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15:23, 9 जून 2020 के समय का अवतरण

तितास एकटि नदीर नाम
तितास एक नदी का नाम
लेखक अद्वैत मल्लबर्मन
मूल शीर्षक तितास एकटि नदीर नाम
अनुवादक प्रो. चन्द्रकला पाण्डेय और डॉ. जय कौशल
प्रकाशन तिथि 1956
देश भारत
भाषा हिन्दी (मूल- बांग्ला में)
विधा उपन्यास
विशेष इसमें मछली पकड़ने वाली एक निचली जाति मालो की कहानी है। मालो समुदाय का त्रिपुरा और बांग्लादेश में बहने वाली नदी के साथ नाभिनाल रिश्ता रहा है।

तितास एकटि नदीर नाम बांग्ला भाषा की एक कालजयी कृति है। यह 1956 में जब छपी थी, तब तक इसके लेखक 'अद्वैत मल्लबर्मन' की मात्र 37 साल की उम्र में अकाल मौत हो चुकी थी। पर इस उपन्यास ने उन्हें अमर कर दिया। मशहूर फिल्मकार ऋत्विक घटक ने इस पर इसी नाम से एक अविस्मरणीय फिल्म बनाई थी। बांग्ला साहित्य में इसे दलित विचारधारा की प्रतिनिधि कृति के बतौर भी देखा जाता है, क्योंकि अद्वैत खुद दलित मालो समुदाय से थे। इस उपन्यास में अविभाजित बंगाल के हिंदू मछुआरों और मुसलमान किसानों का जीवन अपने तमाम भाव-अभाव के साथ चित्रित हुआ है। इस उपन्यास में लेखक का नजरिया कतई रोमांटिक नहीं है, लेकिन जनजीवन की नैसर्गिक सुषमा इसमें भरी हुई है।[1]

तितास एक नदी का नाम

'तितास एकटि नदीर नाम’ उपन्यास का हिन्दी अनुवाद ‘तितास एक नदी का नाम’ से मानव प्रकाशन, कोलकाता द्वारा प्रकाशित हुआ है। इसका अनुवाद प्रो. चन्द्रकला पाण्डेय और डॉ. जय कौशल ने किया है। सन 1956 में प्रथम बार बांग्ला में प्रकाशित इस रचना का प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता उत्पल दत्त द्वारा 1963 में भारतीय गणनाट्य संघ के प्रयास से नाट्य-रूपांतर और मंचन किया गया था, जिसमें स्वयं उत्पल दत्त के साथ-साथ विजन भट्टाचार्य और चर्चित गायक निर्मलेन्दु चौधरी ने प्रमुख भूमिकाएँ निभाई थीं। इसके बाद 1993 में नाटककार शान्तनु कायदार द्वारा अबुल खैर और मोहम्मद युसुफ़ के साथ कुमिल्ला (अब बांग्लादेश में) में इसका मंचन किया गया। इसी वर्ष प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्म निर्माता और पटकथा लेखक ऋत्विक घटक ने 1973 में इस पर ‘तितास एक्टि नादिर नाम’ शीर्षक से ही बांग्ला में एक फ़िल्म बनाई थी, जिसे 2010 में आयोजित 63वें काँस फिल्मोत्सव में ‘काँस क्लासिक’ के तहत प्रदर्शित किया गया था।‘[2]

समीक्षा

तितास, ‘मेघना’ (अब मुख्यत: बांग्लादेश में बहने वाली) से टूटकर बनी एक नदी का नाम है, लेकिन इस उपन्यास में अद्वैत ने उसे मानवीकृत रूप में चित्रित किया है। इसके किनारे मनुष्य-जीवन की अनेक छवियाँ अंकित हैं। अपने नग्न-यथार्थ, सुगठित कथन-शैली, मिथकीय व्याख्या, भव्य-संरचना और संगीतमय कथानक के कारण यह उपन्यास समकालीन बांग्ला साहित्य में बेहद समादृत है। देश-विभाजन से पहले हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच जो मिठास थी, उसका वर्णत तो ‘तितास’ में आया है, लेकिन विभाजन के बाद दोनों संप्रदायों में आई तितास को इस ‘तितास’ में नहीं दिखाया गया है। मुस्लिम खेतिहरों और हिन्दू मछेरों की संस्कृति का एका इस रचना की रीढ़ है लेकिन तत्कालीन बंगाली समाज में मौजूद रही ‘छुआछूत’ और ‘जातिप्रथा’ के प्रसंग भी अपनी पूरी प्रखरता के साथ आए हैं, यही कारण है कि बांग्ला दलित साहित्य एवं विमर्श में इस उपन्यास को दलित अभिव्यक्ति की पहली महत्त्वपूर्ण रचना का दर्जा हासिल है।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सुशांत, धर्मेद्र। कालजयी कृति (हिन्दी) हिंदुस्तान लाइव। अभिगमन तिथि: 14 मार्च, 2015।
  2. 2.0 2.1 परिप्रेक्ष्य : तितास एक नदी का नाम (हिंदी) समालोचन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 14 मार्च, 2015।

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