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*यह सम्प्रदाय छठी से नवीं शताब्दी के बीच [[मैसूर]] और [[राजस्थान]] में भी फैल चुका था। | *यह सम्प्रदाय छठी से नवीं शताब्दी के बीच [[मैसूर]] और [[राजस्थान]] में भी फैल चुका था। |
13:20, 26 जून 2014 के समय का अवतरण
लकुलीश | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- लकुलीश (बहुविकल्पी) |
लकुलीश सम्प्रदाय या 'नकुलीश सम्प्रदाय' के प्रवर्तक 'लकुलीश' माने जाते हैं। लकुलीश को स्वयं भगवान शिव का अवतार माना गया है। लकुलीश सिद्धांत पाशुपतों का ही एक विशिष्ट मत है। इसका उदय गुजरात में हुआ था। वहाँ इसके दार्शनिक साहित्य का सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ के पहले ही विकास हो चुका था। इसलिए उन लोगों ने शैव आगमों की नयी शिक्षाओं को नहीं माना।
- यह सम्प्रदाय छठी से नवीं शताब्दी के बीच मैसूर और राजस्थान में भी फैल चुका था।
- शिव के अवतारों की सूची, जो वायुपुराण से लिंगपुराण और कूर्मपुराण में उद्धृत है, लकुलीश का उल्लेख करती है।
- लकुलीश की मूर्ति का भी उल्लेख किया गया है, जो गुजरात के 'झरपतन' नामक स्थान में है।
- लकुलीश की यह मूर्ति सातवीं शताब्दी की बनी हुई प्रतीत होती है।[1]
- लिंगपुराण[2] में लकुलीश के मुख्य चार शिष्यों के नाम 'कुशिक', 'गर्ग', 'मित्र' और 'कौरुष्य' मिलते हैं।
- प्राचीन काल में इस सम्प्रदाय के अनुयायी बहुत थे, जिनमें मुख्य साधु[3] होते थे।
- इस संप्रदाय का विशेष वृत्तांत शिलालेखों तथा विष्णुपुराण, लिंगपुराण आदि में मिलता है।
- इसके अनुयायी लकुलीश को शिव का अवतार मानते और उनका उत्पत्ति-स्थान 'कायावरोहण'[4] बतलाते थे।[5]
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