"करौली": अवतरणों में अंतर
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'''करौली''' [[उत्तर भारत]] के [[राजस्थान|राजस्थान राज्य]] का प्रमुख नगर और [[करौली ज़िला|करौली ज़िले]] का मुख्यालय है, जो पूर्व में करौली राज्य की राजधानी था। करौली कस्बे की स्थापना 1348 ई. में [[यादव वंश]] के राजा अर्जुनपाल ने की थी। इसका मूलत: नाम कल्याणपुरी था, जो कल्याणजी के मन्दिर के कारण प्रसिद्ध था। इसको भद्रावती नदी के किनारे होने के कारण 'भद्रावती नगरी' भी कहा जाता था। | |||
==निर्माण== | |||
किंवदंतियों के अनुसार इस राज्य का निर्माण 995 ई. में [[कृष्ण|भगवान कृष्ण]] के 88वें वंशज राजा बिजाई पाल जादोन द्वारा करवाया गया था। हालांकि आधिकारिक तौर पर करौली यदुवंशी, [[राजपूत]] राजा अर्जुनपाल द्वारा 1348 ई. में स्थापित किया गया। | |||
====स्थिति==== | |||
करौली [[जयपुर]] से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये ज़िला 5530 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। पूर्व में इस स्थान का नाम कल्याणपुरी था। यह नाम यहाँ की एक स्थानीय देवी कल्याणजी के नाम पर रखा गया था। करौली ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है और 902 फुट की औसत ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ का सबसे ऊंचा शिखर 1400 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। इस नगर में 300 मंदिरों की उपस्थिति इसे राज्य के पवित्रतम स्थानों में से एक बनाती है।<ref>{{cite web |url= http://hindi.nativeplanet.com/karauli/|title= करौली, पवित्रता का मार्क|accessmonthday= 21 मई|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= नेटिव प्लेनेट|language= हिन्दी}}</ref> | |||
चूँकि मध्ययुगीन काल में इस स्थान पर लगातार हमलों का खतरा था, अतः इस कारण पूरे ज़िले को एक क़िले की तरह बनाया गया था। उस समय इस ज़िले में एक दीवार बनाई गयी थी जो लाल बलुआ पत्थरों की थी, जो यहाँ आज भी मौजूद है। वर्तमान में ये दीवार अपना बुरा दौर देख रही है और जीर्ण हालत में है। इस दीवार में 6 मुख्य द्वार हैं और इसके अलग-अलग हिस्सों में कुछ खिड़कियां भी हैं, जो इस दीवार को एक मजबूत ढांचा बनाते हैं। | |||
==वास्तुकला== | |||
[[राजस्थान]] का करौली ज़िला अपनी [[लाल रंग|लाल]] पत्थर की [[वास्तुकला]] के लिए जाना जाता है। इसके साथ ही इस शहर में सिटी पैलेस, तिमांगढ़ क़िला, [[कैलादेवी मन्दिर]], मदन मोहन जी मंदिर इस शहर को वास्तुकला और पर्यटन दोनों की दृष्टी से महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। आज भी यहाँ स्थित सिटी पैलेस को क्षेत्र की समृद्ध विरासत का एक प्रतीक माना जाता है। | |||
==मेले और त्योहार== | |||
[[चित्र:Shahi-Kund-Karauli.jpg|thumb|250px|शाही कुंड, करौली]] | [[चित्र:Shahi-Kund-Karauli.jpg|thumb|250px|शाही कुंड, करौली]] | ||
पूरे [[उत्तर भारत]] में मेलों का अपना एक विशेष महत्त्व है। कुछ इसी तर्ज पर [[राजस्थान]] के लोगों में भी मेले के प्रति खासी दिलचस्पी है। करौली में भी [[हिन्दू]] महीने [[चैत्र]] ([[मार्च]]-[[अप्रैल]]) के दौरान एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसको देखने के लिए काफ़ी दूर-दूर से लोग आते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटकों में हमेशा ही [[उत्तर प्रदेश]], [[मध्य प्रदेश]], [[पंजाब]], [[दिल्ली]], [[हरियाणा]] के लोगों की तादाद ज्यादा रहती है। करौली की एक प्रमुख आबादी यहाँ के हस्तशिल्पियों की है, जो करौली आने वाले पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्मृति चिन्ह बनाने में लगी हुई है और यही इस वर्ग का मुख्य व्यवसाय भी है। | |||
====क्या ख़रीदें==== | |||
करौली में चमड़े की जूतिययाँ, [[चाँदी]] के [[आभूषण]] और स्टील का सामान बहुत मशहूर है। इन्हें ख़रीदने के लिए सिटी पेलेस के पास के बाज़ार में जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त [[मिट्टी]] से बनी भगवान की मूर्तियाँ और [[दूध]] की मिठाइयां भी लोगों का खूब पसंद आती हैं। इस बाज़ार में कोई बड़ा सामान मिलना मुश्किल है, लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा बनाए जाने वाली लाख और कांच की शानदार चूड़ियाँ ख़रीदी जा सकती हैं। यहाँ के बने लकड़ी के खिलौने भी सैलानियों को बहुत लुभाते हैं। | |||
==कैसे पहुँचें== | |||
[[जयपुर]] स्थित सांगानेर हवाई अड्डे और गंगापुर रेलवे स्टेशन से आसानी से करौली पहुँचा जा सकता है। इन सब के अतिरिक्त सड़कों का एक अच्छा जाल होने की वजह से यहाँ सड़क मार्ग से भी जाया जा सकता है। करौली महुवा से केवल 64 कि.मी. दूर है। यह [[आगरा]] और [[जयपुर]] को जोड़ने वाले [[राष्ट्रीय राजमार्ग 11]] के बीच में स्थित है। | |||
;कब जाएँ | |||
करौली घूमने का सबसे अच्छा [[मौसम]] [[सितम्बर]] से [[मार्च]] के बीच का है। | |||
==विशेषताएँ== | ==विशेषताएँ== | ||
* करौली | * करौली क़स्बा चारों तरफ़ से लाल पत्थर से निर्मित है, जिसकी परिधि 3.7 कि.मी. है, जिसमें 6 दरवाज़े 12 खिड़कियाँ हैं। | ||
* महाराज गोपालसिंह के समय का एक | * महाराज गोपालसिंह के समय का एक ख़ूबसूरत महल भी यहाँ है, जिसके रंगमहल एवं दीवान-ए-आम को शीशों से बड़ी ख़ूबसूरती से बनाया गया है। | ||
* करौली में | * करौली में काफ़ी संख्या में मन्दिर हैं, जिसमें प्रमुख मन्दिर मदनमोहन जी का है। यह मन्दिर बरामदे एवं सुसज्जित चित्रकारी से निर्मित है। महाराजा गोपालसिंह जी के द्वारा जयपुर से लायी गयी सामग्री से यह निर्मित है। | ||
* काले मार्बल से निर्मित मदनमोहनजी की मूर्ति है। प्रत्येक [[अमावस्या]] को मेला लगता है, जिसमें | * काले मार्बल से निर्मित मदनमोहनजी की मूर्ति है। प्रत्येक [[अमावस्या]] को यहाँ मेला लगता है, जिसमें हज़ारों की संख्या में लोग दर्शनार्थ आते हैं। | ||
* करौली मे जैन मन्दिर, जामा मस्जिद, ईदगाह, अंजनी माता मन्दिर, गोविन्द देव जी मन्दिर आदि भी धार्मिक आस्था के स्थान | * करौली मे जैन मन्दिर, जामा मस्जिद, ईदगाह, अंजनी माता मन्दिर, गोविन्द देव जी मन्दिर आदि भी धार्मिक आस्था के स्थान हैं। | ||
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12:05, 21 मई 2015 के समय का अवतरण
करौली
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विवरण | 'करौली' राजस्थान का प्रसिद्ध ज़िला और धार्मिक स्थल है। यहाँ का कैलादेवी मन्दिर हिन्दुओं का आस्था का प्रतीक है। |
राज्य | राजस्थान |
ज़िला | करौली |
निर्माता | राजा अर्जुनपाल |
स्थापना | 1348 ई. |
भौगोलिक स्थिति | जयपुर से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित। |
प्रसिद्धि | हिन्दू धार्मिक स्थल |
कब जाएँ | सितम्बर से मार्च के बीच |
![]() |
सांगानेर, जयपुर |
![]() |
गंगापुर |
संबंधित लेख | राजस्थान, राजस्थान का इतिहास, कैलादेवी मन्दिर
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अन्य जानकारी | करौली की एक प्रमुख आबादी यहाँ के हस्तशिल्पियों की है, जो करौली आने वाले पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्मृति चिन्ह बनाने में लगी हुई है और यही इस वर्ग का मुख्य व्यवसाय भी है। |
करौली उत्तर भारत के राजस्थान राज्य का प्रमुख नगर और करौली ज़िले का मुख्यालय है, जो पूर्व में करौली राज्य की राजधानी था। करौली कस्बे की स्थापना 1348 ई. में यादव वंश के राजा अर्जुनपाल ने की थी। इसका मूलत: नाम कल्याणपुरी था, जो कल्याणजी के मन्दिर के कारण प्रसिद्ध था। इसको भद्रावती नदी के किनारे होने के कारण 'भद्रावती नगरी' भी कहा जाता था।
निर्माण
किंवदंतियों के अनुसार इस राज्य का निर्माण 995 ई. में भगवान कृष्ण के 88वें वंशज राजा बिजाई पाल जादोन द्वारा करवाया गया था। हालांकि आधिकारिक तौर पर करौली यदुवंशी, राजपूत राजा अर्जुनपाल द्वारा 1348 ई. में स्थापित किया गया।
स्थिति
करौली जयपुर से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये ज़िला 5530 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। पूर्व में इस स्थान का नाम कल्याणपुरी था। यह नाम यहाँ की एक स्थानीय देवी कल्याणजी के नाम पर रखा गया था। करौली ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है और 902 फुट की औसत ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ का सबसे ऊंचा शिखर 1400 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। इस नगर में 300 मंदिरों की उपस्थिति इसे राज्य के पवित्रतम स्थानों में से एक बनाती है।[1]
चूँकि मध्ययुगीन काल में इस स्थान पर लगातार हमलों का खतरा था, अतः इस कारण पूरे ज़िले को एक क़िले की तरह बनाया गया था। उस समय इस ज़िले में एक दीवार बनाई गयी थी जो लाल बलुआ पत्थरों की थी, जो यहाँ आज भी मौजूद है। वर्तमान में ये दीवार अपना बुरा दौर देख रही है और जीर्ण हालत में है। इस दीवार में 6 मुख्य द्वार हैं और इसके अलग-अलग हिस्सों में कुछ खिड़कियां भी हैं, जो इस दीवार को एक मजबूत ढांचा बनाते हैं।
वास्तुकला
राजस्थान का करौली ज़िला अपनी लाल पत्थर की वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इसके साथ ही इस शहर में सिटी पैलेस, तिमांगढ़ क़िला, कैलादेवी मन्दिर, मदन मोहन जी मंदिर इस शहर को वास्तुकला और पर्यटन दोनों की दृष्टी से महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। आज भी यहाँ स्थित सिटी पैलेस को क्षेत्र की समृद्ध विरासत का एक प्रतीक माना जाता है।
मेले और त्योहार

पूरे उत्तर भारत में मेलों का अपना एक विशेष महत्त्व है। कुछ इसी तर्ज पर राजस्थान के लोगों में भी मेले के प्रति खासी दिलचस्पी है। करौली में भी हिन्दू महीने चैत्र (मार्च-अप्रैल) के दौरान एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसको देखने के लिए काफ़ी दूर-दूर से लोग आते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटकों में हमेशा ही उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा के लोगों की तादाद ज्यादा रहती है। करौली की एक प्रमुख आबादी यहाँ के हस्तशिल्पियों की है, जो करौली आने वाले पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्मृति चिन्ह बनाने में लगी हुई है और यही इस वर्ग का मुख्य व्यवसाय भी है।
क्या ख़रीदें
करौली में चमड़े की जूतिययाँ, चाँदी के आभूषण और स्टील का सामान बहुत मशहूर है। इन्हें ख़रीदने के लिए सिटी पेलेस के पास के बाज़ार में जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त मिट्टी से बनी भगवान की मूर्तियाँ और दूध की मिठाइयां भी लोगों का खूब पसंद आती हैं। इस बाज़ार में कोई बड़ा सामान मिलना मुश्किल है, लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा बनाए जाने वाली लाख और कांच की शानदार चूड़ियाँ ख़रीदी जा सकती हैं। यहाँ के बने लकड़ी के खिलौने भी सैलानियों को बहुत लुभाते हैं।
कैसे पहुँचें
जयपुर स्थित सांगानेर हवाई अड्डे और गंगापुर रेलवे स्टेशन से आसानी से करौली पहुँचा जा सकता है। इन सब के अतिरिक्त सड़कों का एक अच्छा जाल होने की वजह से यहाँ सड़क मार्ग से भी जाया जा सकता है। करौली महुवा से केवल 64 कि.मी. दूर है। यह आगरा और जयपुर को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 11 के बीच में स्थित है।
- कब जाएँ
करौली घूमने का सबसे अच्छा मौसम सितम्बर से मार्च के बीच का है।
विशेषताएँ
- करौली क़स्बा चारों तरफ़ से लाल पत्थर से निर्मित है, जिसकी परिधि 3.7 कि.मी. है, जिसमें 6 दरवाज़े 12 खिड़कियाँ हैं।
- महाराज गोपालसिंह के समय का एक ख़ूबसूरत महल भी यहाँ है, जिसके रंगमहल एवं दीवान-ए-आम को शीशों से बड़ी ख़ूबसूरती से बनाया गया है।
- करौली में काफ़ी संख्या में मन्दिर हैं, जिसमें प्रमुख मन्दिर मदनमोहन जी का है। यह मन्दिर बरामदे एवं सुसज्जित चित्रकारी से निर्मित है। महाराजा गोपालसिंह जी के द्वारा जयपुर से लायी गयी सामग्री से यह निर्मित है।
- काले मार्बल से निर्मित मदनमोहनजी की मूर्ति है। प्रत्येक अमावस्या को यहाँ मेला लगता है, जिसमें हज़ारों की संख्या में लोग दर्शनार्थ आते हैं।
- करौली मे जैन मन्दिर, जामा मस्जिद, ईदगाह, अंजनी माता मन्दिर, गोविन्द देव जी मन्दिर आदि भी धार्मिक आस्था के स्थान हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ करौली, पवित्रता का मार्क (हिन्दी) नेटिव प्लेनेट। अभिगमन तिथि: 21 मई, 2015।
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