"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर

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{[[महाभारत]] में [[कौरव]] तथा [[पाण्डव]] सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल कितना था?
{[[महाभारत]] में [[कौरव]] तथा [[पाण्डव]] सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल कितने [[अक्षौहिणी]] था?
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+18 अक्षौहिणी
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-21 अक्षौहिणी
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-11 अक्षौहिणी
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-16 अक्षौहिणी
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||[[चित्र:Krishna-arjun1.jpg|right|140px|श्रीकृष्ण रथ हाँकते हुए]][[महाभारत]] की मूल अभिकल्पना में 18 की संख्या का विशिष्ट योग है। [[कौरव]] और [[पाण्डव]] पक्षों के मध्य हुए युद्ध की अवधि 18 दिन थी। दोनों पक्षों की सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल भी '18 अक्षौहिणी' था। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। महाभारत की प्रबन्ध योजना में सम्पूर्ण [[ग्रन्थ]] को 18 पर्वों में विभक्त किया गया है और महाभारत में [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]] के अन्तर्गत वर्णित [[श्रीमद्भगवद गीता]] में भी 18 अध्याय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]
||[[चित्र:Krishna-arjun1.jpg|right|140px|श्रीकृष्ण रथ हाँकते हुए]][[महाभारत]] के युद्घ में 'अठारह अक्षौहिणी' सेना नष्ट हो गई थी। एक [[अक्षौहिणी]] में 21,870 [[हाथी]]; 21,870 रथ; 65,610 घोड़े और 1,09,350 पैदल सैनिक होते थे। [[कुरुक्षेत्र]] के युद्ध में इस प्रकार की 18 अक्षौहिणी सेना ने भाग लिया था। [[प्राचीन भारत]] में सेना के चार अंग होते थे- हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिक। जिस सेना में ये चारों अंग होते थे, वह '[[चतुरंगिणी सेना]]' कहलाती थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अक्षौहिणी]]


{[[अश्वत्थामा]] के [[ब्रह्मास्त्र]] से [[श्रीकृष्ण]] ने [[उत्तरा]] के गर्भ में जिस बालक की रक्षा की, उसका नाम क्या था?
{[[अश्वत्थामा]] के [[ब्रह्मास्त्र]] से [[श्रीकृष्ण]] ने [[उत्तरा]] के गर्भ में जिस बालक की रक्षा की, उसका नाम क्या था?
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+[[परीक्षित]]
+[[परीक्षित]]
-श्रुतकर्मा
-श्रुतकर्मा
||[[उत्तरा]] को शोक करते हुए देखकर [[श्रीकृष्ण]] ने कहा- 'बेटी! शोक न करो। तुम्हारा यह पुत्र अभी जीवित होता है। मैंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है। सबके सामने मैंने प्रतिज्ञा की है, वह अवश्य पूर्ण होगी। मैंने तुम्हारे इस बालक की रक्षा गर्भ में की है, तो भला अब कैसे मरने दूँगा।' इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बालक पर अपनी अमृतमयी दृष्टि डाली और बोले- 'यदि मैंने कभी झूठ नहीं बोला है, सदा ब्रह्मचर्य व्रत का नियम से पालन किया है, युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाई है, कभी भूल से भी अधर्म नहीं किया है, तो [[अभिमन्यु]] का यह मृत बालक जीवित हो जाये।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]
||[[उत्तरा]] को शोक करते हुए देखकर [[श्रीकृष्ण]] ने कहा- 'बेटी! शोक न करो। तुम्हारा यह पुत्र अभी जीवित होता है। मैंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है। सबके सामने मैंने प्रतिज्ञा की है, वह अवश्य पूर्ण होगी। मैंने तुम्हारे इस बालक की रक्षा गर्भ में की है, तो भला अब कैसे मरने दूँगा।' इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बालक पर अपनी अमृतमयी दृष्टि डाली और बोले- 'यदि मैंने कभी झूठ नहीं बोला है, सदा ब्रह्मचर्य व्रत का नियम से पालन किया है, युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाई है, कभी भूल से भी अधर्म नहीं किया है, तो [[अभिमन्यु]] का यह मृत बालक जीवित हो जाये।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[परीक्षित]]


{[[धृतराष्ट्र]] का जन्म किसके गर्भ से हुआ था?
{[[धृतराष्ट्र]] का जन्म किसके गर्भ से हुआ था?
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-[[संवरण]]
-[[संवरण]]
+[[जनमेजय]]
+[[जनमेजय]]
||राजा [[परीक्षित]] के पुत्र का नाम [[जनमेजय]] था। जनमेजय की पत्नी का 'वपुष्टमा' थी, जो [[काशी]] के राजा की पुत्री थी। बड़े होने पर जब जनमेजय ने [[पिता]] परीक्षित की मृत्यु का कारण सर्पदंश जाना तो उसने [[तक्षक]] से बदला लेने का उपाय सोचा। जनमेजय ने सर्पों के संहार के लिए 'सर्पसत्र' नामक महान [[यज्ञ]] का आयोजन किया। [[नाग|नागों]] को इस यज्ञ में भस्म होने का शाप उनकी मां कद्रू ने दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनमेजय]]


{[[लाक्षागृह]] से जीवित बच निकलने के बाद [[पाण्डव]] किस नगरी में जाकर रहे?
{[[लाक्षागृह]] से जीवित बच निकलने के बाद [[पाण्डव]] किस नगरी में जाकर रहे?
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-[[मगध]]
-[[मगध]]
-[[वैशाली]]
-[[वैशाली]]
||[[दुर्योधन]] बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। उसने लाक्षा के बने हुए घर में पाण्डवों को रखकर [[आग]] लगाकर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया, किन्तु पाँचों [[पाण्डव]] अपनी [[माता]] [[कुन्ती]] के साथ उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। वहाँ से वे '[[एकचक्रा]]' नगरी में जाकर [[मुनि]] के वेष में एक [[ब्राह्मण]] के घर में निवास करने लगे। उन्हीं दिनों वे [[पांचाल]] राज्य में, जहाँ [[द्रौपदी]] का स्वयंवर होने वाला था, चले गये। वहाँ [[अर्जुन]] के बाहुबल से 'मत्स्यभेद' होने पर पाँचों पाण्डवों ने द्रौपदी को पत्नी रूप में प्राप्त किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]
||[[दुर्योधन]] बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। उसने लाक्षा के बने हुए घर में पाण्डवों को रखकर [[आग]] लगाकर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया, किन्तु पाँचों [[पाण्डव]] अपनी [[माता]] [[कुन्ती]] के साथ उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। वहाँ से वे '[[एकचक्रा]]' नगरी में जाकर [[मुनि]] के वेष में एक [[ब्राह्मण]] के घर में निवास करने लगे। उन्हीं दिनों वे [[पांचाल]] राज्य में, जहाँ [[द्रौपदी]] का स्वयंवर होने वाला था, चले गये। वहाँ [[अर्जुन]] के बाहुबल से 'मत्स्यभेद' होने पर पाँचों पाण्डवों ने द्रौपदी को पत्नी रूप में प्राप्त किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[एकचक्रा]]


{[[महाभारत]] के रचयिता महर्षि [[व्यास]] के [[पिता]] कौन थे?
{[[महाभारत]] के रचयिता महर्षि [[व्यास]] के [[पिता]] कौन थे?
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-[[वज्रनाभ राक्षस|वज्रनाभ]]
-[[वज्रनाभ राक्षस|वज्रनाभ]]
+[[बकासुर]]
+[[बकासुर]]
||बकासुर एक नरभक्षी राक्षस था। उसको भोजन में प्रतिदिन बीस खारी अगहनी के [[चावल]], दो भैंसे तथा एक मनुष्य की आवश्यकता होती थी। उस दिन [[अज्ञातवास]] के समय पांडवों के आश्रयदाता [[ब्राह्मण]] की बारी थी। उसके परिवार में पति-पत्नी, एक पुत्र तथा एक पुत्री थे। वे लोग निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि किसको [[बकासुर]] के पास भेजा जाय। [[कुंती]] की प्रेरणा से ब्राह्मण के स्थान पर खाद्य सामग्री लेकर [[भीम]] बकासुर के पास गये। पहले तो वह बकासुर को चिढ़ाकर उसके लिए आयी हुई खाद्य सामग्री खाते रहे, फिर उससे द्वंद्व युद्ध कर उसे मार डाला।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बकासुर]]


{निम्न में से किस [[अप्सरा]] ने [[अर्जुन]] को नपुंसक होने का शाप दिया?
{निम्न में से किस [[अप्सरा]] ने [[अर्जुन]] को नपुंसक होने का शाप दिया?
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-[[मेनका]]
-[[मेनका]]
-इनमें से कोई नहीं
-इनमें से कोई नहीं
||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए]][[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी शामिल था, जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहते रहे। उन्होंने राजा विराट के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया। दिव्यास्त्रों की खोज में इन्द्रपुरी गये हुए [[अर्जुन]] पर [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] मोहित हो गई थी, किन्तु उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण उर्वशी ने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक रहने का शाप दिया। इसी शाप के फलस्वरूप अर्जुन को '[[बृहन्नला]]' के रूप में विराट की कन्या [[उत्तरा]] को [[नृत्य]] की शिक्षा देनी पड़ी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहन्नला]]
||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए]]'उर्वशी' सुरलोक की श्रेष्ठ नर्तकी थी। वह [[अर्जुन]] पर मोहित थी। अवसर पाकर [[उर्वशी]] ने अर्जुन से कहा, 'हे अर्जुन! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया करके मेरी काम-वासना को शांत करें।' उसके वचन सुनकर अर्जुन बोले, 'हे देवि! हमारे पूर्वज ने आपसे [[विवाह]] करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था, अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी [[माता]] समान हैं। देवि! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।' अर्जुन की बातों को सुनकर उर्वशी ने कहा, 'तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उर्वशी]]


{निम्न में से कौन राजा [[विराट]] की पत्नी थीं?
{निम्न में से कौन राजा [[विराट]] की पत्नी थीं?
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+ग्रंथिक
+ग्रंथिक
-[[कंक]]
-[[कंक]]
||पांडवों को 12 वर्ष के वनवास की अवधि की समाप्ति पर एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी करना था। [[विराट नगर]] के पास पहुँचकर वे सभी एक पेड़ के नीचे बैठ गए। [[युधिष्ठिर]] ने बताया कि मैं राजा [[विराट]] के यहाँ '[[कंक]]' नाम धारण कर [[ब्राह्मण]] के वेश में आश्रय लूँगा। उन्होंने [[भीम]] से कहा कि तुम 'वल्लभ' नाम से विराट के यहाँ रसोईए का काम माँग लेना, [[अर्जुन]] से उन्होंने कहा कि तुम '[[बृहन्नला]]' नाम धारण कर स्त्री भूषणों से सुसज्जित होकर विराट की राजकुमारी को [[संगीत]] और [[नृत्य]] की शिक्षा देने की प्रार्थना करना तथा [[नकुल]] 'ग्रंथिक' नाम से घोड़ों की रखवाली करने का तथा [[सहदेव]] 'तंत्रिपाल' नाम से चरवाहे का काम करना माँग ले।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहन्नला]]
||[[महाभारत]] में [[नकुल]] [[माता]] [[कुन्ती]] के नहीं, अपितु [[माद्री]] के पुत्र थे। नकुल एक कुशल अश्वारोही और घोड़ों के संबन्ध में विशेष ज्ञान रखने वाले थे। वे [[युधिष्ठिर]] के चतुर्थ भ्राता, [[अश्विनीकुमार|अश्विनी कुमारों]] के औरस और [[पाण्डु]] के क्षेत्रज पुत्र थे। इनके सहोदर का नाम [[सहदेव]] था। नकुल सुन्दर, धर्मशास्त्र, नीति तथा पशु-चिकित्सा में दक्ष थे। [[अज्ञातवास]] में ये [[विराट]] के यहाँ 'ग्रंथिक' नाम से [[गाय]] चराने और घोड़ों की देखभाल का कार्य करते रहे थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नकुल]]


{[[महाभारत]] में [[कीचक]] वध किस पर्व के अंतर्गत आता है?
{[[महाभारत]] में [[कीचक]] वध किस पर्व के अंतर्गत आता है?

07:52, 21 फ़रवरी 2012 का अवतरण

1 महाभारत में कौरव तथा पाण्डव सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल कितने अक्षौहिणी था?

18 अक्षौहिणी
21 अक्षौहिणी
11 अक्षौहिणी
16 अक्षौहिणी

2 अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में जिस बालक की रक्षा की, उसका नाम क्या था?

इरावत
वभ्रुवाहन
परीक्षित
श्रुतकर्मा

3 धृतराष्ट्र का जन्म किसके गर्भ से हुआ था?

अम्बालिका
अम्बिका
अम्बा
देवयानी

4 निम्नलिखित में से कौन पाण्डवों के महाप्रयाण के बाद राजगद्दी पर बैठा?

जनमेजय
परीक्षित
इरावत
प्रद्युम्न

5 निम्न में से कौन निषाद जाति से सम्बन्धित था?

एकलव्य
युयुत्सु
अंजनपर्वा
सुषेण

6 राजा परीक्षित के पुत्र का नाम क्या था?

श्रुतकर्मा
इरावत
संवरण
जनमेजय

7 लाक्षागृह से जीवित बच निकलने के बाद पाण्डव किस नगरी में जाकर रहे?

विराट
एकचक्रा
मगध
वैशाली

8 महाभारत के रचयिता महर्षि व्यास के पिता कौन थे?

गौतम
कपिल
दुर्वासा
पराशर

9 भूरिश्रवा का दाहिना हाथ किसने काटा?

युधिष्ठिर ने
भीम ने
अर्जुन ने
सहदेव ने

10 एकचक्रा नगरी में भीम ने किस राक्षस का वध किया था?

हिडिम्ब
वृषभासुर
वज्रनाभ
बकासुर

11 निम्न में से किस अप्सरा ने अर्जुन को नपुंसक होने का शाप दिया?

रम्भा
उर्वशी
मेनका
इनमें से कोई नहीं

12 निम्न में से कौन राजा विराट की पत्नी थीं?

सुदेष्णा
सैरन्ध्री
रेणुका
दमयंती

13 विराट नगर में पाण्डव नकुल ने क्या नाम ग्रहण किया था?

तंत्रिपाल
बृहन्नला
ग्रंथिक
कंक

15 महाभारत युद्ध में कौन-से दिन श्रीकृष्ण ने शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा?

7वें दिन
8वें दिन
9वें दिन
11वें दिन