सनाभि
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सनाभि पाणिनिकालीन भारतवर्ष में प्रचलन में आने वाला एक शब्द था।
- समान नाभि के स्थान में सनाभि आदेश होता है।[1] नाभि का यहाँ अर्थ "गर्भ की नाल" है।
- ऋग्वेद[2] में ऋषि परुच्छेप का कथन है कि "हमारी नाभियाँ मनु, अत्रि और कण्व आदि पूर्वजों के साथ मिली हुई हैं।[3]
- सनाभि के अंतर्गत पहली और पिछली सभी पीढ़ियों के रक्त संबंधी आ जाते हैं। पर मनु[4] पर कुल्लुक ने सनाभ्य का अर्थ सपिंड किया है।[5]
इन्हें भी देखें: पाणिनि, अष्टाध्यायी एवं भारत का इतिहास
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