सुधा मल्होत्रा का परिचय

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सुधा मल्होत्रा का परिचय
सुधा मल्होत्रा
प्रसिद्ध नाम सुधा मल्होत्रा
जन्म 30 नवम्बर, 1936
जन्म भूमि दिल्ली
पति/पत्नी गिरधर मोटवानी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र पार्श्वगायिका
मुख्य फ़िल्में 'आरज़ू', 'दिल्ली दूर नहीं', 'बरसात की रात', 'घर घर में दीवाली', 'काला बाज़ार', 'भाई बहन', 'कभी कभी', 'प्रेम रोग'।
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री
नागरिकता भारतीय
प्रमुख गीत 'मिला दे नैन', 'ना मैं धन चाहूं ना रतन चाहूं', 'ना तो कारवां की तलाश है', 'ये प्यार था या कुछ और था'।
अन्य जानकारी सुधा ने आख़िरी बार राजकपूर की फ़िल्म 'प्रेम रोग' में गाना गाया था, जिसके बोल थे 'ये प्यार था या कुछ और था'।

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सुधा मल्होत्रा 1950 दशक की मशहूर पार्श्व गायिका हैं। उन्होंने बहुत ही कम समय में हिन्दी फ़िल्मों में अपनी विशेष पहचान बना ली और इस तरह उन्होंने फ़िल्म संगीत के इतिहास में अपना नाम सुरक्षित कर लिया। उन्होंने बहुत सी फ़िल्मों के गानों में अपनी आवाज़ दी। सुधा ने 6 वर्ष की उम्र से ही स्टेज पर गाना शुरू कर दिया था।

परिचय

हिंदी फ़िल्मों की मशहूर गायिका सुधा मल्होत्रा का जन्म 30 नवम्बर, 1936 को दिल्ली में हुआ था। उन्होंने 'रेडिओ लाहौर' में एक बाल कलाकार गायिका के रूप में काम शुरू किया। उन्होंने 6 वर्ष की उम्र में कानन बाला के गाने से स्टेज पर गाना शुरू किया था। संगीतकार गुलाम हैदर जी ने उन्हें गाने के मंच पर पहला मौक़ा दिया था।[1]

फ़िल्मी शुरुआत

सुधा मल्होत्रा ने अपने फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत 1950 में रिलीज हुई फ़िल्म 'आरज़ू' से किया था। सुधा मल्होत्रा जब 11 वर्ष की थीं, तब वह एक स्टूडियो में गाना गा रही थीं और गाना था 1950 में रिलीज हुई फ़िल्म 'आरज़ू' का, जिसके बोल थे 'मिला दे नैन'। जब रिकॉर्डिंग खत्म हुई तो संगीतकार अनिल बिस्वास ने ताली बजा कर इस नई आवाज़ का हौसला बढ़ाया। इस तरह फ़िल्म संगीत को मिलीं सुधा मल्होत्रा, जिन्होंने कम समय में ही फ़िल्म संगीत के इतिहास में अपना नाम सुरक्षित कर लिया।

विवाह

साहिर और सुधा ने बहुत से गाने एक साथ गाए, जोकि काफ़ी हिट रहे। इस बीच साहिर सुधा से प्रेम करने लगे थे। जब साहिर के जज्बात जब अफ़वाह और ख़बर बनकर फैले तो सुधा मल्होत्रा के जीवन पर भी इसका असर पड़ने लगा, तब सुधा महज 22 वर्ष की थीं। अब सुधा के सामने दो ही विकल्प थे। या तो वो घरवालों को नाराज़ कर अपना कॅरियर जारी रखें या फिर घरवालों को खुश रखने के लिए विवाह कर लें। सुधा ने दूसरा रास्ता चुना और 1960 में गिरधर मोटवानी के साथ विवाह कर लिया। विवाह के बाद सुधा ने फ़िल्मों से पूरी तरह नाता तोड़ लिया। इस तरह एक आवाज़ जिसे अभी बहुत आगे जाना था थम गई।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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