खाल वाद्य

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रेणु (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:16, 23 अगस्त 2011 का अवतरण (→‎ढोल)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

पशुओं की खाल से बनाये गये वाद्य यंत्रों को खाल कहा जाता है।

ढोल

इसका निर्माण लोहे या लकड़ी के गोल घेरे पर दोनों तरफ चमड़ा मढ़ कर किया जाता है। ढोल पर प्राय: बकरे की खाल चढ़ाई जाती है। ढोल पर लगी रस्सियों को कड़ियों के सहारे खींचकर कस दिया जाता है। वादक ढोल को गले में डालकर लकड़ी के डंडे से बजाता है। यह एक मांगलिक वाद्य माना जाता है इसलिए विवाह के प्रारंभ में इस पर स्वस्तिक का निशान बना दिया जाता है। यह राजस्थान के अधिकांश लोक नृत्यों में बजाया जाता है।

चंग

यह होली पर बजाया जाने वाला प्रमुख ताल वाद्य है। इसका गोल घेरा लकड़ी से बनाया जाता है तथा इसके एक तरफ बकरे की खाल मढ़ दी जाती है। इस वाद्य यंत्र को वादक कन्धे पर रखकर बजाता है। होली के अवसर पर इस वाद्य पर धमाल तथा चलत के गीत गाये जाते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख