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||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे। | ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे। | ||
{'औरंगजेब की वृद्धावस्था' के चित्र सुरक्षित रखे गए हैं | {'[[औरंगजेब]] की वृद्धावस्था' के चित्र कहाँ सुरक्षित रखे गए हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-9 | ||
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+राज्य पुस्तकालय, रामपुर | +राज्य पुस्तकालय, [[रामपुर]] | ||
-वोस्टन संग्रहालय | -वोस्टन संग्रहालय | ||
-शाही पुस्तकालय | -शाही पुस्तकालय | ||
-बौद्ध संग्रहालय | -बौद्ध संग्रहालय | ||
||राज्य पुस्तकालय, रामपुर में 'औरंगजेब की वृद्धावस्था' के चित्र सुरक्षित रखे गए हैं, जिसे बीजापुर के घेरे के समय पर चित्रित किया गया है। | ||राज्य पुस्तकालय, [[रामपुर]] में '[[औरंगजेब]] की वृद्धावस्था' के चित्र सुरक्षित रखे गए हैं, जिसे [[बीजापुर]] के घेरे के समय पर चित्रित किया गया है। | ||
{निफ्ट शैक्षणिक केंद्र किस क्षेत्र में कार्य कर रहा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-367 | {निफ्ट शैक्षणिक केंद्र किस क्षेत्र में कार्य कर रहा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-367 | ||
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+फैशन तकनीक | +फैशन तकनीक | ||
-सिरेमिक | -सिरेमिक | ||
||निफ्ट शैक्षणिक केंद्र फैशन तकनीक के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। यह वर्ष 1986 में भारत सरकार के 'वस्त्र मंत्रालय' के तत्त्वावधान में इस संस्थान की स्थापना की गई थी। यह संस्थान | ||निफ्ट शैक्षणिक केंद्र फैशन तकनीक के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। यह वर्ष [[1986]] में [[भारत सरकार]] के 'वस्त्र मंत्रालय' के तत्त्वावधान में इस संस्थान की स्थापना की गई थी। यह संस्थान डिज़ाइन प्रबंधन और प्रौद्योगिकी का एक शीर्ष संस्थान है। | ||
{महारानी नेफेरतिती का संबंध निम्न में से किस काल से है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-20 | {महारानी नेफेरतिती का संबंध निम्न में से किस काल से है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-20 | ||
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+न्यू किंगडम | +न्यू किंगडम | ||
-मॉडर्न किंगडम | -मॉडर्न किंगडम | ||
||मरारानी नेफेरतिती | ||मरारानी नेफेरतिती का संबंध न्यू किंगडम (1570 ई.पू.- 1085 ई.पू.) काल से था। नेफेरतिती प्राचीन मिस्त्र के राजा अकेनतेन की पत्नी थीं। 'बस्ट ऑफ़ नेफेरतिति' वर्तमान में आइलैंड म्यूजियम बर्लिन में रखा गया है। | ||
{'भीमबेटका' गुफ़ाएं अवस्थित हैं | {'भीमबेटका' गुफ़ाएं कहाँ अवस्थित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-4 | ||
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-राजस्थान | -[[राजस्थान]] | ||
-उत्तर प्रदेश | -[[उत्तर प्रदेश]] | ||
-बिहार | -[[बिहार]] | ||
+मध्य प्रदेश | +[[मध्य प्रदेश]] | ||
||भारतीय | ||भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार [[मध्य प्रदेश]] में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफ़ाएं प्राप्त हुई हैं। अत: निकटस्थ उत्तर विकल्प (d) है। इन गुफ़ाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफ़ाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बने चित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है। | ||
{पाल युगीन पाण्डुलिपि चित्र अधिकांशत: आधारित हैं | {पाल युगीन पाण्डुलिपि चित्र अधिकांशत: किस धर्म पर आधारित हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-7 | ||
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+हिन्दुत्व | +[[हिंदू धर्म|हिन्दुत्व]] | ||
- | -[[जैन धर्म]] | ||
-शैव मत | -[[शैव मत]] | ||
-बौद्ध धर्म | -[[बौद्ध धर्म]] | ||
||पाल शैली एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक बंगाल में पाल वंश के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। | ||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण किस शैली का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-20 | {हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण किस शैली का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-20 | ||
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-पाल शैली | -पाल शैली | ||
-अजंता शैली | -अजंता शैली | ||
-जैन शैली | -जैन शैली | ||
+अलवर शैली | +अलवर शैली | ||
||हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण अलवर शैली में प्राप्त होता है। महाराजा मंगल सिंह के समय के प्रसिद्ध चित्रकार 'मूलचंद' तथा 'उदयराम' (अलवर शैली) ने हाथी दांत के फलकों पर सूक्ष्म चित्रण किया। | ||हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण अलवर शैली में प्राप्त होता है। महाराजा मंगल सिंह के समय के प्रसिद्ध चित्रकार 'मूलचंद' तथा 'उदयराम' (अलवर शैली) ने हाथी दांत के फलकों पर सूक्ष्म चित्रण किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) नानक राम, बुद्धराम, जगन्नाथ, रामगोपाल, रामप्रसाद, जगमोहन, रामसहाय तथा नेपोलिया आदि अलवर चित्र शैली के प्रमुख चित्रकार थे। (2) बुद्धराम राजगढ़ क़िले के शीशमहल तथा अलवर गुणीजन खाने के दरोगा थे, जो पशु-पक्षियों के चित्रांकन में भी दक्ष थे। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{कौन-सा | {कौन-सा मुग़ल सम्राट चित्रकला को सबसे अच्छा समझता था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-20 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-हुमायूं | -[[हुमायूं]] | ||
-अकबर | -[[अकबर]] | ||
-शाहजहां | -[[शाहजहां]] | ||
+जहांगीर | +[[जहांगीर]] | ||
|| | ||मुग़ल बादशाह [[जहांगीर]] स्वयं चित्रकला में रुचि लेता था। वह इसका कुशल पारखी था। किसी चित्र को देखकर वह बता सकता था कि उसके विभिन्न भाग यदि अलग-अलग व्यक्ति के द्वारा बनाए गए हैं तो कौन-सा भाग किस चित्रकार ने बनाया है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) चित्रकारी में जहांगीर के उत्कृष्ट रुचि का वर्णन गिरीटो, [[विलियम हाकिंस]] और सर टामस रो सदृश यात्रियों ने भी किया है। (3) जहांगीर के शासनकाल में चित्रकला के क्षेत्र में भारतीय पद्धति का विकास हुआ। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{कांगड़ा चित्रकला की उन्नति | {[[कांगड़ा चित्रकला]] की उन्नति निम्न में से किसके समय हुईं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-8 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-राजा विधिचंद | -राजा विधिचंद | ||
-राजा जयचंद | -[[जयचंद|राजा जयचंद]] | ||
+राजा संसारचंद | +राजा संसारचंद | ||
-राजा रणजीत सिंह | -[[रणजीत सिंह|राजा रणजीत सिंह]] | ||
||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने पहाड़ी चित्रकला शैली को संरक्षण प्रदान किया। कांगड़ा शैली (पहाड़ी शैली) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे। | ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे। | ||
{कौन वॉश-चित्रकला शैली से संबंधित नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-10 | {निम्न में से कौन वॉश-चित्रकला शैली से संबंधित नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-10 | ||
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-बंद्रीनाथ आर्य | -बंद्रीनाथ आर्य | ||
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-मूर्ति | -मूर्ति | ||
-रेखांकन | -रेखांकन | ||
||फोन्त-द-गॉम (Font The Gaume) | ||फोन्त-द-गॉम (Font The Gaume) [[फ़्राँस]] के दक्षिण-पश्चिम में स्थित गुफ़ाएं हैं। यह फ़्राँस की भूमि पर सर्वाधिक अलंकृत गुफ़ाएं ब्यून घाटी में स्थित हैं। इनमें मुख्य गैलरी की ऊंचाई 23 से 26 फ़ीट तक है। यहां लगभग 200 चित्र हैं। | ||
{सुमेरियन सभ्यता किस नदी के तट पर विकसित | {सुमेरियन सभ्यता किस नदी के तट पर विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-21 | ||
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-नील | -[[नील नदी]] | ||
-यांगस्तजे | -यांगस्तजे नदी | ||
-सिंधु | -[[सिंधु नदी]] | ||
+यूफेट्स | +यूफेट्स नदी | ||
||सुमेरियन सभ्यता यूफ्रेट्स नदी के तट पर विकसित हुई। | ||सुमेरियन सभ्यता यूफ्रेट्स नदी के तट पर विकसित हुई। | ||
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-श्री राय कृष्ण दास | -श्री राय कृष्ण दास | ||
-श्री रामचंद्र शुक्ल | -श्री रामचंद्र शुक्ल]] | ||
+श्री वी.एस. वाकड़कर | +श्री वी.एस. वाकड़कर | ||
-श्री नंदलाल बोस | -[[नंदलाल बोस|श्री नंदलाल बोस]] | ||
||विष्ण्य श्रीधर वाकड़कर ने भीमबेटका के प्रागैतिहासिक चित्रों का सर्वप्रथम वर्ष 1958 में पता लगाया। यहां 500 वर्गमील के क्षेत्र में 30 | ||विष्ण्य श्रीधर वाकड़कर ने भीमबेटका के प्रागैतिहासिक चित्रों का सर्वप्रथम वर्ष [[1958]] में पता लगाया। यहां 500 वर्गमील के क्षेत्र में 30 पर्वत श्रेणियां अवस्थित हैं जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई 1365 फ़ीट (410 मी.) से 2000 फ़ीट (600 मी.) तक है। इन्हीं के ऊपर एक ट्रिगनोमेट्रिक स्टेशन स्थापित किया गया था,जहां गत शताब्दी में सर्वेक्षण किए गए थे। इन पर्वत श्रेणियों की शिलाएं बलुआ पत्थर की हैं। | ||
{पाल शैली के चित्रों का प्रमुख विषय क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-8 | {पाल शैली के चित्रों का प्रमुख विषय क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-8 | ||
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+बौद्ध | +[[बौद्ध]] | ||
-बारहमासा | -बारहमासा | ||
-रागमाला | -रागमाला | ||
- | -श्रृंगार | ||
||पाल शैली एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक बंगाल में पाल वंश के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। | ||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', ' | |||
{कौन-सा केंद्र राजस्थानी शैली का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-21 | {कौन-सा केंद्र [[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]] का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-21 | ||
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-बसौली | -[[बसौली]] | ||
-गढ़वाल | -[[गढ़वाल]] | ||
+बीकानेर | +[[बीकानेर]] | ||
-अहमदनगर | -[[अहमदनगर]] | ||
||राजस्थान चित्रकला शैली की उपशाखा बीकानेर शैली के उद्भव का काल निर्धारण तो निश्चित नहीं हो पाया है परंतु संभवत: 16वीं-17वीं शताब्दी के आस-पास बीकानेर शैली का उद्भव हुआ। | ||राजस्थान चित्रकला शैली की उपशाखा बीकानेर शैली के उद्भव का काल निर्धारण तो निश्चित नहीं हो पाया है परंतु संभवत: 16वीं-17वीं शताब्दी के आस-पास बीकानेर शैली का उद्भव हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) बीकानेर शैली के उद्भव का श्रेय यहां के 'उस्ताओं' को दिया जाता है। (2) चित्रों में सुनहरे रंग के अत्यधिक प्रयोग से बीकानेर शैली पर दक्षिण की बीजापुर शैली का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। (3) [[मारवाड़]] के शासक राव जोधा के द्वितीय पुत्र 'बीकाजी' द्वारा 1488 ई. में [[बीकानेर|बीकानेर राज्य]] की स्थापना हुई थी। (4) यह क्षेत्र [[महाभारत|महाभारत काल]] में 'जांगम देश' के नाम से जाना जाता था। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{एम.एफ. हुसैन मध्य प्रदेश के किस शहर के हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-98,प्रश्न-1 | {[[एम. एफ. हुसैन]] [[मध्य प्रदेश]] के किस शहर के हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-98,प्रश्न-1 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-भोपाल | -[[भोपाल]] | ||
+इंदौर | +[[इंदौर]] | ||
-ग्वालियर | -[[ग्वालियर]] | ||
-सतना | -[[सतना ज़िला|सतना]] | ||
||एम.एफ. हुसैन का पूरा नाम | ||[[एम. एफ. हुसैन]] का पूरा नाम मक़बूल फ़िदा हुसैन है। इनका जन्म पंढ़रपुर, [[महाराष्ट्र]] में [[17 सितंबर]], [[1915]] को हुआ था। बचपन में हुसैन की मां का देहांत हो गया। इसके बाद एम. एफ. हुसैन अपने पिता के साथ [[इंदौर]] चले गए, जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई, आगे की शिक्षा उन्होंने बंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में ली। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) [[भारत सरकार]] ने एम. एस. हुसैन को [[पद्मश्री |पद्मश्री]], [[पद्म भूषण]] और [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित किया। (2) इनके द्वारा बनाई गई पहली फिल्म 'थ्रू द आइज़ ऑफ़ ए पेंटर' (चित्रकार की दृष्टि से) को बर्लिन उत्सव में दिखाया गया और उसे 'गोल्डन बियर' पुरस्कार प्राप्त हुआ। (3) इनके द्वारा बनाई भारतीय देवी-देवताओं की विवादित पेंटिंग के विरोध की वजह से उन्होंने वर्ष [[2006]] में [[भारत]] छोड़ दिया। (4) वर्ष [[2010]] में उन्हें कतर की नागरिकता प्राप्त हो गयी। वर्ष [[2011]] में इनकी मृत्यु [[लंदन]] में हो गई। (5) [[17 सितंबर]], [[2015]] को एम. एफ. हुसैन का 100वां जन्म दिन मनाया गया। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{सैंड्रो बोत्तिचेल्ली प्रसिद्ध कलाकार था | {सैंड्रो बोत्तिचेल्ली कहाँ का प्रसिद्ध कलाकार था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-112,प्रश्न-71 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-फ्लोरेंस | -फ्लोरेंस | ||
-रोम | -[[रोम]] | ||
+इटली | +[[इटली]] | ||
-स्पेन | -स्पेन | ||
||'द बर्थ ऑफ़ वीनस' (वीनस का जन्म) 1486 ई. में इटली के चित्रकार | ||'द बर्थ ऑफ़ वीनस' (वीनस का जन्म) 1486 ई. में [[इटली]] के चित्रकार सैंड्रो बोत्तिचेल्ली द्वारा चित्रित प्रसिद्ध चित्र है। यह कैनवास पर टेम्परा शैली का चित्र है। वर्तमान में यह चित्र इटली के उफीजी गैलरी में सुरक्षित है। | ||
{किस प्रभाववादी चित्रकार के चित्रों को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-116,प्रश्न-1 | {किस प्रभाववादी चित्रकार के चित्रों को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-116,प्रश्न-1 | ||
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+तूलू लॉत्रेक | +तूलू लॉत्रेक | ||
-एडगर डेगा | -एडगर डेगा | ||
||तूलू लॉत्रेक के चित्रों विशेषकर लिथोग्राफ्स को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था। वह उत्तर प्रभाववाद के श्रेष्ठ चित्रकार थे। 1890 के दशक के मध्य में 'Le Rite' नामक | ||तूलू लॉत्रेक के चित्रों विशेषकर लिथोग्राफ्स को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था। वह उत्तर प्रभाववाद के श्रेष्ठ चित्रकार थे। [[1890]] के दशक के मध्य में 'Le Rite' नामक मैगज़ीन में उन्होंने अनेक चित्रण किए। उन्हें 'आधुनिक विज्ञापन का पितामह' भी कहा गया है। | ||
{ | {निम्न में से कौन असंबद्ध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-21 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-मंसूर | -मंसूर | ||
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+बिहजाद | +बिहजाद | ||
-मिस्किन | -मिस्किन | ||
||बिहजाद एक प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार था जिसका उल्लेख बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी में किया है जबकि मंसूर, मनोहर एवं मिस्किन | ||बिहजाद एक प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार था जिसका उल्लेख [[बाबर]] ने अपनी आत्मकथा [[तुजुक-ए-बाबरी]] में किया है जबकि मंसूर, मनोहर एवं मिस्किन मुग़लकालीन दरबारी चित्रकार थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) मंसूर एवं मनोहर [[जहांगीर]] के दरबार से संबद्ध चित्रकार थे। (2) मिस्किन अकबर कालीन यूरोपीय शैली का चित्रकार था। (3) [[अबुल फ़ज़ल]] ने अपनी पुस्तक '[[आइना-ए-अकबरी|आइने अकबरी]]' में मिस्किन का उल्लेख किया है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
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11:28, 26 अप्रैल 2017 का अवतरण
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