वृहत्कथामंजरी

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वृहत्कथामंजरी नामक ग्रंथ की रचना क्षेमेन्द्र द्वारा की गई थी। इस ग्रंथ में 'वृहत्कथा' का अनुवाद है। ग्रंथ को सुरुचिपूर्ण बनाने के उद्देश्य से कवि ने मूलकथा में कुछ अन्य कथाओं का भी समावेश कर दिया है। इस रचना का मुख्य उद्देश्य वृतत्कथा के कथानकों से संस्कृत के अध्येताओं को परिचित कराना है।

  • 'वृहत्कथामंजरी' की कथा प्रणाली में अनेक विशेषताएँ हैं। इसमें कुल 7,500 श्लोक हैं, जो 16 लम्बकों (सर्गों) में विभाजित हैं। कहीं-कहीं इसकी भाषा क्लिष्ट तथा दुर्बोध हो गई है।
  • इस ग्रंथ में ऋतुओं तथा प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन भी चमत्कारपूर्ण है।
  • कथा में क्षेमेन्द्र ने हास्य रस का बड़ा सुन्दर समावेश किया है। इसके माध्यम से उन्होंने अपने युग के पाखण्डियों की खिल्ली उड़ाई है।
  • क्षेमेन्द्र की रचना का उद्देश्य मात्र रोचक एवं हास्यास्पद कथानक प्रस्तुत करना ही नहीं तथा था, अपितु उनके माध्यम से सामान्य जन-जीवन को नैतिक दृष्टि से उन्नत बनाना भी था। इस दृष्टि से 'वृहत्कथामंजरी' एक उपदेशात्मक रचना है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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