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* एम.ससी.[[इलाहाबाद]]
==शोध कार्य==
* पी.एचडी., इलाहाबाद
विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के बाद आत्माराम ने कांच और सेरोमिक्स पर शोध आरंभ किया। ऑप्टिकल कांच अत्यंत शुद्ध कांच होता है और उसका उपयोग सूक्ष्मदर्शी और विविध प्रकार के सैन्य उपकरण बनाने में किया जाता है। [[भारत]] में यह कांच [[जर्मनी]] से आयात होता था। इस पर प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा व्यय होती थी। डॉ. आत्माराम ने बड़ी लगन के साथ शोध करके भारत में ही ऐसा कांच बनाने की विधि का अविष्कार कर लिया। इससे न केवल देश की आत्मनिर्भरता बढ़ी वरन् औद्योगिक क्षेत्र में उसके सम्मान में भी वृद्धि हुई। [[1967]] में आत्माराम जी को देश की प्रमुख वैज्ञानिक संस्था 'वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद' का महानिदेशक बनाया गया।
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डॉ. आत्माराम विज्ञान की शिक्षा अपनी भाषा में देने पर जोर देते थे। उन्होंने स्वयं लिखा था-
 
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उनके अनुसंधान को देखते हुए सोवियत रूस के टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ने उन्हें 'डॉक्टर ऑफ़ टेक्नोलोजी' की उपाधि दी थी। डॉ. आत्माराम के जीवन में इतनी सादगी थी कि लोग सम्मान के साथ उन्हें 'गांधीवादी विज्ञानी' कहा करते थे।
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05:23, 6 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

आत्माराम
डॉ. आत्माराम
डॉ. आत्माराम
पूरा नाम डॉ. आत्माराम
जन्म 12 अक्टूबर, 1908
जन्म भूमि पीलना, बिजनौर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 6 फ़रवरी, 1983
कर्म भूमि भारत
शिक्षा बी.एससी. (कानपुर), पी.एचडी. (इलाहाबाद)
पुरस्कार-उपाधि शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार (1959), पद्म श्री (1959)
विशेष योगदान चश्मे के काँच के निर्माण में सराहनीय योगदान
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आत्माराम जी की स्मृति में 'केन्द्रीय हिन्दी संस्थान' द्वारा प्रतिवर्ष दो लोगों को 'आत्माराम पुरस्कार' दिया जाता है।

डॉ. आत्माराम (अंग्रेज़ी: Dr. Atmaram, जन्म- 12 अक्टूबर, 1908, बिजनौर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 6 फ़रवरी, 1983) अर्थपरक वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी के पक्षधर एक भारतीय वैज्ञानिक थे, जिनका चश्मे के काँच के निर्माण में सराहनीय योगदान रहा था। इनकी स्मृति में 'केन्द्रीय हिन्दी संस्थान' द्वारा 'आत्माराम पुरस्कार' दिया जाता है। आत्माराम जी विज्ञान की शिक्षा अपनी भाषा में देने पर जोर देते थे। उनके जीवन में इतनी सादगी थी कि लोग सम्मान के साथ उन्हें गांधीवादी विज्ञानी कहा करते थे।

जन्म तथा शिक्षा

प्रसिद्ध वैज्ञानिक और औद्यौगिक अनुसंधानशालाओं के महानिदेशक डॉ. आत्माराम का जन्म 12 अक्टूबर सन 1908 में उत्तर प्रदेश राज्य के बिजनौर ज़िले में पीलाना नामक स्थान पर हुआ था। आत्माराम जी ने अपनी शिक्षा के अंतर्गत बी.एससी. की डिग्री कानपुर से तथा एम.एससी. और पी.एचडी. इलाहाबाद से की।

शोध कार्य

विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के बाद आत्माराम ने कांच और सेरोमिक्स पर शोध आरंभ किया। ऑप्टिकल कांच अत्यंत शुद्ध कांच होता है और उसका उपयोग सूक्ष्मदर्शी और विविध प्रकार के सैन्य उपकरण बनाने में किया जाता है। भारत में यह कांच जर्मनी से आयात होता था। इस पर प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा व्यय होती थी। डॉ. आत्माराम ने बड़ी लगन के साथ शोध करके भारत में ही ऐसा कांच बनाने की विधि का अविष्कार कर लिया। इससे न केवल देश की आत्मनिर्भरता बढ़ी वरन् औद्योगिक क्षेत्र में उसके सम्मान में भी वृद्धि हुई। 1967 में आत्माराम जी को देश की प्रमुख वैज्ञानिक संस्था 'वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद' का महानिदेशक बनाया गया।

हिंदी के पक्षधर

डॉ. आत्माराम विज्ञान की शिक्षा अपनी भाषा में देने पर जोर देते थे। उन्होंने स्वयं लिखा था-

"विद्यार्थि जीवन में अंग्रेज़ी का अभ्यास कम होने के कारण कैमिस्ट्री मेरी समझ में नहीं आती थी, परंतु जब एक बार डॉ. फूलदेव सहाय वर्मा ने रसायन विज्ञान की मूल बातें हिंदी में समझा दीं तो मेरी गाड़ी चल पड़ी।"

गांधीवादी विज्ञानी

उनके अनुसंधान को देखते हुए सोवियत रूस के टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ने उन्हें 'डॉक्टर ऑफ़ टेक्नोलोजी' की उपाधि दी थी। डॉ. आत्माराम के जीवन में इतनी सादगी थी कि लोग सम्मान के साथ उन्हें 'गांधीवादी विज्ञानी' कहा करते थे।

सम्मान और पुरस्कार

मृत्यु

6 फ़रवरी, 1983 ई. को देश के महान् वैज्ञानिक आत्माराम जी का निधन हो गया।

आत्माराम पुरस्कार

'आत्माराम पुरस्कार' भारत का एक प्रतिष्ठित सम्मान है, जो प्रसिद्ध वैज्ञानिक आत्माराम की स्मृति में दिया जाता है। यह पुरस्कार 'केन्द्रीय हिन्दी संस्थान' द्वारा प्रदान किये जाने वाले प्रमुख पुरस्कारों में से एक है। यह पुरस्कार वैज्ञानिक एवं तकनीकी साहित्य तथा उपकरण विकास के क्षेत्र में व्यक्ति के उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रदान किया जाता है। 'आत्माराम पुरस्कार' 'मानव संसाधन विकास मंत्रालय', भारत सरकार के 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' द्वारा प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार के अंतर्गत सम्मानित व्यक्ति को एक लाख रुपये की राशि उसके सम्मान स्वरूप प्रदान की जाती है। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष दो लोगों को प्रदान किया जाता है।


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