"गीता 16:19" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<tr>
 
<tr>
पंक्ति 9: पंक्ति 8:
 
'''प्रसंग-'''
 
'''प्रसंग-'''
 
----
 
----
अब उन दुर्गुण-दुराचारों में त्याज्य-बुद्धि कराने के लिए अगले दो श्लोकों में भगवान् वैसे लोगों की घोर निन्दा करते हुए उनकी दुर्गति का वर्णन करते हैं-
+
अब उन दुर्गुण-दुराचारों में त्याज्य-बुद्धि कराने के लिए अगले दो [[श्लोक|श्लोकों]] में भगवान् वैसे लोगों की घोर निन्दा करते हुए उनकी दुर्गति का वर्णन करते हैं-
 
----
 
----
 
<div align="center">
 
<div align="center">
पंक्ति 57: पंक्ति 56:
 
<tr>
 
<tr>
 
<td>
 
<td>
{{प्रचार}}
+
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 +
<references/>
 +
==संबंधित लेख==
 
{{गीता2}}
 
{{गीता2}}
 
</td>
 
</td>

12:18, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-16 श्लोक-19 / Gita Chapter-16 Verse-19

प्रसंग-


अब उन दुर्गुण-दुराचारों में त्याज्य-बुद्धि कराने के लिए अगले दो श्लोकों में भगवान् वैसे लोगों की घोर निन्दा करते हुए उनकी दुर्गति का वर्णन करते हैं-


तानहं द्विषत: क्रूरान्संसारेषु नराधमान् ।

क्षिपाम्यजस्त्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।19।।


उन द्वेष करने वाले पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ ।।19।।

These haters, sinful, cruel and vilest among men, I cast again and again into demoniacal wombs in this world.(19)


तान् = उन ; द्विषत: = द्वेष करने वाले ; अशुभान् = पापाचारी (और) ; क्रूरान् = क्रूरकर्मी ; नराधमान् = नराधमों को ; अहमृ = मैं ; संसारेषु = संसार में ; अजस्त्रम् = बारम्बार ; आसुरीषु = आसुरी ; योनिषु = योनियों में ; एव = ही ; क्षिपामि = गिरता हूं



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख