"आभानेरी": अवतरणों में अंतर
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'''आभानेरी''' [[राजस्थान]] के [[दौसा ज़िला|दौसा ज़िले]] में स्थित एक ऐतिहासिक [[ग्राम]] है। यह [[जयपुर]] से 95 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह [[इतिहास]] की आभा से अभीभूत कर देने वाला स्थान है। यह छोटा-सा ग्राम किसी समय [[राजा भोज]] की राजधानी रहा था। आभानेरी से प्राप्त [[पुरातत्त्व]] [[अवशेष|अवशेषों]] को देखकर यह कहा जा सकता है कि यह स्थान लगभग तीन हज़ार वर्ष तक पुराना हो सकता है। यहाँ से प्राप्त कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण पुरावशेष 'अल्बर्ट हॉल म्यूजियम', जयपुर की शोभा बढ़ा रहे हैं। | '''आभानेरी''' [[राजस्थान]] के [[दौसा ज़िला|दौसा ज़िले]] में स्थित एक ऐतिहासिक [[ग्राम]] है। यह [[जयपुर]] से 95 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह [[इतिहास]] की आभा से अभीभूत कर देने वाला स्थान है। यह छोटा-सा ग्राम किसी समय [[राजा भोज]] की राजधानी रहा था। आभानेरी से प्राप्त [[पुरातत्त्व]] [[अवशेष|अवशेषों]] को देखकर यह कहा जा सकता है कि यह स्थान लगभग तीन हज़ार वर्ष तक पुराना हो सकता है। यहाँ से प्राप्त कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण पुरावशेष 'अल्बर्ट हॉल म्यूजियम', जयपुर की शोभा बढ़ा रहे हैं। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग|पुरातत्त्व विभाग]] द्वारा यहां से प्राप्त पुरावशेषों को देखकर यह कहा जा सकता है कि आभानेरी गांव तीन हज़ार साल तक पुराना हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि यहां [[गुर्जर प्रतिहार वंश|गुर्जर प्रतिहार]] राजा सम्राट [[मिहिर भोज]] ने शासन किया था। उन्हीं को राजा चांद के नाम से भी जाना जाता है। आभानेरी का वास्तविक नाम 'आभानगरी' था। कालान्तर में [[अपभ्रंश]] के कारण यह आभानेरी कहलाने लगा।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.pinkcity.com/hi/places-to-visit-2/abhaneri-rajasthan/|title= आभानेरी-शिल्प की स्वर्णनगरी|accessmonthday= 04 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पिंकसिटी.कॉम|language= हिन्दी}}</ref> | [[भारतीय पुरातत्त्व विभाग|पुरातत्त्व विभाग]] द्वारा यहां से प्राप्त पुरावशेषों को देखकर यह कहा जा सकता है कि आभानेरी गांव तीन हज़ार साल तक पुराना हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि यहां [[गुर्जर प्रतिहार वंश|गुर्जर प्रतिहार]] राजा सम्राट [[मिहिर भोज]] ने शासन किया था। उन्हीं को राजा चांद के नाम से भी जाना जाता है। आभानेरी का वास्तविक नाम 'आभानगरी' था। कालान्तर में [[अपभ्रंश]] के कारण यह आभानेरी कहलाने लगा।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.pinkcity.com/hi/places-to-visit-2/abhaneri-rajasthan/|title= आभानेरी-शिल्प की स्वर्णनगरी|accessmonthday= 04 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पिंकसिटी.कॉम|language= हिन्दी}}</ref> | ||
==कला और संस्कृति का स्थल== | ==कला और संस्कृति का स्थल== | ||
[[कला]] और [[संस्कृति]] के क्षेत्र में [[भारत]] की भूमि का कोई मुकाबला नहीं है। | [[कला]] और [[संस्कृति]] के क्षेत्र में [[भारत]] की भूमि का कोई मुकाबला नहीं है। यहाँ पग-पग पर कला के [[रंग]] समय को भी यह इजाजत नहीं देते कि वे उसके अस्तित्व पर गर्त भी डाल सकें। भारत की ऐसी ही वैभवशाली और पर्याप्त समृद्ध स्थापत्य कला के नमूने कहीं-कहीं [[इतिहास]] के झरोखे से झांकते मालूम होते हैं। ऐसे ही कुछ नमूने [[राजस्थान]] के [[दौसा ज़िला|दौसा ज़िले]] में स्थित ऐतिहासिक स्थल 'आभानेरी' में देखने को मिलते हैं। | ||
====राजा भोज की राजधानी==== | ====राजा भोज की राजधानी==== | ||
आभानेरी इतिहास की आभा से अभीभूत कर देने वाला ऐतिहासिक स्थान है। [[जयपुर]]-[[आगरा]] मार्ग पर सिकंदरा क़स्बे से कुछ कि.मी. उत्तर दिशा में यह छोटा-सा [[ग्राम]] किसी समय [[राजा भोज]] की विशाल रियासत की राजधानी रहा था। राजा भोज को 'राजा चांद' या 'राजा चंद्र' के नाम से भी जाना जाता | आभानेरी [[इतिहास]] की आभा से अभीभूत कर देने वाला ऐतिहासिक स्थान है। [[जयपुर]]-[[आगरा]] मार्ग पर सिकंदरा क़स्बे से कुछ कि.मी. उत्तर दिशा में यह छोटा-सा [[ग्राम]] किसी समय [[राजा भोज]] की विशाल रियासत की राजधानी रहा था। राजा भोज को 'राजा चांद' या 'राजा चंद्र' के नाम से भी जाना जाता था।<ref name="aa"/> | ||
==पुरावशेष== | ==पुरावशेष== | ||
राजा चांद ने यहाँ कई चमत्कृत कर देने वाले निर्माण कराए थे, जिनके स्थापत्य की आभा [[तुर्क]] आक्रमणकारी सहन नहीं कर पाए और खूबसूरत शिल्पों के | राजा चांद ने यहाँ कई चमत्कृत कर देने वाले निर्माण कराए थे, जिनके स्थापत्य की आभा [[तुर्क]] आक्रमणकारी सहन नहीं कर पाए और खूबसूरत शिल्पों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। आज भी शिल्प विधा का चरम बयान करते इन टुकड़ों पर उत्कीर्ण मूर्तियाँ और बेल-बूटे एक साथ रूदन करते और हास करते नजर आते हैं। संयोग-वियोग में भीगी यह कला रोती हुई-सी मालूम होती है, क्योंकि इन्हें लूटपाट कर तोड़ा गया और हंसती हुई-सी इसलिए प्रतीत होती हैं कि आज के वैज्ञानिक और यांत्रिक युग में मशीन से भी ऐसे शिल्प गढ़ना किसी के लिए भी आसान कार्य नहीं है। इतिहास की कला और उथल-पुथल को बयान करते आभानेरी से प्राप्त कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण पुरावशेष 'अल्बर्ट हॉल म्यूजियम', [[जयपुर]] की शोभा बढ़ा रहे हैं। | ||
====हर्षत माता मंदिर==== | |||
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इस विशाल मंदिर का निर्माण चौहान वंशीय राजा चांद ने आठवीं-नवीं सदी में करवाया था। राजा चांद तत्कालीन आभानेरी के शासक थे। उस समय आभानेरी आभा नगरी' के नाम से जानी जाती थी। हर्षत माता का अर्थ है "हर्ष देने वाली"। कहा जाता है कि राजा चांद अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे। साथ ही वे स्थापत्य कला के पारखी और प्रेमी थे। वे दुर्गा को शक्ति के रूप में पूजते थे। अपने राज्य पर माता की कृपा मानते थे। अपने शासन काल के दौरान उन्होंने यहां दुर्गा माता का मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि आभानगरी में उस समय सुख शांति और वैभव की कोई कमी नहीं थी और राजा चांद सहित रियासत की प्रजा यह मानती थी कि राज्य की खुशहाली और हर्ष दुर्गा माँ की देन है। इसी सोच के साथ दुर्गा का यह मंदिर हर्षत अर्थात् 'हर्ष की दात्री' के नाम से भी जाना जाने लगा। | |||
====चाँद बावड़ी==== | |||
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चाँद बावड़ी एक सीढ़ीदार [[कुआँ]] है। इस बावड़ी का निर्माण 9वीं शताब्दी में किया गया था। इसमें 3,500 संकरी सीढ़ियाँ हैं और ये 13 तल ऊँचा और 100 फुट या 30 मीटर गहरा है। ये अविश्वसनीय कुआँ उस समय जल की कमी से जूझ रहे इस क्षेत्र की जल समस्या का एक व्यावहारिक समाधान था। चांदनी रात में यह बावड़ी एकदम सफ़ेद दिखायी देती है। तीन मंजिली इस बावड़ी में राजा के लिए नृत्य कक्ष तथा गुप्त सुरंग बनी हुई है। इसके ऊपरी भाग में निर्मित परवर्ती कालीन मंडप इस बावड़ी के लंबे समय तक उपयोग में रहने का प्रमाण देती है। बावड़ी की तह तक पहुंचने के लिए क़रीब 1300 सीढ़ियाँ बनाई गई हैं, जो अद्भुत कला का उदाहरण पेश करती हैं। यह वर्गाकार बावड़ी चारों ओर स्तंभ युक्त बरामदों से घिरी हुई है। यह 19.8 फुट गहरी है, जिसमें नीचे तक जाने के लिए 13 सोपान बने हुए हैं। भुलभुलैया के रूप में बनी इसकी सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है कि कोई व्यक्ति जिस सीढ़ी से नीचे उतरता है, वह वापस कभी उसी सीढ़ी से ऊपर नहीं आ पाता। | |||
====राष्ट्रीय धरोहर==== | ====राष्ट्रीय धरोहर==== | ||
आभानेरी में आठवीं-नवीं सदी में निर्मित दो स्मारक अब '[[राष्ट्रीय धरोहर स्मारक|राष्ट्रीय धरोहर]]' घोषित किये जा चुके हैं, | आभानेरी में आठवीं-नवीं सदी में निर्मित दो स्मारक अब '[[राष्ट्रीय धरोहर स्मारक|राष्ट्रीय धरोहर]]' घोषित किये जा चुके हैं, इन स्मारकों के नाम हैं- 'हर्षत माता का मंदिर' और 'चाँद बावड़ी'। | ||
==पर्यटकों का आगमन== | ==पर्यटकों का आगमन== | ||
आभानेरी ग्राम उस समय राष्ट्रीय फलक पर उभरकर सामने आया, जब | [[राजस्थान]] का आभानेरी ग्राम अचानक उस समय राष्ट्रीय फलक पर उभरकर सामने आया, जब यहाँ आसपास के क्षेत्र से तीसरी-चौथी सदी के पुरावशेष '[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]' को प्राप्त हुए। उसके बाद यह स्थल विभाग ने अपने अधीन ले लिया। अब आभानेरी के '[[हर्षत माता मंदिर]]' और 'चांद बावड़ी' राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक हैं। [[जयपुर]]-[[दिल्ली]]-[[आगरा]] स्वर्णिम त्रिकोण के बीच स्थित इस ऐतिहासिक स्थल पर दिनोंदिन पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। जयपुर-आगरा राजमार्ग और जयपुर के पास स्थित होने से आभानेरी को लाभ भी प्राप्त हुआ है। जयपुर से आभानेरी की दूरी लगभग 95 कि.मी. है। यह जयपुर से आगरा की ओर चलने पर [[दौसा]] से आगे सिकंदरा क़स्बे से उत्तर में लगभग 12 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।<ref name="aa"/> | ||
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चित्र:Abhaneri-2.jpg|आभानेरी के कुँए का दृश्य | |||
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चित्र:Chand-Baori-Abhaneri-2.jpg|चाँद बावड़ी, आभानेरी | |||
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07:48, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
आभानेरी
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विवरण | 'आभानेरी' राजस्थान के दौसा ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक ग्राम है। यह ग्राम अपने पुरातत्त्व अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है। |
राज्य | राजस्थान |
ज़िला | दौसा |
भौगोलिक स्थिति | जयपुर से 95 कि.मी. की दूरी पर स्थित। |
प्रसिद्धि | पुरातत्त्व अवशेषों और ऐतिहासिक स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है। |
कैसे पहुँचें | जयपुर से आभानेरी की दूरी लगभग 95 कि.मी. है। यह जयपुर से आगरा की ओर चलने पर दौसा से आगे सिकंदरा क़स्बे से उत्तर में लगभग 12 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। |
संबंधित लेख | हर्षत माता मंदिर, चाँद बावड़ी, राजस्थान का इतिहास
|
अन्य जानकारी | आभानेरी में आठवीं-नवीं सदी में निर्मित दो स्मारक अब 'राष्ट्रीय धरोहर' घोषित किये जा चुके हैं, ये स्मारक हैं- 'हर्षत माता का मंदिर' और 'चांद बावड़ी'। |
आभानेरी राजस्थान के दौसा ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक ग्राम है। यह जयपुर से 95 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह इतिहास की आभा से अभीभूत कर देने वाला स्थान है। यह छोटा-सा ग्राम किसी समय राजा भोज की राजधानी रहा था। आभानेरी से प्राप्त पुरातत्त्व अवशेषों को देखकर यह कहा जा सकता है कि यह स्थान लगभग तीन हज़ार वर्ष तक पुराना हो सकता है। यहाँ से प्राप्त कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण पुरावशेष 'अल्बर्ट हॉल म्यूजियम', जयपुर की शोभा बढ़ा रहे हैं।
इतिहास
पुरातत्त्व विभाग द्वारा यहां से प्राप्त पुरावशेषों को देखकर यह कहा जा सकता है कि आभानेरी गांव तीन हज़ार साल तक पुराना हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि यहां गुर्जर प्रतिहार राजा सम्राट मिहिर भोज ने शासन किया था। उन्हीं को राजा चांद के नाम से भी जाना जाता है। आभानेरी का वास्तविक नाम 'आभानगरी' था। कालान्तर में अपभ्रंश के कारण यह आभानेरी कहलाने लगा।[1]
कला और संस्कृति का स्थल
कला और संस्कृति के क्षेत्र में भारत की भूमि का कोई मुकाबला नहीं है। यहाँ पग-पग पर कला के रंग समय को भी यह इजाजत नहीं देते कि वे उसके अस्तित्व पर गर्त भी डाल सकें। भारत की ऐसी ही वैभवशाली और पर्याप्त समृद्ध स्थापत्य कला के नमूने कहीं-कहीं इतिहास के झरोखे से झांकते मालूम होते हैं। ऐसे ही कुछ नमूने राजस्थान के दौसा ज़िले में स्थित ऐतिहासिक स्थल 'आभानेरी' में देखने को मिलते हैं।
राजा भोज की राजधानी
आभानेरी इतिहास की आभा से अभीभूत कर देने वाला ऐतिहासिक स्थान है। जयपुर-आगरा मार्ग पर सिकंदरा क़स्बे से कुछ कि.मी. उत्तर दिशा में यह छोटा-सा ग्राम किसी समय राजा भोज की विशाल रियासत की राजधानी रहा था। राजा भोज को 'राजा चांद' या 'राजा चंद्र' के नाम से भी जाना जाता था।[1]
पुरावशेष
राजा चांद ने यहाँ कई चमत्कृत कर देने वाले निर्माण कराए थे, जिनके स्थापत्य की आभा तुर्क आक्रमणकारी सहन नहीं कर पाए और खूबसूरत शिल्पों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। आज भी शिल्प विधा का चरम बयान करते इन टुकड़ों पर उत्कीर्ण मूर्तियाँ और बेल-बूटे एक साथ रूदन करते और हास करते नजर आते हैं। संयोग-वियोग में भीगी यह कला रोती हुई-सी मालूम होती है, क्योंकि इन्हें लूटपाट कर तोड़ा गया और हंसती हुई-सी इसलिए प्रतीत होती हैं कि आज के वैज्ञानिक और यांत्रिक युग में मशीन से भी ऐसे शिल्प गढ़ना किसी के लिए भी आसान कार्य नहीं है। इतिहास की कला और उथल-पुथल को बयान करते आभानेरी से प्राप्त कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण पुरावशेष 'अल्बर्ट हॉल म्यूजियम', जयपुर की शोभा बढ़ा रहे हैं।
हर्षत माता मंदिर

इस विशाल मंदिर का निर्माण चौहान वंशीय राजा चांद ने आठवीं-नवीं सदी में करवाया था। राजा चांद तत्कालीन आभानेरी के शासक थे। उस समय आभानेरी आभा नगरी' के नाम से जानी जाती थी। हर्षत माता का अर्थ है "हर्ष देने वाली"। कहा जाता है कि राजा चांद अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे। साथ ही वे स्थापत्य कला के पारखी और प्रेमी थे। वे दुर्गा को शक्ति के रूप में पूजते थे। अपने राज्य पर माता की कृपा मानते थे। अपने शासन काल के दौरान उन्होंने यहां दुर्गा माता का मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि आभानगरी में उस समय सुख शांति और वैभव की कोई कमी नहीं थी और राजा चांद सहित रियासत की प्रजा यह मानती थी कि राज्य की खुशहाली और हर्ष दुर्गा माँ की देन है। इसी सोच के साथ दुर्गा का यह मंदिर हर्षत अर्थात् 'हर्ष की दात्री' के नाम से भी जाना जाने लगा।
चाँद बावड़ी

चाँद बावड़ी एक सीढ़ीदार कुआँ है। इस बावड़ी का निर्माण 9वीं शताब्दी में किया गया था। इसमें 3,500 संकरी सीढ़ियाँ हैं और ये 13 तल ऊँचा और 100 फुट या 30 मीटर गहरा है। ये अविश्वसनीय कुआँ उस समय जल की कमी से जूझ रहे इस क्षेत्र की जल समस्या का एक व्यावहारिक समाधान था। चांदनी रात में यह बावड़ी एकदम सफ़ेद दिखायी देती है। तीन मंजिली इस बावड़ी में राजा के लिए नृत्य कक्ष तथा गुप्त सुरंग बनी हुई है। इसके ऊपरी भाग में निर्मित परवर्ती कालीन मंडप इस बावड़ी के लंबे समय तक उपयोग में रहने का प्रमाण देती है। बावड़ी की तह तक पहुंचने के लिए क़रीब 1300 सीढ़ियाँ बनाई गई हैं, जो अद्भुत कला का उदाहरण पेश करती हैं। यह वर्गाकार बावड़ी चारों ओर स्तंभ युक्त बरामदों से घिरी हुई है। यह 19.8 फुट गहरी है, जिसमें नीचे तक जाने के लिए 13 सोपान बने हुए हैं। भुलभुलैया के रूप में बनी इसकी सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है कि कोई व्यक्ति जिस सीढ़ी से नीचे उतरता है, वह वापस कभी उसी सीढ़ी से ऊपर नहीं आ पाता।
राष्ट्रीय धरोहर
आभानेरी में आठवीं-नवीं सदी में निर्मित दो स्मारक अब 'राष्ट्रीय धरोहर' घोषित किये जा चुके हैं, इन स्मारकों के नाम हैं- 'हर्षत माता का मंदिर' और 'चाँद बावड़ी'।
पर्यटकों का आगमन
राजस्थान का आभानेरी ग्राम अचानक उस समय राष्ट्रीय फलक पर उभरकर सामने आया, जब यहाँ आसपास के क्षेत्र से तीसरी-चौथी सदी के पुरावशेष 'भारतीय पुरातत्त्व विभाग' को प्राप्त हुए। उसके बाद यह स्थल विभाग ने अपने अधीन ले लिया। अब आभानेरी के 'हर्षत माता मंदिर' और 'चांद बावड़ी' राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक हैं। जयपुर-दिल्ली-आगरा स्वर्णिम त्रिकोण के बीच स्थित इस ऐतिहासिक स्थल पर दिनोंदिन पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। जयपुर-आगरा राजमार्ग और जयपुर के पास स्थित होने से आभानेरी को लाभ भी प्राप्त हुआ है। जयपुर से आभानेरी की दूरी लगभग 95 कि.मी. है। यह जयपुर से आगरा की ओर चलने पर दौसा से आगे सिकंदरा क़स्बे से उत्तर में लगभग 12 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।[1]
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चित्र वीथिका
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चाँद बाबड़ी, आभानेरी
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आभानेरी का सीढ़ीदार कुँआ
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आभानेरी स्थित चाँद बाबड़ी
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आभानेरी, राजस्थान
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आभानेरी स्थित 'हर्षत माता मंदिर'
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आभानेरी के कुँए का दृश्य
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चाँद बावड़ी
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चाँद बावड़ी, आभानेरी
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 आभानेरी-शिल्प की स्वर्णनगरी (हिन्दी) पिंकसिटी.कॉम। अभिगमन तिथि: 04 अक्टूबर, 2014।
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