"भरूच": अवतरणों में अंतर
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'''भरूच''' [[गुजरात]] राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। भरूच प्राचीन काल में '''भरुकच्छ या भृगुकच्छ''' के नाम से प्रसिद्ध था। भरुकच्छ एक [[संस्कृत]] शब्द है, जिसका तात्पर्य ऊँचा तट प्रदेश है। भड़ौच प्राक् [[मौर्य काल]] का एक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह था, इसके बाद के कई सौ [[वर्ष|वर्षों]] तक महत्त्व बना रहा और आज भी है। [[यूनानी]] भूगोलवेत्ता '''पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी''' के लेखक [[टॉलमी]] ने भरुकच्छ को '''बैरीगोजा''' कहा है। उसके अनुसार [[समुद्र]] से 3 मील दूर पर [[नर्मदा नदी]] के उत्तर की ओर स्थित बैरीगोजा एक बड़ा पुर था। | '''भरूच''' [[गुजरात]] राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। भरूच प्राचीन काल में '''भरुकच्छ या भृगुकच्छ''' के नाम से प्रसिद्ध था। भरुकच्छ एक [[संस्कृत]] शब्द है, जिसका तात्पर्य '''ऊँचा तट प्रदेश''' है। भड़ौच प्राक् [[मौर्य काल]] का एक महत्त्वपूर्ण [[बन्दरगाह]] था, इसके बाद के कई सौ [[वर्ष|वर्षों]] तक महत्त्व बना रहा और आज भी है। [[यूनानी]] भूगोलवेत्ता '''पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी''' के लेखक [[टॉलमी]] ने भरुकच्छ को '''बैरीगोजा''' कहा है। उसके अनुसार [[समुद्र]] से 3 मील दूर पर [[नर्मदा नदी]] के उत्तर की ओर स्थित बैरीगोजा एक बड़ा [[पुर]] था। | ||
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यहाँ पर लगभग दस [[देवता|देव]] मन्दिर थे, जिनमें विविध सम्प्रदायों के मतावलम्बी रहते थे। [[मध्यकाल]] में भी भड़ौंच एक प्रमुख बन्दरगाह था। | यहाँ पर लगभग दस [[देवता|देव]] मन्दिर थे, जिनमें विविध सम्प्रदायों के मतावलम्बी रहते थे। [[मध्यकाल]] में भी भड़ौंच एक प्रमुख [[बन्दरगाह]] था। | ||
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12:43, 27 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

भरूच गुजरात राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। भरूच प्राचीन काल में भरुकच्छ या भृगुकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था। भरुकच्छ एक संस्कृत शब्द है, जिसका तात्पर्य ऊँचा तट प्रदेश है। भड़ौच प्राक् मौर्य काल का एक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह था, इसके बाद के कई सौ वर्षों तक महत्त्व बना रहा और आज भी है। यूनानी भूगोलवेत्ता पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी के लेखक टॉलमी ने भरुकच्छ को बैरीगोजा कहा है। उसके अनुसार समुद्र से 3 मील दूर पर नर्मदा नदी के उत्तर की ओर स्थित बैरीगोजा एक बड़ा पुर था।
इतिहास
रुद्रदामन के गिरनार अभिलेख (150 ई.) में भरुकच्छ का वर्णन है। जातक कथाओं में भरुकच्छ के समुद्र व्यापारियों की साहसिक यात्राओं का विशद् वर्णन है। दिव्यावदान के अनुसार भरुकच्छ घना बसा हुआ एक सम्पन्न नगर था। यह नगर समुद्री व्यापार एवं वाणिज्य का ईसा पूर्व से ही महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा। टॉलमी के अनुसार यह पश्चिमी भारत में व्यापार का सबसे बड़ा केन्द्र था। पाश्चात्य देशों वाले यहाँ से विलासिता के सामान ले जाते थे, जिनमें गंगा के निचले भागों की बनी सुन्दर मलमल भी थी।
विदेशी यात्री
युवानच्वांग, जो सातवीं शताब्दी में यहाँ आया था, इसकी परिधि 2,400 या 2,500 ली बताई। यहाँ की भूमि लवणयुक्त थी। समुद्री जल को गरम करके नमक बनाया जाता था और लोगों की जीविका का आधार समुद्र था। उसने लिखा है कि यहाँ दस बौद्ध विहार थे, जिनमें महायान स्थविर सम्प्रदाय के 300 भिक्षु रहते थे।
व्यापार उद्योग
पेरिप्लस में वर्णित है कि बन्दरगाह पर राजा के रनिवास के लिए सुन्दर स्त्रियाँ विदेशों से लायी जाती थीं। उम्मान और अपोलोगस से सोना और चांदी भड़ौंच लाई जाती थी। टिन, तांबा और सीसा भी विदेशों से भड़ौंच लाया जाता था। शीशे के बर्तन विदेशों से भड़ौंच ही लाए जाते थे। इसी ग्रंथ में यह उल्लेख है कि भृगुकच्छ के पास के समुद्र में ज्वार-भाटे के कारण कई नाविकों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। यहाँ चीन और सिंध दोनों ओर से व्यापारिक जहाज़ आते थे।
धार्मिक स्थल
यहाँ पर लगभग दस देव मन्दिर थे, जिनमें विविध सम्प्रदायों के मतावलम्बी रहते थे। मध्यकाल में भी भड़ौंच एक प्रमुख बन्दरगाह था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख