"हयग्रीव": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=हयग्रीव|लेख का नाम=हयग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
छो (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
हयग्रीव की कथा [[महाभारत शान्ति पर्व]] के अनुसार यह है-  
हयग्रीव की कथा [[महाभारत शान्ति पर्व]] के अनुसार यह है-  


कल्पान्त में जब यह पृथ्वी जलमग्न हो गयी तब विष्णु को पुन: जगत सर्जन का विचार हुआ। वह जगत की विविध विचित्र रचना का विषय सोचते हुए योगनिद्रा का अवलम्बन कर जल में सो रहे थे। कुछ समय के पश्चात भगवान ने कमल मध्य दो जलबिन्दु देखे। एक बिन्दु से मधु और दूसरे से कैटभ की उत्पत्ति हुई। उत्पन्न होते ही दैत्यों ने कमल के मध्य [[ब्रह्मा]] को देखा। दोनों सनातन वेदों को ले रसातल में चले गये। वेदों का अपहरण होने पर ब्रह्मा चिन्तित हुए कि वेद ही मेरे चक्षु है उनके अभाव में लोकसृष्टि मैं कैसे कर सकूँगा। उन्होंने वेदोउद्धार के लिए भगवान विष्णु की स्तुति की। स्तुति सुन भगवान ने हयग्रीव की मूर्ति धारण कर वेदों का उद्धार किया।<ref>[[महाभारत शान्ति पर्व]] 347.24-75</ref>
कल्पान्त में जब यह पृथ्वी जलमग्न हो गयी तब विष्णु को पुन: जगत सर्जन का विचार हुआ। वह जगत की विविध विचित्र रचना का विषय सोचते हुए योगनिद्रा का अवलम्बन कर जल में सो रहे थे। कुछ समय के पश्चात् भगवान ने कमल मध्य दो जलबिन्दु देखे। एक बिन्दु से मधु और दूसरे से कैटभ की उत्पत्ति हुई। उत्पन्न होते ही दैत्यों ने कमल के मध्य [[ब्रह्मा]] को देखा। दोनों सनातन वेदों को ले रसातल में चले गये। वेदों का अपहरण होने पर ब्रह्मा चिन्तित हुए कि वेद ही मेरे चक्षु है उनके अभाव में लोकसृष्टि मैं कैसे कर सकूँगा। उन्होंने वेदोउद्धार के लिए भगवान विष्णु की स्तुति की। स्तुति सुन भगवान ने हयग्रीव की मूर्ति धारण कर वेदों का उद्धार किया।<ref>[[महाभारत शान्ति पर्व]] 347.24-75</ref>





07:36, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

हयग्रीव एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- हयग्रीव (बहुविकल्पी)
हयग्रीव ब्रह्मा को वेद प्रदान करते हुए

हयग्रीव भगवान विष्णु के चौदह अवतारों में से एक थे। इनका सिर घोड़े का और शरीर मनुष्य का था। वेद, जिन्हें मधु और कैटभ नाम के दैत्य उठा ले गये थे, उनके उद्धार के लिए विष्णु ने यह अवतार लिया था।[1]

पौराणिक कथा

हयग्रीव की कथा महाभारत शान्ति पर्व के अनुसार यह है-

कल्पान्त में जब यह पृथ्वी जलमग्न हो गयी तब विष्णु को पुन: जगत सर्जन का विचार हुआ। वह जगत की विविध विचित्र रचना का विषय सोचते हुए योगनिद्रा का अवलम्बन कर जल में सो रहे थे। कुछ समय के पश्चात् भगवान ने कमल मध्य दो जलबिन्दु देखे। एक बिन्दु से मधु और दूसरे से कैटभ की उत्पत्ति हुई। उत्पन्न होते ही दैत्यों ने कमल के मध्य ब्रह्मा को देखा। दोनों सनातन वेदों को ले रसातल में चले गये। वेदों का अपहरण होने पर ब्रह्मा चिन्तित हुए कि वेद ही मेरे चक्षु है उनके अभाव में लोकसृष्टि मैं कैसे कर सकूँगा। उन्होंने वेदोउद्धार के लिए भगवान विष्णु की स्तुति की। स्तुति सुन भगवान ने हयग्रीव की मूर्ति धारण कर वेदों का उद्धार किया।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 546 |

  1. मधु और कैटभ, भागवत पुराण और विष्णु पुराण
  2. महाभारत शान्ति पर्व 347.24-75

संबंधित लेख