बंदरगाह
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विवरण | 'बंदरगाह' किसी तट पर स्थित वह स्थान होता है, जहाँ एक साथ कई जहाज़ खड़े हो सकते हैं। बंदरगाह स्थान, वाणिज्यिक मांग और हवा एवं लहरों से शरण के लिए, भूमि और नौगम्य पानी के अधिगम को उपयुक्त बनाने के लिए चयनित किये जाते हैं। |
भारत में बंदरगाह | बड़े बंदरगाह- 12, छोटे बंदरगाह- 187 |
अन्य जानकारी | भारत में बड़े बंदरगाह केंद्र सरकार और छोटे बंदरगाह राज्य सरकारों के अंतर्गत आते हैं। देश में स्थित 12 बड़े बंदरगाह (भारतीय कंपनी अधिनियम-1956 के अधीन पोर्ट ऑफ़ एन्नौर सहित) पूर्वी और पश्चिमी तटों पर समान रूप से बनाए गए हैं। |
बंदरगाह (अंग्रेज़ी: Port) एक तट या किनारे पर एक स्थान होता है, जिसमें एक या अधिक बंदरगाह समाविष्ट होते हैं। बंदरगाह स्थान, वाणिज्यिक मांग और हवा एवं लहरों से शरण के लिए, भूमि और नौगम्य पानी के अधिगम को उपयुक्त बनाने के लिए चयनित किये जाते हैं।[1]
भारत के बंदरगाह
भारत के तटवर्ती इलाकों में 12 बड़े बंदरगाह और 200 छोटे बंदरगाह हैं। बड़े बंदरगाह केंद्र सरकार और छोटे बंदरगाह राज्य सरकारों के अंतर्गत आते हैं। देश में स्थित 12 बड़े बंदरगाह (भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 के अधीन पोर्ट ऑफ एन्नोर सहित) पूर्वी और पश्चिमी तटों पर समान रूप से बनाए गए हैं। कोलकाता, पारादीप, विशाखापत्तनम, चेन्नई, एन्नोर और तूतीकोरिन बंदरगाह भारत के पूर्वी तट पर स्थित हैं, जबकि कोच्चि, न्यू मंगलौर, मार्मुगाओ , मुंबई, न्हावाशेवा पर जवाहरलाल नेहरू और कांडला बंदरगाह पश्चिमी तट पर स्थित हैं।
क्षमता
बड़े बंदरगाहों की क्षमता 1951 में 20 मिलियन टन प्रतिवर्ष से बढ़कर 31 मार्च, 2007 तक 504.75 मिलियन टन प्रतिवर्ष हो गई है। दसवीं पंचवर्षीय योजना के शुरू में बंदरगाहों की क्षमता 343.45 मिलियन टन प्रतिवर्ष थी। जो दसवीं योजना के अंत तक (31 मार्च, 2007 तक) बढ़कर 504.75 मिलियन टन प्रतिवर्ष तक पहुंच गई। इस अवधि में 160.80 मिलियन टन प्रतिवर्ष की अतिरिक्त क्षमता की उपलब्धि रही। दसवीं योजना के सभी वर्षों में इन बड़े बंदरगाहों में ट्रैफिक की आवाजाही में भी वृद्धि हुई। वर्ष 2006-07 में छोटे बंदरगाहों में 185.54 मिलियन टन और 2006-07 के अंत तक यह बढ़कर 228 मिलियन टन प्रतिवर्ष हो गई। दसवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारंभ में बड़े बंदरगाहों में आने वाले जहाजों से 313.55 मिलियन टन क्षमता बढ़कर वर्ष 2007-08 में 519.67 मिलियन टन हो गई जिसमें 73.48 मिलियन कंटेनर ट्रैफिक था। बड़े बंदरगाहों में कंटेनर ट्रैफिक 2005-06 के 61.98 मिलियन से बढ़कर 2007-2008 में 78.87 मिलियन टन हो गया। बंदरगाहों के कुशल संचालन, उत्पादकता बढ़ाने और सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ बंदरगाहों में प्रतिस्पर्धा लाने के उद्देश्य से इसे क्षेत्र में निजी भागीदारी को भी स्वीकृति दे दी गई है। अब तक 4927 करोड़ रुपए के निवेश वाली 17 निजी क्षेत्र की परियोजनाएं संचालित की गई हैं जिसमें 99.30 मिलियन टन प्रतिवर्ष अतिरिक्त क्षमता शामिल है। 5181 करोड़ रुपए के निवेश वाली 8 परियोजनाओं का कार्यान्वयन और मूल्यांकन किया जा रहा है।[2]
सामुद्रिक जलमार्ग
भारत के 7,516.6 किमी. लम्बे समुद्र तट में 12 प्रमुख बंदरगाह तथा 187 छोटे बन्दरगाह हैं। प्रधान बंदरगाह हैं: कांडला, मुम्बई, न्हावासेवा में (जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह), मार्मुगाओ , नयू मंगलौर, तूतीकोरिन, कोच्चि, चेन्नई, विशाखापत्तनम , पारादीप, कोलकाता, हल्दिया, एन्नौर। भारत हिंद महासागर के सिरे पर स्थित हैं। यहां से पूर्व और दक्षिण-पूर्व को सामुद्रिक मार्ग चीन, जापान, यूरोप इण्डोनेशिय, मलेशिया और आस्ट्रेलिया को; दक्षिण और पश्चिम में सन्युक्त राज्य अमेरिका, यूरोप तथा अफ्रीका को और दक्षिण में श्रीलंका को जाते हैं। इस प्रकार भारत पश्चिम के औद्योगिक व सम्पन्न देशो को दक्षिण-पूर्व व पूर्वी एशिया के विकासशील एवं कृषि प्रधान देशों से मिलने के लिए एक कड़ी का काम करता है। भारत के बंदरगाहों पर मिलने वाले प्रधान जल-मार्ग निम्न हैं:
स्वेज जल-मार्ग
ये जल मार्ग के खुले जाने से भारत और यूरोप के बीच का व्यापार बहुत बढ़ गया है। इस मार्ग द्वारा भारत, यूरोप को कच्चा माल और खाद्य पदार्थ भेजता है तथा बदले में तैयार माल और मशीनें मंगवाता है।
उत्तमाशा अंतरीप जल-मार्ग
ये जल मार्ग भारत को दक्षिणी अफ्रीका और पश्चिमी अफ्रीका से जोड़ता है। कभी-कभी दक्षिणी अमरीका जाने वाले जहाज भी इसी मार्ग से आते हैं। भारत इस मार्ग से अपने यहां रूई, शक्कर, आदि मंगवाता है।
सिंगापुर जल-मार्ग
जल मार्ग का आवागमन की दृष्टी से स्वेज-मार्ग के बाद दूसरा स्थान है। यह मार्ग भारत को चीन और जापान से जोड़ता है। इस मार्ग द्वारा भारत, कनाडा और न्यूजीलैंण्ड के बीच व्यापार होता है। भारत में इस मार्ग से सूती-रेशमी कपड़ा, लोहा और इस्पात का सामान, मशीनें, चीनी के बर्तन, खिलौने, रासायनिक पदार्थ, कागज, आदि आते हैं और बदले में रूई, लोहा, मैंगनीज, जूट, अभ्रक, आदि निर्यात होते है।
सुदूर-पूर्व का जल-मार्ग
यह जल मार्ग भी महत्वपूर्ण है। यह मार्ग भारत को ऑस्ट्रेलिया से जोड़ता है। इस मार्ग से भारत में कच्ची ऊन, घोड़े, फल, अयस्क, आदि वस्तुओं का आयात होता है और बदले में जूट, चाय, अलसी, परिधान व इंजीनियरी सामान, आदि निर्यात होते हैं। इन मार्गों पर अधिकतर अंग्रेज़ी, फ्रासीसी, जापानी और इटैलियन कम्पनियों के जहाज़ चलते हैं। भारतीय कम्पनियों के जहाजों की संख्या बहुत ही कम है।
प्रकार
भारत में तीन प्रकार के बंदरगाह पाये जाते हैं-
- बड़े बंदरगाह (Major Port)
- छोटे बंदरगाह (Minor Port)
- मध्यम बंदरगाह (Intermediate Port)
प्रधान (या बड़े) बंदरगाह केंद्रीय सरकार तथा गौण (या छोटे) बंदरगाह राजकीय सरकार द्वारा प्रशासित किये जाते हैं। मुम्बई, मार्मुगाओ और चेन्नई का प्रबंध बंदरगाह प्राधिकरण के पास एवं पारादीप, नया मंगलौर, विशाखापत्तनम, नया तूतीकोरिन और कांडला का प्रबंध स्थानीय प्रशासकों के हाथ में है। मुम्बई व न्हावाशेवा के जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह को मिलाकर देश में कुल 12 बड़े या प्रधान बंदरगाह कार्यरत हैं। मंझले और छोटे बंदरगाहों पर राज्य सरकारों का नियंत्रण रहता है। यातायात की दृष्टि से भारत में 10 लाख टन वार्षिक से अधिक यातायात संभालने वाले बंदरगाह को बड़ा, 1 लाख टन से अधिक वाले को मंझला और 1,500 से 1लाख टन वाले को छोटा तथा 1,500 टन से कम वाले को उप-बंदरगाह कहा जाता है।
भारत के बड़े बंदरगाह
भारत में 12 बड़े बंदरगाह हैं- कांडला, मुम्बई, न्हावाशेवा में जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह, मार्मुगाओ, कोच्चि, नया मंगलौर, तूतीकोरिन, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पारादीप, कोलकाता-हल्दिया तथा एन्नौर हैं। इन्हीं बंदरगाहों द्वारा भारत के विदेशी व्यापार का लगभग 92% से भी अधिक होता है। इन बड़े बंदरगाहों के अतिरिक्त भारत में 184 छोटे या गौण बंदरगाहों की व्यापार क्षमता 100 लाख टन है।
पश्चिमी तट के बंदरगाह
विभिन्न तटीय राज्यों के प्रमुख एवं गौण बंदरगाह निम्न प्रकार हैं-
- गुजरात - लखपत, मांडवी, कांडला, नवलखी, बेदी, माधवपुर, ओखा, द्वारका, मिआनी, पोरबंदर, नवीबंदर, कोडीनगर, भावनगार, भरूंच, सिक्का, बलसाड, सूरत, वैरावल, सोमनाथ, दाहेज, पिपालोव, मुंद्रा आदि।
- महाराष्ट्र - दहानू, माहिम, मुम्बई, अलीबाग़, श्रीवर्द्ध, रत्नागिरी, देवगढ़, मालवन, बेंगुर्ला, राक्स, चांदवाली और रेड़ी।
- गोवा - पंजिम, मार्मुगाओ, कनाकोनी।
- कर्नाटक - होनावर, कुण्डापुर, मंगलौर, भटकल, करवाड़, बेपुर, माल्पे।
- केरल - तैलीचेरी, कोझीकोड, कोच्चि, एलप्पी, क्विलोन, तिरूवनन्तपुरम, कासरगोड़, कन्नानौर, इर्नाकुलम।
पूर्वी तट के बंदरगाह
इस तट के विभिन्न राज्यों के बंदरगाह निम्न हैं-
- तमिलनाडु - कन्याकुमारी, तूतीकोरिन, धनुषकोटि, रामेश्वरम, टोंडी, नागापट्टनम, पोटोनोवो, कड्डालोर, महाबलीपुरम, चेन्नई, एन्नौर।
- आंध्र प्रदेश - मुहुकुरू, अल्लूर, मसुलिपत्तनम, काकीनाडा, विशाखापत्तनम, वाल्टेयर, विमिलीपटन, कलिंगपटनम, श्रीकाकुलम।
- उड़ीसा - गोपालपुर, छत्रपुर, गंजाम, पुरी, पारादीप।
- पश्चिम बंगाल - दीप्पा, कोलकाता, गंगासागर, हल्दिया।
ऐतिहासिक, सामाजिक, मत्स्य पालन व आर्थिक, सामरिक एवं प्रशासनिक आदि कारणों से उपर्युक्त बंदरगाहों को महत्व मिलता रहता है।
तटवार बड़े बंदरगाह
तटवार भारत के 12 बड़े प्रमुख बंदरगाहों की स्थिति निम्न प्रकार से है-
- पश्चिमी तट पर - कांडला, मुम्बई, न्हावाशेवा में जवहरलाल नेहरू बंदरगाह, मार्मगाओ, नया मंगलौर और कोच्चि।
- पूर्वी तट पर - तूतीकोरिन, चेन्नई, विशाखापट्टनम, पारादीप, कोलकाता-हल्दिया एवं एन्नौर।
तटरेखा पर बंदरगाहों का अभाव
भारत की मुख्य भूमि की तट रेखा लगभग 7,516.6 किलोमीटर लम्बी है, किंतु यह कम कटी-फटी है। अत: इसके तट पर प्रधान या बड़े प्राकृतिक पोताश्रय या बंदरगाह बहुत कम हैं। इसके अतिरिक्त किनारे के निकट सागर का जल छिछला है और किनारे अधिकतर चपटे और बालूमय हैं। नदियों के मुहानों पर भी बालू मिट्टी इकट्ठी रहती है, इसलिये बंदरगाह या तट तक जहाज़ आसानी से नहीं पहुंच सकते। पश्चिमी समुद्र तट पर मुम्बई बंदरगाह व न्हावावेशा में (जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह), कांडला, मार्मुगाओ , न्यू मंगलौर और कोच्चि बंदरगाहों को छोड़कर कोई भी स्वत: सुरक्षित बंदरगाह नहीं हैं। प्राय: सभी बंदरगाह (इनको छोड़कर) मानसून के दिनों में व्यापार के लिये बंद रहते हैं। इसके कई कारण हैं-
- नदियों द्वारा बाढ़ के समय लायी गयी मिट्टी एवं छिछले मुहाने।
- इसके अतिरिक्त मई से अगस्त तक पश्चिमी तट पर मानसून पवनों का प्रकोप रहता है। अत: मुम्बई, न्हावाशेवा और मार्मुगाओ को छोड़कर अन्य बंदरगाहों का पूरा-पूरा उपयोग नहीं हो पाता।
- समस्त पश्चिमी तटीय भाग थोड़ी-बहुत कटानों के अतिरिक्त प्राय: सपाट और पथरीला है।
भारत में पूर्वी तट पर यद्यपि नदियों के डेल्टा अधिक हैं, किंतु इन नदियों द्वारा लायी हुई मिट्टी से समुद्र तट पटता है। कोलकाता के बंदरगाह पर भी यही कठिनाई रहती है। कभी-कभी घण्टों तक जहाज़ों को ज्वार-भाटे की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इस भाग में कोलकाता का बंदरगाह ही प्राकृतिक है। चेन्नई, पारादीप और विशाखापत्तनम कृत्रिम बंदरगाह हैं। समुद्र जल की गहराई पर्याप्त रखने के लिए निरंतर झामों (dredgers) का प्रयोग करना पड़ता है।
भारत के सामुदायिक मार्ग
देश का लगभग 99 प्रतिशत व्यापार समुद्री मार्गों से होता है। विकाशील देशों में भारत के पास व्यापारिक जहाज़ों का चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा बेड़ा है और व्यापारिक जहाज़रानी बेड़े के दृस्टीकोण से भारत विश्व में 17वें स्थान पर है। भारत के पास 12 बड़े व 184 छोटे व मछोले बंदरगाह हैं। बड़े बन्दरगाहों के प्रबंधन व विकास की जिम्मेवारी केंद्र सरकार की है, जबकि अन्य बन्दरगाह समवर्ती सूची में हैं, जिनका प्रबंधन तथा प्रशासन संबद्ध राज्य सरकारें करतीं। भारत के सामुदायिक मार्ग विशेषत: कोलकाता, विशाखापत्तनम, चेन्नई, कोच्चि, मुम्बई एवं कांडला के बंदरगाह से ही आरम्भ होते हैं। नीचे इन बंदरगाहों से आरम्भ होने वाले प्रमुख मार्गों को बताया गया है:
कोलकाता के सामुद्रिक जलमार्ग
- कोलकाता-सिंगापुर-न्यूजीलैण्ड
- कोलकाता-कोलम्बो-पर्थ-एडीलेड
- कोलकाता-कोलम्बो-अदन-पोर्ट सईद
- कोलकाता-सिंगापुर-हांगकांग-टोकियो
- कोलकाता-विशाखापत्तनम-चेन्नई
- कोलकाता-रंगून
- कोलकाता-सिंगापुर-वटाविय।
विशाखापत्तनम के सामुद्रिक जलमार्ग
- विशाखापत्तनम-रंगून
- विशाखापत्तनम-चेन्नई-कोलम्बो
- विशाखापत्तनम-कोल्म्बो-अदन-पोर्ट सईद
- विशाखापत्तनम-कोलकाता।
चेन्नई के सामुद्रिक जलमार्ग
- चेन्नई-कोलम्बो-मारीशस
- चेन्नई-कोलम्बो-अदन-पोर्ट सईद
- चेन्नई-रंगून-सिंगापुर
- चेन्नई-कोलकाता
- चेन्नई-मुम्बई।
कोच्चि के सामुद्रिक जलमार्ग
- कोच्चि-मुम्बई-कराची
- कोच्चि-मुम्बई-अदन-पोर्ट सईद
- कोच्चि-कोलम्बो-कोलकात-पर्थ
- कोच्चि-कोलम्बो-कोलकात।
मुम्बई के सामुद्रिक जलमार्ग
- मुम्बई-कोलम्बो-पर्थ-एडीलेड
- मुम्बई-मोम्बासा-डरबन-केपटाउन
- मुम्बई-कोलम्बो-सिंगापुर
- मुम्बई-कराची-अदन
- मुम्बई-पोर्ट सईद
- मुम्बई-कोलम्बो-चेन्नई
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