [[16 जून]], [[1936]]; मृत्यु- [[13 फ़रवरी]], [[2012]]) [[उर्दू]] के मशहूर शायर थे। कुंवर अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान उर्दू शेरो-सुख़न की दुनिया में 'शहरयार' के नाम से जाने जाते हैं। उन्‍होंने फिल्‍मों के लिए भी गीत लिखे। भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई हिट फ़िल्म 'उमराव जान' की मशहूर [[ग़ज़ल]] आज भी लोगों की ज़बान पर है। अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान को [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] और [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] सहित कई अहम सम्मानों से नवाज़ा गया था। उनकी अहम किताबों में 'ख़्वाब का दर बंद है', 'शाम होने वाली है', 'मिलता रहूंगा ख़्वाब में' आदि शामिल हैं।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
 
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अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के बरेली जिले के एक [[मुस्लिम]] [[राजपूत]] [[परिवार]] में [[1936]] में हुआ था। सन [[1961]] में [[उर्दू]] में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने [[1966]] में [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]] में उर्दू के व्याख्याता के तौर पर काम शुरू किया। वह यहीं से उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर [[1996]] में सेवानिवृत्त हुए।
 
==प्रसिद्धि==
 
==प्रसिद्धि==
अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' ने 'गमन' और 'आहिस्ता-आहिस्ता' आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता [[1981]] में बनी और अभिनेत्री [[रेखा]] और फ़ारुख़ शेख अभिनीत फ़िल्म 'उमराव जान' से मिली। 'इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं', 'जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने', 'दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये', 'कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता'- जैसे गीत लिख कर हिंदी फ़िल्म जगत में शहरयार बेहद लोकप्रिय हो गये थे।
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अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' ने 'गमन' और 'आहिस्ता-आहिस्ता' आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता [[1981]] में बनी और अभिनेत्री [[रेखा]] और [[फ़ारुख़ शेख]] अभिनीत फ़िल्म 'उमराव जान' से मिली। 'इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं', 'जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने', 'दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये', 'कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता'- जैसे गीत लिख कर हिंदी फ़िल्म जगत में शहरयार बेहद लोकप्रिय हो गये थे।
 
==पाँच बेमिसाल ग़ज़लें==
 
==पाँच बेमिसाल ग़ज़लें==
 
शहरयार ने [[उर्दू]] और [[हिंदी]] शायरी में अपना एक खास मुकाम हासिल किया था। अपने खास लहजे, अलहदा अंदाज और सहज [[भाषा]] के चलते वह दूसरों से अलग पहचाने गए।<ref name="pp">{{cite web |url=https://www.aajtak.in/literature/poems/story/akhlaq-mohammed-khan-shahryar-top-5-ghazals-642147-2019-02-13 |title=इन आंखों की मस्ती से लेकर शहरयार की 5 बेमिसाल ग़ज़लें https://www.aajtak.in/literature/poems/story/akhlaq-mohammed-khan-shahryar-top-5-ghazals-642147-2019-02-13|accessmonthday=25 सितंबर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=aajtak.in |language=हिंदी}}</ref> उनकी श्रेष्ठ पाँच बेमिसाल ग़ज़लें इस प्रकार हैं-
 
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==पुरस्कार एवं सम्मान==
 
==पुरस्कार एवं सम्मान==
 
*अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान वर्ष [[2008]] के लिए 44वें '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से नवाजे गये।  
 
*अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान वर्ष [[2008]] के लिए 44वें '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से नवाजे गये।  
*समकालीन उर्दू शायरी के जगत में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को 'उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार', 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'दिल्ली उर्दू पुरस्कार' और 'फ़िराक सम्मान' सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
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*समकालीन उर्दू शायरी के जगत में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को 'उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार', '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]]', 'दिल्ली उर्दू पुरस्कार' और 'फ़िराक सम्मान' सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
 
*वह [[उर्दू]] के चौथे [[साहित्यकार]] थे, जिन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला था। इससे पहले [[फ़िराक गोरखपुरी]], [[क़ुर्रतुल-एन-हैदर]] और [[अली सरदार जाफ़री]] को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका था।
 
*वह [[उर्दू]] के चौथे [[साहित्यकार]] थे, जिन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला था। इससे पहले [[फ़िराक गोरखपुरी]], [[क़ुर्रतुल-एन-हैदर]] और [[अली सरदार जाफ़री]] को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका था।
 
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09:58, 25 सितम्बर 2022 के समय का अवतरण

अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'
अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान
पूरा नाम अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'
अन्य नाम शहरयार
जन्म 16 जून, 1936
जन्म भूमि ज़िला बरेली, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 13 फ़रवरी, 2012
मृत्यु स्थान ज़िला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र उर्दू साहित्य
पुरस्कार-उपाधि ज्ञानपीठ पुरस्कार, 2008)

साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1987

प्रसिद्धि गीतकार, कवि
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी वह उर्दू के चौथे साहित्यकार थे, जिन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला था। इससे पहले फ़िराक गोरखपुरी, क़ुर्रतुल-एन-हैदर और अली सरदार जाफ़री को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका था।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' (अंग्रेज़ी: Akhlaq Mohammed Khan 'Shahryar' , जन्म- 16 जून, 1936; मृत्यु- 13 फ़रवरी, 2012) उर्दू के मशहूर शायर थे। कुंवर अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान उर्दू शेरो-सुख़न की दुनिया में 'शहरयार' के नाम से जाने जाते हैं। उन्‍होंने फिल्‍मों के लिए भी गीत लिखे। भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई हिट फ़िल्म 'उमराव जान' की मशहूर ग़ज़ल आज भी लोगों की ज़बान पर है। अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान को ज्ञानपीठ पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई अहम सम्मानों से नवाज़ा गया था। उनकी अहम किताबों में 'ख़्वाब का दर बंद है', 'शाम होने वाली है', 'मिलता रहूंगा ख़्वाब में' आदि शामिल हैं।

परिचय

अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के एक मुस्लिम राजपूत परिवार में 1936 में हुआ था। सन 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1966 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के व्याख्याता के तौर पर काम शुरू किया। वह यहीं से उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर 1996 में सेवानिवृत्त हुए।

प्रसिद्धि

अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' ने 'गमन' और 'आहिस्ता-आहिस्ता' आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता 1981 में बनी और अभिनेत्री रेखा और फ़ारुख़ शेख अभिनीत फ़िल्म 'उमराव जान' से मिली। 'इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं', 'जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने', 'दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये', 'कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता'- जैसे गीत लिख कर हिंदी फ़िल्म जगत में शहरयार बेहद लोकप्रिय हो गये थे।

पाँच बेमिसाल ग़ज़लें

शहरयार ने उर्दू और हिंदी शायरी में अपना एक खास मुकाम हासिल किया था। अपने खास लहजे, अलहदा अंदाज और सहज भाषा के चलते वह दूसरों से अलग पहचाने गए।[1] उनकी श्रेष्ठ पाँच बेमिसाल ग़ज़लें इस प्रकार हैं-

1.

इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता अफ़्साने हज़ारों हैं
इक तुम ही नहीं तन्हा उल्फ़त में मिरी रुस्वा
इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं
इक सिर्फ़ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैं
कहने को तो दुनिया में मय-ख़ाने हज़ारों हैं
इस शम-ए-फ़रोज़ाँ को आँधी से डराते हो
इस शम-ए-फ़रोज़ाँ के परवाने हज़ारों हैं

2.

आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है
ये राय अकेली मेरी नहीं है सब की है
सुनसान सड़क सन्नाटे और लम्बे साए
ये सारी फ़ज़ा ऐ दिल तेरे मतलब की है
तिरी दीद से आँखें जी भर के सैराब हुईं
किस रोज़ हुआ था ऐसा बात ये कब की है
तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को
जो बात बहुत पहले करनी थी अब की है
मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है

3.


कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
लेकिन वो फ़साना जो मिरे दिल पे रक़म है
महरूमी का एहसास मुझे किस लिए होता
हासिल है जो मुझ को कहाँ दुनिया को बहम है
या तुझ से बिछड़ने का नहीं हौसला मुझ में
या तेरे तग़ाफ़ुल में भी अंदाज़-ए-करम है
थोड़ी सी जगह मुझ को भी मिल जाए कहीं पर
वहशत तिरे कूचे में मिरे शहर से कम है
ऐ हम-सफ़रो टूटे न साँसों का तसलसुल
ये क़ाफ़िला-ए-शौक़ बहुत तेज़-क़दम है

4.

किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
ग़ैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया
निकला था मैं सदा-ए-जरस की तलाश में
धोके से इस सुकूत के सहरा में आ गया
क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
क्यूँ आज उस का नाम मिरा दिल दुखा गया
मैं जिस्म के हिसार में महसूर हूँ अभी
वो रूह की हदों से भी आगे चला गया
इस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया

5.

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
सब का अहवाल वही है जो हमारा है आज
ये अलग बात कि शिकवा किया तन्हा हम ने
ख़ुद पशीमान हुए ने उसे शर्मिंदा किया
इश्क़ की वज़्अ को क्या ख़ूब निभाया हम ने
कौन सा क़हर ये आँखों पे हुआ है नाज़िल
एक मुद्दत से कोई ख़्वाब न देखा हम ने
उम्र भर सच ही कहा सच के सिवा कुछ न कहा
अज्र क्या इस का मिलेगा ये न सोचा हम ने

पुरस्कार एवं सम्मान

मृत्यु

प्रसिद्ध उर्दू शायर अख़लाक़ मुहम्मद खान का निधन 13 फ़रवरी, 2012 को अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ।


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