जलदुर्ग (रनगढ़)

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रनगढ़ का जलदुर्ग बुन्देलखंड में केन नदी के मध्य में स्थित है। इस दुर्ग को बनाने वाले कारीगरों ने इसे कुछ ऐसे बिंदु पर बनाया है कि वर्ष 1992 और 2005 की बाढ़ में जब पूरा बांदा डूब गया, तब भी यह दुर्ग पानी के प्रकोप से दूर ही रहा। रनगढ दुर्ग के एक तरफ़ छतरपुर है, तो दूसरी तरफ़ बांदा। छतरपुर का बारीखेरा और बांदा का मउगिरवाँ इस दुर्ग की सीमा रेखा का निर्धारण करते हैं। दो मंजिला यह क़िला बुंदेला राजाओं द्वारा बनवाया गया बताया जाता है।

स्थापत्य कला

दुर्ग में प्रत्येक दिशा में तीन दरवाजे हैं। दरवाजे के ऊपर छोटी-छोटी दीवारें हैं, जिसमें छेद है, ताकि दीवार के पीछे से दूर से आते शत्रुओं पर निगाह रखी जा सके। क़िले में कुल पांच बुर्ज हैं और बुर्जों की दो रेखाएँ हैं। क़िले में स्थान-स्थान पर सुरंगें बनी हैं, ताकि आपात स्थिति में सुरक्षित निकला जा सके। क़िले का निर्माण नदी की चट्टानों को तराश कर किया गया है। क़िले से कुछ ही दूरी पर रिसौरा महल है। कहा जाता है कि एक बार रानी साहिबा नाराज होकर यहाँ गईं थीं और काफ़ी दिनों तक महल में रहीं। तभी से इस महल का नाम रिसौरा पड़ गया।

जंगल की सघनता

क़िले की तोपों की मारक क्षमता रिसौरा तक बताई जाती है। पहले इस क़िले के आस-पास करघई और बाँस आदि का जंगल था। जंगल की यह सघनता गावों तक फैली थी। इसी कारण यह क़िला दस्युओं की शरण स्थली के रूप में भी जाना जाता है। इस समय भी खनन माफिया यहाँ सकिय हैं। यहाँ चकमक पत्थर पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। भू-अभिलेखों में यह क़िला मध्य प्रदेश में अंकित है।


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