आचार्या
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पाणिनिकालीन भारतवर्ष में स्त्री चरणों के संस्थापक, सांग सरहस्य वेद का अध्ययन कराने वाले, उपनयन कराने के अधिकारी महान आचार्य शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च पद के अधिकारी थे। उन्हीं की कोटि पर पहुंचकर अध्यापन कार्य करने वाली विशिष्ट स्त्रियां आचार्या जैसे सम्मानित पद की अधिकारिणी होती थीं।[1]
- पुरुषों के समान ही सांग सरहस्य वेद का अध्यापन कराने और माणविकाओं का उपनयन कराने का जिसे अधिकार हो, वही आचार्या हो सकती थी।
- शिक्षा की ऐसी उन्नत दशा में छात्राओं के लिए अलग आवास स्थानों का प्रबंध भी किया जाना आवश्यक था। पाणिनि ने विशेष रूप से छात्रिशालाओं का उल्लेख किया है।[2] आचार्यों के निरीक्षण में जो शिक्षा संस्थाएं चलती थीं, उन्हीं के अंतर्गत यह छात्रिशालाएं रहती होंगी।[3]
इन्हें भी देखें: पाणिनि, अष्टाध्यायी एवं भारत का इतिहास
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