"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Lord-Mountbatten.jpg|right|100px|लॉर्ड माउन्ट बेटन]]'[[माउन्टबेटन योजना]]' [[3 जून]], [[1947]] ई. को [[लॉर्ड माउन्ट बेटन|लॉर्ड माउन्टबेटन]] द्वारा प्रस्तुत की गई थी। यह योजना [[भारत]] के जनसाधारण लोगों में 'मनबाटन योजना' के नाम से भी प्रसिद्ध हुई। [[मुस्लिम लीग]] अपनी माँग [[पाकिस्तान]] के निर्माण पर अड़ी हुई थी। इस स्थिति में विवशतापूर्वक [[कांग्रेस]] तथा [[सिक्ख|सिक्खों]] द्वारा देश के विभाजन को स्वीकार कर लेने के बाद समस्या के हल के लिए लॉर्ड माउन्ट बेटन [[लन्दन]] गये और वापस आकर उन्होंने देश के विभाजन की अपनी योजना प्रस्तुत की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[माउण्टबेटन योजना]] | |||
{[[1917]] ई. के [[चम्पारण सत्याग्रह]] का सम्बन्ध किससे था?(अरिहंत, सा.ज्ञा. पृ.90, प्र.171) | {[[1917]] ई. के [[चम्पारण सत्याग्रह]] का सम्बन्ध किससे था?(अरिहंत, सा.ज्ञा. पृ.90, प्र.171) | ||
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+नील की खेती करने वालों से | +नील की खेती करने वालों से | ||
-[[जूट]] पैदा करने वालों से | -[[जूट]] पैदा करने वालों से | ||
||चम्पारन के किसानों से [[अंग्रेज़]] बाग़ान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके द्वारा किसानों को ज़मीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे। 19वीं शताब्दी के अन्त में रासायनिक [[रंग|रगों]] की खोज और उनके प्रचलन से नील के बाज़ार में गिरावट आने लगी, जिससे नील बाग़ान के मालिक अपने कारखाने बंद करने लगे। किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे। गोरे बाग़ान मालिकों ने किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान को मनमाने ढंग से बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह शुरू हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चम्पारण सत्याग्रह]] | |||
{[[मराठा]] राज्य का दूसरा प्रवर्तक किसे कहा जाता था?(अरिहंत, सा.ज्ञा. पृ.88, प्र.119) | {[[मराठा]] राज्य का दूसरा प्रवर्तक किसे कहा जाता था?(अरिहंत, सा.ज्ञा. पृ.88, प्र.119) | ||
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-[[बाजीराव प्रथम]] | -[[बाजीराव प्रथम]] | ||
-[[बालाजी बाजीराव]] | -[[बालाजी बाजीराव]] | ||
||[[चित्र:Bajirao-Statue-Shaniwar-Wada-Pune.jpg|right|140px|बाजीराव प्रथम की प्रतिमा]]'बालाजी विश्वनाथ' द्वारा की गई सेवाओं से [[मराठा साम्राज्य]] अपने गौरवपूर्ण अतीत को एक बार फिर से प्राप्त करने में काफ़ी हद तक सफल हो चुका था। इसीलिए [[बालाजी विश्वनाथ]] द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण सेवाओं का फल [[शाहू|राजा शाहू]] ने उसे उसके जीते जी ही दे दिया था। शाहू ने [[पेशवा]] का पद अब बालाजी विश्वनाथ के परिवार के लिए वंशगत कर दिया। इसीलिए बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उसके पुत्र [[बाजीराव प्रथम]] को पेशवा का पद प्रदान कर दिया गया, जो एक वीर, साहसी और एक समझदार राजनीतिज्ञ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बालाजी विश्वनाथ]] | |||
{'[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' का [[1938]] ई. का [[कांग्रेस अधिवेशन|अधिवेशन]] किस शहर में हुआ था?(ल्युसेंट, पृ.105, प्र.82) | {'[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' का [[1938]] ई. का [[कांग्रेस अधिवेशन|अधिवेशन]] किस शहर में हुआ था?(ल्युसेंट, पृ.105, प्र.82) |
14:06, 16 जून 2012 का अवतरण
इतिहास सामान्य ज्ञान
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