समर्थ रामदास
समर्थ रामदास
| |
पूरा नाम | नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी |
जन्म | शके 1530 (सन 1608) |
जन्म भूमि | औरंगाबाद ज़िला, महाराष्ट्र |
मृत्यु तिथि | शालिवाहन शक 1603 (सन 1682) |
मृत्यु स्थान | सज्जनगढ़, महाराष्ट्र |
पिता/माता | राणुबाई (माता) |
उपाधि | समर्थ |
प्रसिद्धि | संत |
संबंधित लेख | महाराष्ट्र, शिवाजी, मराठा, मराठा साम्राज्य |
समर्थ रामदास महाराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्त थे। वे छत्रपति शिवाजी के गुरु थे। उन्होंने 'दासबोध' नामक एक ग्रन्थ की रचना भी की थी, जो मराठी भाषा में है। 'हिन्दू पद पादशाही' के संस्थापक शिवाजी के गुरु रामदासजी का नाम भारत के साधु-संतों व विद्वत समाज में सुविख्यात है। महाराष्ट्र तथा सम्पूर्ण दक्षिण भारत में तो प्रत्यक्ष भगवान हनुमान के अवतार के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
जन्म
समर्थ रामदास का जन्म महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले के जांब नामक स्थान पर शके 1530 (सन 1608) में हुआ था। इनका मूल नाम 'नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी' था।
बाल्यकाल
अपने बाल्यकाल में समर्थ रामदास बहुत शरारती हुआ करते थे। गाँव के लोग रोज़ उनकी शिकायत उनकी माता से आकर किया करते थे। एक दिन माता राणुबाई ने नारायण से कहा- "कुछ काम किया करो, तुम दिनभर शरारत करते हो। तुम्हारे बड़े भाई गंगाधर अपने परिवार की कितनी चिंता करते हैं।" यह बात नारायण के मन में लग गई। दो-तीन दिन बाद इन्होंने अपनी शरारत छोड़कर एक कमरे में ध्यान लगा लिया। दिनभर में नारायण नहीं दिखे तो माता ने बड़े बेटे से नारायण के बारे में पूछा। दोनों उन्हें खोजने निकल पड़े, किंतु उनका कोई पता नहीं चला। शाम के वक़्त माता ने कमरे में उन्हें ध्यान अवस्था में देखा तो उनसे पूछा- "नारायण, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" तब नारायण ने जवाब दिया- "मैं पूरे विश्व की चिंता कर रहा हूँ।"