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'''पृथूदक''' | '''पृथूदक''' [[हरियाणा]] राज्य के [[कुरुक्षेत्र ज़िला|कुरुक्षेत्र ज़िले]] में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। [[महाभारत]] के अनुसार पृथूदक प्राचीन [[तीर्थ स्थान]] है और इसकी स्थिति [[सरस्वती नदी]] के किनारे बताई गई है। पृथूदक का संबंध महाराज पृथू से बताया जाता है। यहाँ आज भी अनेक प्राचीन मंदिरों के [[अवशेष]] हैं तथा पुरातत्त्व विषयक सामग्री भी यहाँ से मिली है। | ||
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पृथूदक का अभिज्ञान 'पेहेवा' या 'पिहोवा' (हरियाणा) से किया गया है- | |||
<blockquote>'पृथूदकमिति ख्यातं कार्तिकेयस्य वै नृप, तत्राभिषैकं कुर्वीत पितृदेवार्चने रत:, पुण्यमाहु: कुरुक्षेत्रं कुरुक्षेत्रात् सरस्वती, सरस्वत्याश्च तीर्थानि तीर्थेभ्यश्च पृथूदकम्', पृथूदकात् तीर्थतमं नान्यत् तीर्थं कुरुद्वह', तत्र स्नात्वा दिवं यान्ति येऽपि पापकृती नरा: पृथूदके नरश्रेष्ठ एवमाहुर्मनीषिण:'<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 83, 142-145-148-149.</ref></blockquote> | |||
[[शल्यपर्व महाभारत|शल्यपर्व]] में भी सरस्वती के तीर्थों के प्रसंग में पृथूदक का उल्लेख है- | |||
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महाभारत के [[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]] में कहा गया है, "[[कुरुक्षेत्र]] पुण्य भूमि है। कुरुक्षेत्र से बढ़कर सरस्वती है, सरस्वती से बढ़कर तीर्थ है तथा तीर्थों से बढ़कर पृथूदक श्रेष्ठ है। पृथूदक सर्वोत्तम तीर्थ है, जहाँ [[स्नान]] करने से पापी मनुष्य भी स्वर्ग की यात्रा करता है।" | |||
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[[महमूद ग़ज़नवी]] और [[मुहम्मद ग़ोरी]] ने थानेसर को लूटने के समय पेहेवा को भी ध्वस्त कर दिया था। महाराणा रणजीत सिंह ने यहाँ के प्राचीन मंदिरों का जीर्णाद्वार करवाया था। महाराजा पृथु से सम्बन्धित होने के कारण इस स्थान का नाम 'पृथूदक' होना सम्भावित है। यहाँ [[मराठा|मराठों]] द्वारा निर्मित [[सरस्वती देवी|देवी सरस्वती]] का 'पिरथुडाकेश्वर' (पिरथुवेश्वर) का मन्दिर है। पृथूदक शहर के नाम की उत्पत्ति [[संस्कृत]] के 'पृथुडाक'<ref>पृथु का तालाब पौराणिक राजा वेण का पुत्र</ref> शब्द से हुई है। इस स्थल की खुदाई से नौवीं शताब्दी के [[अभिलेख]] मिले हैं। | |||
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पृथूदक हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। महाभारत के अनुसार पृथूदक प्राचीन तीर्थ स्थान है और इसकी स्थिति सरस्वती नदी के किनारे बताई गई है। पृथूदक का संबंध महाराज पृथू से बताया जाता है। यहाँ आज भी अनेक प्राचीन मंदिरों के अवशेष हैं तथा पुरातत्त्व विषयक सामग्री भी यहाँ से मिली है।
पौराणिक वर्णन
पृथूदक का अभिज्ञान 'पेहेवा' या 'पिहोवा' (हरियाणा) से किया गया है-
'पृथूदकमिति ख्यातं कार्तिकेयस्य वै नृप, तत्राभिषैकं कुर्वीत पितृदेवार्चने रत:, पुण्यमाहु: कुरुक्षेत्रं कुरुक्षेत्रात् सरस्वती, सरस्वत्याश्च तीर्थानि तीर्थेभ्यश्च पृथूदकम्', पृथूदकात् तीर्थतमं नान्यत् तीर्थं कुरुद्वह', तत्र स्नात्वा दिवं यान्ति येऽपि पापकृती नरा: पृथूदके नरश्रेष्ठ एवमाहुर्मनीषिण:'[1]
शल्यपर्व में भी सरस्वती के तीर्थों के प्रसंग में पृथूदक का उल्लेख है-
'रुषंगुरब्रबीत तत्र नयस्त्रं भी पृथूदकम्, विज्ञायातीतवयसं रुषंगुं ते तपोधना:, तं च तीर्थमुपानिन्यु: सरस्वत्यास्तपोधनम्'[2]
महाभारत के वन पर्व में कहा गया है, "कुरुक्षेत्र पुण्य भूमि है। कुरुक्षेत्र से बढ़कर सरस्वती है, सरस्वती से बढ़कर तीर्थ है तथा तीर्थों से बढ़कर पृथूदक श्रेष्ठ है। पृथूदक सर्वोत्तम तीर्थ है, जहाँ स्नान करने से पापी मनुष्य भी स्वर्ग की यात्रा करता है।"
इतिहास
महमूद ग़ज़नवी और मुहम्मद ग़ोरी ने थानेसर को लूटने के समय पेहेवा को भी ध्वस्त कर दिया था। महाराणा रणजीत सिंह ने यहाँ के प्राचीन मंदिरों का जीर्णाद्वार करवाया था। महाराजा पृथु से सम्बन्धित होने के कारण इस स्थान का नाम 'पृथूदक' होना सम्भावित है। यहाँ मराठों द्वारा निर्मित देवी सरस्वती का 'पिरथुडाकेश्वर' (पिरथुवेश्वर) का मन्दिर है। पृथूदक शहर के नाम की उत्पत्ति संस्कृत के 'पृथुडाक'[3] शब्द से हुई है। इस स्थल की खुदाई से नौवीं शताब्दी के अभिलेख मिले हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख