"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||[[महाभारत]] की मूल अभिकल्पना में 18 की संख्या का विशिष्ट योग है। [[कौरव]] और [[पाण्डव]] पक्षों के मध्य हुए युद्ध की अवधि 18 दिन थी। दोनों पक्षों की सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल भी '18 अक्षौहिणी' था। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। महाभारत की प्रबन्ध योजना में सम्पूर्ण [[ग्रन्थ]] को 18 पर्वों में विभक्त किया गया है और महाभारत में [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]] के अन्तर्गत वर्णित [[श्रीमद्भगवद गीता]] में भी 18 अध्याय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | ||[[चित्र:Krishna-arjun1.jpg|right|140px|श्रीकृष्ण रथ हाँकते हुए]][[महाभारत]] की मूल अभिकल्पना में 18 की संख्या का विशिष्ट योग है। [[कौरव]] और [[पाण्डव]] पक्षों के मध्य हुए युद्ध की अवधि 18 दिन थी। दोनों पक्षों की सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल भी '18 अक्षौहिणी' था। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। महाभारत की प्रबन्ध योजना में सम्पूर्ण [[ग्रन्थ]] को 18 पर्वों में विभक्त किया गया है और महाभारत में [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]] के अन्तर्गत वर्णित [[श्रीमद्भगवद गीता]] में भी 18 अध्याय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | ||
{[[अश्वत्थामा]] के [[ब्रह्मास्त्र]] से [[श्रीकृष्ण]] ने [[उत्तरा]] के गर्भ में जिस बालक की रक्षा की, उसका नाम क्या था? | {[[अश्वत्थामा]] के [[ब्रह्मास्त्र]] से [[श्रीकृष्ण]] ने [[उत्तरा]] के गर्भ में जिस बालक की रक्षा की, उसका नाम क्या था? | ||
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||[[महाभारत]] युद्ध में जिस समय [[भूरिश्रवा]] [[सात्यकि]] का वध करने वाला था, तभी [[अर्जुन]] ने [[कृष्ण]] की प्रेरणा से भूरिश्रवा की दायीं बांह पर ऐसा प्रहार किया कि वह कटकर, तलवार सहित अलग जा गिरी। भूरिश्रवा ने कहा कि यह न्यायसंगत नहीं था कि जब वह अर्जुन से नहीं लड़ रहा था, तब अर्जुन ने उसकी बांह काटी। अर्जुन ने प्रत्युत्तर में कहा कि भूरिश्रवा अकेले ही अनेक योद्धाओं से लड़ रहा था, वह यह नहीं देख सकता था कि कौन उससे लड़ने के लिए उद्यत है और कौन नहीं। अपने बायें हाथ से कटा हुआ दायां हाथ उठाकर भूरिश्रवा ने अर्जुन की ओर फेंका, [[पृथ्वी]] पर माथा टेककर प्रणाम किया तथा युद्धक्षेत्र में ही समाधि लेकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भूरिश्रवा]] | ||[[महाभारत]] युद्ध में जिस समय [[भूरिश्रवा]] [[सात्यकि]] का वध करने वाला था, तभी [[अर्जुन]] ने [[कृष्ण]] की प्रेरणा से भूरिश्रवा की दायीं बांह पर ऐसा प्रहार किया कि वह कटकर, तलवार सहित अलग जा गिरी। भूरिश्रवा ने कहा कि यह न्यायसंगत नहीं था कि जब वह अर्जुन से नहीं लड़ रहा था, तब अर्जुन ने उसकी बांह काटी। अर्जुन ने प्रत्युत्तर में कहा कि भूरिश्रवा अकेले ही अनेक योद्धाओं से लड़ रहा था, वह यह नहीं देख सकता था कि कौन उससे लड़ने के लिए उद्यत है और कौन नहीं। अपने बायें हाथ से कटा हुआ दायां हाथ उठाकर भूरिश्रवा ने अर्जुन की ओर फेंका, [[पृथ्वी]] पर माथा टेककर प्रणाम किया तथा युद्धक्षेत्र में ही समाधि लेकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भूरिश्रवा]] | ||
{निम्न में से किस अप्सरा ने अर्जुन को नपुंसक होने का शाप दिया? | {निम्न में से किस [[अप्सरा]] ने [[अर्जुन]] को नपुंसक होने का शाप दिया? | ||
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-[[रम्भा]] | -[[रम्भा]] | ||
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-[[मेनका]] | -[[मेनका]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||[[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी शामिल था, जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहते रहे। उन्होंने राजा विराट के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया। दिव्यास्त्रों की खोज में इन्द्रपुरी गये हुए [[अर्जुन]] पर [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] मोहित हो गई थी, किन्तु उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण उर्वशी ने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक रहने का शाप दिया। इसी शाप के फलस्वरूप अर्जुन को '[[बृहन्नला]]' के रूप में विराट की कन्या [[उत्तरा]] को [[नृत्य]] की शिक्षा देनी पड़ी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहन्नला]] | ||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए]][[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी शामिल था, जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहते रहे। उन्होंने राजा विराट के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया। दिव्यास्त्रों की खोज में इन्द्रपुरी गये हुए [[अर्जुन]] पर [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] मोहित हो गई थी, किन्तु उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण उर्वशी ने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक रहने का शाप दिया। इसी शाप के फलस्वरूप अर्जुन को '[[बृहन्नला]]' के रूप में विराट की कन्या [[उत्तरा]] को [[नृत्य]] की शिक्षा देनी पड़ी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहन्नला]] | ||
{निम्न में से कौन राजा [[विराट]] की पत्नी थीं? | {निम्न में से कौन राजा [[विराट]] की पत्नी थीं? | ||
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+9वें दिन | +9वें दिन | ||
-11वें दिन | -11वें दिन | ||
||आठवें दिन का युद्ध समाप्त हो जाने के बाद [[दुर्योधन]] पितामह [[भीष्म]] के पास आया और बोला- 'पितामह!, लगता है आप जी लगाकर नहीं लड़ रहे। यदि आप भीतर-ही-भीतर [[पांडव|पांडवों]] का समर्थन कर रहे हैं तो आज्ञा दीजिए, मैं [[कर्ण]] को सेनापति बना दूँ। पितामह ने दुर्योधन से कहा- 'योद्धा अंत तक युद्ध करता है। कर्ण की वीरता तुम [[विराट नगर]] में देख चुके हो। कल के युद्ध में मैं कुछ कसर न छोडूँगा।' नौवें दिन के युद्ध में भीष्म के बाणों से [[अर्जुन]] भी घायल हो गए। [[कृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े और उन्हें रोका।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]] | ||[[चित्र:Bhishma1.jpg|right|100px|श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भंग करते हुए]]आठवें दिन का युद्ध समाप्त हो जाने के बाद [[दुर्योधन]] पितामह [[भीष्म]] के पास आया और बोला- 'पितामह!, लगता है आप जी लगाकर नहीं लड़ रहे। यदि आप भीतर-ही-भीतर [[पांडव|पांडवों]] का समर्थन कर रहे हैं तो आज्ञा दीजिए, मैं [[कर्ण]] को सेनापति बना दूँ। पितामह ने दुर्योधन से कहा- 'योद्धा अंत तक युद्ध करता है। कर्ण की वीरता तुम [[विराट नगर]] में देख चुके हो। कल के युद्ध में मैं कुछ कसर न छोडूँगा।' नौवें दिन के युद्ध में भीष्म के बाणों से [[अर्जुन]] भी घायल हो गए। [[कृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े और उन्हें रोका।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]] | ||
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12:55, 19 फ़रवरी 2012 का अवतरण
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