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स्टीफन के अंदर एक ग्रेट साइंटिस्ट की क्वालिटी बचपन से ही दिखाई देने लगी थी। दरअसल, किसी भी चीज़ के निर्माण और उसकी कार्य-प्रणाली को लेकर उनके अंदर तीव्र जिज्ञासा रहती थी। यही वजह थी कि जब वे स्कूल में थे, तो उनके सभी सहपाठी और टीचर उन्हें प्यार से '[[आइंस्टाइन]]' कहकर बुलाते थे। हॉकिंग की सरलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक ओर वे सुदूर अंतरिक्ष के रहस्य सुलझाते हैं तो दूसरी ओर [[टेलीविज़न|टीवी]] पर भी नजर आते हैं। [[ब्रिटेन]] के कई चैनलों ने उन्हें लेकर कई प्रोगाम बनाए हैं। सैद्धांतिक भौतिकी, अंतरिक्ष विज्ञान से लेकर कार्टूनों और बच्चों की काल्पनिक और कोमल दुनिया में भी वे बड़ी आसानी से घूम आते हैं। | स्टीफन के अंदर एक ग्रेट साइंटिस्ट की क्वालिटी बचपन से ही दिखाई देने लगी थी। दरअसल, किसी भी चीज़ के निर्माण और उसकी कार्य-प्रणाली को लेकर उनके अंदर तीव्र जिज्ञासा रहती थी। यही वजह थी कि जब वे स्कूल में थे, तो उनके सभी सहपाठी और टीचर उन्हें प्यार से '[[आइंस्टाइन]]' कहकर बुलाते थे। हॉकिंग की सरलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक ओर वे सुदूर अंतरिक्ष के रहस्य सुलझाते हैं तो दूसरी ओर [[टेलीविज़न|टीवी]] पर भी नजर आते हैं। [[ब्रिटेन]] के कई चैनलों ने उन्हें लेकर कई प्रोगाम बनाए हैं। सैद्धांतिक भौतिकी, अंतरिक्ष विज्ञान से लेकर कार्टूनों और बच्चों की काल्पनिक और कोमल दुनिया में भी वे बड़ी आसानी से घूम आते हैं। | ||
==स्टीफन हॉकिंग की बीमारी== | ==स्टीफन हॉकिंग की बीमारी== | ||
हॉकिंग के जज्बे को उनके चिकित्सकों से लेकर पूरी दुनिया सिर झुकाती है। हॉकिंग का शरीर भले ही उनका साथ नहीं दे पाता है लेकिन अपने दिमाग के कारण उनकी तुलना आइंस्टाइन के समतुल्य की जाती है। हॉकिंग का आईक्यू (''Intelligence Quotient'' ) 160 है। जो कि आईक्यू का उच्चतम स्तर है। वे एक न ठीक होने वाली बीमारी यानी स्टीफ मोटर न्यूरॉन डिजीज नाम की एक ऐसी बीमारी से पीडित हैं। जिसमें मरीज़ धीरे-धीरे शरीर के किसी भी अंग पर अपना नियंत्रण खो देता है और इंसान सामान्य ढंग से बोल या चल नहीं सकता है। दरअसल, चिकित्सकों को जब इस बीमारी का पता चला, तो उन्होंने यहां तक कह डाला था कि अब स्टीफन हॉकिंग ज़्यादा दिनों तक नहीं जिंदा रह सकेंगे। लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी बीमारी को कमज़ोरी नहीं बनने दिया। जब हॉकिंग 21 साल के थे तो उन्हें एम्योट्रोफिक लेटरल स्कलोरेसिस नाम बीमारी की वजह से लकवा मार गया था। हॉकिंग को जब यह पता चला कि वे मोटर न्यूरॉन डिजीज से पीडि़त हैं, तो उन्हें | हॉकिंग के जज्बे को उनके चिकित्सकों से लेकर पूरी दुनिया सिर झुकाती है। हॉकिंग का शरीर भले ही उनका साथ नहीं दे पाता है लेकिन अपने दिमाग के कारण उनकी तुलना आइंस्टाइन के समतुल्य की जाती है। हॉकिंग का आईक्यू (''Intelligence Quotient'' ) 160 है। जो कि आईक्यू का उच्चतम स्तर है। वे एक न ठीक होने वाली बीमारी यानी स्टीफ मोटर न्यूरॉन डिजीज नाम की एक ऐसी बीमारी से पीडित हैं। जिसमें मरीज़ धीरे-धीरे शरीर के किसी भी अंग पर अपना नियंत्रण खो देता है और इंसान सामान्य ढंग से बोल या चल नहीं सकता है। दरअसल, चिकित्सकों को जब इस बीमारी का पता चला, तो उन्होंने यहां तक कह डाला था कि अब स्टीफन हॉकिंग ज़्यादा दिनों तक नहीं जिंदा रह सकेंगे। लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी बीमारी को कमज़ोरी नहीं बनने दिया। जब हॉकिंग 21 साल के थे तो उन्हें एम्योट्रोफिक लेटरल स्कलोरेसिस नाम बीमारी की वजह से लकवा मार गया था। हॉकिंग को जब यह पता चला कि वे मोटर न्यूरॉन डिजीज से पीडि़त हैं, तो उन्हें दु:ख ज़रूर हुआ, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। दरअसल, उन्हें यह नहीं समझ में आ रहा था कि वे शेष जीवन को कैसे और किस मकसद के साथ जीएं। ऐसे में उन्हें एक ही बात सूझी और वह कि चाहे कितनी भी बुरी परिस्थिति आए, उसे पूरी जिंदादिली के साथ जीओ। यही कारण है कि उन्होंने न केवल जेने वाइल्ड नामक अपनी प्रेमिका से शादी की, बल्कि अपनी पढ़ाई को भी आगे जारी रखा। हालांकि, यह सब करना आसानी से संभव नहीं था। क्योंकि उनके अंगों ने उनका साथ छोड़ दिया था और धीरे-धीरे उनकी जुबान भी बंद हो गई। अब वे न चल-फिर सकते थे और न ही अपनी बात को बोलकर किसी से शेयर ही कर सकते थे। अंतत: वह समय भी आया, जब डॉक्टरों ने व्हील-चेयर के सहारे शेष जीवन गुजारने की सलाह दे दी। | ||
==स्टीफन हॉकिंग का व्हील-चेयर== | ==स्टीफन हॉकिंग का व्हील-चेयर== | ||
[[चित्र:hawking w chair.jpg|thumb|250px|स्टीफन हॉकिंग- व्हीलचेयर पर]] | [[चित्र:hawking w chair.jpg|thumb|250px|स्टीफन हॉकिंग- व्हीलचेयर पर]] |
14:04, 2 जून 2017 का अवतरण
स्टीफन हॉकिंग
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पूरा नाम | स्टीफन विलियम हॉकिंग |
जन्म | 8 जनवरी, 1942 |
जन्म भूमि | ऑक्सफोर्ड, इंग्लैंड |
पति/पत्नी | जेने वाइल्ड, एलेन मेसन |
भाषा | अंग्रेज़ी |
शिक्षा | कॉस्मोलॉजी में पीएच.डी. |
विद्यालय | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
प्रसिद्धि | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफ़ेसर |
विशेष योगदान | थ्योरी ऑफ़ 'बिग-बैंग' और 'ब्लैक होल्स' की नई परिभाषा |
नागरिकता | ब्रिटेन |
पुस्तक | 'ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑव टाइम' |
अन्य जानकारी | स्टीफन हॉकिंग, रॉयल सोसायटी और यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज के एक सम्मानित सदस्य भी हैं। |
अद्यतन | 19:30, 29 जुलाई 2014 (IST)
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स्टीफन विलियम हॉकिंग (अंग्रेज़ी: Stephen William Hawking, जन्म: 8 जनवरी, 1942) एक विश्व प्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी, ब्रह्माण्ड विज्ञानी, लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सैद्धांतिक ब्रह्मांड विज्ञान केन्द्र (Centre for Theoretical Cosmology) के शोध निर्देशक हैं। उन्हें लुकासियन प्रोफेसर ऑफ मैथेमेटिक्स भी कहा जाता है। 'कर खुदी को इतना बुलंद कि खुदा बंदे से पूछे बता तेरी रजा क्या है' यह उक्ति ब्रिटेन के ख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग पर पूरी तरह सटीक बैठती है। तभी तो नब्बे फीसदी विकलांग होने के बावजूद उनकी क्षमता का लोहा पूरी दुनिया मानती है। महान वैज्ञानिक स्टीफन विलियम हॉकिंग पर 'जितेंद्र' शब्द बिल्कुल सटीक बैठता है। क्योंकि जो मोटर न्यूरॉन डिजीज से पीड़ित होकर भी न्यूटन और आइंस्टाइन की बिरादरी में शामिल हो गए हों, उनके लिए इससे माक़ूल शब्द कोई हो ही नहीं सकता। आज समाज में ऐसे कम ही लोग मिलते हैं, जिन्होंने अपनी इंद्रियों पर विजय पाई हो। असल में जो लोग इस कारनामे को कर-गुजरते हैं, वे ही सही मायने में 'जितेंद्र' कहलाते हैं। स्टीफन हॉकिंग भी ऐसे 'जितेंद्र' हैं, जिन्होंने इंद्रियों को प्रयत्न करके अपने वश में नहीं किया है, बल्कि उनकी इंद्रियां खुद-ब-खुद उनका साथ छोड़ चुकी है।
प्रारंभिक जीवन
स्टीफन विलियम हॉकिंग का जन्म 8 जनवरी, 1942 को इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड में हुआ था। गौरतलब है कि यही वह तारीख थी, जिस दिन महान वैज्ञानिक गैलिलियो का भी जन्म हुआ था। उनके माता-पिता का घर उत्तरी लंदन में था। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लंदन की अपेक्षा ऑक्सफोर्ड अधिक सुरक्षित था, जिसके कारण हॉकिंग का परिवार ऑक्सफोर्ड में बस गया। जब वे आठ साल के थे तो वे उत्तरी लंदन से बीस मील दूर सेंट अलबेंस में बस गए। 11 साल की उम्र तक उन्होंने सेंट एलबेंस स्कूल में पढ़ाई की। फिर वे ऑक्सफोर्ड के यूनिवर्सिटी कॉलेज चले गए। उनकी रुचि बचपन से गणित में थी, लेकिन पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे। चूंकि उनके पिता खुद एक डॉक्टर थे और इसीलिए वे ऐसा चाहते थे। पर संयोगवश उनकी आगे की पढ़ाई भौतिकी विषय में हुई क्योंकि उन दिनों कॉलेज में गणित की पढ़ाई उपलब्ध नहीं थी और धीरे-धीरे इसी विषय से कॉस्मोलॉजी सेक्शन में पढ़ाई की।

मेधावी छात्र
स्टीफन हॉकिंग एक मेधावी छात्र थे, इसलिए स्कूल और कॉलेज में हमेशा अव्वल आते रहे। तीन सालों में ही उन्हें प्रकृति विज्ञान में प्रथम श्रेणी की ऑनर्स की डिग्री मिली। जो कि उनके पिता के लिए किसी ख्वाब के पूरा होने से कम नहीं था। गणित को प्रिय विषय मानने वाले स्टीफन हॉकिंग में बड़े होकर अंतरिक्ष-विज्ञान में एक ख़ास रुचि जगी। यही वजह थी कि जब वे महज 20 वर्ष के थे, कैंब्रिज कॉस्मोलॉजी विषय में रिसर्च के लिए चुन लिए गए। ऑक्सफोर्ड में कोई भी ब्रह्मांड विज्ञान में काम नहीं कर रहा था उन्होंने इसमें शोध करने की ठानी और सीधे पहुंच गए कैम्ब्रिज। वहां उन्होंने कॉस्मोलॉजी यानी ब्रह्मांड विज्ञान में शोध किया। इसी विषय में उन्होंने पीएच.डी. भी की। अपनी पीएच.डी. करने के बाद जॉनविले और क्यूस कॉलेज के पहले रिचर्स फैलो और फिर बाद में प्रोफेशनल फैलो बने। यह उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। लेकिन हॉकिंग ने वही किया जो वे चाहते थे। संयुक्त परिवार में भरोसा रखने वाले हॉकिंग आज भी अपने तीन बच्चों और एक पोते के साथ रहते हैं।

स्टीफन के अंदर एक ग्रेट साइंटिस्ट की क्वालिटी बचपन से ही दिखाई देने लगी थी। दरअसल, किसी भी चीज़ के निर्माण और उसकी कार्य-प्रणाली को लेकर उनके अंदर तीव्र जिज्ञासा रहती थी। यही वजह थी कि जब वे स्कूल में थे, तो उनके सभी सहपाठी और टीचर उन्हें प्यार से 'आइंस्टाइन' कहकर बुलाते थे। हॉकिंग की सरलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक ओर वे सुदूर अंतरिक्ष के रहस्य सुलझाते हैं तो दूसरी ओर टीवी पर भी नजर आते हैं। ब्रिटेन के कई चैनलों ने उन्हें लेकर कई प्रोगाम बनाए हैं। सैद्धांतिक भौतिकी, अंतरिक्ष विज्ञान से लेकर कार्टूनों और बच्चों की काल्पनिक और कोमल दुनिया में भी वे बड़ी आसानी से घूम आते हैं।
स्टीफन हॉकिंग की बीमारी
हॉकिंग के जज्बे को उनके चिकित्सकों से लेकर पूरी दुनिया सिर झुकाती है। हॉकिंग का शरीर भले ही उनका साथ नहीं दे पाता है लेकिन अपने दिमाग के कारण उनकी तुलना आइंस्टाइन के समतुल्य की जाती है। हॉकिंग का आईक्यू (Intelligence Quotient ) 160 है। जो कि आईक्यू का उच्चतम स्तर है। वे एक न ठीक होने वाली बीमारी यानी स्टीफ मोटर न्यूरॉन डिजीज नाम की एक ऐसी बीमारी से पीडित हैं। जिसमें मरीज़ धीरे-धीरे शरीर के किसी भी अंग पर अपना नियंत्रण खो देता है और इंसान सामान्य ढंग से बोल या चल नहीं सकता है। दरअसल, चिकित्सकों को जब इस बीमारी का पता चला, तो उन्होंने यहां तक कह डाला था कि अब स्टीफन हॉकिंग ज़्यादा दिनों तक नहीं जिंदा रह सकेंगे। लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी बीमारी को कमज़ोरी नहीं बनने दिया। जब हॉकिंग 21 साल के थे तो उन्हें एम्योट्रोफिक लेटरल स्कलोरेसिस नाम बीमारी की वजह से लकवा मार गया था। हॉकिंग को जब यह पता चला कि वे मोटर न्यूरॉन डिजीज से पीडि़त हैं, तो उन्हें दु:ख ज़रूर हुआ, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। दरअसल, उन्हें यह नहीं समझ में आ रहा था कि वे शेष जीवन को कैसे और किस मकसद के साथ जीएं। ऐसे में उन्हें एक ही बात सूझी और वह कि चाहे कितनी भी बुरी परिस्थिति आए, उसे पूरी जिंदादिली के साथ जीओ। यही कारण है कि उन्होंने न केवल जेने वाइल्ड नामक अपनी प्रेमिका से शादी की, बल्कि अपनी पढ़ाई को भी आगे जारी रखा। हालांकि, यह सब करना आसानी से संभव नहीं था। क्योंकि उनके अंगों ने उनका साथ छोड़ दिया था और धीरे-धीरे उनकी जुबान भी बंद हो गई। अब वे न चल-फिर सकते थे और न ही अपनी बात को बोलकर किसी से शेयर ही कर सकते थे। अंतत: वह समय भी आया, जब डॉक्टरों ने व्हील-चेयर के सहारे शेष जीवन गुजारने की सलाह दे दी।
स्टीफन हॉकिंग का व्हील-चेयर

हालांकि यह कोई सामान्य व्हीलचेयर नहीं है, बल्कि इसमें वे सारे इक्विपमेंट्स लगे हुए हैं, जिनके माध्यम से वे विज्ञान के अनसुलझे रहस्यों के बारे में दुनिया को बता सकते हैं। उनकी व्हील चेयर के साथ एक विशेष कम्प्यूटर और स्पीच सिंथेसाइजर लगा हुआ है। जिसके सहारे वे पूरी दुनिया से बात करते हैं। हॉकिंग का सिस्टम इंफ्रारेड ब्लिंक स्विच से जुड़ा हुआ है। जो उनके चश्मे में लगाया गया है। इसी के माध्यम से वे बोलते हैं। इसके अलावा उनके घर और ऑफिस के गेट रेडियो ट्रांसमिशन से जुड़ा हुआ है। हॉकिंग का जज़्बा ऎसा है कि वे पिछले कई दशकों से अपनी व्हील चेयर पर बैठे-बैठे अंतरिक्ष विज्ञान की जटिल पहेलियों और रहस्यों को सुलझा रहे हैं। इसमें वे काफ़ी हद तक सफल भी रहे। ब्लैक होल को लेकर हॉकिंग की थ्योरी बड़ी मजेदार है। इसमें हॉकिंग ने कहा है कि ब्रह्मांड में ब्लैक होल का अस्तित्व तो है लेकिन वे हमेशा काले नहीं होते। इसका मतलब यह है कि ब्लैक होल में अनिवार्य रूप से गुम हो जाने वाली ऊर्जा और समस्त द्रव्यमान उनसे नई ऊर्जा के रूप में प्रस्फुटित होते रहते हैं। विख्यात भौतिकविद आइंसटाइन की एक टिप्पणी पर वे कमेंट करते हुए कहते हैं कि ईश्वर न सिर्फ बखूबी जुआ खेलता है बल्कि उसके फेंके गए पासे ऐसी जगह गिरते हैं जहां वे हमें दिखते नहीं हैं। हॉकिंग दुनिया के लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे जब भी कुछ बोलते या लिखते हैं तो दुनिया भर की मीडिया की नजर में छा जाते हैं।
स्टीफन हॉकिंग एक महान वैज्ञानिक
दरअसल, जिस क्षेत्र में योगदान के लिए स्टीफन हॉकिंग को याद किया जाता है, वह कॉस्मोलॉजी ही है। कॉस्मोलॉजी, जिसके अंतर्गत ब्रह्मांड की उत्पत्ति, संरचना और स्पेस-टाइम रिलेशनशिप के बारे में अध्ययन किया जाता है। और इसीलिए उन्हें कॉस्मोलॉजी का विशेषज्ञ माना जाता है, जिसकी बदौलत वे थ्योरी ऑफ 'बिग-बैंग' और 'ब्लैक होल्स' की नई परिभाषा गढ़ पाने में कामयाब हो सके हैं। स्टीफन की चर्चित किताब- ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑव टाइम आज भी दुनिया की सबसे अमूल्य पुस्तकों में से एक है। उल्लेखनीय है कि उनके योगदानों के कारण उन्हें अब तक लगभग बारह सम्मानित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा, वे रॉयल सोसायटी और यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के एक सम्मानित सदस्य भी हैं।
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