"पी. टी. उषा": अवतरणों में अंतर

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1979 में उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय खेलों में भाग लिया, जहाँ [[ओ॰ ऍम॰ नम्बियार]] का उनकी ओर ध्यानाकर्षित हुआ, वे अंत तक उनके प्रशिक्षक रहे। [[१९८० ग्रीष्म ओलम्पिक|१९८० के मास्को ओलम्पिक]] में उनकी शुरुआत कुछ खास नहीं रही। १९८२ के [[१९८२ एशियाई खेल|नई दिल्ली एशियाड]] में उन्हें १००मी व  २००मी में रजत पदक मिला, लेकिन एक वर्ष बाद [[कुवैत]] में एशियाई ट्रैक और फ़ील्ड प्रतियोगिता में एक नए एशियाई कीर्तिमान के साथ उन्होंने ४००मी में स्वर्ण पदक जीता। {{Fact|date=May 2007}} <!-- citation needed for Asian record -->। १९८३-८९ के बीच में उषा ने एटीऍफ़ खेलों में १३ स्वर्ण जीते। १९८४ के लॉस ऍञ्जेलेस ओलम्पिक की ४०० मी बाधा दौड़ के सेमी फ़ाइनल में वे प्रथम थीं, पर  फ़ाइनल में पीछे रह गईं। [[मिलखा सिंह]] के साथ जो १९६० में हुआ, लगभग वैसे ही तीसरे स्थान के लिए दाँतों तले उँगली दबवा देने वाला  [[फ़ोटो फ़िनिश]] हुआ। उषा ने १/१०० सेकिंड की वजह से कांस्य पदक गँवा दिया। ४००मी बाधा दौड़ का सेमी फ़ाइनल जीत के वे किसी भी ओलम्पिक प्रतियोगिता के फ़ाइनल में पहुँचने वाली पहली महिला और पाँचवी भारतीय बनीं।
१९८६ में [[सियोल]] में हुए दसवें एशियाई खेलों में दौड़ कूद में, पी॰ टी॰ उषा ने ४ स्वर्ण व १ रजत पदक जीते। उन्होंने जितनी भी दौड़ों में भागल लिया, सबमें नए एशियाई खेल कीर्तिमान स्थापित किए। १९८५ के में [[जकार्ता]] में हुई एशियाई दौड-कूद प्रतियोगिता में उन्होंने पाँच स्वर्ण पदक जीते। एक ही अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में छः स्वर्ण जीतना भी एक कीर्तिमान है।{{Fact|date=February 2007}} <!-- Need some sort of citation that this is the record for *any* international meet, as mentioned above. Feel free to remove the tag if this came from the book mentioned in the references -->
उषा ने अब तक १०१ अतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। वे [[दक्षिण रेलवे]] में अधिकारी पद पर कार्यरत हैं। १९८५ में उन्हें [[पद्म श्री]] व [[अर्जुन पुरस्कार]] दिया गया।
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07:15, 22 अगस्त 2010 का अवतरण

पी॰ टी॰ उषा का जन्म 27 जून 1964 को केरल के कोज़िकोड ज़िले के पय्योली ग्राम में हुआ था । इनका पुरा नाम पिलावुळ्ळकण्टि तेक्केपरम्पिल् उषा है और ये भारत के केरल राज्य की खिलाड़ी हैं। 1976 में केरल राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए एक खेल विद्यालय खोला, और उषा को अपने ज़िले का प्रतिनिधि चुना गया। भारतीय ट्रैक ऍण्ड फ़ील्ड की रानी माने जानी वाली पी॰ टी॰ उषा भारतीय खेलकूद में 1979 से हैं। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से हैं।

उपलब्धियाँ

वर्ष विवरण
1980
  • मास्को ओलम्पिक खेलों में भाग लिया ।
  • कराची अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 4 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
1981
  • पुणे अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
  • हिसार अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 1 स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
  • लुधियाना अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
1982
  • विश्व कनिष्ठ प्रतियोगिता, सियोल में 1 स्वर्ण व एक रजत जीता।
  • नई दिल्ली एशियाई खेलों में 2 रजत पदक जीते।
1983
  • कुवैत में एशियाई दौड़कूद प्रतियोगिता में 1 स्वर्ण व 1 रजत पदक जीता।
  • दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
  • दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
1984
  • इंगल्वुड संयुक्त राज्य में अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
  • लॉस एञ्जेलेस ओलम्पिक में 400मी बाधा दौड़ में हिस्सा लिया और 1/100 सेकिंड से कांस्य पदक से वंचित हुईं।
    4x400 मीटर रिले में सातवाँ स्थान प्राप्त किया।
  • सिंगापुर में 8 देशीय अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 3 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
  • टोक्यो अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 400मी बाधा दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया।
1985
  • चेक गणराज्य में ओलोमोग में विश्व रेलवे खेलों में 2 स्वर्ण व 2 रजत पदक जीते, उन्हें सर्वोत्तम रेलवे खिलाड़ी घोषित किया गया।
    भारतीय रेल के इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय स्त्री या पुरुष को यह सम्मान मिला।
  • प्राग के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी बाधा दौड़ में 5वाँ स्थान
  • लंदन के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी बाधा दौड़ में कांस्य पदक
  • ब्रित्स्लावा के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी बाधा दौड़ में रजत पदक
  • पेरिस के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी बाधा दौड़ में 4था स्थान
  • बुडापेस्ट के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी दौड़ में कांस्य पदक
  • लंदन के विश्व ग्रां प्री खेल में रजत पदक
  • ओस्त्रावा के विश्व ग्रां प्री खेल में रजत पदक
  • कैनबरा के विश्व कप खेलों में 400मी बाधा दौड़ में 5वाँ स्थान व 400मी में 4था स्थान
  • जकार्ता की एशियाई दौड़-कूद प्रतियोगिता में 5 स्वर्ण व 1 कांस्य पदक
1986
  • मास्को के गुडविल खेलों में 400मी में 6ठा स्थान
  • सियोल के एशियाई खेलों में 4 स्वर्ण व 1 रजत पदक
  • मलेशियाई मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 1 स्वर्ण पदक
  • सिंगापुर के लायंस दौड़ प्रतियोगिता में 3 स्वर्ण पदक
  • नई दिल्ली के चार राष्ट्रीय आमंत्रिण खेलों में 2 स्वर्ण पदक
1987
  • सिंगापुर की एशियाई दौड़ कूद प्रतियोगिता में 3 स्वर्ण व 2 रजत पदक
  • कुआला लंपुर की मलेशियाई मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 2 स्वर्ण पदक
  • नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रिण खेलों में 3 स्वर्ण पदक
  • कलकत्ता दक्षिण एशिया संघ खेलों में 5 स्वर्ण पदक
  • रोम में दौड की विश्व चैंपियनशिप में भाग लिया। 400मी बाधा दौड़ के फ़ाइनल में प्रवेश पाने वाली वे पहली भारतीय बनीं।
1988
  • सिंगापुर मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 3 स्वर्ण पदक।
  • नई दिल्ली में ओलंपिक पूर्व दौड़ प्रतियोगिता में 2 स्वर्म पदक
  • सियोल ओलंपिक में 400मी बाधा दौड़ में हिस्सा लिया।
1989
  • नई दिल्ली की एशियाई दौड़ कूद प्रतियोगिता में 4 स्वर्ण व 2 रजत पदक
  • कलकत्ता में अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 3 स्वर्ण पदक
  • मलेशियाई मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 4 स्वर्ण पदक
1990
  • बीजिंग एशियाई खेलों में 3 रजत पदक
  • 1994 हिरोशिमा एशियाई खेलों में 1 रजत पदक
  • पुणे के अंतर्राष्ट्रीय अनुमति खेलों में 1 कांस्य पदक
1995
  • चेन्नई के दक्षिण एशियाई खेलों में 1 कांस्य पदक
  • पुणे के अंतर्राष्ट्रीय अनुमति खेलों में 1 कांस्य पदक
1996
  • ऍटलांटा ओलंपुक खेलों में बाग लिया।
  • पुणे के अंतर्राष्ट्रीय अनुमति खेलों में 1 रजत पदक
1997
  • पटियाला के अंतर्राष्ट्रीय अनुमति खेलों में 1 स्वर्ण पदक
1998
  • फ़ुकोका की एशियाई दौड़-कूद प्रतियोगिता में 1 स्वर्ण, 1 रजत व 2 कांस्य पदक।
  • नई दिल्ली में राजा भालेंद्र सिंह दौड़ प्रतियोगिता में 2 स्वर्ण व 1 रजत पदक
  • बैंकाक एशियाई खेलों में 4x400 रिले दौड़ में 1 रजत पदक
1999
  • काठमंडू के दक्षिण एशियाई खेलों में 1 स्वर्ण व 2 रजत पदक
  • नई दिल्ली में राजा भालेंद्र सिंह दौड़ प्रतियोगिता में 1 स्वर्ण पदक

कार्यकलाप

1979 में उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय खेलों में भाग लिया, जहाँ ओ॰ ऍम॰ नम्बियार का उनकी ओर ध्यानाकर्षित हुआ, वे अंत तक उनके प्रशिक्षक रहे। १९८० के मास्को ओलम्पिक में उनकी शुरुआत कुछ खास नहीं रही। १९८२ के नई दिल्ली एशियाड में उन्हें १००मी व २००मी में रजत पदक मिला, लेकिन एक वर्ष बाद कुवैत में एशियाई ट्रैक और फ़ील्ड प्रतियोगिता में एक नए एशियाई कीर्तिमान के साथ उन्होंने ४००मी में स्वर्ण पदक जीता। साँचा:Fact । १९८३-८९ के बीच में उषा ने एटीऍफ़ खेलों में १३ स्वर्ण जीते। १९८४ के लॉस ऍञ्जेलेस ओलम्पिक की ४०० मी बाधा दौड़ के सेमी फ़ाइनल में वे प्रथम थीं, पर फ़ाइनल में पीछे रह गईं। मिलखा सिंह के साथ जो १९६० में हुआ, लगभग वैसे ही तीसरे स्थान के लिए दाँतों तले उँगली दबवा देने वाला फ़ोटो फ़िनिश हुआ। उषा ने १/१०० सेकिंड की वजह से कांस्य पदक गँवा दिया। ४००मी बाधा दौड़ का सेमी फ़ाइनल जीत के वे किसी भी ओलम्पिक प्रतियोगिता के फ़ाइनल में पहुँचने वाली पहली महिला और पाँचवी भारतीय बनीं।

१९८६ में सियोल में हुए दसवें एशियाई खेलों में दौड़ कूद में, पी॰ टी॰ उषा ने ४ स्वर्ण व १ रजत पदक जीते। उन्होंने जितनी भी दौड़ों में भागल लिया, सबमें नए एशियाई खेल कीर्तिमान स्थापित किए। १९८५ के में जकार्ता में हुई एशियाई दौड-कूद प्रतियोगिता में उन्होंने पाँच स्वर्ण पदक जीते। एक ही अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में छः स्वर्ण जीतना भी एक कीर्तिमान है।साँचा:Fact

उषा ने अब तक १०१ अतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। वे दक्षिण रेलवे में अधिकारी पद पर कार्यरत हैं। १९८५ में उन्हें पद्म श्रीअर्जुन पुरस्कार दिया गया।

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