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'''सिंहस्थ''' [[उज्जैन]], [[मध्य प्रदेश]] का महान [[स्नान]] पर्व है। यह बारह वर्षों के अंतराल से मनाया जाता है। जब [[बृहस्पति ग्रह]] सिंह राशि पर स्थित रहता है, तब यह पर्व मनाया जाता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियाँ [[चैत्र मास]] की [[पूर्णिमा]] से प्रारंभ होती हैं और पूरे मास में [[वैशाख पूर्णिमा]] के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होती है। उज्जैन के महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्वपूर्ण माने गए हैं।
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'''सिंहस्थ''' [[उज्जैन]], [[मध्य प्रदेश]] का महान् [[स्नान]] पर्व है। यह बारह वर्षों के अंतराल से मनाया जाता है। जब [[बृहस्पति ग्रह]] सिंह राशि पर स्थित रहता है, तब यह पर्व मनाया जाता है। पवित्र [[क्षिप्रा नदी]] में पुण्य स्नान की विधियाँ [[चैत्र मास]] की [[पूर्णिमा]] से प्रारंभ होती हैं और पूरे मास में [[वैशाख पूर्णिमा]] के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होती है। उज्जैन के महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्त्वपूर्ण माने गए हैं।
 
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==प्राचीन परम्परा==
 
==प्राचीन परम्परा==
सम्पूर्ण [[भारत]] में चार स्थानों पर [[कुम्भ मेला|कुम्भ मेले]] का आयोजन किया जाता है। [[प्रयाग]], [[नासिक]], [[हरिद्वार]] और [[उज्जैन]] में लगने वाले कुम्भ मेलों में से उज्जैन में आयोजित आस्था के इस पर्व को "सिंहस्थ" के नाम से पुकारा जाता है। उज्जैन में मेष राशि में [[सूर्य]] और सिंह राशि में गुरू के आने पर यहाँ महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सिहस्थ के नाम से देशभर में पुकारा जाता है। सिंहस्थ आयोजन की एक प्राचीन परम्परा है। इसके आयोजन के संबंध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं।<ref name="ab">{{cite web |url=http://maharashtrasamajujjaini.com/?page_id=1423 |title= सिंहस्थ कुम्भ|accessmonthday= 09 जनवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
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देवताओं एवं दानवों के [[समुद्र मंथन]] के पश्चात् अन्य अनमोल रत्नों के साथ अमृत कुंभ भी निकला। इस कुंभ को स्वर्ग में सुरक्षा के साथ पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्द्रपुत्र [[जयंत]] को सोंपी गयी थी। इस शुभ कार्य में [[सूर्य देव|सूर्य]], [[चंद्र देवता|चंद्र]], [[शनि देव|शनि]] एवं [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] (गुरू) ने बड़ा योगदान दिया। अमृत कुंभ स्वर्ग तक ले जाते समय देवताओं को राक्षसों का चार बार सामना करना पड़ा। इन चार हमलों के दौरान देवताओं द्वारा अमृत कुंभ चार स्थानों पर [[पृथ्वी]] पर रखा गया। उन चार स्थानों पर प्रति बारह साल बाद कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। यह चार स्थान [[हरिद्वार]], [[प्रयाग]], [[त्र्यंबकेश्वर]] और [[उज्जैन]] हैं। जिन राशियों में बृहस्पति होने पर कुंभ रखा जाता है, उन राशियों में गुरू आने पर उस स्थान पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है। यह ध्यान में रखना चाहिए कि हरिद्वार, प्रयाग, त्र्यंबकेश्वर, उज्जैन स्थानों के अलावा अन्य किसी भी स्थान पर कुंभ मेला नहीं लगता।
====कुम्भ पर्व की परम्परा====
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====कुंभ पर्व एवं कुंभ योग====
{{main|कुम्भ परम्परा}}
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ज्योतिष परंपराओं में कुंभ पर्व को [[कुंभ राशि]] एवं कुंभ योग से जोड़ा गया है। कुंभ योग [[विष्णुपुराण]] के अनुसार चार तरह के हैं। जब गुरू कुंभ राशि में होता है और सूर्य [[मेष राशि]] में प्रविष्ट होता है, तब कुंभ पर्व हरिद्वार में लगता है। जब गुरू मेष राशि चक्र में प्रवेश करता है और सूर्य, चन्द्रमा [[मकर राशि]] में [[माघ]] [[अमावास्या]] के दिन होते हैं, तब कुंभ का आयोजन प्रयाग में किया जाता है। सूर्य एवं गुरू [[सिंह राशि]] में प्रकट होने पर कुंभ मेले का आयोजन [[नासिक]] ([[महाराष्ट्र]]) में [[गोदावरी नदी]] के मूल तट पर लगता है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.jagran.com/news/spiritual-kumbh-mela-begins-lakhs-of-devotees-converge-for-holy-dip-12595137.html|title= ध्वजारोहण से शुरू हुआ नासिक-त्र्यंबक सिंहस्थ कुंभ|accessmonthday=18 जुलाई|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= जागरण|language=हिन्दी}}</ref> उज्जैन में [[मेष राशि]] में [[सूर्य]] और [[सिंह राशि]] में गुरु के आने पर यहाँ महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सिंहस्थ के नाम से देशभर में पुकारा जाता है। सिंहस्थ आयोजन की एक प्राचीन परम्परा है। इसके आयोजन के संबंध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं।<ref name="ab">{{cite web |url=http://maharashtrasamajujjaini.com/?page_id=1423 |title= सिंहस्थ कुम्भ|accessmonthday= 09 जनवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
अमृत की बूंदे छलकने के समय जिन राशियों में [[सूर्य]], [[चंद्रमा]], [[बृहस्पति ग्रह|बृहस्पति]] की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं, वहाँ कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर आयोजन होता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरू और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे। इसी कारण इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परम्परा है। सिंहस्थ महापर्व के अवसर पर उज्जैन का धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व स्वयं ही कई गुना बढ़ जाता है। [[साधु]]-[[संत|संतों]] का एकत्र होना, सर्वत्र पावन स्वरों का गुंजन, शब्द एवं स्वर शक्ति का आत्मिक प्रभाव यहाँ प्राणी मात्र को अलौकिक शांति प्रदान करता है।<ref name="ab"/>
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अमृत की बूंदे छलकने के समय जिन राशियों में [[सूर्य]], [[चंद्रमा]], [[बृहस्पति ग्रह|बृहस्पति]] की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं, वहाँ कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर आयोजन होता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे। इसी कारण इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परम्परा है। सिंहस्थ महापर्व के अवसर पर उज्जैन का धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व स्वयं ही कई गुना बढ़ जाता है। [[साधु]]-[[संत|संतों]] का एकत्र होना, सर्वत्र पावन स्वरों का गुंजन, शब्द एवं स्वर शक्ति का आत्मिक प्रभाव यहाँ प्राणी मात्र को अलौकिक शांति प्रदान करता है।<ref name="ab"/>
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==आध्यात्मिक चेतना का पर्व==
 
==आध्यात्मिक चेतना का पर्व==
सिंहस्थ कुंभ महापर्व धार्मिक व आध्यात्मिक चेतना का महापर्व है। धार्मिक जागृति द्वारा मानवता, त्याग, सेवा, उपकार, प्रेम, सदाचरण, अनुशासन, अहिंसा, सत्संग, भक्ति-भाव अध्ययन-चिंतन परम शक्ति में विश्वास और सन्मार्ग आदि आदर्श गुणों को स्थापित करने वाला पर्व है। हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन की पावन सरिताओं के तट पर कुंभ महापर्व में भारतवासियों की [[आत्मा]], आस्था, विश्वास और [[संस्कृति]] का शंखनाद करती है। [[उज्जैन]] और [[नासिक]] का कुंभ<ref>सिंह राशि के गुरू में</ref> मनाये जाने के कारण 'सिंहस्थ' कहलाते है। बारह वर्ष बाद फिर आने वाले कुंभ के माध्यम से उज्जैन के क्षिप्रा तट पर एक लघु भारत उभरता है।
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सिंहस्थ कुंभ महापर्व धार्मिक व आध्यात्मिक चेतना का महापर्व है। धार्मिक जागृति द्वारा मानवता, त्याग, सेवा, उपकार, प्रेम, सदाचरण, अनुशासन, अहिंसा, सत्संग, भक्ति-भाव अध्ययन-चिंतन परम शक्ति में विश्वास और सन्मार्ग आदि आदर्श गुणों को स्थापित करने वाला पर्व है। हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन की पावन सरिताओं के तट पर कुंभ महापर्व में भारतवासियों की [[आत्मा]], आस्था, विश्वास और [[संस्कृति]] का शंखनाद करती है। [[उज्जैन]] और [[नासिक]] का कुंभ<ref>सिंह राशि के गुरु में</ref> मनाये जाने के कारण 'सिंहस्थ' कहलाते है। बारह वर्ष बाद फिर आने वाले कुंभ के माध्यम से उज्जैन के क्षिप्रा तट पर एक लघु भारत उभरता है।
 
====भारतीय संस्कृति का प्रतीक====
 
====भारतीय संस्कृति का प्रतीक====
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[[चित्र:Simhastha-Kumbh-Mela.jpg|thumb|300px|[[स्नान]] को तैयार साधु-संत, सिंहस्थ कुम्भ, [[उज्जैन]]]]
 
[[भारतीय संस्कृति]], आस्था ओर विश्वास के प्रतीक कुंभ का उज्जैन के लिये केवल पौराणिक कथा का आधार ही नहीं, अपितु काल चक्र या काल गणना का वैज्ञानिक आधार भी है। भौगोलिक दृष्टि से अवंतिका-उज्जयिनी या उज्जैन कर्कअयन एवं भूमध्य रेखा के मध्य बिंदु पर अवस्थित है। भारतीय संस्कृति के सम्पूर्ण दर्शन कहाँ होते हैं? इस प्रश्न का सर्वाधिक निर्विवाद उत्तर है- मेले और पर्व। धार्मिक दृष्टि से सिंहस्थ महापर्व की अपनी महिमा है, परंतु इसके समाजशास्त्रीय महत्व से भी इंकार नहीं किया जा सकता। सिंहस्थ सामाजिक परिवर्तन और नियंत्रण की स्थितियों को समझने और तदनुरूप समाज निर्माण का एक श्रेष्ठ अवसर है। सही अर्थों में इसे "द्वादश वर्षीय जन सम्मेलन" कहा जा सकता है।<ref name="ab"/>
 
[[भारतीय संस्कृति]], आस्था ओर विश्वास के प्रतीक कुंभ का उज्जैन के लिये केवल पौराणिक कथा का आधार ही नहीं, अपितु काल चक्र या काल गणना का वैज्ञानिक आधार भी है। भौगोलिक दृष्टि से अवंतिका-उज्जयिनी या उज्जैन कर्कअयन एवं भूमध्य रेखा के मध्य बिंदु पर अवस्थित है। भारतीय संस्कृति के सम्पूर्ण दर्शन कहाँ होते हैं? इस प्रश्न का सर्वाधिक निर्विवाद उत्तर है- मेले और पर्व। धार्मिक दृष्टि से सिंहस्थ महापर्व की अपनी महिमा है, परंतु इसके समाजशास्त्रीय महत्व से भी इंकार नहीं किया जा सकता। सिंहस्थ सामाजिक परिवर्तन और नियंत्रण की स्थितियों को समझने और तदनुरूप समाज निर्माण का एक श्रेष्ठ अवसर है। सही अर्थों में इसे "द्वादश वर्षीय जन सम्मेलन" कहा जा सकता है।<ref name="ab"/>
====आकर्षण====
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==मुख्य आकर्षण==
सिंहस्थ पर्व का सर्वाधिक आकर्षण विभिन्न मतावलंबी साधुओं का आगमन, निवास एवं विशिष्ट पर्वों पर बड़े उत्साह, श्रद्धा, प्रदर्शन एवं समूहबद्ध अपनी-अपनी अनियों सहित क्षिप्रा नदी का [[स्नान]] है। लाखों की संख्या में दर्शक एवं यात्रीगण इनका दर्शन करते हैं और इनके स्नान करने पर ही स्वयं स्नान करते हैं। इन साधु-संतों व उनके अखाड़ों की भी अपनी-अपनी विशिष्ट परंपराएँ व रीति-रिवाज हैं।
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सिंहस्थ पर्व का सर्वाधिक आकर्षण विभिन्न मतावलंबी साधुओं का आगमन, निवास एवं विशिष्ट पर्वों पर बड़े उत्साह, श्रद्धा, प्रदर्शन एवं समूहबद्ध अपनी-अपनी अनियों सहित [[क्षिप्रा नदी]] का [[स्नान]] है। लाखों की संख्या में दर्शक एवं यात्रीगण इनका दर्शन करते हैं और इनके स्नान करने पर ही स्वयं स्नान करते हैं। इन साधु-संतों व उनके अखाड़ों की भी अपनी-अपनी विशिष्ट परंपराएँ व रीति-रिवाज हैं।
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====श्रीगंगा गोदावरी मंदिर====
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[[नासिक]] के रामकुंड में श्रीगंगा गोदावरी मंदिर का कपाट 12 वर्षों बाद खुलता है। यह दुनिया का अपनी तरह का पहला ऐसा मंदिर है, जो 12 वर्षों पर कुंभ मेला चक्र के दौरान खुलता है। मंदिर बंद रहने के दौरान लोग बाहर से ही पूजा करते हैं। श्रीगंगा गोदावरी मंदिर के अलावा यहाँ कुल 108 मंदिर हैं।
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रामकुंड मंदिर भगवान शिव से संबंधित है और कपालेश्वर मंदिर देश का ऐसा पहला मंदिर है, जहां मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी की जगह एक सांड़ है। ऐसा माना जाता है कि एक बार नंदी ने भगवान शिव को परामर्श दिया कि यदि वे रामकुंड में [[स्नान]] करते हैं तो ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त हो जाएंगे। इससे प्रभावित होकर भगवान शिव ने नंदी को अपने गुरुओं में शामिल कर लिया और यही वजह है कि कपालेश्वर मंदिर के बाहर नंदी की कोई मूर्ति नहीं है।
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रामकुंड भी एक अति पवित्र जगह है, जहां 14 वर्षों के वनवास के दौरान भगवान [[राम]], [[सीता]] तथा [[लक्ष्मण]] ने कुछ वर्ष व्यतीत किए थे। यहां से आठ किलोमीटर दूर अंजनेरी की पहाड़ियों में वह स्थान है, जिसे [[हनुमान]] का जन्म स्थल माना जाता है।<ref name="aa"/>
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
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07:33, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

कुम्भ मेला से संबंधित लेख
सिंहस्थ (कुम्भ)
सिंहस्थ कुम्भ मेले का दृश्य
अनुयायी हिन्दू
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के आने पर उज्जैन में महाकुंभ मेला आयोजित होता है, जिसे 'सिंहस्थ कुम्भ' के नाम से पूरे भारत में जाना जाता है।
धार्मिक मान्यता सिंहस्थ कुंभ धार्मिक व आध्यात्मिक चेतना का महापर्व है। धार्मिक जागृति द्वारा मानवता, त्याग, सेवा, उपकार, प्रेम, सदाचरण, अनुशासन, अहिंसा, सत्संग, भक्ति-भाव अध्ययन-चिंतन परम शक्ति में विश्वास और सन्मार्ग आदि आदर्श गुणों को स्थापित करने वाला पर्व है।
संबंधित लेख कुम्भ मेला, इलाहाबाद, नासिक, उज्जैन, हरिद्वार
अन्य जानकारी सिंहस्थ पर्व का सर्वाधिक आकर्षण विभिन्न मतावलंबी साधुओं का आगमन, निवास एवं विशिष्ट पर्वों पर बड़े उत्साह, श्रद्धा, प्रदर्शन एवं समूहबद्ध अपनी-अपनी अनियों सहित क्षिप्रा नदी का स्नान है।

सिंहस्थ उज्जैन, मध्य प्रदेश का महान् स्नान पर्व है। यह बारह वर्षों के अंतराल से मनाया जाता है। जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि पर स्थित रहता है, तब यह पर्व मनाया जाता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियाँ चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होती हैं और पूरे मास में वैशाख पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होती है। उज्जैन के महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्त्वपूर्ण माने गए हैं।

प्राचीन परम्परा

देवताओं एवं दानवों के समुद्र मंथन के पश्चात् अन्य अनमोल रत्नों के साथ अमृत कुंभ भी निकला। इस कुंभ को स्वर्ग में सुरक्षा के साथ पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्द्रपुत्र जयंत को सोंपी गयी थी। इस शुभ कार्य में सूर्य, चंद्र, शनि एवं बृहस्पति (गुरू) ने बड़ा योगदान दिया। अमृत कुंभ स्वर्ग तक ले जाते समय देवताओं को राक्षसों का चार बार सामना करना पड़ा। इन चार हमलों के दौरान देवताओं द्वारा अमृत कुंभ चार स्थानों पर पृथ्वी पर रखा गया। उन चार स्थानों पर प्रति बारह साल बाद कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। यह चार स्थान हरिद्वार, प्रयाग, त्र्यंबकेश्वर और उज्जैन हैं। जिन राशियों में बृहस्पति होने पर कुंभ रखा जाता है, उन राशियों में गुरू आने पर उस स्थान पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है। यह ध्यान में रखना चाहिए कि हरिद्वार, प्रयाग, त्र्यंबकेश्वर, उज्जैन स्थानों के अलावा अन्य किसी भी स्थान पर कुंभ मेला नहीं लगता।

कुंभ पर्व एवं कुंभ योग

ज्योतिष परंपराओं में कुंभ पर्व को कुंभ राशि एवं कुंभ योग से जोड़ा गया है। कुंभ योग विष्णुपुराण के अनुसार चार तरह के हैं। जब गुरू कुंभ राशि में होता है और सूर्य मेष राशि में प्रविष्ट होता है, तब कुंभ पर्व हरिद्वार में लगता है। जब गुरू मेष राशि चक्र में प्रवेश करता है और सूर्य, चन्द्रमा मकर राशि में माघ अमावास्या के दिन होते हैं, तब कुंभ का आयोजन प्रयाग में किया जाता है। सूर्य एवं गुरू सिंह राशि में प्रकट होने पर कुंभ मेले का आयोजन नासिक (महाराष्ट्र) में गोदावरी नदी के मूल तट पर लगता है।[1] उज्जैन में मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के आने पर यहाँ महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सिंहस्थ के नाम से देशभर में पुकारा जाता है। सिंहस्थ आयोजन की एक प्राचीन परम्परा है। इसके आयोजन के संबंध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं।[2]

अमृत की बूंदे छलकने के समय जिन राशियों में सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं, वहाँ कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर आयोजन होता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे। इसी कारण इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परम्परा है। सिंहस्थ महापर्व के अवसर पर उज्जैन का धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व स्वयं ही कई गुना बढ़ जाता है। साधु-संतों का एकत्र होना, सर्वत्र पावन स्वरों का गुंजन, शब्द एवं स्वर शक्ति का आत्मिक प्रभाव यहाँ प्राणी मात्र को अलौकिक शांति प्रदान करता है।[2]

इन्हें भी देखें: कुम्भ परम्परा

आध्यात्मिक चेतना का पर्व

सिंहस्थ कुंभ महापर्व धार्मिक व आध्यात्मिक चेतना का महापर्व है। धार्मिक जागृति द्वारा मानवता, त्याग, सेवा, उपकार, प्रेम, सदाचरण, अनुशासन, अहिंसा, सत्संग, भक्ति-भाव अध्ययन-चिंतन परम शक्ति में विश्वास और सन्मार्ग आदि आदर्श गुणों को स्थापित करने वाला पर्व है। हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन की पावन सरिताओं के तट पर कुंभ महापर्व में भारतवासियों की आत्मा, आस्था, विश्वास और संस्कृति का शंखनाद करती है। उज्जैन और नासिक का कुंभ[3] मनाये जाने के कारण 'सिंहस्थ' कहलाते है। बारह वर्ष बाद फिर आने वाले कुंभ के माध्यम से उज्जैन के क्षिप्रा तट पर एक लघु भारत उभरता है।

भारतीय संस्कृति का प्रतीक

स्नान को तैयार साधु-संत, सिंहस्थ कुम्भ, उज्जैन

भारतीय संस्कृति, आस्था ओर विश्वास के प्रतीक कुंभ का उज्जैन के लिये केवल पौराणिक कथा का आधार ही नहीं, अपितु काल चक्र या काल गणना का वैज्ञानिक आधार भी है। भौगोलिक दृष्टि से अवंतिका-उज्जयिनी या उज्जैन कर्कअयन एवं भूमध्य रेखा के मध्य बिंदु पर अवस्थित है। भारतीय संस्कृति के सम्पूर्ण दर्शन कहाँ होते हैं? इस प्रश्न का सर्वाधिक निर्विवाद उत्तर है- मेले और पर्व। धार्मिक दृष्टि से सिंहस्थ महापर्व की अपनी महिमा है, परंतु इसके समाजशास्त्रीय महत्व से भी इंकार नहीं किया जा सकता। सिंहस्थ सामाजिक परिवर्तन और नियंत्रण की स्थितियों को समझने और तदनुरूप समाज निर्माण का एक श्रेष्ठ अवसर है। सही अर्थों में इसे "द्वादश वर्षीय जन सम्मेलन" कहा जा सकता है।[2]

मुख्य आकर्षण

सिंहस्थ पर्व का सर्वाधिक आकर्षण विभिन्न मतावलंबी साधुओं का आगमन, निवास एवं विशिष्ट पर्वों पर बड़े उत्साह, श्रद्धा, प्रदर्शन एवं समूहबद्ध अपनी-अपनी अनियों सहित क्षिप्रा नदी का स्नान है। लाखों की संख्या में दर्शक एवं यात्रीगण इनका दर्शन करते हैं और इनके स्नान करने पर ही स्वयं स्नान करते हैं। इन साधु-संतों व उनके अखाड़ों की भी अपनी-अपनी विशिष्ट परंपराएँ व रीति-रिवाज हैं।

श्रीगंगा गोदावरी मंदिर

नासिक के रामकुंड में श्रीगंगा गोदावरी मंदिर का कपाट 12 वर्षों बाद खुलता है। यह दुनिया का अपनी तरह का पहला ऐसा मंदिर है, जो 12 वर्षों पर कुंभ मेला चक्र के दौरान खुलता है। मंदिर बंद रहने के दौरान लोग बाहर से ही पूजा करते हैं। श्रीगंगा गोदावरी मंदिर के अलावा यहाँ कुल 108 मंदिर हैं।

रामकुंड मंदिर भगवान शिव से संबंधित है और कपालेश्वर मंदिर देश का ऐसा पहला मंदिर है, जहां मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी की जगह एक सांड़ है। ऐसा माना जाता है कि एक बार नंदी ने भगवान शिव को परामर्श दिया कि यदि वे रामकुंड में स्नान करते हैं तो ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त हो जाएंगे। इससे प्रभावित होकर भगवान शिव ने नंदी को अपने गुरुओं में शामिल कर लिया और यही वजह है कि कपालेश्वर मंदिर के बाहर नंदी की कोई मूर्ति नहीं है। रामकुंड भी एक अति पवित्र जगह है, जहां 14 वर्षों के वनवास के दौरान भगवान राम, सीता तथा लक्ष्मण ने कुछ वर्ष व्यतीत किए थे। यहां से आठ किलोमीटर दूर अंजनेरी की पहाड़ियों में वह स्थान है, जिसे हनुमान का जन्म स्थल माना जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 ध्वजारोहण से शुरू हुआ नासिक-त्र्यंबक सिंहस्थ कुंभ (हिन्दी) जागरण। अभिगमन तिथि: 18 जुलाई, 2015।
  2. 2.0 2.1 2.2 सिंहस्थ कुम्भ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 जनवरी, 2012।
  3. सिंह राशि के गुरु में

संबंधित लेख