अन्नमय कोष
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:14, 25 जून 2016 का अवतरण (''''अन्नमय कोष''' आत्मतत्त्व के पाँच आवरणों में से एक ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अन्नमय कोष आत्मतत्त्व के पाँच आवरणों में से एक है।
- उपनिषदों के अनुसार शरीर में आत्मतत्त्व पाँच आवरणों से आच्छादित है, जिन्हें 'पञ्चकोष' कहते हैं। इनके नाम निम्नलिखित हैं-
- अन्नमय कोष
- प्राणमय कोष
- मनोमय कोष
- विज्ञानमय कोष
- आनन्दमय कोष
- यहाँ 'मय' का प्रयोग विकार अर्थ में किया गया है। अन्न (भुक्त पदार्थ) के विकार अथवा संयोग से बना हुआ कोष 'अन्नमय' कहलाता है। यह आत्मा का सबसे बाहरी आवरण है। पशु और अविकसित-मानव भी, जो शरीर को ही आत्मा मानता है, इसी धरातल पर जीता है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 38 |