आटे दाल का भाव मालूम होना
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आटे दाल का भाव मालूम होना एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है।
अर्थ- यह समझ में आना कि घर-गृहस्थी का काम कितनी मुश्किलों से चलता है।
प्रयोग- करते क्या बेचारे-जब चादर छोटी हो तो पैर फैलाने की गुंजाइश होने से रही आटे-दाल का भाव मालूम हो जाता।- (राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह )
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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राजा राधिका प्रसाद सिंह