"प्रयोग:कविता बघेल 2": अवतरणों में अंतर
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{जैक्स लुईस डेविड की पेंटिंग ' | {जैक्स लुईस डेविड की पेंटिंग 'सुकरात की मृत्यु' किस कलावाद के अंतर्गत आती है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-114,प्रश्न-2 | ||
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-शास्त्रीयवाद | -शास्त्रीयवाद | ||
+नवशास्त्रीयवाद | +नवशास्त्रीयवाद | ||
-यथार्थवाद | -[[यथार्थवाद]] | ||
-उत्तर यथार्थवाद | -उत्तर यथार्थवाद | ||
||जैक्स लुईस डेविड की पेंटिंग ' | ||जैक्स लुईस डेविड की पेंटिंग 'सुकरात की मृत्यु' नवशास्त्रीयवाद के अंतर्गत आती है। 1785 ई. में डेविड ने अपना चित्र 'होरेशिया का प्रण' बनाया जो नवशास्त्रीयवाद का सर्वप्रथम चित्र माना जा सकता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) इनके चित्र 'मिनर्वा की विजय' में रोकॉको शैली की कुछ विशेषताएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। (2) 1775 ई. में 'प्री द रोम' छात्रवृत्ति प्राप्त करके वे [[रोम]] में अध्ययन के लिए चले गए। (3) उनके प्रसिद्ध चित्र हैं- सेबाइंस पर बलात्कार, बुट्स के पुत्रों के शवों के दहन, होराती का शपथ (1787) तथा सुकरात की मृत्यु (1787) आदि। (4) 'पागल हत्यारा' जेरिको का बहुत प्रभावपूर्ण व प्रसिद्ध चित्र है। | ||
{घनवादी कला आकृतियों को किस रूप में देखते थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-1 | {घनवादी कला आकृतियों को किस रूप में देखते थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-1 | ||
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-वर्ग | -वर्ग | ||
-त्रिकोणात्मक और वर्ग | -त्रिकोणात्मक और वर्ग | ||
-गोले और त्रिभुज | -गोले और त्रिभुज | ||
+घन और [[शंकु]] | +घन और [[शंकु]] | ||
||क्यूबिस्ट (घनवादी) चित्रकला में वस्तुओं को तोड़ा जाता है। उनका विश्लेषण किया जाता है और एक नज़रिये के बजाए उन्हें फिर से पृथक रूप से बनाया जाता है। घनवादी कला आकृतियों को घन और [[शंकु]] के रूप में देखते थे। | ||क्यूबिस्ट (घनवादी) चित्रकला में वस्तुओं को तोड़ा जाता है। उनका विश्लेषण किया जाता है और एक नज़रिये के बजाए उन्हें फिर से पृथक रूप से बनाया जाता है। घनवादी कला आकृतियों को घन और [[शंकु]] के रूप में देखते थे। | ||
{[[इटली]] में बरोक कला का किस शती में विकसित हुई? | {[[इटली]] में बरोक कला का किस शती में विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-138,प्रश्न-1 | ||
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+16वीं | +16वीं | ||
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-20वीं | -20वीं | ||
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||[[इटली]] में बरोक कला का | ||[[इटली]] में बरोक कला का 16वीं शती (1550-1750) में विकसित हुई। यूरोपीय कला का यह काल स्वर्ण युग माना गया है। विश्व के सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में से इटालियन कलाकार कारावाद्ज्यो, फ़्रेंच कलाकार क्लोद लोरे, डच कलाकार रेम्ब्रां, वर्मेर, फ़्राँस हाल्स, फ्लेमिश कलाकार रूबेन्स, वान डाइक एवं स्पेनिश कलाकार रिबेश, वेलास्केस इसी काल की देन हैं। | ||
{'एस्थेटिक' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-151,प्रश्न-1 | {'एस्थेटिक' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-151,प्रश्न-1 | ||
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-हीगेल | -हीगेल | ||
-टॉलस्टाय | -टॉलस्टाय | ||
||18वीं शती में बामगार्टन (1714-62 ई.) ने 'फिलॉसफी' को 'लॉजिक' (तर्कशास्त्र) 'एथिक्स' (नीतिशास्त्र) और 'एस्थेटिक्स' (सौन्दर्यशास्त्र) तीन अलग-अलग भागों में विभक्त कर दिया। 'नीतिशास्त्र' (एथिक्स) मानव को बुराइयों से हटाकर अच्छाइयों की ओर ले जाते है, सौंदर्यशास्त्र (एस्थेटिक्स) आनन्द की ओर, लॉजिक (तर्कशास्त्र) तर्क की ओर। एस्थेटिक्स तभी से अन्य विषयों की भांति अध्ययन का एक स्वतंत्र विषय बन गया। इससे सम्बाधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||18वीं शती में बामगार्टन (1714-62 ई.) ने 'फिलॉसफी' को 'लॉजिक' (तर्कशास्त्र) 'एथिक्स' (नीतिशास्त्र) और 'एस्थेटिक्स' (सौन्दर्यशास्त्र) तीन अलग-अलग भागों में विभक्त कर दिया। 'नीतिशास्त्र' (एथिक्स) मानव को बुराइयों से हटाकर अच्छाइयों की ओर ले जाते है, सौंदर्यशास्त्र (एस्थेटिक्स) आनन्द की ओर, लॉजिक (तर्कशास्त्र) तर्क की ओर। एस्थेटिक्स तभी से अन्य विषयों की भांति अध्ययन का एक स्वतंत्र विषय बन गया। इससे सम्बाधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) बामगार्टन को 'फ़ादर ऑफ़ एस्थेटिक्स' (सौन्दर्य शास्त्र का जनक) कहा जाता है। (2) एस्थेटिक्स, दर्शनशास्त्र के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है। | ||
{भारतीय सौन्दर्यशास्त्र में रस प्रतीति में विघ्न की बात निम्न में से किसने कही है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-1 | {भारतीय सौन्दर्यशास्त्र में रस प्रतीति में विघ्न की बात निम्न में से किसने कही है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-1 | ||
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-भट्टलोल्लट | -भट्टलोल्लट | ||
-[[शंकुक|श्रीशंकुक]] | -[[शंकुक|श्रीशंकुक]] | ||
+[[अभिनवगुप्त]] | +[[अभिनवगुप्त]] | ||
-भट्टनायक | -भट्टनायक | ||
||भारतीय सौन्दर्यशास्त्र में रस प्रतीति में | ||भारतीय सौन्दर्यशास्त्र में रस प्रतीति में विघ्न की बात [[अभिनवगुप्त]] ने कही है। अभिनवगुप्त भारतीय सौन्दर्य-दर्शन के विशिष्टतम प्रवर्तक माने जाते हैं। इन्होंने प्रेक्षक को ध्यान उत्पन्न करने वाले सभी प्रकार की विघ्न बाधाओं से सर्वप्रथम मुक्त करने की बात कही। | ||
{ग्वाश रंगों की प्रकृति कैसी होती है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-2 | {ग्वाश रंगों की प्रकृति कैसी होती है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-2 | ||
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-परावर्ती | -परावर्ती | ||
+अपारदर्शी | +अपारदर्शी | ||
||ग्वाश रंगों की प्रकृति अपारदर्शी होती है। ग्वाश का अर्थ गाढ़ा लेप होता है। चित्रों में प्राय:पोस्टर, तैल, पोस्टर तथा टेम्परा चित्रण में अधिकतर अपारदर्शी रंगांकन होता है। | ||ग्वाश रंगों की प्रकृति अपारदर्शी होती है। ग्वाश का अर्थ गाढ़ा लेप होता है। चित्रों में प्राय: पोस्टर, तैल, पोस्टर तथा टेम्परा चित्रण में अधिकतर अपारदर्शी रंगांकन होता है। | ||
{टेलीविजन मीडिया पर प्रचार की क़ीमत का क्या आधार है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-1 | {[[टेलीविजन]] मीडिया पर प्रचार की क़ीमत का क्या आधार है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-1 | ||
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+समय | +समय | ||
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-प्रोडक्शन | -प्रोडक्शन | ||
-[[रंग]] | -[[रंग]] | ||
||टेलीविजन मीडिया पर प्रचार की क़ीमत का आधार प्रसारण का समय होता है। साथ ही क़ीमत का आधार प्रचार का आकार, गुणवत्ता, प्रिंट शैली, प्रसारण का स्थान आदि भी होता है। | ||[[टेलीविजन]] मीडिया पर प्रचार की क़ीमत का आधार प्रसारण का समय होता है। साथ ही क़ीमत का आधार प्रचार का आकार, गुणवत्ता, प्रिंट शैली, प्रसारण का स्थान आदि भी होता है। | ||
{कामसूत्र की उस टीका के टीकाकार कौन थे, जिसमें 'षडंग' का वर्णन है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-1 | {कामसूत्र की उस टीका के टीकाकार कौन थे, जिसमें 'षडंग' का वर्णन है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-1 | ||
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-पंडित दीनानाथ | -पंडित दीनानाथ | ||
-पंडित जयराज | -पंडित जयराज | ||
||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
{'[[भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र]]' कहां पर स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-181,प्रश्न-1 | {'[[भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र]]' कहां पर स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-181,प्रश्न-1 | ||
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-[[पुणे]] | -[[पुणे]] | ||
-[[ | -[[ग्वालियर]] | ||
-[[हैदराबाद]] | -[[हैदराबाद]] | ||
+ट्राम्बे | +ट्राम्बे | ||
||'[[भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र]]' ट्राम्बे ([[मुंबई]]) में स्थित है। यह [[भारत सरकार]] के परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत आता है। [[होमी जहांगीर भाभा|डॉ. होमी जहांगीर भाभा]] ने [[मार्च]], [[1944]] में [[भारत]] में नाभिकीय विज्ञान में अनुसंधान का कार्यक्रम प्रारंभ किया। डॉ. भाभा के शब्दों में "कुछ ही दशकों में जब परमाणु ऊर्जा का विद्युत उत्पादन के लिए सफलतापूर्वक अनुप्रयोग किया जाएगा तब भारत को विशेषज्ञों के लिए विदेशों की ओर नहीं देखना पड़ेगा बल्कि वे यहीं मिलेंगे।" | ||'[[भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र]]' ट्राम्बे ([[मुंबई]]) में स्थित है। यह [[भारत सरकार]] के [[परमाणु ऊर्जा विभाग]] के अंतर्गत आता है। [[होमी जहांगीर भाभा|डॉ. होमी जहांगीर भाभा]] ने [[मार्च]], [[1944]] में [[भारत]] में नाभिकीय विज्ञान में अनुसंधान का कार्यक्रम प्रारंभ किया। डॉ. भाभा के शब्दों में "कुछ ही दशकों में जब परमाणु ऊर्जा का विद्युत उत्पादन के लिए सफलतापूर्वक अनुप्रयोग किया जाएगा तब भारत को विशेषज्ञों के लिए विदेशों की ओर नहीं देखना पड़ेगा बल्कि वे यहीं मिलेंगे।" | ||
{'मृगनयनी का महल' कहां स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-187,प्रश्न-32 | {'मृगनयनी का महल' कहां स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-187,प्रश्न-32 | ||
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-[[कोटा]] | -[[कोटा]] | ||
+[[ग्वालियर]] | +[[ग्वालियर]] | ||
||[[ग्वालियर]] | ||[[[ग्वालियर का क़िला]] में 'मृगनयनी का महल' स्थित है। ग्वालियर के क़िले के अंदर छ: महल हैं। इनमें से एक महल [[राजा मानसिंह]] की रानी 'मृगनयनी का महल' भी है इसे 'गूजरी महल' भी कहा जाता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) ऐसी किंवदंती है कि कच्छवाहा [[सूर्यसेन|राजा सूर्यसेन]], गालव ऋषि के कृपादृष्टि से रोगमुक्त हो गए जिससे उनके नाम पर ग्वालियर के क़िले का निर्माण कराया गया, जो बस्ती आबाद की उसका नामकरण किया ग्वालिआवर। यही बाद में ग्वालियर नाम से मशहूर हुआ। (2) [[बाबर|मुग़ल बादशाह बाबर]] ने इसे [[भारत|हिंदुस्तान]] के अन्य क़िलों में मोती बताया है। | ||
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+डेविड | +डेविड | ||
-ब्रूगेल | -ब्रूगेल | ||
||जैक्स लुईस डेविड की पेंटिंग ' | ||जैक्स लुईस डेविड की पेंटिंग 'सुकरात की मृत्यु' नवशास्त्रीयवाद के अंतर्गत आती है। 1785 ई. में डेविड ने अपना चित्र 'होरेशिया का प्रण' बनाया जो नवशास्त्रीयवाद का सर्वप्रथम चित्र माना जा सकता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) इनके चित्र 'मिनर्वा की विजय' में रोकॉको शैली की कुछ विशेषताएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। (2) 1775 ई. में 'प्री द रोम' छात्रवृत्ति प्राप्त करके वे [[रोम]] में अध्ययन के लिए चले गए। (3) उनके प्रसिद्ध चित्र हैं- सेबाइंस पर बलात्कार, बुट्स के पुत्रों के शवों के दहन, होराती का शपथ (1787) तथा सुकरात की मृत्यु (1787) आदि। (4) 'पागल हत्यारा' जेरिको का बहुत प्रभावपूर्ण व प्रसिद्ध चित्र है। | ||
{'घनवाद' में कितने आयाम होते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-2 | {'घनवाद' में कितने आयाम होते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-2 | ||
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+विवान सुंदरम | +विवान सुंदरम | ||
-शीला गाउड़ा | -शीला गाउड़ा | ||
||[[कोलकाता]] में विक्टोरिया स्मारक पर वर्ष [[1998]] का प्रस्थापन 'स्ट्रक्चर्स ऑफ़ मीनिंग' विवान सुंदरम ने बनाया था जो एक समकालीन | ||[[कोलकाता]] में विक्टोरिया स्मारक पर वर्ष [[1998]] का प्रस्थापन 'स्ट्रक्चर्स ऑफ़ मीनिंग' विवान सुंदरम ने बनाया था जो एक समकालीन कलाकार हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) विवान सुंदरम एक चित्रकार, मूर्तिकार तथा इंस्टालेटर भी है। (2) इनके पिता कल्याण सुंदरम वर्ष [[1968]]-[[1971]] में विधि आयोग के अध्यक्ष रहे थे। (3) [[लंदन]] में ब्रिटिश-अमेरिकन पेंटर आर.बी. किट्ज से मिले तथा कुछ समय तक प्रशिक्षण लिया। | ||
{निम्न में से जर्मन दार्शनिक कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-151,प्रश्न-2 | {निम्न में से जर्मन दार्शनिक कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-151,प्रश्न-2 | ||
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+बामगार्टन | +बामगार्टन | ||
-क्रोचे | -क्रोचे | ||
||अलेक्जेंडर गोट्टिलिब बामगार्टन जर्मन दार्शनिक थे, वे दार्शनिक के साथ ही एक शिक्षक भी थे। इनका जन्म [[17 जुलाई]], 1714 ई. में हुई। अल्बर्ट ड्यूरर जर्मन के चित्रकार और विचारक थे। दांते [[इटली]] के दार्शनिक एवं कवि थे जबकि | ||अलेक्जेंडर गोट्टिलिब बामगार्टन जर्मन दार्शनिक थे, वे दार्शनिक के साथ ही एक शिक्षक भी थे। इनका जन्म [[17 जुलाई]], 1714 ई. में हुई। अल्बर्ट ड्यूरर जर्मन के चित्रकार और विचारक थे। दांते [[इटली]] के दार्शनिक एवं [[कवि]] थे जबकि क्रोचे पेंनसिल्वानिया, [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के गायक थे। बामगार्टन की प्रमुख पुस्तकें हैं- Ethica philosphica (1740; philosphica Ethic), Acroasis Logica (1761; Discourse on Logic), Jus Naturae (1763; Natural Law), Philosphica Generalis (1770; General Philosphica) and Praelectional Theological (1773; Lectures on Thology). | ||
{भारतीय सौन्दर्यशास्त्र के अनुसार '[[रस]] [[कला]] की आत्मा है', यह कथन सर्वप्रथम किसका है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-2 | {भारतीय सौन्दर्यशास्त्र के अनुसार '[[रस]] [[कला]] की आत्मा है', यह कथन सर्वप्रथम किसका है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-2 | ||
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-भाव, लावण्ययोजना, प्रमाण, रूपभेद | -भाव, लावण्ययोजना, प्रमाण, रूपभेद | ||
-लावण्ययोजना, प्रमाण, भाव, रूपभेद | -लावण्ययोजना, प्रमाण, भाव, रूपभेद | ||
||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
{'[[भारत रत्न]]' प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-181,प्रश्न-2 | {'[[भारत रत्न]]' प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-181,प्रश्न-2 | ||
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-[[जवाहर लाल नेहरू|पं. जवाहरलाल नेहरू]] | -[[जवाहर लाल नेहरू|पं. जवाहरलाल नेहरू]] | ||
+[[डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] | +[[डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] | ||
||[[भारत सरकार]] के गृह मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार [[भारत रत्न]] सर्वप्रथम वर्ष [[1954]] में प्रदान किया गया। इनमें तीन व्यक्तियों का चयन किया गया जिनका क्रम इस प्रकार है- [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी|श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]], [[डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] तथा [[चंद्रशेखर वेंकट रामन|डॉ. चंद्रशेखर वेंकट रमन]]। चूंकि क्रम में दूसरे स्थान पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हैं और यह विकल्प में दिया है जिससे विकल्प (d) सही उत्तर माना जा सकता है। वर्ष [[1955]] में भी तीन व्यक्तियों को इस पुरस्कार के लिए चयन किया गया। उनका क्रम इस प्रकार है- [[डॉ. भगवान दास]], [[विश्वेश्वरैया|डॉ. मोक्षगुडम विश्वेस्वरैया]] तथा [[पं. जवाहरलाल नेहरू]]। वर्ष [[2014]] का भारत रत्न [[मदन मोहन मालवीय|पं. मदन मोहन मालवीय]] तथा भूतपूर्व प्रधानमंत्री [[अटल बिहारी वाजपेयी|अटल बिहारी वायपेयी]] को प्रदान किया गया। | ||[[भारत सरकार]] के [[गृह मंत्रालय]] की वेबसाइट के अनुसार [[भारत रत्न]] सर्वप्रथम वर्ष [[1954]] में प्रदान किया गया। इनमें तीन व्यक्तियों का चयन किया गया जिनका क्रम इस प्रकार है- [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी|श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]], [[डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] तथा [[चंद्रशेखर वेंकट रामन|डॉ. चंद्रशेखर वेंकट रमन]]। चूंकि क्रम में दूसरे स्थान पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हैं और यह विकल्प में दिया है जिससे विकल्प (d) सही उत्तर माना जा सकता है। वर्ष [[1955]] में भी तीन व्यक्तियों को इस पुरस्कार के लिए चयन किया गया। उनका क्रम इस प्रकार है- [[डॉ. भगवान दास]], [[विश्वेश्वरैया|डॉ. मोक्षगुडम विश्वेस्वरैया]] तथा [[पं. जवाहरलाल नेहरू]]। वर्ष [[2014]] का भारत रत्न [[मदन मोहन मालवीय|पं. मदन मोहन मालवीय]] तथा भूतपूर्व प्रधानमंत्री [[अटल बिहारी वाजपेयी|अटल बिहारी वायपेयी]] को प्रदान किया गया। | ||
{मूर्तियों पर 'आर्काइक मुस्कान' कहां की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-187,प्रश्न-33 | {मूर्तियों पर 'आर्काइक मुस्कान' कहां की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-187,प्रश्न-33 | ||
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-हानर डाउमियर | -हानर डाउमियर | ||
-कैमिल कोरो | -कैमिल कोरो | ||
||जीन लुईस आंद्रे थियोडोर जेरिकॉल्ट (Jean Louis Andre Theodore Gericault, 1791-1824) जो | ||जीन लुईस आंद्रे थियोडोर जेरिकॉल्ट (Jean Louis Andre Theodore Gericault, 1791-1824) जो कि एक फ़्राँसीसी चित्रकार था, को स्वच्छंदतावादी आंदोलन (Romonticism Movement) का अग्रदूत माना जाता है। स्वच्छंदतावाद को 'रोमांसवाद' भी कहते हैं। | ||
{घन में एक दर्शक कितने तल देख पाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-3 | {घन में एक दर्शक कितने तल देख पाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-3 | ||
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-प्रिंटमेकर | -प्रिंटमेकर | ||
+इतिहासकार तथा कला समीक्षक | +इतिहासकार तथा कला समीक्षक | ||
||गीता कपूर [[भारत]] की अग्रणी कला समीक्षक, इतिहासकार और क्यूरेटर हैं। 20वीं सदी के दौरान उन्होंने इस उपमहाद्वीप में समकालीन कला के उद्भव के | ||गीता कपूर [[भारत]] की अग्रणी कला समीक्षक, इतिहासकार और क्यूरेटर हैं। 20वीं सदी के दौरान उन्होंने इस उपमहाद्वीप में समकालीन कला के उद्भव के दस्तावेज़ तैयार किए हैं। [[कला]], फ़िल्म, सांस्कृतिक सिद्धांत पर उनका निबंध व्यापक रूप से पसंद किया गया है। उन्होंने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शनी लगाई हैं। इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं- (1)Contemporary Indian artists, (2) When was Modernism: Essays on Contemporary Culturalce Practice in India, (3) Ends and Means: Critical inscription in contemporary art. इनके पति विवान सुंदरम भी एक कलाकार हैं। | ||
{एशियाई कला की अवधारणा की शुरुआत किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-151,प्रश्न-3 | {एशियाई कला की अवधारणा की शुरुआत किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-151,प्रश्न-3 | ||
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-ई.बी. हैवेल | -ई. बी. हैवेल | ||
-[[भगिनी निवेदिता]] | -[[भगिनी निवेदिता]] | ||
-[[आनन्द | -[[आनन्द कुमारस्वामी]] | ||
+कुकुजो ओकाकुरा | +कुकुजो ओकाकुरा | ||
|| | ||एशियाई कला की अवधारणा की शुरुआत जापानी कलाकार कुकुजो ओकाकुरा ने की थी। ये 'जापान आर्ट इंस्टीट्यूट' के संस्थापक हैं। | ||
{रस भाव को शास्त्र का रूप किसने दिया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-3 | {रस भाव को शास्त्र का रूप किसने दिया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-3 |
13:07, 19 अप्रैल 2017 का अवतरण
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