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===परिचय===
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'''शहद''' / '''मधु''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Honey'') एक प्राकृतिक मधुर [[पदार्थ]] है जो मधुमक्खियों द्वारा [[फूल|फूलों]] के रस को चूसकर तथा उसमें अतिरिक्त पदार्थों को मिलाने के बाद छत्ते के कोषों में एकत्र करने के फलस्वरूप बनता है। शहद हर किसी के जीवन में महत्व रखता है। फिर चाहे वह खानपान, चिकित्सा से संबंधित हो या फिर सौंदर्य से। इसमें प्रचुर मात्रा में गुण हैं। आज से हजारों वर्ष पहले से ही दुनिया के सभी चिकित्सा शास्त्रों, धर्मशास्त्रों, पदार्थवेत्ता-विद्वानों, वैधों-हकीमों ने शहद की उपयोगिता व महत्व को बताया है। [[आयुर्वेद]] के [[ऋषि|ऋषियों]] ने भी माना है कि [[तुलसी]] व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। इसे [[पंजाबी भाषा]] में माख्यों भी कहा जाता है। शहद तो [[देवता|देवताओं]] का भी आहार माना जाता रहा है।  
[[Image:pure_honey.jpg|शुद्ध शहद|thumb|250px]]
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==परिचय==
'''शहद''' या '''मधु''' एक प्राकृतिक मधुर [[पदार्थ]] है जो मधुमक्खियों द्वारा [[फूल|फूलों]] के रस को चूसकर तथा उसमें अतिरिक्त पदार्थों को मिलाने के बाद छत्ते के कोषों में एकत्र करने के फलस्वरूप बनता है। शहद हर किसी के जीवन में महत्व रखता है। फिर चाहे वह खानपान, चिकित्सा से संबंधित हो या फिर सौंदर्य से। इसमें प्रचुर मात्रा में गुण हैं। आज से हजारों वर्ष पहले से ही दुनिया के सभी चिकित्सा शास्त्रों, धर्मशास्त्रों, पदार्थवेत्ता-विद्वानों, वैधों-हकीमों ने शहद की उपयोगिता व महत्व को बताया है। [[आयुर्वेद]] के [[ऋषि|ऋषियों]] ने भी माना है कि [[तुलसी]] व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। इसे [[पंजाबी भाषा]] मे माख्यों भी कहा जाता है। शहद तो [[देवता|देवताओं]] का भी आहार माना जाता रहा है। कहते हैं कि महापराक्रमी [[दैत्य]] [[महिषासुर]] के साथ युद्ध करते समय जगन्माता चंडिका ने बार-बार शहद का पान करके दैत्य का वध किया था।
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[[आयुर्वेद]] में शहद को एक खाद्य एवं प्राकृतिक औषधि के रूप में निरूपित किया गया है और शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाये रखने के लिये इसे अमृत भी कहा गया है। शहद न केवल एक औषधि का काम करता है, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों में और सौन्दर्य बढ़ाने में भी विशेष योगदान देता है। शहद मानव को प्रकृति का अनमोल वरदान है। शहद में ख़ास गुण यह है कि वह कभी ख़राब नहीं होता। प्राचीनकाल में मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस से प्राकृतिक रूप से तैयार मधु ही एकमात्र मिष्ठान्न का ज्ञात स्रोत था और यही सभी धार्मिक रीति-रिवाजों, सामाजिक कार्यक्रमों, प्रत्येक धर्म एवं समाज में प्रमुख रूप से प्रयोग में लाया जाता था। आयुर्वेद में इसका काफ़ी प्रयोग हुआ है। शहद में सदा उपयोगी एवं शुध्द बने रहने का गुण विद्यमान है। ज्यों-ज्यों यह पुराना होता जाता है, गुणवत्ता बढ़ती जाती है। 1923 ई. में मिस्त्र के फराओ नूनन खामेन के पिरामिड में रूसी वैज्ञानिक को एक शहद से भरा पात्र मिला। उस समय हैरत में डाल देने वाली बात यह थी कि यह शहद 3300 वर्ष पुराना होने के बावजूद ख़राब नहीं हुआ था। उसके स्वाद और गुण में कोई अंतर नहीं आया था। शहद, पंचामृत में प्रयोग होने वाले पदार्थो में से एक है। प्रत्येक पूजा में पंचामृत अवश्य बनाया जाता है।   
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आयुर्वेद में शहद को एक खाद्य एवं प्राकृतिक औषधि के रूप में निरूपित किया गया है और शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाये रखने के लिये इसे अमृत भी कहा गया है। शहद न केवल एक औषधि का काम करता है, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों में और सौन्दर्य बढ़ाने में भी विशेष योगदान देता है। शहद मानव को प्रकृति का अनमोल वरदान है। शहद में ख़ास गुण यह है कि वह कभी ख़राब नहीं होता। प्राचीनकाल में मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस से प्राकृतिक रूप से तैयार मधु ही एकमात्र मिष्ठान्न का ज्ञात स्रोत था और यही सभी धार्मिक रीति-रिवाजों, सामाजिक कार्यक्रमों, प्रत्येक धर्म एवं समाज में प्रमुख रूप से प्रयोग में लाया जाता था। आयुर्वेद में इसका काफ़ी प्रयोग हुआ है। शहद में सदा उपयोगी एवं शुध्द बने रहने का गुण विद्यमान है। ज्यों-ज्यों यह पुराना पडता जाता है, गुणवत्ता बढती जाती है। 1923 ई. में मिस्त्र के फराओ नूनन खामेन के पिरामिड में रूसी वैज्ञानिक को एक शहद से भरा पात्र मिला। उस समय हैरत में डाल देने वाली बात यह थी कि यह शहद 3300 वर्ष पुराना होने के बावजूद ख़राब नहीं हुआ था। उसके स्वाद और गुण में कोई अंतर नहीं आया था। शहद, पंचामृत में प्रयोग होने वाले पदार्थो में से एक है। प्रत्येक पूजा में पंचामृत अवश्य बनाया जाता है।   
 
  
===मधुमक्खियाँ===
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===शहद और मधुमक्खी===
मधुमक्खियां प्राकृतिक हलवाई हैं। उनके द्वारा बनाई गई यह मिठाई- ‘शहद’ बाज़ार में मिलने वाली मिठाइयों की तरह न तो बासी होता है और न पेट ख़राब करके रोगों को आमंत्रित ही करता है, वरन् अधिक समय तक रहने पर अधिक गुणकारी हो जाता है। परिश्रम से एकत्रित की हुई हजारों वनस्पतियों का सत्व हमें एक स्थान पर एकत्रित हुए शहद के रूप में मिल जाता है। इसमें जो स्वाभाविक शक्तिवर्ध्दक तथा रोग निरोधक तत्व मिलते हैं, उन्हें आज बोतलों में बंद औषधियों तथा टॉनिकों में पाना संभव ही नहीं होता।
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{{Main|शहद और मधुमक्खी}}
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मधुमक्खियां प्राकृतिक हलवाई हैं। उनके द्वारा बनाई गई यह मिठाई- ‘शहद’ बाज़ार में मिलने वाली मिठाइयों की तरह न तो बासी होता है और न पेट ख़राब करके रोगों को आमंत्रित ही करता है, वरन् अधिक समय तक रहने पर अधिक गुणकारी हो जाता है। परिश्रम से एकत्रित की हुई हजारों वनस्पतियों का सत्व हमें एक स्थान पर एकत्रित हुए शहद के रूप में मिल जाता है। इसमें जो स्वाभाविक शक्तिवर्ध्दक तथा रोग निरोधक तत्व मिलते हैं, उन्हें आज बोतलों में बंद औषधियों तथा टॉनिकों में पाना संभव ही नहीं होता। आज के वैज्ञानिक युग में भी शहद का बनना मानवी बुद्धि से परे हैं, शहद बनाने का गुण प्रकृति ने केवल मधुमक्खियों को ही प्रदान किया है। शहद को शहद की मक्खियां (''Honey Bee'') बनाती है। इनका जो घर होता है, उस को छत्ता कहते है, इन छत्तों में मधुमक्खियाँ रहती है। मधुमक्खियों के जीवन की 4 अवस्थायें अंडा, लार्वा, प्यूपा, वयस्क मक्खी होती है। ये मधुमक्खियाँ निम्न प्रकार की होती है-
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# श्रमिक
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# नर
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# रानी
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रानी मधुमक्खी आकार में सबसे बड़ी होती है। एक छत्ते में एक ही या ज़्यादा होती है। ये अंडे देती है। जिन अण्डों को नर निषेचित करते हैं। यदि रानी मधुमक्खी को पकड़ ले तो शाही सैनिक और श्रमिक मक्खियाँ आक्रमण कर देंगी परन्तु छत्ते में रानी मधुमक्खी को ढूँढना आसान काम नहीं है।
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[[file:honey bees22.jpg|thumb|250px|left|मधुमक्खी पालन]]
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एक मधुमक्खी को एक पौंड शहद बनाने का लिए तीन-चार सौ पौंड पुष्परस इकट्ठा करना पड़ता है। अपने भार का आधे वजन का पुष्परस लादे उन्हें 4000 मील की यात्रा करनी पड़ती है। मधु या शहद एक मीठा, चिपचिपाहट वाला अर्ध तरल पदार्थ होता है जो मधुमक्खियों द्वारा पौधों के [[पुष्प|पुष्पों]] में उपस्थित मकरन्द के कोशों से निकलने वाले मकरंद जिसे नेक्टर नाम का रस भी कहते हैं, से तैयार किया जाता है और आहार के रूप में छत्ते की कोठियों में संग्रह किया जाता है। मधुमक्खी के पेट में एक थैलीनुमा संरचना होती है जो एक वाल्व से जुडी होती है। मधुमक्खी अपनी जीभ की सहायता से फूल की नली में विद्यमान पुष्परस की छोटी मात्रा चुस्ती है और इस मधु संग्रही थैली में एकत्र करती रहती है और छत्ते में आकर इस रस को वाल्व के द्वारा मधुकोशों में उगल देती है। और मकरंद में जो पानी होता है वो वाष्पीकरण के द्वारा उड़ जाता है और बाकी पदार्थ रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप शहद में बदल जाता है। मधुमक्खी दिनभर जिस पुष्परस को इकट्ठा करती जाती है उसे मधु के रूप में बदलने के लिए सक्रिय रहती है। पी.ई. नेरिस (प्रसिद्ध रसायनविद) के अनुसार मधु मात्र पुष्परसों का संग्रह ही नहीं है, वरन् यह मधुमक्खी का श्रमतत्व ही है, जिसको पाकर पुष्परस मधुरस के रूप में परिणित हो जाता है। इसे गाढा बनाने के लिए अपने सिर को भीतर की ओर उसके द्वारों पर डैनों से पंखा किया करती है। इस मेहनत के कारण ही छत्तों के आसपास मधुर-मधुर गुंजन सुनाई पड़ता है, जो अच्छा भी लगता है।
  
आज के वैज्ञानिक युग में भी शहद का बनना मानवी बुध्दि से परे हैं, शहद बनाने का गुण प्रकृति ने केवल मधुमक्खियों को ही प्रदान किया है। शहद को शहद की मक्खियां / Honey Bee बनाती है। इनका जो घर होता है, उस को छत्ता कहते है, इन छत्तों मे मधुमक्खियाँ रहती है। मधुमक्खियों के जीवन की 4 अवस्थाये अंडा, लार्वा, प्यूपा, वयस्क मक्खी होती है। ये मधुमक्खियाँ निम्न प्रकार की होती है - 1. श्रमिक  2. नर  3. रानी । रानी मधुमक्खी आकार मे सबसे बड़ी होती है। एक छत्ते मे एक ही या ज़्यादा होती है ये अंडे देती है। जिन अण्डों को नर निषेचित करते है। यदि रानी मधुमक्खी को पकड़ ले तो शाही सैनिक और श्रमिक मक्खियाँ आक्रमण कर देंगी परन्तु छत्ते मे रानी मधुमक्खी को ढूँढना आसान काम नहीं है।  
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शहद इकठ्ठा करने के लिए मधुमक्खियों को बहुत ही परिश्रम करना पड़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुमक्खियाँ अपने छत्ते के सभी खानों को महीनों में भर पाती हैं। मधुमक्खी के फूलों पर बैठने से परागण जैसी महत्त्वपूर्ण क्रिया सम्पन्न हो जाती है और मधुमक्खियों को बदले में मिला मीठा रस जो की वो अपने और अपने बच्चों के लिए सुरक्षित रखती है को ही मनुष्य और अन्य जीव खाते हैं। वास्तव में शहद मधुमक्खियों के बच्चों और उन का भविष्य का संचित आहार है। मनुष्य व जानवरों [[बंदर]] और [[भालू]] आदि ने शहद को अपने आहार में शामिल कर लिया है। यह शहद यदि सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन से गुज़ारे तो हमे इस के अंदर परागकण भी दिखते हैं। शहद के लिए यदि मधुमक्खियाँ गन्ने के रस पर बैठे तो रस से बना शहद सर्दियों में जम जाता है, उस में सुगर की मात्रा ज़्यादा होगी।
[[Image:honey bees22.jpg|thumb|250px|left|मधुमक्खी पालन]]
 
एक मधुमक्खी को एक पौंड शहद बनाने का लिए तीन-चार सौ पौंड पुष्परस इकट्ठा करना पडता है। अपने भार का आधे वजन का पुष्परस लादे उन्हें 4000 मील की यात्रा करनी पडती है। मधु या शहद एक मीठा, चिपचिपाहट वाला अर्ध तरल पदार्थ होता है जो मधुमक्खियों द्वारा पौधों के [[पुष्प|पुष्पों]] में उपस्थित मकरन्द के कोशों से निकलने वाले मकरंद जिसे नेक्टर नाम का रस भी कहते है, से तैयार किया जाता है और आहार के रूप में छत्ते की कोठियों मे संग्रह किया जाता है। मधुमक्खी के पेट मे एक थैलीनुमा संरचना होती है जो एक वाल्व से जुडी होती है। मधुमक्खी अपनी जीभ की सहायता से फूल की नली में विद्यमान पुष्परस की छोटी मात्रा चुस्ती है और इस मधु संग्रही थैली मे एकत्र करती रहती है और छत्ते मे आकर इस रस को वाल्व के द्वारा मधुकोशों मे उगल देती है। और मकरंद मे जो पानी होता है वो वाष्पीकरण के द्वारा उड़ जाता है और बाकी पदार्थ रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप शहद मे बदल जाता है। मधुमक्खी दिनभर जिस पुष्परस को इकट्ठा करती जाती है उसे मधु के रूप में बदलने के लिए सक्रिय रहती है। पी.ई. नेरिस (प्रसिध्द रसायनविद) के अनुसार मधु मात्र पुष्परसों का संग्रह ही नहीं है, वरन् यह मधुमक्खी का श्रमतत्व ही है, जिसको पाकर पुष्परस मधुरस के रूप में परिणित हो जाता है। इसे गाढा बनाने के लिए अपने सिर को भीतर की ओर उसके द्वारों पर डैनों से पंखा किया करती है। इस मेहनत के कारण ही छत्तों के आसपास मधुर-मधुर गुंजन सुनाई पडता है, जो अच्छा भी लगता है।
 
  
शहद इकठ्ठा करने के लिए मधुमक्खियों को बहुत ही परिश्रम करना पड़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुमक्खियां अपने छत्ते के सभी खानों को महीनों में भर पाती हैं। मधुमक्खी के फूलों पर बैठने से परागण जैसी महत्त्वपूर्ण क्रिया सम्पन्न हो जाती है और मधुमक्खियों को बदले मे मिला मीठा रस जो की वो अपने और अपने बच्चों के लिए सुरक्षित रखती है को ही मनुष्य और अन्य जीव खाते है। वास्तव मे शहद मधुमक्खियों के बच्चों और उन का भविष्य का संचित आहार है। मनुष्य व जानवरों [[बंदर]] और [[भालू]] आदि ने शहद को अपने आहार मे शामिल कर लिया है। यह शहद यदि सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन से गुज़ारे तो हमे इस के अंदर परागकण भी दिखते है। शहद के लिए यदि मधुमक्खियाँ गन्ने के रस पर बैठे तो रस से बना शहद सर्दियों मे जम जाता है, उस मे शूगर की मात्रा ज़्यादा होगी।
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==शहद के घटक==
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मधु गाढ़ा, चिपचिपा, हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का / हल्के भूरे रंग का, अर्द्ध पारदर्शक, सुगन्धित, मीठा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज़्यादा निर्भर करता है। शहद विभिन्न प्रकार का होता है इनमें यह वर्गीकरण प्रायः उन मधुमक्खियों द्वारा मधुरस एकत्रित किये जाने वाले प्रमुख स्रोतों के आधार पर होता है। इसके अतिरिक्त शहद के संसाधन और शोधन की प्रक्रिया के आधार पर भी किया जाता है। शहद के विशिष्ट [[तत्व|तत्वों]] का संयोजन उसे बनाने वाली मधुमक्खियों पर व उन्हें उपलब्ध पुष्पों पर निर्भर करता है। शहद हल्का होता है, इसे जिस चीज़ के साथ लिया जाए उसी प्रकार के प्रभाव दिखाता है। शहद पर देश, काल, जंगल का प्रभाव पड़ता है। अतः इसके [[रंग]], रूप, स्वाद में अन्तर रहता है। आयुर्वेद में ऐसी मान्यता है कि अलग-अलग स्थानों पर लगने वाले छत्तों के शहद के गुण वृक्षों के आधार पर होते हैं। जैसे [[नीम]] पर लगे शहद का उपयोग आंखों के लिए, जामुन का मधुमेह, सहजने का हृदय, वात तथा रक्तचाप के लिए बेहतर होता है। एक किलोग्राम शहद से लगभग 5500 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। एक किलोग्राम शहद से प्राप्त [[ऊर्जा]] के तुल्य दूसरे प्रकार के खाद्य पदार्थो में 65 अण्डों, 13 कि.ग्रा. [[दूध]], 8 कि.ग्रा. बेर, 19 कि.ग्रा. हरे मटर, 13 कि.ग्रा. [[सेब]] व 20 कि.ग्रा. [[गाजर]] के बराबर हो सकता है।
  
===शहद के तत्व (घटक)===
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रासायनिक विश्लेषण करने पर शहद में बहुत से पोषक तत्व होते है जैसे- फ्रक्टोज़ 38.2%, [[ग्लूकोज़]]: 31.3%, सुकरोज़: 1.3%, माल्टोज़: 7.1%, [[जल]]: 17.2%, उच्च शर्कराएं: 1.5%, भस्म: 0.2%, अन्य: 3.2%। वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि शहद पौष्टिक तत्वों से युक्त शर्करा और अन्य तत्वों का मिश्रण होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और टिश्यू के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। शहद में लगभग 75% शर्करा होती है जिसमें से फ्रक्टोज़, ग्लूकोज़, सुल्फोज़, माल्टोज़, लेक्टोज़ आदि प्रमुख हैं। इसमें अन्य [[पदार्थ|पदार्थों]] के रूप में [[प्रोटीन]], एलब्यूमिन, [[वसा]], एन्जाइम अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट्स, आहारीय रेशा, पराग, केसर, आयोडीन और [[लोहा]], [[तांबा]], [[मैंगनीज]], [[पोटेशियम]], [[सोडियम]], [[फॉस्फोरस]], [[कैल्शियम]], [[क्लोरीन]] जैसे मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी [[खनिज लवण|खनिज लवणों]] के साथ ही बहुमूल्य [[विटामिन]] - राइबोफ्लेविन, फोलेट, विटामिन ए, बी-1, बी-2, बी-3, बी-5, बी-6, बी-12 तथा अल्पमात्रा में विटामिन सी, विटामिन एच और विटामिन 'के' भी पाया जाता है। शहद में विभिन्न अन्य यौगिक भी होते हैं जो एंटीऑक्सीडेंट्स का कार्य करते हैं। सामान्यतः शहद कुछ विशेष चीनीयुक्त क्षार पदार्थों तथा धातु पदाथों का सम्मिश्रण होता है, किन्तु इसकी 75 प्रतिशत चीनी वह नहीं है, जो [[गन्ना]] मिलों द्वारा उत्पादित की जाती है। दो प्रकार की चीनी और खोजी गई है- (1) ग्लूकोज़ अंगूरी, (2) फलों के रस से उत्पादित फ्रक्टोज शर्करा। इन चीनियों का कोई हानिकारक प्रभाव रोगी पर नहीं पड़ता, जबकि सामान्य चीनी उनके लिए हानिप्रद हुआ करती है। शहद में मिलने वाली अंगूरी शर्करा बहुत आसानी से पचने वाली होती है। शहद चीनी के मुकाबले बहुत फ़ायदेमंद होता है, इसलिए हमें चीनी के स्थान पर शहद का उपयोग करना चाहिए।
मधु गाढ़ा, चिपचिपा, हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का / हल्के भूरे रंग का, अर्द्ध पारदर्शक, सुगन्धित, मीठा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज़्यादा निर्भर करता है। शहद विभिन्न प्रकार का होता है इनमें यह वर्गीकरण प्रायः उन मधुमक्खियों द्वारा मधुरस एकत्रित किये जाने वाले प्रमुख स्रोतों के आधार पर होता है। इसके अतिरिक्त शहद के संसाधन और शोधन की प्रक्रिया के आधार पर भी किया जाता है। शहद के विशिष्ट [[तत्व|तत्वों]] का संयोजन उसे बनाने वाली मधुमक्खियों पर व उन्हें उपलब्ध पुष्पों पर निर्भर करता है। शहद हल्का होता है, इसे जिस चीज़ के साथ लिया जाए उसी प्रकार के प्रभाव दिखाता है। शहद पर देश, काल, जंगल का प्रभाव पड़ता है। अतः इसके [[रंग]], रुप, स्वाद में अन्तर रहता है। आयुर्वेद में ऐसी मान्यता है कि अलग-अलग स्थानों पर लगने वाले छत्तों के शहद के गुण वृक्षों के आधार पर होते हैं। जैसे [[नीम]] पर लगे शहद का उपयोग आंखों के लिए, जामुन का मधुमेह, सहजने का हृदय, वात तथा रक्तचाप के लिए बेहतर होता है। एक किलोग्राम शहद से लगभग 5500 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। एक किलोग्राम शहद से प्राप्त [[ऊर्जा]] के तुल्य दूसरे प्रकार के खाद्य पदार्थो में 65 अण्डों, 13 कि.ग्रा. दूध, 8 कि.ग्रा. प्लम, 19 कि.ग्रा. हरे मटर, 13 कि.ग्रा. सेब व 20 कि.ग्रा. गाजर के बराबर हो सकता है।
 
  
रासायनिक विश्लेषण करने पर शहद मे बहुत से पोषक तत्व होते है जैसे - फ्रक्टोज़ 38.2%, [[ग्लूकोज़]]: 31.3%, सकरोज़: 1.3%, माल्टोज़: 7.1%, [[जल]]: 17.2%, उच्च शर्कराएं: 1.5%, भस्म: 0.2%, अन्य: 3.2% । वैज्ञानिकों ने यह सिध्द कर दिया है कि शहद पौष्टिक तत्वों से युक्त शर्करा और अन्य तत्वों का मिश्रण होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और टिश्यू के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। शहद में लगभग 75% शर्करा होती है जिसमें से फ्रक्टोज़, ग्लूकोज़, सुल्फोज़, माल्टोज़, लेक्टोज़ आदि प्रमुख हैं। इसमें अन्य [[पदार्थ|पदार्थों]] के रूप में [[प्रोटीन]], एलब्यूमिन, [[वसा]], एन्जाइम अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट्स, आहारीय रेशा, पराग, केसर, आयोडीन और [[लोहा]], [[तांबा]], [[मैंगनीज]], [[पोटेशियम]], [[सोडियम]], [[फॉस्फोरस]], [[कैल्शियम]], [[क्लोरीन]] जैसे मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी [[खनिज लवण|खनिज लवणों]] के साथ ही बहुमूल्य विटामिन - राइबोफ्लेविन, फोलेट, विटामिन ए, बी-1, बी-2, बी-3, बी-5, बी-6, बी-12 तथा अल्पमात्रा में विटामिन सी, विटामिन एच और विटामिन 'के' भी पाया जाता है। शहद में विभिन्न अन्य यौगिक भी होते हैं जो एंटीऑक्सीडेंट्स का कार्य करते हैं। सामान्यतः शहद कुछ विशेष चीनीयुक्त क्षार पदार्थों तथा धातु पदाथों का सम्मिश्रण होता है, किन्तु इसकी 75 प्रतिशत चीनी वह नहीं है, जो [[गन्ना]] मिलों द्वारा उत्पादित की जाती है। दो प्रकार की चीनी और खोजी गई है - (1) ग्लूकोज़ अंगूरी, (2) फलों के रस से उत्पादित फ्रक्टोज शर्करा। इन चीनियों का कोई हानिकारक प्रभाव रोगी पर नहीं पडता, जबकि सामान्य चीनी उनके लिए हानिप्रद हुआ करती है। मधु में मिलने वाली अंगूरी शर्करा बहुत आसानी से पचने वाली होती है। शहद चीनी के मुकाबले बहुत फ़ायदेमंद होता है, इसलिए हमें चीनी के स्थान पर शहद का उपयोग करना चाहिए।
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शहद का स्वाद बेहद मीठा होता है। शहद में जो मीठापन होता है वो उसमें पाए जाने वाली शर्करा (शुगर) मुख्यतः ग्लूकोज़ और फ्रक्टोज शुगर के कारण होता है, जिसकी मात्रा 70 से 80 प्रतिशत है। इस शर्करा में ग्लूकोस और फ्रुक्टोस बराबर अनुपात में पाया जाता है। ये तत्व सीधे [[रक्त]] में शोषित होकर तुरंत ऊर्जा प्रदान करते हैं। प्रोटीन्स और अमीनो एसिड तत्व मुख्यतः पौधों से प्राप्त होते हैं। इनकी मात्रा विभिन्न प्रकार के शहद में अलग-अलग होती है। शहद में यूँ तो कई प्रकार के ऐसे विटामिन्स पाए जाते हैं, जो मनुष्य के लिए अल्प महत्व के होते हैं, परंतु वे शहद के अन्य तत्वों के साथ मिलकर एक पूरक आहार का काम करते हैं। विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, जो विभिन्न विटामिन्स का समूह है, वह भी इसमें मिलता है। यह भूख को बढ़ाने में सहायक है तथा मानव के नाड़ी-तंत्र को दृढ़ता प्रदान करता है। शहद में एंजाइम्स का उद्गम, काम करने वाली मादा मधु मक्खियों की ग्रंथियों का स्त्राव है। यह फूलों के रस के शहद में परिवर्तित होने के समय उसमें मिल जाते हैं। एंजाइम्स पाचन क्रिया को बढ़ाते हैं। लगभग 11 [[खनिज]] (मिनरल्स) एवं 17 आंशिक तत्व सामान्य शहद में पाए जाते हैं। इन खनिजों की मात्रा शहद के प्रकार पर निर्भर करती है। गहरे रंग के शहद में खनिज की मात्रा हल्के रंग की तुलना में अधिक होती है। शहद में पोटाशियम होता है जो रोग के कीटाणुओं का नाश करता है। शहद में लोह-तत्व अधिक होता है। इसमें जो चिकनाई मिलती है, इसे पचाने में पाचन संस्थान को कोई श्रम नहीं करना पड़ता।
  
शहद का स्वाद बेहद मीठा होता है। शहद मैं जो मीठापन होता है वो उसमें पाए जाने वाली शर्करा (शुगर) मुख्यतः ग्लूकोज़ और फ्रक्टोज शुगर के कारण होता है, जिसकी मात्रा 70 से 80 प्रतिशत है। इस शर्करा में ग्लूकोस और फ्रुक्टोस बराबर अनुपात में पाया जाता है। ये तत्व सीधे [[रक्त]] में शोषित होकर तुरंत ऊर्जा प्रदान करते हैं। प्रोटीन्स और अमीनो एसिड तत्व मुख्यतः पौधों से प्राप्त होते हैं। इनकी मात्रा विभिन्न प्रकार के शहद में अलग- अलग होती है। शहद में यूँ तो कई प्रकार के ऐसे विटामिन्स पाए जाते हैं, जो मनुष्य के लिए अल्प महत्व के होते हैं, परंतु वे शहद के अन्य तत्वों के साथ मिलकर एक पूरक आहार का काम करते हैं। विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, जो विभिन्न विटामिन्स का समूह है, वह भी इसमें मिलता है। यह भूख को बढ़ाने में सहायक है तथा मानव के नाड़ी-तंत्र को दृढ़ता प्रदान करता है। शहद में एंजाइम्स का उद्गम, काम करने वाली मादा मधु मक्खियों की ग्रंथियों का स्त्राव है। यह फूलों के रस के शहद में परिवर्तित होने के समय उसमें मिल जाते हैं। एंजाइम्स पाचन क्रिया को बढ़ाते हैं। लगभग 11 [[खनिज]] (मिनरल्स) एवं 17 आंशिक तत्व सामान्य शहद में पाए जाते हैं। इन खनिजों की मात्रा शहद के प्रकार पर निर्भर करती है। गहरे रंग के शहद में खनिज की मात्रा हल्के रंग की तुलना में अधिक होती है। शहद में पोटाशियम होता है जो रोग के कीटाणुओं का नाश करता है। शहद में लोह-तत्व अधिक होता है। इसमें जो चिकनाई मिलती है, इसे पचाने में पाचन संस्थान को कोई श्रम नहीं करना पड़ता।
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कई वर्षों तक रखा रहने पर भी शहद सड़ता नहीं, किन्तु यदि उसमें किसी चीज़ की मिलावट कर दी जाए, तो शीघ्र ही या तो वह उससे अलग हो जाता है अथवा खाने योग्य नहीं रह जाता। इस प्रकार यह अपनी प्रामाणिकता को बनाए रखता है। शहद में जो तत्व पाए जाते हैं, उन तत्वों को मिलाकर शहद निर्माण के लिए वैज्ञानिकों ने अथक प्रयास किए, किन्तु सफलता नहीं मिल सकी, जबकि [[दूध]] तथा अन्य पदार्थ इस प्रकार बनाए जा चुके हैं।
 
 
यों कई वर्षों तक रखा रहने पर भी शहद सड़ता नहीं, किन्तु यदि उसमें किसी चीज़ की मिलावट कर दी जाए, तो शीघ्र ही या तो वह उससे अलग हो जाता है अथवा खाने योग्य नहीं रह जाता। इस प्रकार यह अपनी प्रामाणिकता को बनाए रखता है। शहद में जो तत्व पाए जाते हैं, उन तत्वों को मिलाकर शहद निर्माण के लिए वैज्ञानिकों ने अथक प्रयास किए, किन्तु सफलता नहीं मिल सकी, जबकि [[दूध]] तथा अन्य पदार्थ इस प्रकार बनाए जा चुके हैं।
 
  
 
;शहद का न्यूट्रीशनल वैल्यू चार्ट
 
;शहद का न्यूट्रीशनल वैल्यू चार्ट
100 ग्राम शहद में - एनर्जी - 300 किलो कैलरी / 1270 किलो जुलियन, 82.4 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 82.12 ग्राम चीनी, 0 ग्राम वसा, 0.3 ग्राम प्रोटीन, 17.10 ग्राम पानी
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100 ग्राम शहद में- ऊर्जा 300 किलो कैलरी / 1270 किलो जूलियन, 82.4 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 82.12 ग्राम चीनी, 0 ग्राम वसा, 0.3 ग्राम प्रोटीन, 17.10 ग्राम पानी।
  
 
===शहद का भोजन में उपयोग===
 
===शहद का भोजन में उपयोग===
 
[[चित्र:Honey.jpg|thumb|250px|शहद]]
 
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शहद सस्ता पौष्टिक भोजन है, जो रक्त में मिलकर ऊष्मा तथा शरीर को बल प्रदान करता है। शहद जैसा उपयोगी, गुणकारी, पौष्टिक एवं सुपाच्य दूसरा आहार नहीं है। जहा तक संभव हो अच्छे स्वास्थ के लिए इसका सेवन किया जाये। यूं तो सभी मौसमों में शहद का सेवन लाभकारी है, परन्तु सर्दियों में तो शहद का प्रयोग विशेष लाभकारी होता है। शहद को चिकित्सा विज्ञान द्वारा भी एक पौष्टिक आहार माना गया है। शहद भोजन में अनेक प्रकार से उपयोग में लाया जाता रहा है। यह सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए श्रेष्ठ आहार माना जाता है। यह एक [[ऊष्मा]] व [[ऊर्जा]] से भरपूर आहार है और दूध के साथ इसका सेवन इसे एक पौष्टिक व सम्पूर्ण आहार बनाता है। शहद को दूध, पानी, [[दही]], मलाई, [[चाय]], टोस्ट, रोटी, [[शाक-सब्ज़ी|सब्जी]], फलों का रस, [[नीबू]] आदि किसी भी वस्तु में मिलाकर स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकते हैं। शहद को गर्म नहीं करना चाहिए इससे शहद के गुण समाप्त हो सकते हैं इसको हल्के गरम दूध या जल में मिला कर सेवन करने से लाभ होता है। शहद में पाई जाने वाली शर्करा आसानी व शीघ्रता से पच जाती है। आंतों के ऊपरी भाग में शहद जल्दी ही अपना प्रभाव दिखाता है। शहद का एक प्रमुख लाभ उसके पूर्ण तथा सुपाच्य गुण में है, यह इतना निरापद है कि इसे नवजात शिशु को भी दिया जा सकता है। इसके नियमित सेवन से खोई हुई शक्ति तुरंत प्राप्त करने में सहायता मिलती है। शेरपा तेनजिंग भी नियमित शहद का सेवन करते थे। दूध के बाद शहद ही ऐसा पदार्थ है जो उत्तम एवं संतुलित भोजन की श्रेणी में आता है, क्योंकि शहद में वे सभी तत्व पाए जाते हैं जो संतुलित आहार में होने चाहिए। जन्म लेते ही बच्चो को शहद चटाया जाता है, इसके पीछे यही कारण है कि जन्म लेता बच्चा तुरन्त ही कुछ खाने-पीने योग्य नहीं होता और जब तक उसकी माँ स्वस्थ हो, तब तक बच्चो को ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने का काम शहद करता है।  
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शहद सस्ता पौष्टिक भोजन है, जो रक्त में मिलकर ऊष्मा तथा शरीर को बल प्रदान करता है। शहद जैसा उपयोगी, गुणकारी, पौष्टिक एवं सुपाच्य दूसरा आहार नहीं है। जहाँ तक संभव हो अच्छे स्वास्थ्य के लिए इसका सेवन किया जाना चाहिये। सभी मौसमों में शहद का सेवन लाभकारी है, परन्तु सर्दियों में तो शहद का प्रयोग विशेष लाभकारी होता है। शहद को चिकित्सा विज्ञान द्वारा भी एक पौष्टिक आहार माना गया है। शहद भोजन में अनेक प्रकार से उपयोग में लाया जाता रहा है। यह सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए श्रेष्ठ आहार माना जाता है। यह एक [[ऊष्मा]] व [[ऊर्जा]] से भरपूर आहार है और दूध के साथ इसका सेवन इसे एक पौष्टिक व सम्पूर्ण आहार बनाता है। शहद को दूध, पानी, [[दही]], मलाई, [[चाय]], टोस्ट, रोटी, [[शाक-सब्ज़ी|सब्जी]], फलों का रस, [[नीबू]] आदि किसी भी वस्तु में मिलाकर स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकते हैं। शहद को गर्म नहीं करना चाहिए इससे शहद के गुण समाप्त हो सकते हैं। इसको हल्के गरम दूध या जल में मिला कर सेवन करने से लाभ होता है। शहद में पाई जाने वाली शर्करा आसानी व शीघ्रता से पच जाती है। आंतों के ऊपरी भाग में शहद जल्दी ही अपना प्रभाव दिखाता है। शहद का एक प्रमुख लाभ उसके पूर्ण तथा सुपाच्य गुण में है, यह इतना निरापद है कि इसे नवजात शिशु को भी दिया जा सकता है। इसके नियमित सेवन से खोई हुई शक्ति तुरंत प्राप्त करने में सहायता मिलती है। [[तेनजिंग नोर्गे|शेरपा तेनजिंग]] भी नियमित शहद का सेवन करते थे। दूध के बाद शहद ही ऐसा पदार्थ है जो उत्तम एवं संतुलित भोजन की श्रेणी में आता है, क्योंकि शहद में वे सभी तत्व पाए जाते हैं जो संतुलित आहार में होने चाहिए। जन्म लेते ही बच्चों को शहद चटाया जाता है, इसके पीछे यही कारण है कि जन्म लेता बच्चा तुरन्त ही कुछ खाने-पीने योग्य नहीं होता और जब तक उसकी माँ स्वस्थ हो, तब तक बच्चों को ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने का काम शहद करता है। [[चाय]] के स्थान पर एक कप पानी में दो चम्मच शहद डालकर इस पेय को नित्य लिया जाए, तो शरीर की थकान दूर होती है। मिठाइयों तथा टॉनिकों के भ्रमजाल से छूटकर यदि इस प्राकृतिक वरदान का उपयोग किया जाए, हानिकारक पेय पदार्थों के स्थान पर इसे प्राथमिकता दी जाए, तो उनके कुप्रथाओं को सहज ही बचा जा सकता है।
 
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==शहद के औषधीय गुण==
चाय के स्थान पर एक कप पानी में दो चम्मच शहद डालकर इस पेय को नित्य लिया जाए, तो शरीर की थकान दूर होती है। मिठाइयों तथा टॉनिकों के भ्रमजाल से छूटकर यदि इस प्राकृतिक वरदान का उपयोग किया जाए, हानिकारक पेय पदार्थों के स्थान पर इसे प्राथमिकता दी जाए, तो उनके कुप्रथाओं को सहज ही बचा जा सकता है।
 
 
 
===शहद का औषधियें गुण===
 
 
प्राचीनकाल से ही विभिन्न प्रकार के रोगों में शहद से उपचार की विधि प्रचलित है। बीमार तथा कमज़ोर मनुष्यों को यह नवीन जीवन प्रदान करता है। चोट लगने पर, जलने पर घावों को ठीक करने में यह एक रामबाण मल्हम का काम करता है। आयुर्वेद में तो शहद कई औषधियों का आधार है। सरलता से पच जाना तथा कोई विपरीत प्रभाव न पड़ना, इसका सबसे अच्छा पक्ष है। देशी उपचार की विधियों में शहद का प्रयोग बाह्य एवं आंतरिक रोगों में प्रमुखता से किया जाता है। बच्चों के [[दाँत]] निकलने से लेकर युवाओं की त्वचा की देखभाल तथा वृद्धों की तंदुरुस्ती तक के लिए शहद महत्त्वपूर्ण है। यह वात और कफ को नियंत्रित करता है तथा रक्त व पित्त को सामान्य रखता है। शहद नेत्र ज्योति को बढ़ाता है, प्यास को शांत करता, कफ को घोलकर बाहर निकालता और शरीर में विषाक्तता को कम करता है। इतना ही नहीं यह मूत्रमार्ग में उत्पन्न व्याधियों तथा निमोनिया, खाँसी, डायरिया, दमा आदि में बहुत उपयोगी होता है। किसी भी घाव, चोट, खरोंच या किसी कीड़े के काटने पर इसे मल्हम की तरह लगा सकते हैं। क्योकि शहद एंटिसेप्टिक की तरह काम करता है।
 
प्राचीनकाल से ही विभिन्न प्रकार के रोगों में शहद से उपचार की विधि प्रचलित है। बीमार तथा कमज़ोर मनुष्यों को यह नवीन जीवन प्रदान करता है। चोट लगने पर, जलने पर घावों को ठीक करने में यह एक रामबाण मल्हम का काम करता है। आयुर्वेद में तो शहद कई औषधियों का आधार है। सरलता से पच जाना तथा कोई विपरीत प्रभाव न पड़ना, इसका सबसे अच्छा पक्ष है। देशी उपचार की विधियों में शहद का प्रयोग बाह्य एवं आंतरिक रोगों में प्रमुखता से किया जाता है। बच्चों के [[दाँत]] निकलने से लेकर युवाओं की त्वचा की देखभाल तथा वृद्धों की तंदुरुस्ती तक के लिए शहद महत्त्वपूर्ण है। यह वात और कफ को नियंत्रित करता है तथा रक्त व पित्त को सामान्य रखता है। शहद नेत्र ज्योति को बढ़ाता है, प्यास को शांत करता, कफ को घोलकर बाहर निकालता और शरीर में विषाक्तता को कम करता है। इतना ही नहीं यह मूत्रमार्ग में उत्पन्न व्याधियों तथा निमोनिया, खाँसी, डायरिया, दमा आदि में बहुत उपयोगी होता है। किसी भी घाव, चोट, खरोंच या किसी कीड़े के काटने पर इसे मल्हम की तरह लगा सकते हैं। क्योकि शहद एंटिसेप्टिक की तरह काम करता है।
  
शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और ऊतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी (एंटीबैक्टीरियल) के रूप में जाना जाता रहा है। शहद का पीएच मान 3 से 4.8 के बीच होने से जीवाणुरोधी गुण स्वतः ही पाया जाता है। शहद को बैक्टीरिया के निवारण के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं। इस प्रक्रिया में शहद के उत्पादन में काम करने वाली मधुमक्खियां एन्जाइम ग्लूकोज ऑक्सीडेज को नेक्टर में बदल देती हैं। जब शहद को घाव पर लगाया जाता है तो इस एंजाइम के साथ हवा की ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही बैक्टीरीसाइड हाइड्रोजन पर आक्साइड बनती है। शहद को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं। शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट होता है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देता है और शीघ्र उसकी भरपाई भी करता है और उस जगह हानिकारक [[जीवाणु]] / [[विषाणु]] भी मर जाते हैं। बेहतर यही होता है कि शहद को सीधे जख्म पर लगाने की बजाय पहले उसे पट्टी या रुई पर लगाएं और उसके बाद उसे जख्म पर लगाएं। जब इसको सीधे या ड्रेसिंग के जरिए घाव में लगाया जाता है तो यह सीलैंट की तरह एक्ट करती है और ऐसे में घाव संक्रमण (इन्फेक्शन) से बचा रहता है। शहद के प्रयोग से शरीर की सूजन और दर्द भी दूर हो जाते हैं। जख्मों या सूजन से आने वाली दरुगध भी दूर होती है। शहद की पट्टी बांधने से मरे हुए ऊतकों के स्थान पर नए सेल पनप आते हैं। इसका मतलब कि शहद से घाव तो भरते ही हैं और उनके निशान भी नहीं रहते।
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शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और ऊतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी (एंटीबैक्टीरियल) के रूप में जाना जाता रहा है। शहद का पीएच मान 3 से 4.8 के बीच होने से जीवाणुरोधी गुण स्वतः ही पाया जाता है। शहद को [[जीवाणु|बैक्टीरिया]] के निवारण के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं। इस प्रक्रिया में शहद के उत्पादन में काम करने वाली मधुमक्खियां एन्जाइम ग्लूकोज ऑक्सीडेज को नेक्टर में बदल देती हैं। जब शहद को घाव पर लगाया जाता है तो इस एंजाइम के साथ हवा की [[ऑक्सीजन]] के संपर्क में आते ही बैक्टीरीसाइड हाइड्रोजन पर आक्साइड बनती है। शहद को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं। शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट होता है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देता है और शीघ्र उसकी भरपाई भी करता है और उस जगह हानिकारक [[जीवाणु]] / [[विषाणु]] भी मर जाते हैं। बेहतर यही होता है कि शहद को सीधे जख्म पर लगाने की बजाय पहले उसे पट्टी या रुई पर लगाएं और उसके बाद उसे जख्म पर लगाएं। जब इसको सीधे या ड्रेसिंग के जरिए घाव में लगाया जाता है तो यह सीलैंट की तरह एक्ट करती है और ऐसे में घाव संक्रमण (इन्फेक्शन) से बचा रहता है। शहद के प्रयोग से शरीर की सूजन और दर्द भी दूर हो जाते हैं। जख्मों या सूजन से आने वाली दुर्गंध भी दूर होती है। शहद की पट्टी बांधने से मरे हुए ऊतकों के स्थान पर नए सेल पनप आते हैं। इसका मतलब कि शहद से घाव तो भरते ही हैं और उनके निशान भी नहीं रहते।
 
 
शहद का नियमित और उचित मात्रा में उपयोग करने से शरीर स्वस्थ, सुंदर, बलवान, स्फूर्तिवान बनता है और दीर्घजीवन प्रदान करता है। शहद एक उत्तम पूरक आहार है। इसके गुणों के बारे में [[आयुर्वेद]] में भी लिखा गया है। अत्यधिक थकान में यदि एक चम्मच शहद की ले ली जाये तो वह तुरन्त ऊर्जा देने वाला होता है और व्यक्ति की थकान तुरन्त उतर जाती है। शहद रक्त में हीमोग्लोबिन निर्माण में सहायक होता है और रक्त को शुद्ध करता है। यह ख़ून के लाल अणु और हीमोग्लोबिन की संख्या में उचित तालमेल बैठाए रहता है। इसके नियमित सेवन से एनीमिया दूर हो जाता है। इसमें विटमिन बी और विटमिन सी तो होते ही हैं, इसमें एंटीऑक्सीडेंट तत्व भी पाए जाते हैं, जो हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने में सहायक होते हैं। तथा ये कैंसर को होने से रोकता है और साथ ही [[हृदय]] की बीमारियों को भी रोकता है। शहद को मोटापा घटाने के लिए भी उपयोग किया जाता है। सुबह उठकर गुनगुने पानी में नीबू के साथ शहद का उपयोग करने पर मोटापा घटता है।
 
 
 
शहद श्रम की परिणति होने के कारण पौष्टिक, सुपाच्य और दुर्बलता को सरलता से दूर करने वाला है। कठिन शारीरिक श्रम करने वालों को शक्ति देता है और स्फूर्तिवान बनाता है। यह [[आमाशय]] में जाते ही सरलता से पच जाता है। [[पाचन तंत्र]] को अतिरिक्त श्रम नहीं करना पडता। औषधि के रूप में शहद की आयुर्वेद में प्रशंसा की गई है। इसका श्रेष्ठ अनुपात हानिरहित, मृदु, कफ़नाशक और जीवनीशक्ति बढाने वाला है। फेफड़े के रोगों में शहद लाभकारी है। शहद खाँसी में आराम देता है। इसमें उत्कृष्ट कोटि का अल्कोहल और इथीरियल ऑयल होता है, जो कि श्वास फूलने, दमे के रोग और उसके तीव्र प्रकोप में लाभदायक पाया गया है। टाइफाइड, निमोनिया जैसे रोगों में यह लीवर और [[आंत|आंतों]] की कार्यक्षमता को बढाता है। फोडे-फुंफ्सियों, ज़हरीले घाव, फफोले आदि में इसका उपयोग [[यूरोप]] जैसे देशों में किया जाता है। प्रयोग के आधार पर देखा गया है कि गहरे घावों पर मधु की पट्टी बांध देने पर घाव आसानी से भर जाता है और किसी प्रकार के इंफेक्शन का डर नहीं रहता। आँखों में काजल की तरह सोते समय शहद लगाने से रतौंधी दूर होती है। [[आंख|आंखों]] में इसे किसी सलाई से सुरमे की तरह लगाया जा सकता है। थोड़ा लगता ज़रूर है, पर आंखों में चमक आ जाती है। उन्हें कमज़ोर होने से बचाता है। शहद को लगातार प्रयोग करने से व्यक्ति की याददाशत बढ़ती है। शहद स्नायुविक संस्थान की दुर्बलता दूर करता है और मस्तिष्क की कार्य प्रणाली अच्छी होती है। शहद किडनी और आँतों को ठीक रखता है।
 
 
 
मधु हर आयु वर्ग के लिए उत्कृष्ट कोटि का टॉनिक भी है। प्रसिध्द डॉ. केलोग के अनुसार छोटे बच्चे जिनका शारीरिक विकास ठीक ढंग से हो नहीं पाता, इसे दूध के साथ पिलाने से शारीरिक विकास सहज ही हो जाता है। वृध्दावस्था में ठंड अधिक सताती है, ऐसे व्यक्ति भी यदि दूध के साथ इसका सेवन करें तो शरीर में शीघ्र ही गर्मी आ जाती है। मोटापा, कब्ज और रक्त की कमी में शहद का शरबत कुछ ही दिनों में लाभ पहुंचाता है। पौष्टिक तत्वों के अतिरिक्त मधु में एक चमत्कारी गुण यह भी होता है कि किसी भी बीमारी के कीटाणु मधु के संपर्क में आते ही या तो जीवनहीन अथवा गतिहीन हो जाते हैं। मधु उन समस्त बीमारियों में उपयोगी पाया गया है जो किसी प्रकार के किटाणु द्वारा उत्पन्न होती है। वैद्यक ग्रंथों और आयुर्वेद के महर्षियों ने भी कहा है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत पान करने से [[राजयक्ष्मा]] (टीबी) से बचाव होता है और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। यह हृदय उत्तेजक मात्र नहीं होता, वरन् उसको ऊष्मा देने वाला घटक होता है।
 
  
प्रातःकाल शौच से पूर्व शहद-नींबू पानी का सेवन करने से कब्ज दूर होता है, रक्त शुद्ध होता है और मोटापा कम होता है। शरीर में रूखेपन को दूर करता है। शहद हमारे शरीर की त्वचा और बालों के लिए फ़ायदेमंद होता है। इसका सेवन त्वचा के रोगों से निजात दिलाता है। शहद को त्वचा पर लगाने से हमारे शरीर की त्वचा स्वस्थ रहती है और निखार आता है। शहद को ओलिव आयल के साथ मिलाकर बालों में शेम्पू की तरह उपयोग किया जा सकता है। गुलाब जल मे नींबू और शहद मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम एवं कोमल बनती है। गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों द्वारा शहद का सेवन करने से पैदा होने वाली संतान स्वस्थ एवं मानसिक दृष्टि से अन्य शिशुओं से श्रेष्ठ होती है। गाजर के रस में शहद मिलाकर लेने से नेत्र-ज्योति में सुधार होता है। उच्च रक्तचाप में लहसुन और शहद लेने से रक्तचाप सामान्य होता है। त्वचा के जल जाने, कट जाने या छिल जाने पर भी शहद लगाने से लाभ मिलता है। मनुका (मेडिहनी) मेडिसिनल हनी होती है जिसके एंटीबैक्टीरिया कई तरह के स्रोतों से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि स्थानों से हासिल किए जाते हैं। वर्ष 2007 में हेल्थ कनाडा ओर यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने क्रमश: पहली बार मेडिसिनल हनी को घाव और जलने में इस्तेमाल के लिए इजाजत दी थी।
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शहद का नियमित और उचित मात्रा में उपयोग करने से शरीर स्वस्थ, सुंदर, बलवान, स्फूर्तिवान बनता है और दीर्घजीवन प्रदान करता है। शहद एक उत्तम पूरक आहार है। इसके गुणों के बारे में [[आयुर्वेद]] में भी लिखा गया है। अत्यधिक थकान में यदि एक चम्मच शहद की ले ली जाये तो वह तुरन्त ऊर्जा देने वाला होता है और व्यक्ति की थकान तुरन्त उतर जाती है। शहद रक्त में हीमोग्लोबिन निर्माण में सहायक होता है और रक्त को शुद्ध करता है। यह ख़ून के लाल अणु और हीमोग्लोबिन की संख्या में उचित तालमेल बैठाए रहता है। इसके नियमित सेवन से एनीमिया दूर हो जाता है। इसमें विटमिन बी और विटमिन सी तो होते ही हैं, इसमें एंटीऑक्सीडेंट तत्व भी पाए जाते हैं, जो हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने में सहायक होते हैं। तथा ये कैंसर को होने से रोकता है और साथ ही [[हृदय]] की बीमारियों को भी रोकता है। शहद को मोटापा घटाने के लिए भी उपयोग किया जाता है। सुबह उठकर गुनगुने पानी में [[नीबू]] के साथ शहद का उपयोग करने पर मोटापा घटता है।  
  
===बाज़ार का शहद===
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शहद श्रम की परिणति होने के कारण पौष्टिक, सुपाच्य और दुर्बलता को सरलता से दूर करने वाला है। कठिन शारीरिक श्रम करने वालों को शक्ति देता है और स्फूर्तिवान बनाता है। यह [[आमाशय]] में जाते ही सरलता से पच जाता है। [[पाचन तंत्र]] को अतिरिक्त श्रम नहीं करना पड़ता। औषधि के रूप में शहद की आयुर्वेद में प्रशंसा की गई है। इसका श्रेष्ठ अनुपात हानिरहित, मृदु, कफ़नाशक और जीवनीशक्ति बढाने वाला है। फेफड़े के रोगों में शहद लाभकारी है। शहद खाँसी में आराम देता है। इसमें उत्कृष्ट कोटि का अल्कोहल और इथीरियल ऑयल होता है, जो कि श्वास फूलने, दमे के रोग और उसके तीव्र प्रकोप में लाभदायक पाया गया है। टाइफाइड, निमोनिया जैसे रोगों में यह लीवर और [[आंत|आंतों]] की कार्यक्षमता को बढाता है। फोडे-फुंफ्सियों, ज़हरीले घाव, फफोले आदि में इसका उपयोग [[यूरोप]] जैसे देशों में किया जाता है। प्रयोग के आधार पर देखा गया है कि गहरे घावों पर मधु की पट्टी बांध देने पर घाव आसानी से भर जाता है और किसी प्रकार के इंफेक्शन का डर नहीं रहता। [[आँख|आँखों]] में काजल की तरह सोते समय शहद लगाने से रतौंधी दूर होती है। [[आंख|आंखों]] में इसे किसी सलाई से सुरमे की तरह लगाया जा सकता है। थोड़ा लगता ज़रूर है, पर आंखों में चमक जाती है। उन्हें कमज़ोर होने से बचाता है। शहद को लगातार प्रयोग करने से व्यक्ति की याददाश्त बढ़ती है। शहद स्नायुविक संस्थान की दुर्बलता दूर करता है और मस्तिष्क की कार्य प्रणाली अच्छी होती है। शहद किडनी और आँतों को ठीक रखता है।
आजकल चीन से आयातित शहद और मुनाफा कमाने मे अंधी कम्पनीयों के एक घपले को उजागर किया गया है जिसमे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (C.S.E.) के शोध के अनुसार बाज़ार में बिक रहे बड़ी-बड़ी कम्पनीयों के शहद में प्रतीजैवीक एंटी-बायोटिक्स की मात्रा अंतर्राष्ट्रीय मानकों से दोगुना तक मिली है। ऐसे शहद को अगर लगातार खाया जाता है तो हमारे शरीर के एंटी बायटिक के प्रति रजीस्ट बनने का ख़तरा हो जाएगा। और बिना ज़रूरत के इन प्रतीजैवीक पदार्थों के शरीर मे जाने से जो साइड इफेक्ट्स होंगे वो भी खतरनाक होंगे। इनके दवारा जांचे गए शहद में एजिथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लॉक्सेसिन और ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, क्लोरैंमफेनिकल, एंफीसिलीन आदि प्रतिजैविक पदार्थ पाए गए। यह प्रतीजैवीक शहद मे आते कहाँ से है जब मधु पालन के छत्तों मे इनको बीमारी से बचने के लिए इन प्रतिजैविक का प्रयोग किया जाता है तब ये शहद मे आते है ठीक उसी प्रकार जैसे गाय भैंस को बीमार होने पर प्रतिजैविक का कोर्स दिया जाता है तो उनके दूध मे भी प्रतिजैविक का असर जाता है इस दूध को पीने वाले के शरीर मे अनायास ही ये एंटीबायोटिक चले जाते है और हानि करते है।  
 
  
===शहद शुद्धता की पहचान===
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शहद हर आयु वर्ग के लिए उत्कृष्ट कोटि का टॉनिक भी है। छोटे बच्चे जिनका शारीरिक विकास ठीक ढंग से हो नहीं पाता, इसे दूध के साथ पिलाने से शारीरिक विकास सहज ही हो जाता है। वृद्धावस्था में ठंड अधिक सताती है, ऐसे व्यक्ति भी यदि दूध के साथ इसका सेवन करें तो शरीर में शीघ्र ही गर्मी आ जाती है। मोटापा, कब्ज और रक्त की कमी में शहद का शरबत कुछ ही दिनों में लाभ पहुंचाता है। पौष्टिक तत्वों के अतिरिक्त मधु में एक चमत्कारी गुण यह भी होता है कि किसी भी बीमारी के कीटाणु मधु के संपर्क में आते ही या तो जीवनहीन अथवा गतिहीन हो जाते हैं। मधु उन समस्त बीमारियों में उपयोगी पाया गया है जो किसी प्रकार के कीटाणु द्वारा उत्पन्न होती है। वैद्यक ग्रंथों और आयुर्वेद के महर्षियों ने भी कहा है कि [[तुलसी]] व मधुमय पंचामृत पान करने से [[राजयक्ष्मा]] (टीबी) से बचाव होता है और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। यह हृदय उत्तेजक मात्र नहीं होता, वरन् उसको ऊष्मा देने वाला घटक होता है।
शहद शुद्ध होने पर ही लाभदायक है। शुद्ध शहद को जब धार बना कर छोड़ा जाता है। तो वह सांप की तरह कुंडली बना कर गिरता है जबकि नकली फ़ैल जाता है। शीशे की प्लेट पर शहद टपकाने पर यदि उसकी आकृति साँप की कुंडली जैसी बन जाए तो शहद शुद्ध है। काँच के एक साफ़ ग्लास में पानी भरकर उसमें शहद की एक बूँद टपकाएँ। अगर शहद नीचे तली में बैठ जाए तो यह शुद्ध है और यदि तली में पहुँचने के पहले ही घुल जाए तो शहद अशुद्ध है। शुद्ध शहद में मक्खी गिरकर फँसती नहीं बल्कि फड़फड़ाकर उड़ जाती है। शुद्ध शहद आँखों में लगाने पर थोड़ी जलन होगी, परंतु चिपचिपाहट नहीं होगी। शुद्ध शहद कुत्ता सूँघकर छोड़ देगा, जबकि अशुद्ध को चाटने लगता है। शुद्ध शहद का दाग़ कपड़ों पर नहीं लगता। शुद्ध शहद दिखने में पारदर्शी होता है। रुई की बत्ती बनाकर उसे शुद्ध शहद में डुबो कर जलायें, वह मोमबत्ती की तरह जलती रहेगी। अखबार या कपड़े पर शहद की बूंद गिरा कर पोछ दें, सतह उसे सोखेगी नहीं। जबकी नकली, कपड़े या काग़ज़ में जज्ब हो जायेगा। असली शहद पर मक्खी बैठ कर उड़ जायेगी जबकी नकली में वहीं फंस कर रह जाती है। शुद्ध शहद खुशबूदार होता है। यह गर्मी पाकर पिघल जाता है और शीत में जमने लगता है।  
 
  
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प्रातःकाल शौच से पूर्व शहद-नींबू पानी का सेवन करने से कब्ज दूर होता है, रक्त शुद्ध होता है और मोटापा कम होता है। शरीर में रूखेपन को दूर करता है। शहद हमारे शरीर की त्वचा और बालों के लिए फ़ायदेमंद होता है। इसका सेवन त्वचा के रोगों से निजात दिलाता है। शहद को त्वचा पर लगाने से हमारे शरीर की त्वचा स्वस्थ रहती है और निखार आता है। शहद को ओलिव आयल के साथ मिलाकर बालों में शेम्पू की तरह उपयोग किया जा सकता है। गुलाब जल में नींबू और शहद मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम एवं कोमल बनती है। गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों द्वारा शहद का सेवन करने से पैदा होने वाली संतान स्वस्थ एवं मानसिक दृष्टि से अन्य शिशुओं से श्रेष्ठ होती है। गाजर के रस में शहद मिलाकर लेने से नेत्र-ज्योति में सुधार होता है। उच्च रक्तचाप में लहसुन और शहद लेने से रक्तचाप सामान्य होता है। त्वचा के जल जाने, कट जाने या छिल जाने पर भी शहद लगाने से लाभ मिलता है। मनुका (मेडिहनी) मेडिसिनल हनी होती है जिसके एंटीबैक्टीरिया कई तरह के स्रोतों से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि स्थानों से हासिल किए जाते हैं। वर्ष 2007 में हेल्थ कनाडा ओर यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने क्रमश: पहली बार मेडिसिनल हनी को घाव और जलने में इस्तेमाल के लिए इजाजत दी थी।
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==शुद्ध शहद की पहचान==
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शहद शुद्ध होने पर ही लाभदायक है। शुद्ध शहद को जब धार बना कर छोड़ा जाता है। तो वह सांप की तरह कुंडली बना कर गिरता है जबकि नकली फ़ैल जाता है। शीशे की प्लेट पर शहद टपकाने पर यदि उसकी आकृति साँप की कुंडली जैसी बन जाए तो शहद शुद्ध है। काँच के एक साफ़ ग्लास में पानी भरकर उसमें शहद की एक बूँद टपकाएँ। अगर शहद नीचे तली में बैठ जाए तो यह शुद्ध है और यदि तली में पहुँचने के पहले ही घुल जाए तो शहद अशुद्ध है। शुद्ध शहद में मक्खी गिरकर फँसती नहीं बल्कि फड़फड़ाकर उड़ जाती है। शुद्ध शहद आँखों में लगाने पर थोड़ी जलन होगी, परंतु चिपचिपाहट नहीं होगी। शुद्ध शहद कुत्ता सूँघकर छोड़ देगा, जबकि अशुद्ध को चाटने लगता है। शुद्ध शहद का दाग़ कपड़ों पर नहीं लगता। शुद्ध शहद दिखने में पारदर्शी होता है। रुई की बत्ती बनाकर उसे शुद्ध शहद में डुबो कर जलायें, वह मोमबत्ती की तरह जलती रहेगी। अखबार या कपड़े पर शहद की बूंद गिरा कर पोछ दें, सतह उसे सोखेगी नहीं। जबकी नकली, कपड़े या काग़ज़ में जज्ब (शोषित) हो जायेगा। असली शहद पर मक्खी बैठ कर उड़ जायेगी जबकी नकली में वहीं फंस कर रह जाती है। शुद्ध शहद खुशबूदार होता है। यह गर्मी पाकर पिघल जाता है और शीत में जमने लगता है।
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====बाज़ार का शहद====
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आजकल चीन से आयातित शहद और मुनाफा कमाने में अंधी कम्पनीयों के एक घपले को उजागर किया गया है जिसमे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (C.S.E.) के शोध के अनुसार बाज़ार में बिक रहे बड़ी-बड़ी कम्पनीयों के शहद में प्रतीजैवीक एंटी-बायोटिक्स की मात्रा अंतर्राष्ट्रीय मानकों से दोगुना तक मिली है। ऐसे शहद को अगर लगातार खाया जाता है तो हमारे शरीर के एंटी बायटिक के प्रति रजीस्ट बनने का ख़तरा हो जाएगा और बिना ज़रूरत के इन प्रतिजैविक पदार्थों के शरीर में जाने से जो साइड इफेक्ट्स होंगे वो भी खतरनाक होंगे। इनके दवारा जांचे गए शहद में एजिथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लॉक्सेसिन और ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, क्लोरैंमफेनिकल, एंफीसिलीन आदि प्रतिजैविक पदार्थ पाए गए। यह प्रतिजैविक शहद में आते कहाँ से है जब मधु पालन के छत्तों में इनको बीमारी से बचने के लिए इन प्रतिजैविक का प्रयोग किया जाता है तब ये शहद में आते है ठीक उसी प्रकार जैसे [[गाय]] [[भैंस]] को बीमार होने पर प्रतिजैविक का कोर्स दिया जाता है तो उनके दूध में भी प्रतिजैविक का असर आ जाता है इस दूध को पीने वाले के शरीर में अनायास ही ये एंटीबायोटिक चले जाते हैं और हानि करते हैं।
 
===मधुमक्खी पालन===
 
===मधुमक्खी पालन===
 
[[Image:honey-bee-farm.jpg|मधुमक्खी पालन|thumb|250px]]
 
[[Image:honey-bee-farm.jpg|मधुमक्खी पालन|thumb|250px]]
जो लोग मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं उन्हें मधुमक्खी नहीं काटती क्याकि वह शहद निकलते हुए विशेष कपडे पहनते हैं। जिसके कारण मधुमक्खी उनको काट नहीं पाती हैं। इसी समय में पालनकर्ता उनके स्वभाव को जनता है तथा कोई ऐसा काम ही नहीं करता है की मधुमक्खी को काटने की ज़रूरत पड़े। सर एडमंड हिलेरी स्वयं मधुमक्खी पालक थे। मधुपालन में कोई कठिनाई नहीं है। इसके बारे में थोड़ी जानकारी ही पर्याप्त है।
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जो लोग मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं उन्हें मधुमक्खी नहीं काटती क्योंकि वह शहद निकालते हुए विशेष कपड़े पहनते हैं। जिसके कारण मधुमक्खी उनको काट नहीं पाती हैं। इसी समय में पालनकर्ता उनके स्वभाव को जनता है तथा कोई ऐसा काम ही नहीं करता है कि मधुमक्खी को काटने की ज़रूरत पड़े। सर एडमंड हिलेरी स्वयं मधुमक्खी पालक थे। मधुपालन में कोई कठिनाई नहीं है। इसके बारे में थोड़ी जानकारी ही पर्याप्त है।
 
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==शहद की उपयोगिता==
मधुमक्खी के एक छत्ते में कितना शहद निकलता है और पूरा भरा हुआ छत्ता कितने दिन में बन जाता है? प्राकृतिक छत्ते का तो पता नही, लेकिन एक मधुमक्खी पालक के अनुसार यह दो बातों पर निर्भर करता है। 1. फूलों की उपलब्धता पर, वर्ष के सभी महीनों मे फूलों की उपलब्धता एक समान नहीं होती है। 2. मौसम की अनुकूलिता पर, अनुकूल मौसम यानी उस स्थान का जहां मधुमक्खी पाली गयी है। वैसे मधुमक्खी पालक के अनुसार जहां उस ने पाली है वहाँ वह साल मे 3-3 महीनों मे दो बार यील्ड लेता है।
 
 
 
यदि मधुमक्खी पालन उद्योग पर ध्यान दिया जाए, तो उससे आर्थिक और शारीरिक लाभ प्राप्त करने का एक उपयोगी द्वार खुल सकता है। आजकल भारतवासी इस नैसर्गिक देन से वंचित हो रहे हैं। शहद इतना महंगा हो चुका है कि साधारण स्थिति का व्यक्ति इससे लाभ नहीं उठा पाता। अन्य देशों में सहायक कुटीर उद्योगों के रूप में इस व्यवसाय की निरंतर वृध्दि हो रही है, परन्तु भारतवासियों के पास समय होते हुए भी इस बिना किसा खर्च के व्यवसाय को नहीं अपनाया जा रहा है, जबकि कृषक तथा देहाती क्षेत्र में रहने वाले अन्य सभी वर्गों के द्वारा इस व्यवसाय को आसानी से चलाया जा सकता है। इससे पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति ही नहीं होगी, वरन् अन्य व्यक्तियों को भी यह सुलभ हो सकेगा।
 
 
 
===शहद की उपयोगिता===
 
 
शहद अपने औषधीय गुणों के कारण अनेक बीमारियों में उपयोग होता रहा है। शहद का प्रयोग जहां आंखों की रोशनी बढ़ाने तथा कफ एवं अस्थमा और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में कारगर सिद्ध हुआ है, वहीं रक्त शुद्धि तथा दिल को मज़बूत करने में भी सहायक है।
 
शहद अपने औषधीय गुणों के कारण अनेक बीमारियों में उपयोग होता रहा है। शहद का प्रयोग जहां आंखों की रोशनी बढ़ाने तथा कफ एवं अस्थमा और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में कारगर सिद्ध हुआ है, वहीं रक्त शुद्धि तथा दिल को मज़बूत करने में भी सहायक है।
 
# शहद, [[गाजर]] के जूस के साथ लेने से आंखों की रोशनी को बढ़ाने में मदद करता है। इसे खाना खाने से एक घंटा पहले लेना चाहिये।
 
# शहद, [[गाजर]] के जूस के साथ लेने से आंखों की रोशनी को बढ़ाने में मदद करता है। इसे खाना खाने से एक घंटा पहले लेना चाहिये।
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# जिंजर जूस, [[काली मिर्च]] के पाउडर के साथ शहर मिक्स कर (बराबर मात्र) में लेने से अस्थमा के रोगियों को दिन में तीन बार लेने से आराम मिलता है।
 
# जिंजर जूस, [[काली मिर्च]] के पाउडर के साथ शहर मिक्स कर (बराबर मात्र) में लेने से अस्थमा के रोगियों को दिन में तीन बार लेने से आराम मिलता है।
 
# दो चम्मच शहद के एक चम्मच ‘गारलिक जूस’ के साथ मिलाकर पीने से ‘उच्च रक्त चाप’ के रोगियों को सामान्य करने में मदद करता है।
 
# दो चम्मच शहद के एक चम्मच ‘गारलिक जूस’ के साथ मिलाकर पीने से ‘उच्च रक्त चाप’ के रोगियों को सामान्य करने में मदद करता है।
# प्रात: काल शौच जाने से पहले गर्म पानी के गिलास में 1-2 चम्मच शहद तथा एक चम्मच ‘लेमन जूस’ मिलाकर पीने से रक्त शुद्धि का कार्य करता है तथा मोटापे को बढ़ने से भी रोकता है।
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# प्रात:काल शौच जाने से पहले गर्म पानी के गिलास में 1-2 चम्मच शहद तथा एक चम्मच ‘लेमन जूस’ मिलाकर पीने से रक्त शुद्धि का कार्य करता है तथा मोटापे को बढ़ने से भी रोकता है।
 
# हृदय के लिए भी शहद गुणकारी है, मीठी सौंफ के साथ 1-2 चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से दिल को मज़बूत तो करता ही है। हृदय को सुचारू रूप से कार्य करने में भी मदद करता है।
 
# हृदय के लिए भी शहद गुणकारी है, मीठी सौंफ के साथ 1-2 चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से दिल को मज़बूत तो करता ही है। हृदय को सुचारू रूप से कार्य करने में भी मदद करता है।
 
# बच्चों को एक चम्मच पानी में दो बूंद शहद मिलाकर चटाने से उनकी ग्रोथ अच्छी होती है और वे सेहतमंद रहते हैं।
 
# बच्चों को एक चम्मच पानी में दो बूंद शहद मिलाकर चटाने से उनकी ग्रोथ अच्छी होती है और वे सेहतमंद रहते हैं।
# शहद, अदरक और तुलसी के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर चाटने से जुकाम में राहत मिलती है।
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# शहद, [[अदरक]] और [[तुलसी]] के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर चाटने से जुकाम में राहत मिलती है।
 
# पूरे परिवार की सेहत के लिए बादाम भिगोकर दूध में पीस लें और उसे सबको एक चम्मच शहद में मिलाकर खिलाएं।
 
# पूरे परिवार की सेहत के लिए बादाम भिगोकर दूध में पीस लें और उसे सबको एक चम्मच शहद में मिलाकर खिलाएं।
# एक बडे चम्मच शहद में एक बडी इलायची पीसकर मिलाकर पीने से पेट दर्द में राहत मिलती है।
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# एक बडे चम्मच शहद में एक बड़ी इलायची पीसकर मिलाकर पीने से पेट दर्द में राहत मिलती है।
 
# लगातार हिचकी आ रही हो तो शहद चाटें।
 
# लगातार हिचकी आ रही हो तो शहद चाटें।
 
# हृदय की धमनी के लिए शहद बड़ा शक्तिवर्द्धक है। सोते वक्त शहद व नींबू का रस मिलाकर एक ग्लास पानी पीने से कमज़ोर हृदय में शक्ति का संचार होता है।  
 
# हृदय की धमनी के लिए शहद बड़ा शक्तिवर्द्धक है। सोते वक्त शहद व नींबू का रस मिलाकर एक ग्लास पानी पीने से कमज़ोर हृदय में शक्ति का संचार होता है।  
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# सूखी खाँसी में शहद व नींबू का रस समान मात्रा में सेवन करने पर लाभ होता है।  
 
# सूखी खाँसी में शहद व नींबू का रस समान मात्रा में सेवन करने पर लाभ होता है।  
 
# शहद से [[माँसपेशियाँ]] बलवती होती हैं।  
 
# शहद से [[माँसपेशियाँ]] बलवती होती हैं।  
# बढ़े हुए [[रक्तचाप]] में शहद का सेवन लहसुन के साथ करना लाभप्रद होता है।  
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# बढ़े हुए [[रक्तचाप]] में शहद का सेवन [[लहसुन]] के साथ करना लाभप्रद होता है।  
 
# अदरक का रस और शहद समान मात्रा में लेकर चाटने से श्वास कष्ट दूर होता है और हिचकियाँ बंद हो जाती हैं।  
 
# अदरक का रस और शहद समान मात्रा में लेकर चाटने से श्वास कष्ट दूर होता है और हिचकियाँ बंद हो जाती हैं।  
 
# संतरों के छिलकों का चूर्ण बनाकर दो चम्मच शहद उसमें फेंटकर उबटन तैयार कर त्वचा पर मलें। इससे त्वचा निखर जाती है और कांतिवान बनती है।  
 
# संतरों के छिलकों का चूर्ण बनाकर दो चम्मच शहद उसमें फेंटकर उबटन तैयार कर त्वचा पर मलें। इससे त्वचा निखर जाती है और कांतिवान बनती है।  
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# शहद नित्य सेवन निर्बल आमाशय व आँतों को बल प्रदान करता है।  
 
# शहद नित्य सेवन निर्बल आमाशय व आँतों को बल प्रदान करता है।  
 
# प्याज का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर चाटने से कफ निकल जाता है तथा आँतों में जमे विजातीय द्रव्यों को दूर कर कीड़े नष्ट करता है। इसे पानी में घोलकर एनीमा लेने से लाभ होता है।  
 
# प्याज का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर चाटने से कफ निकल जाता है तथा आँतों में जमे विजातीय द्रव्यों को दूर कर कीड़े नष्ट करता है। इसे पानी में घोलकर एनीमा लेने से लाभ होता है।  
# मोटापा अधिक बढ़ जाने से व्यक्ति चलने-फिरने में और अपने रोजमर्रा के काम करने में जल्दी थकान महसूस करता है, ऎसे में एक चम्मच शहद का गर्म पानी के साथ सुबह-शाम प्रयोग मोटापे को कम करता है और शरीर की ऊर्जा बढ़ाता है।  
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# मोटापा अधिक बढ़ जाने से व्यक्ति चलने-फिरने में और अपने रोजमर्रा के काम करने में जल्दी थकान महसूस करता है, ऐसे में एक चम्मच शहद का गर्म पानी के साथ सुबह-शाम प्रयोग मोटापे को कम करता है और शरीर की ऊर्जा बढ़ाता है।  
  
===सावधानियां===
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==सावधानियाँ==
इस बात का ध्यान रखें की अगर आप अधिक मात्रा में शहद का सेवन करने लगे तो ये फायदे की बजाए नुक्सान देगा। इसलिए केवल 1 चम्मच शहद का ही रोजाना सेवन करें। शहद को किसी विपरीत प्रकृति की वस्तु के साथ देने पर वह विष की भांति कार्य करता है। इसलिए गर्म करके अथवा गुड़, [[घी]], शकर, मिश्री, तेल, मांस-[[मछली]] आदि के साथ शहद के समान मात्रा का सेवन नहीं करना चाहिए। गर्मी में अधिक गर्म पानी, गर्म दूध या अधिक धूप में बच्चों को शहद देना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। गर्मी के दिनों में बच्चों को शहद देने से बचें। इसे कभी गर्म कर ना खायें। अधिक गर्म चीज़ में मिलाने से शहद के गुण कम होते हैं। इसके साथ बराबर मात्रा में घी, कमलगट्टा तथा वर्षा का पानी कभी भी नहीं लेना चाहिये। गर्मी से पीड़ित मनुष्य के लिए भी यह हानीकारक होता है।  
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इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप अधिक मात्रा में शहद का सेवन करने लगे तो ये फायदे की बजाए नुकसान देगा। इसलिए केवल 1 चम्मच शहद का ही रोजाना सेवन करें। शहद को किसी विपरीत प्रकृति की वस्तु के साथ देने पर वह विष की भांति कार्य करता है। इसलिए गर्म करके अथवा गुड़, [[घी]], शक्कर, मिश्री, तेल, मांस-[[मछली]] आदि के साथ शहद के समान मात्रा का सेवन नहीं करना चाहिए। गर्मी में अधिक गर्म पानी, गर्म दूध या अधिक धूप में बच्चों को शहद देना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। गर्मी के दिनों में बच्चों को शहद देने से बचें। इसे कभी गर्म कर ना खायें। अधिक गर्म चीज़ में मिलाने से शहद के गुण कम होते हैं। इसके साथ बराबर मात्रा में घी, कमलगट्टा तथा [[वर्षा]] का पानी कभी भी नहीं लेना चाहिये। गर्मी से पीड़ित मनुष्य के लिए भी यह हानिकारक होता है।  
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{खान-पान}}
 
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13:33, 9 जनवरी 2018 का अवतरण

शुद्ध शहद

शहद / मधु (अंग्रेज़ी: Honey) एक प्राकृतिक मधुर पदार्थ है जो मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस को चूसकर तथा उसमें अतिरिक्त पदार्थों को मिलाने के बाद छत्ते के कोषों में एकत्र करने के फलस्वरूप बनता है। शहद हर किसी के जीवन में महत्व रखता है। फिर चाहे वह खानपान, चिकित्सा से संबंधित हो या फिर सौंदर्य से। इसमें प्रचुर मात्रा में गुण हैं। आज से हजारों वर्ष पहले से ही दुनिया के सभी चिकित्सा शास्त्रों, धर्मशास्त्रों, पदार्थवेत्ता-विद्वानों, वैधों-हकीमों ने शहद की उपयोगिता व महत्व को बताया है। आयुर्वेद के ऋषियों ने भी माना है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। इसे पंजाबी भाषा में माख्यों भी कहा जाता है। शहद तो देवताओं का भी आहार माना जाता रहा है।

परिचय

आयुर्वेद में शहद को एक खाद्य एवं प्राकृतिक औषधि के रूप में निरूपित किया गया है और शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाये रखने के लिये इसे अमृत भी कहा गया है। शहद न केवल एक औषधि का काम करता है, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों में और सौन्दर्य बढ़ाने में भी विशेष योगदान देता है। शहद मानव को प्रकृति का अनमोल वरदान है। शहद में ख़ास गुण यह है कि वह कभी ख़राब नहीं होता। प्राचीनकाल में मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस से प्राकृतिक रूप से तैयार मधु ही एकमात्र मिष्ठान्न का ज्ञात स्रोत था और यही सभी धार्मिक रीति-रिवाजों, सामाजिक कार्यक्रमों, प्रत्येक धर्म एवं समाज में प्रमुख रूप से प्रयोग में लाया जाता था। आयुर्वेद में इसका काफ़ी प्रयोग हुआ है। शहद में सदा उपयोगी एवं शुध्द बने रहने का गुण विद्यमान है। ज्यों-ज्यों यह पुराना होता जाता है, गुणवत्ता बढ़ती जाती है। 1923 ई. में मिस्त्र के फराओ नूनन खामेन के पिरामिड में रूसी वैज्ञानिक को एक शहद से भरा पात्र मिला। उस समय हैरत में डाल देने वाली बात यह थी कि यह शहद 3300 वर्ष पुराना होने के बावजूद ख़राब नहीं हुआ था। उसके स्वाद और गुण में कोई अंतर नहीं आया था। शहद, पंचामृत में प्रयोग होने वाले पदार्थो में से एक है। प्रत्येक पूजा में पंचामृत अवश्य बनाया जाता है।

शहद और मधुमक्खी

मधुमक्खियां प्राकृतिक हलवाई हैं। उनके द्वारा बनाई गई यह मिठाई- ‘शहद’ बाज़ार में मिलने वाली मिठाइयों की तरह न तो बासी होता है और न पेट ख़राब करके रोगों को आमंत्रित ही करता है, वरन् अधिक समय तक रहने पर अधिक गुणकारी हो जाता है। परिश्रम से एकत्रित की हुई हजारों वनस्पतियों का सत्व हमें एक स्थान पर एकत्रित हुए शहद के रूप में मिल जाता है। इसमें जो स्वाभाविक शक्तिवर्ध्दक तथा रोग निरोधक तत्व मिलते हैं, उन्हें आज बोतलों में बंद औषधियों तथा टॉनिकों में पाना संभव ही नहीं होता। आज के वैज्ञानिक युग में भी शहद का बनना मानवी बुद्धि से परे हैं, शहद बनाने का गुण प्रकृति ने केवल मधुमक्खियों को ही प्रदान किया है। शहद को शहद की मक्खियां (Honey Bee) बनाती है। इनका जो घर होता है, उस को छत्ता कहते है, इन छत्तों में मधुमक्खियाँ रहती है। मधुमक्खियों के जीवन की 4 अवस्थायें अंडा, लार्वा, प्यूपा, वयस्क मक्खी होती है। ये मधुमक्खियाँ निम्न प्रकार की होती है-

  1. श्रमिक
  2. नर
  3. रानी

रानी मधुमक्खी आकार में सबसे बड़ी होती है। एक छत्ते में एक ही या ज़्यादा होती है। ये अंडे देती है। जिन अण्डों को नर निषेचित करते हैं। यदि रानी मधुमक्खी को पकड़ ले तो शाही सैनिक और श्रमिक मक्खियाँ आक्रमण कर देंगी परन्तु छत्ते में रानी मधुमक्खी को ढूँढना आसान काम नहीं है।

मधुमक्खी पालन

एक मधुमक्खी को एक पौंड शहद बनाने का लिए तीन-चार सौ पौंड पुष्परस इकट्ठा करना पड़ता है। अपने भार का आधे वजन का पुष्परस लादे उन्हें 4000 मील की यात्रा करनी पड़ती है। मधु या शहद एक मीठा, चिपचिपाहट वाला अर्ध तरल पदार्थ होता है जो मधुमक्खियों द्वारा पौधों के पुष्पों में उपस्थित मकरन्द के कोशों से निकलने वाले मकरंद जिसे नेक्टर नाम का रस भी कहते हैं, से तैयार किया जाता है और आहार के रूप में छत्ते की कोठियों में संग्रह किया जाता है। मधुमक्खी के पेट में एक थैलीनुमा संरचना होती है जो एक वाल्व से जुडी होती है। मधुमक्खी अपनी जीभ की सहायता से फूल की नली में विद्यमान पुष्परस की छोटी मात्रा चुस्ती है और इस मधु संग्रही थैली में एकत्र करती रहती है और छत्ते में आकर इस रस को वाल्व के द्वारा मधुकोशों में उगल देती है। और मकरंद में जो पानी होता है वो वाष्पीकरण के द्वारा उड़ जाता है और बाकी पदार्थ रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप शहद में बदल जाता है। मधुमक्खी दिनभर जिस पुष्परस को इकट्ठा करती जाती है उसे मधु के रूप में बदलने के लिए सक्रिय रहती है। पी.ई. नेरिस (प्रसिद्ध रसायनविद) के अनुसार मधु मात्र पुष्परसों का संग्रह ही नहीं है, वरन् यह मधुमक्खी का श्रमतत्व ही है, जिसको पाकर पुष्परस मधुरस के रूप में परिणित हो जाता है। इसे गाढा बनाने के लिए अपने सिर को भीतर की ओर उसके द्वारों पर डैनों से पंखा किया करती है। इस मेहनत के कारण ही छत्तों के आसपास मधुर-मधुर गुंजन सुनाई पड़ता है, जो अच्छा भी लगता है।

शहद इकठ्ठा करने के लिए मधुमक्खियों को बहुत ही परिश्रम करना पड़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुमक्खियाँ अपने छत्ते के सभी खानों को महीनों में भर पाती हैं। मधुमक्खी के फूलों पर बैठने से परागण जैसी महत्त्वपूर्ण क्रिया सम्पन्न हो जाती है और मधुमक्खियों को बदले में मिला मीठा रस जो की वो अपने और अपने बच्चों के लिए सुरक्षित रखती है को ही मनुष्य और अन्य जीव खाते हैं। वास्तव में शहद मधुमक्खियों के बच्चों और उन का भविष्य का संचित आहार है। मनुष्य व जानवरों बंदर और भालू आदि ने शहद को अपने आहार में शामिल कर लिया है। यह शहद यदि सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन से गुज़ारे तो हमे इस के अंदर परागकण भी दिखते हैं। शहद के लिए यदि मधुमक्खियाँ गन्ने के रस पर बैठे तो रस से बना शहद सर्दियों में जम जाता है, उस में सुगर की मात्रा ज़्यादा होगी।

शहद के घटक

मधु गाढ़ा, चिपचिपा, हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का / हल्के भूरे रंग का, अर्द्ध पारदर्शक, सुगन्धित, मीठा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज़्यादा निर्भर करता है। शहद विभिन्न प्रकार का होता है इनमें यह वर्गीकरण प्रायः उन मधुमक्खियों द्वारा मधुरस एकत्रित किये जाने वाले प्रमुख स्रोतों के आधार पर होता है। इसके अतिरिक्त शहद के संसाधन और शोधन की प्रक्रिया के आधार पर भी किया जाता है। शहद के विशिष्ट तत्वों का संयोजन उसे बनाने वाली मधुमक्खियों पर व उन्हें उपलब्ध पुष्पों पर निर्भर करता है। शहद हल्का होता है, इसे जिस चीज़ के साथ लिया जाए उसी प्रकार के प्रभाव दिखाता है। शहद पर देश, काल, जंगल का प्रभाव पड़ता है। अतः इसके रंग, रूप, स्वाद में अन्तर रहता है। आयुर्वेद में ऐसी मान्यता है कि अलग-अलग स्थानों पर लगने वाले छत्तों के शहद के गुण वृक्षों के आधार पर होते हैं। जैसे नीम पर लगे शहद का उपयोग आंखों के लिए, जामुन का मधुमेह, सहजने का हृदय, वात तथा रक्तचाप के लिए बेहतर होता है। एक किलोग्राम शहद से लगभग 5500 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। एक किलोग्राम शहद से प्राप्त ऊर्जा के तुल्य दूसरे प्रकार के खाद्य पदार्थो में 65 अण्डों, 13 कि.ग्रा. दूध, 8 कि.ग्रा. बेर, 19 कि.ग्रा. हरे मटर, 13 कि.ग्रा. सेब व 20 कि.ग्रा. गाजर के बराबर हो सकता है।

रासायनिक विश्लेषण करने पर शहद में बहुत से पोषक तत्व होते है जैसे- फ्रक्टोज़ 38.2%, ग्लूकोज़: 31.3%, सुकरोज़: 1.3%, माल्टोज़: 7.1%, जल: 17.2%, उच्च शर्कराएं: 1.5%, भस्म: 0.2%, अन्य: 3.2%। वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि शहद पौष्टिक तत्वों से युक्त शर्करा और अन्य तत्वों का मिश्रण होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और टिश्यू के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। शहद में लगभग 75% शर्करा होती है जिसमें से फ्रक्टोज़, ग्लूकोज़, सुल्फोज़, माल्टोज़, लेक्टोज़ आदि प्रमुख हैं। इसमें अन्य पदार्थों के रूप में प्रोटीन, एलब्यूमिन, वसा, एन्जाइम अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट्स, आहारीय रेशा, पराग, केसर, आयोडीन और लोहा, तांबा, मैंगनीज, पोटेशियम, सोडियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम, क्लोरीन जैसे मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी खनिज लवणों के साथ ही बहुमूल्य विटामिन - राइबोफ्लेविन, फोलेट, विटामिन ए, बी-1, बी-2, बी-3, बी-5, बी-6, बी-12 तथा अल्पमात्रा में विटामिन सी, विटामिन एच और विटामिन 'के' भी पाया जाता है। शहद में विभिन्न अन्य यौगिक भी होते हैं जो एंटीऑक्सीडेंट्स का कार्य करते हैं। सामान्यतः शहद कुछ विशेष चीनीयुक्त क्षार पदार्थों तथा धातु पदाथों का सम्मिश्रण होता है, किन्तु इसकी 75 प्रतिशत चीनी वह नहीं है, जो गन्ना मिलों द्वारा उत्पादित की जाती है। दो प्रकार की चीनी और खोजी गई है- (1) ग्लूकोज़ अंगूरी, (2) फलों के रस से उत्पादित फ्रक्टोज शर्करा। इन चीनियों का कोई हानिकारक प्रभाव रोगी पर नहीं पड़ता, जबकि सामान्य चीनी उनके लिए हानिप्रद हुआ करती है। शहद में मिलने वाली अंगूरी शर्करा बहुत आसानी से पचने वाली होती है। शहद चीनी के मुकाबले बहुत फ़ायदेमंद होता है, इसलिए हमें चीनी के स्थान पर शहद का उपयोग करना चाहिए।

शहद का स्वाद बेहद मीठा होता है। शहद में जो मीठापन होता है वो उसमें पाए जाने वाली शर्करा (शुगर) मुख्यतः ग्लूकोज़ और फ्रक्टोज शुगर के कारण होता है, जिसकी मात्रा 70 से 80 प्रतिशत है। इस शर्करा में ग्लूकोस और फ्रुक्टोस बराबर अनुपात में पाया जाता है। ये तत्व सीधे रक्त में शोषित होकर तुरंत ऊर्जा प्रदान करते हैं। प्रोटीन्स और अमीनो एसिड तत्व मुख्यतः पौधों से प्राप्त होते हैं। इनकी मात्रा विभिन्न प्रकार के शहद में अलग-अलग होती है। शहद में यूँ तो कई प्रकार के ऐसे विटामिन्स पाए जाते हैं, जो मनुष्य के लिए अल्प महत्व के होते हैं, परंतु वे शहद के अन्य तत्वों के साथ मिलकर एक पूरक आहार का काम करते हैं। विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, जो विभिन्न विटामिन्स का समूह है, वह भी इसमें मिलता है। यह भूख को बढ़ाने में सहायक है तथा मानव के नाड़ी-तंत्र को दृढ़ता प्रदान करता है। शहद में एंजाइम्स का उद्गम, काम करने वाली मादा मधु मक्खियों की ग्रंथियों का स्त्राव है। यह फूलों के रस के शहद में परिवर्तित होने के समय उसमें मिल जाते हैं। एंजाइम्स पाचन क्रिया को बढ़ाते हैं। लगभग 11 खनिज (मिनरल्स) एवं 17 आंशिक तत्व सामान्य शहद में पाए जाते हैं। इन खनिजों की मात्रा शहद के प्रकार पर निर्भर करती है। गहरे रंग के शहद में खनिज की मात्रा हल्के रंग की तुलना में अधिक होती है। शहद में पोटाशियम होता है जो रोग के कीटाणुओं का नाश करता है। शहद में लोह-तत्व अधिक होता है। इसमें जो चिकनाई मिलती है, इसे पचाने में पाचन संस्थान को कोई श्रम नहीं करना पड़ता।

कई वर्षों तक रखा रहने पर भी शहद सड़ता नहीं, किन्तु यदि उसमें किसी चीज़ की मिलावट कर दी जाए, तो शीघ्र ही या तो वह उससे अलग हो जाता है अथवा खाने योग्य नहीं रह जाता। इस प्रकार यह अपनी प्रामाणिकता को बनाए रखता है। शहद में जो तत्व पाए जाते हैं, उन तत्वों को मिलाकर शहद निर्माण के लिए वैज्ञानिकों ने अथक प्रयास किए, किन्तु सफलता नहीं मिल सकी, जबकि दूध तथा अन्य पदार्थ इस प्रकार बनाए जा चुके हैं।

शहद का न्यूट्रीशनल वैल्यू चार्ट

100 ग्राम शहद में- ऊर्जा 300 किलो कैलरी / 1270 किलो जूलियन, 82.4 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 82.12 ग्राम चीनी, 0 ग्राम वसा, 0.3 ग्राम प्रोटीन, 17.10 ग्राम पानी।

शहद का भोजन में उपयोग

शहद

शहद सस्ता पौष्टिक भोजन है, जो रक्त में मिलकर ऊष्मा तथा शरीर को बल प्रदान करता है। शहद जैसा उपयोगी, गुणकारी, पौष्टिक एवं सुपाच्य दूसरा आहार नहीं है। जहाँ तक संभव हो अच्छे स्वास्थ्य के लिए इसका सेवन किया जाना चाहिये। सभी मौसमों में शहद का सेवन लाभकारी है, परन्तु सर्दियों में तो शहद का प्रयोग विशेष लाभकारी होता है। शहद को चिकित्सा विज्ञान द्वारा भी एक पौष्टिक आहार माना गया है। शहद भोजन में अनेक प्रकार से उपयोग में लाया जाता रहा है। यह सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए श्रेष्ठ आहार माना जाता है। यह एक ऊष्माऊर्जा से भरपूर आहार है और दूध के साथ इसका सेवन इसे एक पौष्टिक व सम्पूर्ण आहार बनाता है। शहद को दूध, पानी, दही, मलाई, चाय, टोस्ट, रोटी, सब्जी, फलों का रस, नीबू आदि किसी भी वस्तु में मिलाकर स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकते हैं। शहद को गर्म नहीं करना चाहिए इससे शहद के गुण समाप्त हो सकते हैं। इसको हल्के गरम दूध या जल में मिला कर सेवन करने से लाभ होता है। शहद में पाई जाने वाली शर्करा आसानी व शीघ्रता से पच जाती है। आंतों के ऊपरी भाग में शहद जल्दी ही अपना प्रभाव दिखाता है। शहद का एक प्रमुख लाभ उसके पूर्ण तथा सुपाच्य गुण में है, यह इतना निरापद है कि इसे नवजात शिशु को भी दिया जा सकता है। इसके नियमित सेवन से खोई हुई शक्ति तुरंत प्राप्त करने में सहायता मिलती है। शेरपा तेनजिंग भी नियमित शहद का सेवन करते थे। दूध के बाद शहद ही ऐसा पदार्थ है जो उत्तम एवं संतुलित भोजन की श्रेणी में आता है, क्योंकि शहद में वे सभी तत्व पाए जाते हैं जो संतुलित आहार में होने चाहिए। जन्म लेते ही बच्चों को शहद चटाया जाता है, इसके पीछे यही कारण है कि जन्म लेता बच्चा तुरन्त ही कुछ खाने-पीने योग्य नहीं होता और जब तक उसकी माँ स्वस्थ हो, तब तक बच्चों को ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने का काम शहद करता है। चाय के स्थान पर एक कप पानी में दो चम्मच शहद डालकर इस पेय को नित्य लिया जाए, तो शरीर की थकान दूर होती है। मिठाइयों तथा टॉनिकों के भ्रमजाल से छूटकर यदि इस प्राकृतिक वरदान का उपयोग किया जाए, हानिकारक पेय पदार्थों के स्थान पर इसे प्राथमिकता दी जाए, तो उनके कुप्रथाओं को सहज ही बचा जा सकता है।

शहद के औषधीय गुण

प्राचीनकाल से ही विभिन्न प्रकार के रोगों में शहद से उपचार की विधि प्रचलित है। बीमार तथा कमज़ोर मनुष्यों को यह नवीन जीवन प्रदान करता है। चोट लगने पर, जलने पर घावों को ठीक करने में यह एक रामबाण मल्हम का काम करता है। आयुर्वेद में तो शहद कई औषधियों का आधार है। सरलता से पच जाना तथा कोई विपरीत प्रभाव न पड़ना, इसका सबसे अच्छा पक्ष है। देशी उपचार की विधियों में शहद का प्रयोग बाह्य एवं आंतरिक रोगों में प्रमुखता से किया जाता है। बच्चों के दाँत निकलने से लेकर युवाओं की त्वचा की देखभाल तथा वृद्धों की तंदुरुस्ती तक के लिए शहद महत्त्वपूर्ण है। यह वात और कफ को नियंत्रित करता है तथा रक्त व पित्त को सामान्य रखता है। शहद नेत्र ज्योति को बढ़ाता है, प्यास को शांत करता, कफ को घोलकर बाहर निकालता और शरीर में विषाक्तता को कम करता है। इतना ही नहीं यह मूत्रमार्ग में उत्पन्न व्याधियों तथा निमोनिया, खाँसी, डायरिया, दमा आदि में बहुत उपयोगी होता है। किसी भी घाव, चोट, खरोंच या किसी कीड़े के काटने पर इसे मल्हम की तरह लगा सकते हैं। क्योकि शहद एंटिसेप्टिक की तरह काम करता है।

शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और ऊतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी (एंटीबैक्टीरियल) के रूप में जाना जाता रहा है। शहद का पीएच मान 3 से 4.8 के बीच होने से जीवाणुरोधी गुण स्वतः ही पाया जाता है। शहद को बैक्टीरिया के निवारण के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं। इस प्रक्रिया में शहद के उत्पादन में काम करने वाली मधुमक्खियां एन्जाइम ग्लूकोज ऑक्सीडेज को नेक्टर में बदल देती हैं। जब शहद को घाव पर लगाया जाता है तो इस एंजाइम के साथ हवा की ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही बैक्टीरीसाइड हाइड्रोजन पर आक्साइड बनती है। शहद को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं। शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट होता है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देता है और शीघ्र उसकी भरपाई भी करता है और उस जगह हानिकारक जीवाणु / विषाणु भी मर जाते हैं। बेहतर यही होता है कि शहद को सीधे जख्म पर लगाने की बजाय पहले उसे पट्टी या रुई पर लगाएं और उसके बाद उसे जख्म पर लगाएं। जब इसको सीधे या ड्रेसिंग के जरिए घाव में लगाया जाता है तो यह सीलैंट की तरह एक्ट करती है और ऐसे में घाव संक्रमण (इन्फेक्शन) से बचा रहता है। शहद के प्रयोग से शरीर की सूजन और दर्द भी दूर हो जाते हैं। जख्मों या सूजन से आने वाली दुर्गंध भी दूर होती है। शहद की पट्टी बांधने से मरे हुए ऊतकों के स्थान पर नए सेल पनप आते हैं। इसका मतलब कि शहद से घाव तो भरते ही हैं और उनके निशान भी नहीं रहते।

शहद का नियमित और उचित मात्रा में उपयोग करने से शरीर स्वस्थ, सुंदर, बलवान, स्फूर्तिवान बनता है और दीर्घजीवन प्रदान करता है। शहद एक उत्तम पूरक आहार है। इसके गुणों के बारे में आयुर्वेद में भी लिखा गया है। अत्यधिक थकान में यदि एक चम्मच शहद की ले ली जाये तो वह तुरन्त ऊर्जा देने वाला होता है और व्यक्ति की थकान तुरन्त उतर जाती है। शहद रक्त में हीमोग्लोबिन निर्माण में सहायक होता है और रक्त को शुद्ध करता है। यह ख़ून के लाल अणु और हीमोग्लोबिन की संख्या में उचित तालमेल बैठाए रहता है। इसके नियमित सेवन से एनीमिया दूर हो जाता है। इसमें विटमिन बी और विटमिन सी तो होते ही हैं, इसमें एंटीऑक्सीडेंट तत्व भी पाए जाते हैं, जो हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने में सहायक होते हैं। तथा ये कैंसर को होने से रोकता है और साथ ही हृदय की बीमारियों को भी रोकता है। शहद को मोटापा घटाने के लिए भी उपयोग किया जाता है। सुबह उठकर गुनगुने पानी में नीबू के साथ शहद का उपयोग करने पर मोटापा घटता है।

शहद श्रम की परिणति होने के कारण पौष्टिक, सुपाच्य और दुर्बलता को सरलता से दूर करने वाला है। कठिन शारीरिक श्रम करने वालों को शक्ति देता है और स्फूर्तिवान बनाता है। यह आमाशय में जाते ही सरलता से पच जाता है। पाचन तंत्र को अतिरिक्त श्रम नहीं करना पड़ता। औषधि के रूप में शहद की आयुर्वेद में प्रशंसा की गई है। इसका श्रेष्ठ अनुपात हानिरहित, मृदु, कफ़नाशक और जीवनीशक्ति बढाने वाला है। फेफड़े के रोगों में शहद लाभकारी है। शहद खाँसी में आराम देता है। इसमें उत्कृष्ट कोटि का अल्कोहल और इथीरियल ऑयल होता है, जो कि श्वास फूलने, दमे के रोग और उसके तीव्र प्रकोप में लाभदायक पाया गया है। टाइफाइड, निमोनिया जैसे रोगों में यह लीवर और आंतों की कार्यक्षमता को बढाता है। फोडे-फुंफ्सियों, ज़हरीले घाव, फफोले आदि में इसका उपयोग यूरोप जैसे देशों में किया जाता है। प्रयोग के आधार पर देखा गया है कि गहरे घावों पर मधु की पट्टी बांध देने पर घाव आसानी से भर जाता है और किसी प्रकार के इंफेक्शन का डर नहीं रहता। आँखों में काजल की तरह सोते समय शहद लगाने से रतौंधी दूर होती है। आंखों में इसे किसी सलाई से सुरमे की तरह लगाया जा सकता है। थोड़ा लगता ज़रूर है, पर आंखों में चमक आ जाती है। उन्हें कमज़ोर होने से बचाता है। शहद को लगातार प्रयोग करने से व्यक्ति की याददाश्त बढ़ती है। शहद स्नायुविक संस्थान की दुर्बलता दूर करता है और मस्तिष्क की कार्य प्रणाली अच्छी होती है। शहद किडनी और आँतों को ठीक रखता है।

शहद हर आयु वर्ग के लिए उत्कृष्ट कोटि का टॉनिक भी है। छोटे बच्चे जिनका शारीरिक विकास ठीक ढंग से हो नहीं पाता, इसे दूध के साथ पिलाने से शारीरिक विकास सहज ही हो जाता है। वृद्धावस्था में ठंड अधिक सताती है, ऐसे व्यक्ति भी यदि दूध के साथ इसका सेवन करें तो शरीर में शीघ्र ही गर्मी आ जाती है। मोटापा, कब्ज और रक्त की कमी में शहद का शरबत कुछ ही दिनों में लाभ पहुंचाता है। पौष्टिक तत्वों के अतिरिक्त मधु में एक चमत्कारी गुण यह भी होता है कि किसी भी बीमारी के कीटाणु मधु के संपर्क में आते ही या तो जीवनहीन अथवा गतिहीन हो जाते हैं। मधु उन समस्त बीमारियों में उपयोगी पाया गया है जो किसी प्रकार के कीटाणु द्वारा उत्पन्न होती है। वैद्यक ग्रंथों और आयुर्वेद के महर्षियों ने भी कहा है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत पान करने से राजयक्ष्मा (टीबी) से बचाव होता है और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। यह हृदय उत्तेजक मात्र नहीं होता, वरन् उसको ऊष्मा देने वाला घटक होता है।

प्रातःकाल शौच से पूर्व शहद-नींबू पानी का सेवन करने से कब्ज दूर होता है, रक्त शुद्ध होता है और मोटापा कम होता है। शरीर में रूखेपन को दूर करता है। शहद हमारे शरीर की त्वचा और बालों के लिए फ़ायदेमंद होता है। इसका सेवन त्वचा के रोगों से निजात दिलाता है। शहद को त्वचा पर लगाने से हमारे शरीर की त्वचा स्वस्थ रहती है और निखार आता है। शहद को ओलिव आयल के साथ मिलाकर बालों में शेम्पू की तरह उपयोग किया जा सकता है। गुलाब जल में नींबू और शहद मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम एवं कोमल बनती है। गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों द्वारा शहद का सेवन करने से पैदा होने वाली संतान स्वस्थ एवं मानसिक दृष्टि से अन्य शिशुओं से श्रेष्ठ होती है। गाजर के रस में शहद मिलाकर लेने से नेत्र-ज्योति में सुधार होता है। उच्च रक्तचाप में लहसुन और शहद लेने से रक्तचाप सामान्य होता है। त्वचा के जल जाने, कट जाने या छिल जाने पर भी शहद लगाने से लाभ मिलता है। मनुका (मेडिहनी) मेडिसिनल हनी होती है जिसके एंटीबैक्टीरिया कई तरह के स्रोतों से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि स्थानों से हासिल किए जाते हैं। वर्ष 2007 में हेल्थ कनाडा ओर यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने क्रमश: पहली बार मेडिसिनल हनी को घाव और जलने में इस्तेमाल के लिए इजाजत दी थी।

शुद्ध शहद की पहचान

शहद शुद्ध होने पर ही लाभदायक है। शुद्ध शहद को जब धार बना कर छोड़ा जाता है। तो वह सांप की तरह कुंडली बना कर गिरता है जबकि नकली फ़ैल जाता है। शीशे की प्लेट पर शहद टपकाने पर यदि उसकी आकृति साँप की कुंडली जैसी बन जाए तो शहद शुद्ध है। काँच के एक साफ़ ग्लास में पानी भरकर उसमें शहद की एक बूँद टपकाएँ। अगर शहद नीचे तली में बैठ जाए तो यह शुद्ध है और यदि तली में पहुँचने के पहले ही घुल जाए तो शहद अशुद्ध है। शुद्ध शहद में मक्खी गिरकर फँसती नहीं बल्कि फड़फड़ाकर उड़ जाती है। शुद्ध शहद आँखों में लगाने पर थोड़ी जलन होगी, परंतु चिपचिपाहट नहीं होगी। शुद्ध शहद कुत्ता सूँघकर छोड़ देगा, जबकि अशुद्ध को चाटने लगता है। शुद्ध शहद का दाग़ कपड़ों पर नहीं लगता। शुद्ध शहद दिखने में पारदर्शी होता है। रुई की बत्ती बनाकर उसे शुद्ध शहद में डुबो कर जलायें, वह मोमबत्ती की तरह जलती रहेगी। अखबार या कपड़े पर शहद की बूंद गिरा कर पोछ दें, सतह उसे सोखेगी नहीं। जबकी नकली, कपड़े या काग़ज़ में जज्ब (शोषित) हो जायेगा। असली शहद पर मक्खी बैठ कर उड़ जायेगी जबकी नकली में वहीं फंस कर रह जाती है। शुद्ध शहद खुशबूदार होता है। यह गर्मी पाकर पिघल जाता है और शीत में जमने लगता है।

बाज़ार का शहद

आजकल चीन से आयातित शहद और मुनाफा कमाने में अंधी कम्पनीयों के एक घपले को उजागर किया गया है जिसमे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (C.S.E.) के शोध के अनुसार बाज़ार में बिक रहे बड़ी-बड़ी कम्पनीयों के शहद में प्रतीजैवीक एंटी-बायोटिक्स की मात्रा अंतर्राष्ट्रीय मानकों से दोगुना तक मिली है। ऐसे शहद को अगर लगातार खाया जाता है तो हमारे शरीर के एंटी बायटिक के प्रति रजीस्ट बनने का ख़तरा हो जाएगा और बिना ज़रूरत के इन प्रतिजैविक पदार्थों के शरीर में जाने से जो साइड इफेक्ट्स होंगे वो भी खतरनाक होंगे। इनके दवारा जांचे गए शहद में एजिथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लॉक्सेसिन और ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, क्लोरैंमफेनिकल, एंफीसिलीन आदि प्रतिजैविक पदार्थ पाए गए। यह प्रतिजैविक शहद में आते कहाँ से है जब मधु पालन के छत्तों में इनको बीमारी से बचने के लिए इन प्रतिजैविक का प्रयोग किया जाता है तब ये शहद में आते है ठीक उसी प्रकार जैसे गाय भैंस को बीमार होने पर प्रतिजैविक का कोर्स दिया जाता है तो उनके दूध में भी प्रतिजैविक का असर आ जाता है इस दूध को पीने वाले के शरीर में अनायास ही ये एंटीबायोटिक चले जाते हैं और हानि करते हैं।

मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी पालन

जो लोग मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं उन्हें मधुमक्खी नहीं काटती क्योंकि वह शहद निकालते हुए विशेष कपड़े पहनते हैं। जिसके कारण मधुमक्खी उनको काट नहीं पाती हैं। इसी समय में पालनकर्ता उनके स्वभाव को जनता है तथा कोई ऐसा काम ही नहीं करता है कि मधुमक्खी को काटने की ज़रूरत पड़े। सर एडमंड हिलेरी स्वयं मधुमक्खी पालक थे। मधुपालन में कोई कठिनाई नहीं है। इसके बारे में थोड़ी जानकारी ही पर्याप्त है।

शहद की उपयोगिता

शहद अपने औषधीय गुणों के कारण अनेक बीमारियों में उपयोग होता रहा है। शहद का प्रयोग जहां आंखों की रोशनी बढ़ाने तथा कफ एवं अस्थमा और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में कारगर सिद्ध हुआ है, वहीं रक्त शुद्धि तथा दिल को मज़बूत करने में भी सहायक है।

  1. शहद, गाजर के जूस के साथ लेने से आंखों की रोशनी को बढ़ाने में मदद करता है। इसे खाना खाने से एक घंटा पहले लेना चाहिये।
  2. खांसी में यह एक अचूक औषधि का काम करती है। बराबर की मात्र में अदरक के रस के साथ लेने से, सर्दी, गले की खराश, जुकाम तथा छाती में कन्जैशन से आराम मिलता है।
  3. जिंजर जूस, काली मिर्च के पाउडर के साथ शहर मिक्स कर (बराबर मात्र) में लेने से अस्थमा के रोगियों को दिन में तीन बार लेने से आराम मिलता है।
  4. दो चम्मच शहद के एक चम्मच ‘गारलिक जूस’ के साथ मिलाकर पीने से ‘उच्च रक्त चाप’ के रोगियों को सामान्य करने में मदद करता है।
  5. प्रात:काल शौच जाने से पहले गर्म पानी के गिलास में 1-2 चम्मच शहद तथा एक चम्मच ‘लेमन जूस’ मिलाकर पीने से रक्त शुद्धि का कार्य करता है तथा मोटापे को बढ़ने से भी रोकता है।
  6. हृदय के लिए भी शहद गुणकारी है, मीठी सौंफ के साथ 1-2 चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से दिल को मज़बूत तो करता ही है। हृदय को सुचारू रूप से कार्य करने में भी मदद करता है।
  7. बच्चों को एक चम्मच पानी में दो बूंद शहद मिलाकर चटाने से उनकी ग्रोथ अच्छी होती है और वे सेहतमंद रहते हैं।
  8. शहद, अदरक और तुलसी के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर चाटने से जुकाम में राहत मिलती है।
  9. पूरे परिवार की सेहत के लिए बादाम भिगोकर दूध में पीस लें और उसे सबको एक चम्मच शहद में मिलाकर खिलाएं।
  10. एक बडे चम्मच शहद में एक बड़ी इलायची पीसकर मिलाकर पीने से पेट दर्द में राहत मिलती है।
  11. लगातार हिचकी आ रही हो तो शहद चाटें।
  12. हृदय की धमनी के लिए शहद बड़ा शक्तिवर्द्धक है। सोते वक्त शहद व नींबू का रस मिलाकर एक ग्लास पानी पीने से कमज़ोर हृदय में शक्ति का संचार होता है।
  13. पेट के छोटे-मोटे घाव और शुरुआती स्थिति का अल्सर शहद को दूध या चाय के साथ लेने से ठीक हो सकता है।
  14. सूखी खाँसी में शहद व नींबू का रस समान मात्रा में सेवन करने पर लाभ होता है।
  15. शहद से माँसपेशियाँ बलवती होती हैं।
  16. बढ़े हुए रक्तचाप में शहद का सेवन लहसुन के साथ करना लाभप्रद होता है।
  17. अदरक का रस और शहद समान मात्रा में लेकर चाटने से श्वास कष्ट दूर होता है और हिचकियाँ बंद हो जाती हैं।
  18. संतरों के छिलकों का चूर्ण बनाकर दो चम्मच शहद उसमें फेंटकर उबटन तैयार कर त्वचा पर मलें। इससे त्वचा निखर जाती है और कांतिवान बनती है।
  19. कब्जियत में टमाटर या संतरे के रस में एक चम्मच शहद डालकर सेवन करें, लाभ होगा।
  20. शुष्क त्वचा पर शहद, दूध की क्रीम व बेसन मिलाकर उबटन करें। इससे त्वचा की शुष्कता दूर होकर लावण्यता प्राप्त होगी।
  21. एक गिलास दूध में बिना शकर डाले शहद घोलकर रात को पीने से दुबलापन दूर होकर शरीर सुडौल, पुष्ट व बलशाली बनता है।
  22. शहद नित्य सेवन निर्बल आमाशय व आँतों को बल प्रदान करता है।
  23. प्याज का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर चाटने से कफ निकल जाता है तथा आँतों में जमे विजातीय द्रव्यों को दूर कर कीड़े नष्ट करता है। इसे पानी में घोलकर एनीमा लेने से लाभ होता है।
  24. मोटापा अधिक बढ़ जाने से व्यक्ति चलने-फिरने में और अपने रोजमर्रा के काम करने में जल्दी थकान महसूस करता है, ऐसे में एक चम्मच शहद का गर्म पानी के साथ सुबह-शाम प्रयोग मोटापे को कम करता है और शरीर की ऊर्जा बढ़ाता है।

सावधानियाँ

इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप अधिक मात्रा में शहद का सेवन करने लगे तो ये फायदे की बजाए नुकसान देगा। इसलिए केवल 1 चम्मच शहद का ही रोजाना सेवन करें। शहद को किसी विपरीत प्रकृति की वस्तु के साथ देने पर वह विष की भांति कार्य करता है। इसलिए गर्म करके अथवा गुड़, घी, शक्कर, मिश्री, तेल, मांस-मछली आदि के साथ शहद के समान मात्रा का सेवन नहीं करना चाहिए। गर्मी में अधिक गर्म पानी, गर्म दूध या अधिक धूप में बच्चों को शहद देना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। गर्मी के दिनों में बच्चों को शहद देने से बचें। इसे कभी गर्म कर ना खायें। अधिक गर्म चीज़ में मिलाने से शहद के गुण कम होते हैं। इसके साथ बराबर मात्रा में घी, कमलगट्टा तथा वर्षा का पानी कभी भी नहीं लेना चाहिये। गर्मी से पीड़ित मनुष्य के लिए भी यह हानिकारक होता है।


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