"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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{सिंहासन पर बैठने के बाद [[अशोक]] ने कौन-सी उपाधि धारण की? | {सिंहासन पर बैठने के बाद [[अशोक]] ने कौन-सी उपाधि धारण की? | ||
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-जनानामप्रिय | -जनानामप्रिय | ||
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||'[[अशोक]]' अथवा 'असोक' प्राचीन [[भारत]] में [[मौर्य राजवंश]] का राजा था। अशोक का 'देवानाम्प्रिय' एवं 'प्रियदर्शी' आदि नामों से भी उल्लेख किया जाता है। 'देवानाम्प्रिय प्रियदर्शी', इस वाक्यांश में बी.ए. स्मिथ के मतानुसार 'देवानाम्प्रिय' आदरसूचक पद है और इसी अर्थ में हमने भी इसको लिया है, किंतु 'देवानाम्प्रिय' शब्द (देव-प्रिय नहीं) [[पाणिनी]] के एक सूत्र के अनुसार अनादर का सूचक है। इन सबके उत्तरकालीन वैयाकरण भट्टोजिदीक्षित इसे अपवाद में नहीं रखते। वे इसका अनादरवाची अर्थ 'मूर्ख' ही करते हैं। उनके मत से 'देवानाम्प्रिय ब्रह्मज्ञान से रहित उस पुरुष को कहते हैं जो यज्ञ और पूजा से भगवान को प्रसन्न करने का यत्न करता है। | ||'[[अशोक]]' अथवा 'असोक' प्राचीन [[भारत]] में [[मौर्य राजवंश]] का राजा था। अशोक का 'देवानाम्प्रिय' एवं 'प्रियदर्शी' आदि नामों से भी उल्लेख किया जाता है। 'देवानाम्प्रिय प्रियदर्शी', इस वाक्यांश में बी.ए. स्मिथ के मतानुसार 'देवानाम्प्रिय' आदरसूचक पद है और इसी अर्थ में हमने भी इसको लिया है, किंतु 'देवानाम्प्रिय' शब्द (देव-प्रिय नहीं) [[पाणिनी]] के एक सूत्र के अनुसार अनादर का सूचक है। इन सबके उत्तरकालीन वैयाकरण भट्टोजिदीक्षित इसे अपवाद में नहीं रखते। वे इसका अनादरवाची अर्थ 'मूर्ख' ही करते हैं। उनके मत से 'देवानाम्प्रिय ब्रह्मज्ञान से रहित उस पुरुष को कहते हैं जो यज्ञ और पूजा से भगवान को प्रसन्न करने का यत्न करता है। | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा [[विवाह]] ग़ैर-मान्यता प्राप्त है? | {निम्नलिखित में से कौन-सा [[विवाह]] ग़ैर-मान्यता प्राप्त है? | ||
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-ब्रह्म विवाह | -ब्रह्म विवाह | ||
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-प्रजापत्य विवाह | -प्रजापत्य विवाह | ||
{[[मालवा]], [[गुजरात]] एवं [[महाराष्ट्र]] को किस शासक ने पहली बार जीता? | {[[मालवा]], [[गुजरात]] एवं [[महाराष्ट्र]] को किस शासक ने पहली बार जीता? | ||
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-[[हर्षवर्धन]] | -[[हर्षवर्धन]] | ||
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||[[चित्र:Chandragupt-Maurya-Stamp.jpg|right|100px|चन्द्रगुप्त मौर्य]]'चन्द्रगुप्त मौर्य' एक कुशल योद्धा, सेनानायक तथा महान विजेता ही नहीं, वरन एक योग्य शासक भी था। अपने विशाल साम्राज्य की शासन-व्यवस्था को सम्भालना कोई सरल कार्य नहीं था। अतः उसने अपने मुख्यमंत्री [[कौटिल्य]] की सहायता से एक ऐसी शासन-व्यवस्था का निर्माण किया, जो उस समय के अनुकूल थी। यह शासन-व्यवस्था एक हद तक [[मगध]] के पूर्वगामी शासकों द्वारा विकसित शासनतंत्र पर आधारित थी, किन्तु इसका अधिक श्रेय [[चन्द्रगुप्त मौर्य|चन्द्रगुप्त]] और कौटिल्य की सृजनात्मक क्षमता को ही दिया जाना चाहिए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] | ||[[चित्र:Chandragupt-Maurya-Stamp.jpg|right|100px|चन्द्रगुप्त मौर्य]]'चन्द्रगुप्त मौर्य' एक कुशल योद्धा, सेनानायक तथा महान विजेता ही नहीं, वरन एक योग्य शासक भी था। अपने विशाल साम्राज्य की शासन-व्यवस्था को सम्भालना कोई सरल कार्य नहीं था। अतः उसने अपने मुख्यमंत्री [[कौटिल्य]] की सहायता से एक ऐसी शासन-व्यवस्था का निर्माण किया, जो उस समय के अनुकूल थी। यह शासन-व्यवस्था एक हद तक [[मगध]] के पूर्वगामी शासकों द्वारा विकसित शासनतंत्र पर आधारित थी, किन्तु इसका अधिक श्रेय [[चन्द्रगुप्त मौर्य|चन्द्रगुप्त]] और कौटिल्य की सृजनात्मक क्षमता को ही दिया जाना चाहिए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] | ||
{'[[इण्डिका]]' पुस्तक मूलत: किसके द्वारा लिखी गई थी? | {'[[इण्डिका]]' पुस्तक मूलत: किसके द्वारा लिखी गई थी? | ||
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-[[अश्वघोष]] | -[[अश्वघोष]] | ||
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||'मैगस्थनीज़' ने अपनी पुस्तक '[[इण्डिका]]' में भारतीय जन-जीवन, परम्पराओं और रीति-रिवाजों का वर्णन किया है। उसको अपने समय का एक बेहतरीन विदेशी यात्री और [[यूनानी]] भूगोलविद माना जाता है। मैगस्थनीज़ ने [[भारत]] से प्राप्त होने वाली [[खनिज]] सम्पदाओं में [[सोना]], [[चांदी]], [[ताँबा]] एवं [[टिन]] की बहुत प्रशंसा की है। उसके अनुसार भारत में चीटियाँ सोने का संग्रह करती थीं। पशुओं में मैगस्थनीज़ भारतीय [[हाथी]] से काफ़ी प्रभावित था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेगस्थनीज़]] | ||'मैगस्थनीज़' ने अपनी पुस्तक '[[इण्डिका]]' में भारतीय जन-जीवन, परम्पराओं और रीति-रिवाजों का वर्णन किया है। उसको अपने समय का एक बेहतरीन विदेशी यात्री और [[यूनानी]] भूगोलविद माना जाता है। मैगस्थनीज़ ने [[भारत]] से प्राप्त होने वाली [[खनिज]] सम्पदाओं में [[सोना]], [[चांदी]], [[ताँबा]] एवं [[टिन]] की बहुत प्रशंसा की है। उसके अनुसार भारत में चीटियाँ सोने का संग्रह करती थीं। पशुओं में मैगस्थनीज़ भारतीय [[हाथी]] से काफ़ी प्रभावित था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेगस्थनीज़]] | ||
{[[समुद्रगुप्त]] के काल का [[इतिहास]] जानने का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्या है? | {[[समुद्रगुप्त]] के काल का [[इतिहास]] जानने का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्या है? | ||
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+[[इलाहाबाद]] स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख | +[[इलाहाबाद]] स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख | ||
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||[[चित्र:Sangam-Allahabad.jpg|right|120px|संगम, इलाहाबाद]]'इलाहाबाद' का प्राचीन नाम '[[प्रयाग]]' है और यह 'तीर्थराज' के नाम से भी जाना जाता है। सातवीं शताब्दी में सम्राट [[हर्षवर्धन]] ने यहाँ पाँच-पाँच वर्ष के अनन्तर पर एक सत्र का आयोजन किया करता था। ऐसे एक सत्र में चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] ने 643 ई. में भाग लिया था। [[इलाहाबाद]] में सबसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक सम्राट [[अशोक]] (273-232 ई. पू.) के 6 स्तम्भ-लेखों में से एक है। इस पर [[गुप्त]] सम्राट [[समुद्रगुप्त]] (330-380 ई.) के कवि '[[हरिषेण]]' रचित प्रसिद्ध प्रशस्ति है, जिसमें उसके दिग्विजय होने का वर्णन है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इलाहाबाद]] | ||[[चित्र:Sangam-Allahabad.jpg|right|120px|संगम, इलाहाबाद]]'इलाहाबाद' का प्राचीन नाम '[[प्रयाग]]' है और यह 'तीर्थराज' के नाम से भी जाना जाता है। सातवीं शताब्दी में सम्राट [[हर्षवर्धन]] ने यहाँ पाँच-पाँच वर्ष के अनन्तर पर एक सत्र का आयोजन किया करता था। ऐसे एक सत्र में चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] ने 643 ई. में भाग लिया था। [[इलाहाबाद]] में सबसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक सम्राट [[अशोक]] (273-232 ई. पू.) के 6 स्तम्भ-लेखों में से एक है। इस पर [[गुप्त]] सम्राट [[समुद्रगुप्त]] (330-380 ई.) के कवि '[[हरिषेण]]' रचित प्रसिद्ध प्रशस्ति है, जिसमें उसके दिग्विजय होने का वर्णन है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इलाहाबाद]] | ||
{निम्न में से कौन 'भारतीय क्रांति की माँ' कहलाती हैं? | {निम्न में से कौन 'भारतीय क्रांति की माँ' कहलाती हैं? | ||
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-[[एनी बेसेंट]] | -[[एनी बेसेंट]] | ||
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+भीकाजी-रुस्तम कामा | +भीकाजी-रुस्तम कामा | ||
{[[गाँधी जी]] द्वारा [[असहयोग आन्दोलन]] कब वापस ले लिया गया? | {[[गाँधी जी]] द्वारा [[असहयोग आन्दोलन]] कब वापस ले लिया गया? | ||
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+[[12 फ़रवरी]], [[1922]] | +[[12 फ़रवरी]], [[1922]] | ||
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{[[भारत]] के विभाजन की [[माउण्टबेटन योजना]] योजना कब घोषित की गई थी? | {[[भारत]] के विभाजन की [[माउण्टबेटन योजना]] योजना कब घोषित की गई थी? | ||
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-[[14 अगस्त]], [[1947]] | -[[14 अगस्त]], [[1947]] | ||
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||[[चित्र:Lord-Mountbatten.jpg|right|100px|लॉर्ड माउन्ट बेटन]]'[[माउन्टबेटन योजना]]' [[3 जून]], [[1947]] ई. को [[लॉर्ड माउन्ट बेटन|लॉर्ड माउन्टबेटन]] द्वारा प्रस्तुत की गई थी। यह योजना [[भारत]] के जनसाधारण लोगों में 'मनबाटन योजना' के नाम से भी प्रसिद्ध हुई। [[मुस्लिम लीग]] अपनी माँग [[पाकिस्तान]] के निर्माण पर अड़ी हुई थी। इस स्थिति में विवशतापूर्वक [[कांग्रेस]] तथा [[सिक्ख|सिक्खों]] द्वारा देश के विभाजन को स्वीकार कर लेने के बाद समस्या के हल के लिए लॉर्ड माउन्ट बेटन [[लन्दन]] गये और वापस आकर उन्होंने देश के विभाजन की अपनी योजना प्रस्तुत की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[माउण्टबेटन योजना]] | ||[[चित्र:Lord-Mountbatten.jpg|right|100px|लॉर्ड माउन्ट बेटन]]'[[माउन्टबेटन योजना]]' [[3 जून]], [[1947]] ई. को [[लॉर्ड माउन्ट बेटन|लॉर्ड माउन्टबेटन]] द्वारा प्रस्तुत की गई थी। यह योजना [[भारत]] के जनसाधारण लोगों में 'मनबाटन योजना' के नाम से भी प्रसिद्ध हुई। [[मुस्लिम लीग]] अपनी माँग [[पाकिस्तान]] के निर्माण पर अड़ी हुई थी। इस स्थिति में विवशतापूर्वक [[कांग्रेस]] तथा [[सिक्ख|सिक्खों]] द्वारा देश के विभाजन को स्वीकार कर लेने के बाद समस्या के हल के लिए लॉर्ड माउन्ट बेटन [[लन्दन]] गये और वापस आकर उन्होंने देश के विभाजन की अपनी योजना प्रस्तुत की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[माउण्टबेटन योजना]] | ||
{[[1917]] ई. के [[चम्पारण सत्याग्रह]] का सम्बन्ध किससे था? | {[[1917]] ई. के [[चम्पारण सत्याग्रह]] का सम्बन्ध किससे था? | ||
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-[[कपास]] मजदूरों से | -[[कपास]] मजदूरों से | ||
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||चम्पारन के किसानों से [[अंग्रेज़]] बाग़ान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके द्वारा किसानों को ज़मीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे। 19वीं शताब्दी के अन्त में रासायनिक [[रंग|रगों]] की खोज और उनके प्रचलन से नील के बाज़ार में गिरावट आने लगी, जिससे नील बाग़ान के मालिक अपने कारखाने बंद करने लगे। किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे। गोरे बाग़ान मालिकों ने किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान को मनमाने ढंग से बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह शुरू हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चम्पारण सत्याग्रह]] | ||चम्पारन के किसानों से [[अंग्रेज़]] बाग़ान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके द्वारा किसानों को ज़मीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे। 19वीं शताब्दी के अन्त में रासायनिक [[रंग|रगों]] की खोज और उनके प्रचलन से नील के बाज़ार में गिरावट आने लगी, जिससे नील बाग़ान के मालिक अपने कारखाने बंद करने लगे। किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे। गोरे बाग़ान मालिकों ने किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान को मनमाने ढंग से बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह शुरू हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चम्पारण सत्याग्रह]] | ||
{[[मराठा]] राज्य का दूसरा प्रवर्तक किसे कहा जाता था? | {[[मराठा]] राज्य का दूसरा प्रवर्तक किसे कहा जाता था? | ||
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-[[राजाराम शिवाजी|राजाराम]] | -[[राजाराम शिवाजी|राजाराम]] | ||
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||[[चित्र:Bajirao-Statue-Shaniwar-Wada-Pune.jpg|right|140px|बाजीराव प्रथम की प्रतिमा]]'बालाजी विश्वनाथ' द्वारा की गई सेवाओं से [[मराठा साम्राज्य]] अपने गौरवपूर्ण अतीत को एक बार फिर से प्राप्त करने में काफ़ी हद तक सफल हो चुका था। इसीलिए [[बालाजी विश्वनाथ]] द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण सेवाओं का फल [[शाहू|राजा शाहू]] ने उसे उसके जीते जी ही दे दिया था। शाहू ने [[पेशवा]] का पद अब बालाजी विश्वनाथ के परिवार के लिए वंशगत कर दिया। इसीलिए बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उसके पुत्र [[बाजीराव प्रथम]] को पेशवा का पद प्रदान कर दिया गया, जो एक वीर, साहसी और एक समझदार राजनीतिज्ञ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बालाजी विश्वनाथ]] | ||[[चित्र:Bajirao-Statue-Shaniwar-Wada-Pune.jpg|right|140px|बाजीराव प्रथम की प्रतिमा]]'बालाजी विश्वनाथ' द्वारा की गई सेवाओं से [[मराठा साम्राज्य]] अपने गौरवपूर्ण अतीत को एक बार फिर से प्राप्त करने में काफ़ी हद तक सफल हो चुका था। इसीलिए [[बालाजी विश्वनाथ]] द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण सेवाओं का फल [[शाहू|राजा शाहू]] ने उसे उसके जीते जी ही दे दिया था। शाहू ने [[पेशवा]] का पद अब बालाजी विश्वनाथ के परिवार के लिए वंशगत कर दिया। इसीलिए बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उसके पुत्र [[बाजीराव प्रथम]] को पेशवा का पद प्रदान कर दिया गया, जो एक वीर, साहसी और एक समझदार राजनीतिज्ञ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बालाजी विश्वनाथ]] | ||
{'[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' का [[1938]] ई. का [[कांग्रेस अधिवेशन|अधिवेशन]] किस शहर में हुआ था? | {'[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' का [[1938]] ई. का [[कांग्रेस अधिवेशन|अधिवेशन]] किस शहर में हुआ था? | ||
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+हरिपुरा | +हरिपुरा | ||
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-[[भागलपुर]] | -[[भागलपुर]] | ||
{वर्ष [[1939]] में [[कांग्रेस]] छोड़ने के बाद [[सुभाषचन्द्र बोस]] ने किस दल की स्थापना की? | {वर्ष [[1939]] में [[कांग्रेस]] छोड़ने के बाद [[सुभाषचन्द्र बोस]] ने किस दल की स्थापना की? | ||
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-इण्डियन फ़्रीडम पार्टी | -इण्डियन फ़्रीडम पार्टी | ||
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||[[चित्र:Subhash-Chandra-Bose-2.jpg|right|100px|सुभाषचन्द्र बोस]]'फ़ारवर्ड ब्लॉक' नाम की एक नई पार्टी का गठन नेताजी [[सुभाषचन्द्र बोस]] द्वारा [[अप्रैल]], [[1939]] ई. में किया गया था। '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के 'हरिपुरा अधिवेशन' में [[19 फ़रवरी]], [[1938]] ई. को सुभाषचन्द्र बोस को अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस के 'त्रिपुरा अधिवेशन' में सुभाषचन्द्र बोस पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे, परन्तु [[गाँधी जी]] के विरोध के चलते उन्होंने त्यागपत्र दे दिया तथा अप्रैल, 1939 ई. मे '[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]]' नाम की एक नई पार्टी का गठन किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]] | ||[[चित्र:Subhash-Chandra-Bose-2.jpg|right|100px|सुभाषचन्द्र बोस]]'फ़ारवर्ड ब्लॉक' नाम की एक नई पार्टी का गठन नेताजी [[सुभाषचन्द्र बोस]] द्वारा [[अप्रैल]], [[1939]] ई. में किया गया था। '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के 'हरिपुरा अधिवेशन' में [[19 फ़रवरी]], [[1938]] ई. को सुभाषचन्द्र बोस को अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस के 'त्रिपुरा अधिवेशन' में सुभाषचन्द्र बोस पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे, परन्तु [[गाँधी जी]] के विरोध के चलते उन्होंने त्यागपत्र दे दिया तथा अप्रैल, 1939 ई. मे '[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]]' नाम की एक नई पार्टी का गठन किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]] | ||
{[[मेवाड़]] से युद्ध और 'चित्तौड़ की सन्धि' किसके शासन काल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी? | {[[मेवाड़]] से युद्ध और 'चित्तौड़ की सन्धि' किसके शासन काल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी? | ||
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-[[अकबर]] | -[[अकबर]] | ||
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||अब्दुल्ला ख़ाँ ने 1611 ई. में रणपुर के दर्रे में राजकुमार कर्ण को परास्त किया था, परन्तु एक अन्य रणपुर के संघर्ष में अब्दुल्ला ख़ाँ को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद मिर्ज़ा अजीज कोका को भेजा गया, खुद [[जहाँगीर]] अपने प्रभाव से शत्रु को आतंकित करने के लिए 1613 ई. में [[अजमेर]] गया। इस समय जहाँगीर ने [[मेवाड़]] के आक्रमण का भार शाहज़ादा 'ख़ुर्रम' ([[शाहजहाँ]]) को दिया। शाहज़ादा के नेतृत्व मे [[मुग़ल]] सेना के दबाब के सामने मेवाड़ की सेना को समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा। [[राणा अमरसिंह]] की शर्तों पर जहाँगीर सन्धि के लिए तेयार हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जहाँगीर]] | ||अब्दुल्ला ख़ाँ ने 1611 ई. में रणपुर के दर्रे में राजकुमार कर्ण को परास्त किया था, परन्तु एक अन्य रणपुर के संघर्ष में अब्दुल्ला ख़ाँ को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद मिर्ज़ा अजीज कोका को भेजा गया, खुद [[जहाँगीर]] अपने प्रभाव से शत्रु को आतंकित करने के लिए 1613 ई. में [[अजमेर]] गया। इस समय जहाँगीर ने [[मेवाड़]] के आक्रमण का भार शाहज़ादा 'ख़ुर्रम' ([[शाहजहाँ]]) को दिया। शाहज़ादा के नेतृत्व मे [[मुग़ल]] सेना के दबाब के सामने मेवाड़ की सेना को समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा। [[राणा अमरसिंह]] की शर्तों पर जहाँगीर सन्धि के लिए तेयार हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जहाँगीर]] | ||
{"यदि हम मेंढक की तरह वर्ष में केवल एक बार टर्रायेंगे तो भारतीयों को कोई सफलता नहीं मिल सकती।" [[कांग्रेस]] के बारे में उपरोक्त कथन किसका है? | {"यदि हम मेंढक की तरह वर्ष में केवल एक बार टर्रायेंगे तो भारतीयों को कोई सफलता नहीं मिल सकती।" [[कांग्रेस]] के बारे में उपरोक्त कथन किसका है? | ||
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-[[लाला लाजपत राय]] | -[[लाला लाजपत राय]] | ||
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||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak-2.gif|right|100px|बाल गंगाधर तिलक]][[भारत]] के [[वाइसरॉय]] [[लॉर्ड कर्ज़न]] ने जब सन [[1905]] ई. में [[बंगाल का विभाजन]] किया, तो [[बाल गंगाधर तिलक]] ने बंगालियों द्वारा इस विभाजन को रद्द करने की मांग का ज़ोरदार समर्थन किया और ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार की वक़ालत की, जो जल्दी ही एक देशव्यापी आंदोलन बन गया। अगले वर्ष उन्होंने [[सत्याग्रह]] के कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई, जिसे 'नए दल का सिद्धांत' कहा जाता था। उन्हें उम्मीद थी कि इससे ब्रिटिश शासन का सम्मोहनकारी प्रभाव ख़त्म होगा और लोग स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु बलिदान के लिए तैयार होंगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बाल गंगाधर तिलक]] | ||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak-2.gif|right|100px|बाल गंगाधर तिलक]][[भारत]] के [[वाइसरॉय]] [[लॉर्ड कर्ज़न]] ने जब सन [[1905]] ई. में [[बंगाल का विभाजन]] किया, तो [[बाल गंगाधर तिलक]] ने बंगालियों द्वारा इस विभाजन को रद्द करने की मांग का ज़ोरदार समर्थन किया और ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार की वक़ालत की, जो जल्दी ही एक देशव्यापी आंदोलन बन गया। अगले वर्ष उन्होंने [[सत्याग्रह]] के कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई, जिसे 'नए दल का सिद्धांत' कहा जाता था। उन्हें उम्मीद थी कि इससे ब्रिटिश शासन का सम्मोहनकारी प्रभाव ख़त्म होगा और लोग स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु बलिदान के लिए तैयार होंगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बाल गंगाधर तिलक]] | ||
{[[भारत]] में चारबाग़ शैली का प्रथम मक़बरा कौन-सा है? | {[[भारत]] में चारबाग़ शैली का प्रथम मक़बरा कौन-सा है? | ||
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+[[हुमायूँ का मक़बरा]] | +[[हुमायूँ का मक़बरा]] | ||
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||[[चित्र:Humayun-Tomb-Delhi-23.jpg|right|140px|हुमायूँ का मक़बरा]]'हुमायूँ का मक़बरा' [[नई दिल्ली]] के 'दीनापनाह' अर्थात पुराने क़िले के निकट संत [[निज़ामुद्दीन दरगाह|निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह]] के पास [[यमुना नदी]] के किनारे स्थित है। [[हुमायूँ का मक़बरा|हुमायूँ के मक़बरे]] में [[मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला|मुग़ल स्थापत्य]] में चारबाग़ शैली के उद्यान प्रमुख अंग थे। इससे पूर्व ऐसे उद्यान [[भारत]] में कभी भी नहीं दिखे थे और इसके बाद ये अनेक इमारतों का अभिन्न अंग बनते गये। [[हुमायूँ]] का मक़बरा इसके [[पिता]] [[बाबर]] के [[क़ाबुल]] स्थित मक़बरे 'बाग़-ए-बाबर' से बिल्कुल अलग था। [[मुग़ल]] सम्राटों को बाग़ में बने मक़बरों में दफ़न करने की परंपरा बाबर के साथ ही आरंभ हुई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हुमायूँ का मक़बरा]] | ||[[चित्र:Humayun-Tomb-Delhi-23.jpg|right|140px|हुमायूँ का मक़बरा]]'हुमायूँ का मक़बरा' [[नई दिल्ली]] के 'दीनापनाह' अर्थात पुराने क़िले के निकट संत [[निज़ामुद्दीन दरगाह|निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह]] के पास [[यमुना नदी]] के किनारे स्थित है। [[हुमायूँ का मक़बरा|हुमायूँ के मक़बरे]] में [[मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला|मुग़ल स्थापत्य]] में चारबाग़ शैली के उद्यान प्रमुख अंग थे। इससे पूर्व ऐसे उद्यान [[भारत]] में कभी भी नहीं दिखे थे और इसके बाद ये अनेक इमारतों का अभिन्न अंग बनते गये। [[हुमायूँ]] का मक़बरा इसके [[पिता]] [[बाबर]] के [[क़ाबुल]] स्थित मक़बरे 'बाग़-ए-बाबर' से बिल्कुल अलग था। [[मुग़ल]] सम्राटों को बाग़ में बने मक़बरों में दफ़न करने की परंपरा बाबर के साथ ही आरंभ हुई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हुमायूँ का मक़बरा]] | ||
{वर्ष 1486 ई. में [[वास्को द गामा]] [[भारत]] में कहाँ उतरा था? | {वर्ष 1486 ई. में [[वास्को द गामा]] [[भारत]] में कहाँ उतरा था? | ||
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-[[गोवा]] | -[[गोवा]] |
05:58, 17 जून 2012 का अवतरण
इतिहास सामान्य ज्ञान
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